Narendra Modi

A wall poster of NDS in Bihar

बिहार: युवाओं के ज्वलंत मुद्दे मतदाताओं को बदलाव के लिए एकजुट क्यों नहीं कर सके?

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एक दौर में अपनी छात्र-युवा शक्ति के बल पर इस देश में संपूर्ण क्रांति का नारा देने वाला बिहार बीस साल से एक अदद सरकार तक नहीं बदल पा रहा है जबकि युवाओं की समस्‍याएं दिन-ब-दिन गंभीर होती जा रही हैं। इस बार सभी राजनीतिक दलों ने युवाओं से रोजगार आदि का वादा किया था, लेकिन चुनाव जब जमीन पर उतरा तो सारी कहानी जातिगत ध्रुवीकरण का शिकार हो गई। जो दल जीता, उसने ‘जंगलराज’ का डर दिखाकर वोट खींच लिए। हर बार यही होता है और हर बार बिहार का नौजवान ठगा जाता है। चुनाव नतीजों के बाद विपक्ष के कुछ युवाओं से बातचीत के आधार पर अखिलेश यादव की टिप्‍पणी

RSS 100 years celebration in Nagpur

RSS@100 : संविधान की छाया में चक्रव्यूह… संघ अब राजकीय नीति है, नारा नहीं!

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राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ सौ साल का हो गया। ठीक उसी दिन, जब महात्‍मा गांधी की जयन्‍ती थी और दशहरा भी था। बीते लोकसभा चुनाव के बाद वाले एकाध महीने छोड़ दें, तो सौवें साल में संघ-शीर्ष तकरीबन शांत मुद्रा में ही रहा। यह मुद्रा विजयादशमी के एक दिन पहले वाकई राजकीय मुद्रा में तब्‍दील हो गई। गांधी-हत्‍या के बाद जिसे खोटा माना गया था, संघ का वह सिक्‍का 77 साल बाद चल निकला। भारतीय राष्‍ट्र-राज्‍य, लोकतंत्र, संविधान और सत्ताधारी दल के लिए इसके क्‍या निहितार्थ हो सकते हैं? पहले भी संघ पर यहां लिखने वाले व्‍यालोक ताजा संदर्भ में एक बार फिर रोशनी डाल रहे हैं

RSS-BJP

संघ-भाजपा समन्वय सूत्र : सत्ता सर्वोपरि, हिन्दुत्व बोले तो वक्त की नजाकत और पब्लिक का मूड!

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आरएसएस के मुखिया मोहन भागवत चार-छह महीने के अंतराल पर बौद्धिक कसरत के लिए कोई न कोई बयान दे देते हैं। आम चुनाव के दौरान संघ पर भाजपा की निर्भरता खत्‍म होने संबंधी जेपी नड्डा के औचक बयान के बाद बयानबाजियों और अटकलबाजियों का जो सिलसिला शुरू हुआ, उसमें संघ-भाजपा के परस्‍पर शक्ति संतुलन को लेकर अजीबोगरीब निष्‍कर्ष निकाले गए। बावजूद इसके, भाजपा चुनाव जीतती गई। केवल उत्‍तर प्रदेश अपवाद रहा, जहां के संभल के संदर्भ में भागवत का एक बयान लंबे समय बाद आया है और संघ-भाजपा के रिश्‍तों पर फिर से पहेलियां बुझायी जा रही हैं। ‘आत्‍मनिर्भर भाजपा’ शीर्षक से 27 मई को लिखे अपने लेख का ‍सिरा पकड़ कर व्‍यालोक ने एक बार फिर इस मसले को नई रोशनी में देखने की कोशिश की है

Bulldozer Politics

बीता आम चुनाव क्या हिंदुत्‍व के बुलडोजर की राह में महज एक ठोकर था?

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आम चुनाव के नतीजों के बाद राजनीतिक पंडितों ने दावा किया था कि ‘कमजोर’ हो चुके मोदी को अब भाजपा की वर्चस्‍ववादी राजनीति में नरमी लाने को बाध्‍य होना पड़ेगा। तात्‍कालिक विश्‍लेषण की शक्‍ल में जाहिर यह सदिच्‍छापूर्ण सोच आज बुलडोजर के पैदा किए राष्‍ट्रीय मलबे में कहीं दबी पड़ी है। भारत में कुछ भी नहीं बदला है। हां, तीसरी बार सत्‍ता में आए मोदी को ऐसे विश्‍लेषणों ने एक प्रच्‍छन्‍न वैधता जरूर दे दी, कि यहां लोकतंत्र अभी बच रहा है। प्रोजेक्‍ट सिंडिकेट के सौजन्‍य से देबासीश रॉय चौधरी का लेख

Security guard at Lal Chowk

जम्मू-कश्मीर को राज्य बनाए बिना हालात ठीक नहीं हो सकते : पूर्व गवर्नर सत्यपाल मलिक से बातचीत

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जम्मू और कश्मीर के इतिहास में पूर्व गवर्नर जगमोहन के बाद सत्यपाल मलिक ही हैं जिनके जिक्र के बगैर कश्मीर पर आज बात नहीं हो सकती। आज मलिक और मोदी सरकार न सिर्फ दूर हो चुके हैं, बल्कि एक-दूसरे को नापसंद भी करते हैं। व्यवस्था को इतने करीब से देखने, जानने, समझने और खुद अमल में लाने वाले मलिक के लिए क्या बदल गया इन पांच वर्षों में, यह समझने के लिए रोहिण कुमार ने दिल्‍ली में अनुच्‍छेद 370 की पांचवीं बरसी पर उनसे लंबी बातचीत की

BJP Office in Durgapur set on fire by TMC members

पश्चिम बंगाल: न सांप्रदायिकता हारी है, न विकास जीता है

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पश्चिम बंगाल के चुनावी मैदान में चार दलों के होने के बावजूद मतदाताओं के लिए महज भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच आर-पार बंट गया लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद अब हिंसक रंग दिखा रहा है। केंद्र में सरकार बन चुकी है, लेकिन मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे ‘अवैध और अलोकतांत्रिक’ करार दिया है। भाजपा फिलहाल चुप है, लेकिन बंगाल में उसकी सीटों में आई गिरावट को सांप्रदायिकता पर जनादेश मानना बड़ी भूल होगी। चुनाव परिणामों के बाद बंगाल के मतदाताओं से बातचीत के आधार पर हिमांशु शेखर झा का फॉलो-अप

INDIA candidates from Bihar's Karakat, Ujiyarpur and Begusarai Loksabha

चुनाव में Fake News : बिहार से विपक्ष के प्रत्याशियों की जुबानी फर्जी खबरों की कहानी

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आम चुनाव के अंतिम चरण का प्रचार अब थम चुका है। चार जून को नतीजे आएंगे। क्‍या इस चुनाव पर Fake News का कोई फर्क पड़ा है? क्‍या प्रत्‍याशियों के प्रचार अभियान पर दुष्‍प्रचार का असर पड़ा है? संसदीय चुनाव में खड़े उम्मीदवारों से बातचीत इस समस्या के अनकहे पहलुओं और जमीनी हकीकत को पेश करती है। फेक न्‍यूज पर प्रकाश डालने के साथ बिहार से इंडिया गठबंधन के तीन प्रत्‍याशियों से बातचीत कर रहे हैं डॉ. गोपाल कृष्‍ण

A Musahar family in Varanasi

बनारस : ‘विकास’ की दो सौतेली संतानें मुसहर और बुनकर

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महात्‍मा गांधी कतार के सबसे अंत में खड़े इंसान को सुख, दुख, समृद्धि आदि का पैमाना मानते थे। बनारस के समाज में मुसहर और बुनकर ऐसे ही दो तबके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दस साल की सांसदी और राज में ये दोनों तबके वाराणसी लोकसभा क्षेत्र में हुए कथित विकास का लिटमस टेस्‍ट माने जा सकते हैं, जो कुछ साल पहले एक साथ भुखमरी की हालत में पहुंच गए थे जब कोरोना आया था। चुनाव से ठीक पहले बुनकरों और मुसहरों की बस्तियों से होकर आईं नीतू सिंह की फॉलो-अप रिपोर्ट

Manikarnika Ghat Varanasi

दस साल बनारस : क्योटो के सपने में जागता, खुली आंख हारता एक शहर…

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‘बना रहे बनारस’- काशी के लोग न अब यह बात कहते हैं, न ही यहां कोई इसे सुनना पसंद करता है। बनारस का आदमी चौबीसों घंटे महसूस कर रहा है कि बनारस सदियों से जैसा था न तो वैसा रह गया, न आगे ही इसका कुछ बन पाएगा। दस साल से क्‍योटो देखने का सपना संजोए बनारसियों के साथ जो वीभत्‍स खेल हुआ है उसके बाद उनकी स्थिति ऐसी है कि न तो कुछ कहा ही जा रहा है, न कहे बिन रहा ही जा रहा है। फिर भी सब कह रहे हैं, जीतना नरेंद्र मोदी को ही है। बनारस का 2014 से 2024 तक का सफरनामा अभिषेक श्रीवास्‍तव की कलम से

Narendra Modi and Mohan Bhagwat

आत्मनिर्भर भाजपा : क्या नाक से बड़ी हो चुकी है नथ?

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भाजपा अब अपने बूते काम करने में समर्थ है और आरएसएस पर उसकी निर्भरता नहीं रही- सत्‍ताधारी पार्टी का अध्‍यक्ष अपनी मातृ संस्‍था पर ऐसा बयान देकर निकल जाए और देश में कहीं चूं तक न हो? ऐसा ही बयान यदि कांग्रेस अध्‍यक्ष ने गांधी परिवार के बारे में दिया होता तो विवाद की सहज कल्‍पना की जा सकती है। क्‍या हैं इस बयान के निहितार्थ? संघ-भाजपा के रहस्‍यमय रिश्‍तों पर व्‍यालोक की पड़ताल