प. बंगाल: सुप्रीम कोर्ट में याचिका खारिज, तृणमूल ने कहा- यूएन से शांति सेना भी बुला लो!

पंचायत चुनाव में केंद्रीय बलों की तैनाती के संबंध में सुप्रीम कोर्ट से पश्चिम बंगाल सरकार की याचिका खारिज होने के बाद तृणमूल कांग्रेस ने इसे विपक्ष की साजिश करार दिया है जबकि भाजपा ने इसे ममता सरकार की नैतिक हार बताया है।

आपदा में अवसर: हवा-पानी पर कब्जे के बाद ‘व्यथित’ अदाणी की रेलवे में एन्ट्री

गौतम अदाणी ने बालेश्‍वर ट्रेन हादसे के बाद 4 जून को ‘बेहद व्‍यथित’ होकर एक ट्वीट किया था। उसमें उन्‍होंने बताया था कि ‘जिन मासूमों ने इस हादसे में अपने अभिभावकों को खोया है उनकी स्कूली शिक्षा की जिम्मेदारी अडाणी समूह उठाएगा।‘ इस फैसले पर अदाणी की काफी सराहना हुई थी, लेकिन कोई नहीं जानता था कि इस त्रासदी की आड़ में कोई व्‍यापारिक सौदा चल रहा था, जिसका खुलासा दो हफ्ते बाद ही हो जाएगा।

NCERT की ‘क्षत-विक्षत’ किताबों से हमारा नाम मिटा दें: योगेंद्र यादव और सुहास पलशीकर की चिट्ठी

योगेंद्र यादव और सुहास पलशीकर जैसे दो प्रतिष्ठित बुद्धिजीवियों द्वारा एनसीईआरटी निदेशक को लिखा गया पत्र इस मायने में ज्‍यादा दिलचस्‍प है कि इससे तमाम लोगों के सामने पहली बार यह बात आई है कि मोदी सरकार के नौ साल हो जाने के बावजूद सरकारी पाठ्यपुस्‍तकों में मुख्‍य सलाहकार के तौर पर सरकार के इन आलोचकों का नाम बरकरार था

गुजरात हाइकोर्ट के जज ने बलात्कार पीड़िता के वकील को मनुस्मृति पढ़ने का सुझाव क्यों दिया?

गुजरात से आने वाले प्रधानमंत्री ने नई संसद में राजदंड को स्‍थापित किया और उसके दस दिन बाद ही गुजरात के उच्‍च न्‍यायालय में जज ने एक बलात्‍कार पीड़िता के वकील को मनुस्मृति पढ़ने की सलाह दे डाली। एक साथ विधायिका और न्यायपालिका में संवैधानिक मूल्य के बजाय मनुस्मृति के मूल्य की स्थापना क्या महज संयोग है?

BK-5: बिना सुनवाई, बिना चार्जशीट, एक अनंत कैद के पांच साल

तीन साल पहले जिस बंबई हाइकोर्ट ने गौतम नवलखा के चश्‍मे के मामले में इंसानियत का हवाला दिया था उसी ने वरवरा राव को जमानत पर मोतियाबिंद का ऑपरेशन करवाने के लिए हैदराबाद जाने से रोक दिया। भीमा कोरेगांव हिंसा के मामले में कैद सोलह में से पांच की गिरफ्तारी को पांच साल बीते 6 जून को पूरा हो गया। सुनवाई शुरू होने के अब तक कोई संकेत नहीं हैं। यह कैद अनंत होती जा रही है

मैनपुरी का दलित नरसंहार: चार दशक बाद आया फैसला और मुखौटे बदलती जाति की राजनीति

जुर्म जैसा दिख रहा था दरअसल वैसा था नहीं और इंसाफ जिस रूप में हुआ है उसकी भी जुर्म से संगति बैठा पाना मुश्किल है। इसके बावजूद, सब कुछ सरकार और उसे चलाने वाली जाति के पक्ष में ही रहा, और आज भी है। बयालीस साल पहले हुए साढ़ूपुर नरसंहार में बुधवार को आया फैसला कांग्रेस के पतन और भाजपा के उभार को समझने का एक कारगर मौका है

सेबी की जांच के पहले ही सुप्रीम कोर्ट की कमेटी ने अदाणी को क्लीन चिट कैसे दे दी?

सेबी ने सुप्रीम कोर्ट से हलफनामे में कहा था कि 2016 से उसके द्वारा अदाणी समूह की किसी भी कंपनी की जांच नहीं की जा रही थी। जब जांच ही नहीं हो रही थी, तो सुप्रीम कोर्ट की कमेटी की रिपोर्ट में सेबी पाक साफ कैसे निकल आई

‘नबाम रेबिया’ का मुकदमा और भुला दी गई एक मौत

सात साल बाद जिस फैसले की समीक्षा सुप्रीम कोर्ट की उच्‍च पीठ से अभी होनी बाकी है, उसने नबाम रेबिया का नाम तो न्‍यायिक इतिहास में दर्ज कर दिया लेकिन कलिखो पुल को हमेशा के लिए मिटा दिया

बनारस: 22 साल पुरानी परियोजना में जमीन कब्जाने के लिए पहली बार चली लाठी, फूटे सिर

कई ग्रामीणों को हिरासत में लिया गया है। कुछ ग्रामीण घायल भी हुए हैं। ग्रामीणों की पत्‍थरबाजी में पुलिस को चोट लगने की बात भी सामने आ रही है। पिछले दो दशक के दौरान यह परियोजना विभिन्‍न कारणों से उठती गिरती रही है लेकिन पहली बार यहां ऐसी हिंसा हुई है।

पाकिस्तान: क्या सेना ने इस बार इमरान की ताकत भांपने में गलती कर दी है?

1979 में जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी दिए जाने के बाद पाकिस्तान की पॉलिटिकल क्लास ने सेना के खिलाफ जाने की हिम्मत नहीं दिखाई थी। बेनजीर भुट्टो की हत्या ने सेना के खौफ को और मजबूत ही किया था, लेकिन इस बार स्थिति उलटी है