NDLS, 15/02 : खबर मिटाने पर आमादा रेलवे पुलिस के सामने अडिग रही एक रिपोर्टर की डायरी

Saumya Raj
Saumya Raj
आधी रात हुई दर्जनों मौतों की गवाहियां सुन-सुन के, दर्ज कर-कर के, थक चुके एक रिपोर्टर को अगर तकरीबन बंधक बनाकर कहा जाय कि उसे अपना सारा काम उड़ाना होगा वरना थाने जाना होगा, तो उसके सामने क्‍या विकल्‍प बचता है? सौम्‍या राज के साथ पंद्रह फरवरी को नई दिल्‍ली रेलवे स्‍टेशन पर यही हुआ, लेकिन उन्‍होंने पुलिस के सामने हथियार नहीं डाले। सत्‍ता के प्रतिकूल खबरों को खुलेआम दबाए जाने के दौर में पेशेवर साहस की एक छोटी-सी पर अहम मिसाल, कुछ जरूरी सवालों के साथ। खुद रिपोर्टर की कलम से

शनिवार, 15 फरवरी की रात जब मैं सोने जा रही थी, तभी मोबाइल पर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन (NDLS) पर हुई भगदड़ का नोटिफिकेशन दिखा। उस शाम ऑफिस से निकलने के बाद मैं इंडिया हैबिटेट सेंटर में एक डॉक्‍युमेंट्री ‘इन सर्च ऑफ़ बिदेसिया’ की स्क्रीनिंग देखने चली गई थी। कुछ देर पहले वहीं से लौटी थी। अचानक मिली भगदड़ की सूचना ने मुझे एकदम से हिला दिया।

इस घटना के बारे में और जानने के लिए मैं यूट्यूब और एक्‍स पर न्यूज देखने लगी। उस समय स्टेशन से लाइव खबरें आ रही थीं कि भगदड़ में 15 से ज्यादा लोगों की जान चली गईं है। मैंने तुरन्त मौके पर जाने का निर्णय किया और अपने एडिटर को इसकी सूचना दी। तब तक काफी रात हो चुकी थी। अगला दिन रविवार होने के कारण किसी कैमरामैन का मेरे साथ आना संभव नहीं दिख रहा था। ऐसे में मैंने माइक, अपना प्रेस कार्ड, कुछ और जरूरी चीज़ें उठाईं, फिर अकेले ही स्टेशन की ओर निकल पड़ी।

रास्ते भर मेरी आंखों के सामने कुंभ जाने के लिए जमा भीड़ के विजुअल तैर रहे थे जो पिछले कुछ दिनों से देश के अलग-अलग रेलवे स्टेशनों से सोशल मीडिया पर आए थे। इस बीच मैंने अपने एक दोस्त को एहतियातन कॉल करके बता दिया कि मैं अकेले ही स्टेशन जा रही हूं, जरूरत पड़ने पर आप वहां आ जाना।

जब तक मैं स्टेशन पहुंची तब तक स्थिति लगभग सामान्य हो चुकी थी, हालांकि स्टेशन के बाहर एम्बुलेंस की कतार लगी हुई थी। दमकल विभाग और विशेष बलों की भी कई गाड़ियां खड़ी थीं। आपदा राहत बल (एनडीआरएफ) की टीम अपना काम पूरा करके स्टेशन से बाहर निकल रहे थे। कई मीडिया चैनलों के प्रतिनिधि अब भी वहां मौजूद थे।

वहां पहुंचकर मैंने पहले स्थिति का जायजा लिया, फिर प्लेटफॉर्म नम्बर 14-15 पर पहुंची जहां हादसा हुआ था। उस समय तक प्लेटफॉर्म की सफाई की जा चुकी थी, लेकिन वहां रखे डस्टबिन और सीढ़ियों के आसपास वाले टिन शेड घटना की गवाही दे रहे थे जिन पर लोगों के जूते-चप्पल, ऊनी कपड़े, खाने-पीने की चीजें आदि अब भी बिखरी हुई थीं।



प्लेटफॉर्म से भीड़ पूरी तरह छंट चुकी थी। कुछ गिने-चुने लोग ही वहां मौजूद थे। मैंने लोगों से बातचीत शुरू की। सबसे पहले एक व्‍यक्ति मिले जो अपने पिता को अपने घर मधुबनी (बिहार) भेजने के लिए स्टेशन छोड़ने आए थे। वे नोएडा में रहते हैं और रियल स्टेट का काम करते हैं। उन्होंने बताया कि कैसे वे और उनके पिता भगदड़ से जिंदा बचकर निकल पाए।

“मेरे पिताजी की ट्रेन थी। उन्हें लेकर मैं 13 नंबर प्लेटफॉर्म पर जा रहा था, लेकिन भीड़ इतनी ज्यादा थी कि मैं पहुंच ही नहीं पाया। लोग एक-दूसरे के ऊपर गिर रहे थे और दबते जा रहे थे। हमारा दम घुट रहा था। हम दोनों के बीच यही बातें हो रही थीं कि बस किसी भी तरह सांसें चलती रहनी चाहिए। एक समय पर ऐसा भी लगा कि आज नहीं बच पाऊंगा। मैंने ऑलमोस्ट गिव-अप कर दिया था, लोग यहां मर रहे थे। फिर लोगों ने हमारी मदद की और मैं अपने साथ-साथ पिताजी को भी निकाल पाया। विश्वास नहीं हो रहा है कि मैं अभी जिंदा आपके सामने खड़ा हूं।”

उन्होंने बताया कि भगदड़ के समय प्रशासन से वहां कोई नहीं था, ‘’भीड़ को संभालने के लिए कोई होता तो शायद इतनी बड़ी घटना को होने से रोका जा सकता था। मुझे समझ नहीं आता है कि जब चीजें हो जाती हैं तब प्रशासन क्यों पहुंचता है? उस समय अगर प्रशासन यहां होता तो लोगों को बचाया जा सकता था।”

बातचीत के बीच प्लेटफॉर्म की एक बेंच पर बैठे कुछ और लोग मिले। वे बक्सर जाने के लिए ट्रेन पकड़ने स्टेशन आए थे। उन्होंने बताया कि हाथ में कन्फर्म टिकट होने के बावजूद भीड़ के चक्‍कर में उनकी ट्रेन छूट चुकी है। उन्होंने बताया, “ट्रेन के प्लेटफॉर्म पर आने से पहले ही यहां इतनी भीड़ हो गई थी कि पैर रखने तक की जगह नहीं बची। ट्रेन प्लेटफॉर्म पर आने लगी तो लोगों में धक्कामुक्की शुरू हो गई। इस चक्‍कर में एक औरत ट्रैक पर गिर गई। जब तक पूरी ट्रेन ऊपर से गुजर नहीं गई तब तक औरत उसके नीचे ही रही। अच्छा हुआ कि उसकी जान बच गई।”

भगदड़ के प्रत्‍यक्षदर्शियों और उसमें से किसी तरह जिंदा बच निकल आए लोगों के अनुभव इतने भयावह थे कि उनकी आपबीती सुनकर आंखों के सामने भगदड़ के दृश्य उभरने लगे। मेरे कानों में रोते-बिलखते बच्चों और औरतों की आवाजें गूंज रही थीं। मैं बस चुपचाप उन्हें सुनते जा रही थी। मेरा गला अब रूंधने लगा था। फिर मुंह से एक बोल तक नहीं निकल सका। मैंने खुद को ढांढस बंधाया और अगले कुछ घंटे तक वहां मौजूद लोगों को लगातार सुनती रही। उनमें से जो लोग कैमरे पर बोलने में सहज थे, उनकी बाइट मैंने अपनी स्टोरी के लिए रिकॉर्ड की।


दिल्ली दर-ब-दर: G20 के नाम पर हुई तबाही के शिकार लोग इन सर्दियों में कैसे जिंदा हैं?


स्टेशन को अंदर से एक बार पूरा छान लेने के बाद मैं बाहर वेटिंग एरिया की तरफ आई। वहां बड़ी संख्या में लोग ट्रेनों के इंतजार में बैठे या लेटे हुए थे। वेटिंग एरिया में उस समय मौजूद लोगों में से ज्‍यादातर कुंभ यात्री थे जो अपनी ट्रेन का इंतजार कर रहे थे। कई ऐसे लोग भी थे जिनकी ट्रेन छूट चुकी थी। उस वक्‍त रात के करीब साढ़े तीन बजे रहे थे, तब तक मेरा दोस्त भी वहां पहुंच चुका था जिसे मैंने कॉल किया था।

वहां मैंने कुछ और लोगों से बातचीत की। वहीं दिल्ली में मजदूरी करने वाले दो व्‍यक्ति मिले जो कुछ और लोगों के साथ प्रयागराज जाने के लिए स्टेशन आए थे। भगदड़ की वजह से उनकी ट्रेन छूट चुकी थी। उनमें से एक व्यक्ति ने बताया कि वे लोग पैसा इकट्ठा कर के कुंभ नहाने जा रहे थे, ‘’हमारा सात-आठ लोगों का ग्रुप था लेकिन भगदड़ के बाद बाकी लोग वापस घर लौट गए हैं। हम लोग भी सुबह होने का इंतजार कर रहे हैं। मेट्रो शुरू होते ही घर लौट जाएंगे।”

वहां हर किसी के पास कहने के लिए कुछ न कुछ था। मैंने ज्यादा से ज्यादा लोगों से बातचीत की। स्टोरी से संबंधित कुछ जरूरी बाइट, पीटूसी और नैरेशन रिकॉर्ड किए। ये सब करने में सवा चार बजे गए। अब हमारा काम लगभग पूरा हो चुका था। रात भर जागने की वजह से काफ़ी थकान महसूस हो रही थी और मैं जल्दी से जल्दी रिकॉर्ड की गई चीजें एडिटिंग के लिए हैंडओवर करना चाहती थी ताकि समय से स्टोरी पब्लिश हो सके, लेकिन उससे पहले मुझे एक बार लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल जाना था जहां भगदड़ के बाद अधिकांश घायलों और मृतकों को ले जाया गया था।

अस्पताल निकलने से पहले मैंने सोचा कि एक बार फिर से भगदड़ वाली जगह पर हो आना चाहिए ताकि रिपोर्ट में कोई जरूरी चीज न छूट जाए। इसलिए हम फिर से प्लेटफॉर्म नंबर 14-15 की ओर चल पड़े।

जिस सीढ़ी पर भगदड़ मची थी, वहां हमें एक बुजुर्ग मिले। परिवार के साथ प्रयागराज जाने के लिए वंदे भारत एक्सप्रेस से उनका कन्‍फर्म टिकट बुक था, लेकिन भीड़ के कारण वे ट्रेन में चढ़ नहीं पाए थे। मैं वहीं सीढ़ी पर खड़े-खड़े उनसे बात करने लगी और मेरे साथी ने मोबाइल फोन का कैमरा ऑन करके बातचीत को रिकॉर्ड करना शुरू कर दिया।


DLS Platfor no, 14-15 bridgeway
प्लेटफॉर्म नंबर 14-15 की तरफ जाने वाला रास्ता

तभी रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) के कुछ जवान मुझे सीढ़ी से उतरते हुए दिखाई दिए। मैंने उनकी ओर ध्यान दिए बगैर बातचीत जारी रखी। मेरे साथी का ध्यान अभी तक उनकी ओर नहीं गया था क्योंकि वे उसके बिल्कुल पीछे से आ रहे थे। अचानक उनमें से एक आदमी जो सादे कपड़ों में था, तेजी से आगे बढ़ा और पीछे से लपककर उसके हाथ से उसने मोबाइल फ़ोन छीन लिया। वे हम पर चिल्लाने लगे और कहने लगे कि “यहां ये सब क्या चल रहा है? तुम लोग अंदर कैसे आ गए? किसने तुम्हें रिकॉर्ड करने की परमिशन दी?” इसी बीच बाकी जवान भी वहां पहुंच गए और उन्‍होंने हमें घेर लिया। एक जवान ने बुजुर्ग को कंधे से धक्का देते हुए जाने के लिए कहा।

यह सब कुछ इतना अचानक हुआ कि मुझे कुछ भी समझ नहीं आया। गनीमत यह रही कि छीनने के दौरान ही मेरा फोन लॉक हो गया था, इसलिए वे लोग फोन में रिकॉर्ड की हुई क्लिप्स को देख नहीं पा रहे थे। मैंने उनसे मोबाइल फोन वापस करने को कहा। सब मिलकर मेरे ऊपर चिल्लाने लगे और कहने लगे कि आप यहां से कुछ नहीं दिखा सकते, यहां कोई भी वीडियो रिकॉर्ड नहीं कर सकता। फिर उन्होंने मुझसे कहा कि हमें मोबाइल फोन का पासवर्ड बताओ और तुरन्त सारा डेटा डिलीट करो वर्ना अभी उठाकर ले जाएंगे। मैंने पूछा- यहां जो हुआ है मैं उसे क्यों नहीं दिखा सकती? क्या पत्रकारिता करना कोई गुनाह है? क्या सच्चाई दिखाने पर मुझे जेल जाना पड़ेगा?

वे सब मुझसे जिस लहजे में बात कर रहे थे वह बेहद डराने वाला था, लेकिन मैंने खुद को मजबूत बनाए रखा। मैं उनके साथ बिलकुल तमीज से पेश आ रही थी। मैंने उनसे कहा, ‘’सर हम मीडिया से हैं और यहां सिर्फ़ अपना काम कर रहे हैं। जिस तरह आप अपनी ड्यूटी कर रहे हैं, वैसे ही मैं भी अपनी ड्यूटी कर रही हूं। प्लीज मेरा फोन वापस कर दीजिए और मुझे अपना काम करने दीजिए।‘’ वे नहीं माने, उलटे ज्यादा बदतमीजी करने लगे। वे सभी मिलकर लगातार मेरे ऊपर फोन का लॉक खोलने और डेटा डिलीट करने के लिए दबाव बनाने लगे।

जिस व्यक्ति ने हमसे मोबाइल फोन छीना था उसने मोबाइल अपने एक साथी के हाथों में सौंप दिया और हमसे प्रेस कार्ड मांगने लगे। मैंने तुरन्त उन्हें अपना प्रेस कार्ड निकालकर दिखाया। उन्होंने मुझसे वह भी छीन लिया और कहने लगे कि ये प्रेस कार्ड नहीं है। उन्होंने कार्ड मुझे लौटाने के बजाय अपने दूसरे साथी को दे दिया और मेरे हाथ से माइक भी छीनने की कोशिश की। मैं माइक को कसकर पकड़े रही और मैंने चिल्लाकर कहा कि ‘’आप मुझे इस तरह से नहीं छू सकते हैं।’’ तब उन्होंने अपने साथियों से लेडीज स्टाफ को बुलाने के लिए कहा।

इधर मैं उनसे बातचीत कर ही रही थी कि आरपीएफ के दो-तीन जवान मेरे साथी को एक तरफ ले गए और उसे मोबाइल फोन का लॉक खोलने के लिए कहा। उसने भी लॉक खोलने से यह कह कर इनकार कर दिया कि उसे पासवर्ड मालूम नहीं है। वे मेरे पास लौटकर आए, तब तक एक लेडी कांस्टेबल पहुंच चुकी थी।



मौका देखकर मैंने अपने एडिटर को अपने पर्सनल फोन से कॉल करके संक्षेप में इस घटना के बारे में बताया और उनको लाइन पर रहने के लिए कहकर फोन जेब में रख लिया। उनका चिल्लाना जारी था। वे हमारे साथ जिस तरह का बर्ताव कर रहे थे उससे मुझे इतना समझ आ चुका था कि ये लोग बिना डेटा डिलीट किए हमें यहां से जाने नहीं देंगे। पिछले पांच-छह घंटों में मैंने जो विजुअल और बाइट रिकॉर्ड किए थे, मैं उन्हें किसी भी कीमत पर डिलीट नहीं होने देना चाहती थी। मैंने तय कर लिया था कि आज जो भी हो पर मैं न तो इन लोगों को मोबाइल फोन का पासवर्ड बताऊंगी और न ही डेटा डिलीट करूंगी। मैं इसी पर अड़ी रही।

उन्होंने हमें फिर से धमकाया और अबकी बोले कि मोबाइल का लॉक खोलकर जो भी रिकॉर्ड किया है उसे हमारे सामने ही डिलीट कर दो नहीं तो हमारे साथ थाने चलना पड़ेगा। मैंने कहा कि आप मुझे जहां जाने को कहेंगे मैं चलने को तैयार हूं लेकिन डेटा डिलीट नहीं करूंगी। जिस व्यक्ति ने मेरा फोन छीना था, वह धीरे से कुछ साथियों को लेकर वहां से चला गया लेकिन अब भी वहां लेडी सिपाही सहित चार लोग मौजूद थे जिनमें से एक के पास मेरा मोबाइल था। लेडी सिपाही मेरे साथ कुछ नर्म तरीके से पेश आ रही थी। उन्होंने मुझे एक तरफ ले जाकर कहा, “मैडम, मैं जानती हूं कि यहां जो भी हुआ वह बहुत गलत हुआ। हमने भी अपनी आंखों से सब देखा है। अभी आपके साथ जो हो रहा है वह भी गलत है, लेकिन आप भी थोड़ा मैनेज कर लो और सर जो बोल रहे हैं, उसमें थोड़ा कोऑपरेट कर लो।”

अगले करीब एक घंटे तक मेरी उनसे लगातार बहस चलती रही। वे सिर्फ़ एक ही शर्त पर मोबाइल लौटाने को तैयार थे कि पहले मैं उन्हें फोन का पासवर्ड बताऊं और उनके सामने ही सारी रिकॉर्डिंग डिलीट कर दूं। मैं इससे इनकार कर चुकी थी। उन्‍होंने धमकी दी कि वे वहीं बैठे-बैठे फ़ोन को फॉरमेट करवा सकते हैं। मैंने कहा कि आप यह भी आजमा कर देख लीजिए, लेकिन मैं आपको पासवर्ड नहीं बताऊंगी।

इतनी देर में शायद उनको भी यह लगने लगा था कि मैं उन्हें डेटा डिलीट नहीं करने दूंगी। फिर उन्होंने अपने पर्सनल फोन से किसी को कॉल किया। फिर आकर कहने लगे, ‘’मैडम, हमारी नौकरी का सवाल है। प्लीज, आप बात को समझिए और हमारे साथ कोऑपरेट कीजिए।‘’ फिर उन्होंने खुद ही हमें एक तरीका सुझाया। वे बोले कि मैं सीसीटीवी कैमरे के सामने आकर एक बार फ़ोन का लॉक खोलकर उन्‍हें दिखा दूं कि मैंने क्या रिकॉर्ड किया है और उसे डिलीट करने की एक्टिंग कर दूं।

शुरुआत में मैंने इसके लिए भी मना किया, लेकिन फिर उनकी बात मान ली। जब तक मैंने फोन का लॉक खोलकर कुछ वीडियो क्लिप उनको दिखाई, तब तक उन्होंने फोन को अपने हाथों में ही पकड़े रखा। फिर फोन मुझे सौंपकर बड़बड़ाते हुए वहां से चले गए। मैं भी स्टेशन से बाहर की तरफ़ चल दी। बाहर आकर मैंने देखा कि फोन की बैटरी नहीं बची है। मैंने एक चाय की दुकान पर उसे चार्जिंग पर लगा दिया। इसी दौरान मैंने सोचा कि मेरे साथ जो घटना हुई उसके बारे में मुझे लोगों को बताना चाहिए। आरपीएफ के जवानों ने जो मुझे रिपोर्ट करने से रोका, सच्चाई दिखाने से रोका और मेरे साथ जो बदतमीजी की है इसे मुझे लोगों से साझा करना चाहिए।



फोन थोड़ा चार्ज होने के बाद मैं अस्पताल के लिए रवाना हो गई। इसी दौरान मैंने देखा कि फोन में छीनाझपटी के दौरान एक वीडियो रिकॉर्ड हो गया है। मैंने इसी वीडियो को अपने एक्‍स हैंडल से पोस्ट कर दिया। जब मैं लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल पहुंची तो देखा कि अस्पताल को छावनी में तब्दील किया जा चुका था। मेन गेट पर बड़ी संख्या में पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों के हथियारबंद जवान तैनात थे। मीडिया चैनलों के कई रिपोर्टर भी जमा थे। किसी को भी अस्पताल के भीतर नहीं जाने दिया जा रहा था। सुबह करीब नौ बजे तक वहां रुकने के बाद मैं घर के लिए निकल गई।

नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर 15 फरवरी की रात जब भगदड़ मची तो पहले उसे अफवाह बताया गया। रेल मंत्री ने इस बारे में पहले एक्‍स पर एक पोस्ट किया, जिसे बाद में बदला गया। जब हर तरफ़ यह खबर फैल गई तो रेलवे को भगदड़ की बात स्वीकार करनी पड़ी। इस भगदड़ में जान गंवाने वाले 18 मृतकों के परिजनों को शव सौंपने से पहले ही रातोंरात रेलवे की ओर से मुआवजे के रूप में नकद पैसे दिए गए।

इस घटना के संबंध में आरपीएफ की ओर से 16 फरवरी को जारी एक बयान में भगदड़ में 20 लोगों के मारे जाने और 10 लोगों के घायल होने की बात कही गई है। बयान में प्लेटफॉर्म नम्बर 14-15, जहां पर भगदड़ हुई थी, वहां भीड़ बढ़ने का कारण कुंभ स्पेशल ट्रेन का प्लेटफॉर्म बदला जाना बताया गया है। रेलवे की ओर से प्लेटफॉर्म बदलने की बात को शुरू से ही नकारा गया।

FallbackPDF

हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक रेल मंत्रालय की ओर से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्‍स को नोटिस जारी कर के भगदढ़ से जुड़ी 288 वीडियो लिंक हटाने का निर्देश दिया गया है। मंत्रालय ने 17 फरवरी को यह नोटिस भेजा था और एक्‍स को 36 घंटे में घटना से जुडे़ सभी वीडियो लिंक हटाने का निर्देश दिया था।

इस घटना की खबर को सेंसर करने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाए गए। चाहे स्टेशन में मीडिया की एंट्री को रोकना हो, मुझसे फोन छीनकर डेटा डिलीट करने का दबाव बनाना हो, अस्पताल के गेट से लेकर मुर्दाघर तक हथियारबंद जवानों का पहरा लगाना हो या फिर एक्‍स को भगदड़ से जुड़े लिंक्स हटाने का फरमान जारी करना हो।

नई दिल्ली के बाद अब कई शहरों के रेलवे स्टेशनों से उसी तरह के विजुअल सामने आ रहे हैं। स्टेशनों पर जमा भीड़ से कभी भी भगदड़ जैसी स्थिति फिर से उत्पन्न हो सकती है। लोग ट्रेनों में सवार होने के लिए रेलवे ट्रैक पर उतरकर एक प्लेटफॉर्म से दूसरे प्लेटफॉर्म पर जा रहे हैं, ट्रेनों की खिड़कियों और दरवाजों को तोड़ रहे हैं, एक-दूसरे के साथ धक्का-मुक्की कर रहे हैं। टॉयलेट में खड़े होकर यात्रा करने वाले हैं, सो अलग।


LNJP Hospital was turned into a cantonment after NDLS stampede
16 फरवरी की सुबह छावनी में तब्दील एलएनजेपी अस्पताल

एनजीटी ने रिपोर्ट दी है कि प्रयागराज में गंगा-यमुना के संगम का पानी आचमन के योग्य नहीं बचा है। रिपोर्ट में बताया गया कि कुंभ में लोग जहां डुबकी लगा रहे हैं वहां नदी के पानी में मानव या पशुओं के मल का मिश्रण का उच्च स्तर पाया गया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 19 फरवरी को उत्तर प्रदेश विधानसभा में इस रिपोर्ट को पूरी तरह से खारिज कर दिया।

शनिवार, 22 फरवरी को उन्‍होंने एक्‍स पर लिखा कि अब तक कुंभ में 60 करोड़ से अधिक लोग स्नान कर चुके हैं। विडम्‍बना है कि मौनी अमावस्या के दिन प्रयागराज में हुई भगदड़ में मारे गए लोगों की गिनती का सही आंकड़ा सरकार अब तक जारी नहीं कर पाई है। ऐसा लगता है कि सरकारी तंत्र का काम अब केवल भीड़ जुटाने का रह गया है- कभी चुनाव के नाम पर तो कभी कुंभ के नाम पर। लेकिन जब इसी अनियंत्रित भीड़ की वजह से हादसे होते हैं तो उनकी जवाबदेही लेने के बजाय इसी तंत्र को खबरें छुपाने के लिए लगा दिया जाता है।

सरकार 60 करोड़ से अधिक लोगों को कुंभ में स्नान करवाने का रिकॉर्ड तो बना लेगी, पर उन लोगों को रिकॉर्ड में कौन दर्ज करेगा जो इस ‘रिकॉर्ड भीड़’ के पैरों तले कुचलकर मर गए?


दिल्ली में मेरा घर जला दिया गया… रामायण और कुरान दोनों को आंच आई है!


More from सौम्या राज

NDLS, 15/02 : खबर मिटाने पर आमादा रेलवे पुलिस के सामने अडिग रही एक रिपोर्टर की डायरी

आधी रात हुई दर्जनों मौतों की गवाहियां सुन-सुन के, दर्ज कर-कर के,...
Read More