Press Freedom

यूपी में खबरनवीसी: सच लिखने का डर और प्रिय बोलने का दबाव 2023 में राजाज्ञा बन गया

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उत्‍तर प्रदेश में पत्रकारिता पहले से ही कठिन थी। अब लगभग असंभव सी हो गई है। बीते एक साल के दौरान ‘नकारात्‍मक’ खबरें न लिखने के सरकारी फरमान के बाद पत्रकारों के ऊपर जम कर मुकदमे हुए हैं। छोटे गांव-कस्‍बों में दबंगों और माफिया का आतंक अलग से है। विडम्‍बना यह है कि रामराज्‍य लाने की तैयारियों में व्‍यस्‍त मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने रामनाथ गोयनका के चरणों में फूल अर्पित कर के सच को पाबंद करने का काम किया है। लखनऊ से असद रिज़वी की रिपोर्ट

छत्तीसगढ़: एक कानून बना कर उसे जमीन पर उतारने में पांच साल क्यों कम पड़ गए?

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हिंदी पट्टी में सबसे पहले पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर एक कानून बनाने की मांग छत्‍तीसगढ़ से ही उठी। यह मुद्दा पिछले विधानसभा चुनाव में इतना गरमाया हुआ था कि कांग्रेस पार्टी को अपने घोषणापत्र में पत्रकार सुरक्षा कानून लाने का वादा करना पड़ा। भूपेश बघेल की सरकार आने के बाद ऐसा कानून बनाने में राज्‍य सरकार को पूरे साढ़े चार साल लग गए। बीते मार्च में यह कानून बनकर पारित हुआ, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। रायपुर से विष्णु नारायण की रिपोर्ट

भारत का पत्रकार मानवाधिकार कार्यकर्ता कैसे बना?

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इस प्रेस स्‍वतंत्रता दिवस पर युनेस्‍को की थीम में एक अदृश्‍य सबक छुपा है, कि अब समुदाय, पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता के बीच अंतर बरतने का वक्‍त जा चुका