बाग बाग में आग

पूर्वांचल में मुआवजा न लेने और जमीन न देने के नारे के साथ खिरिया बाग से शुरू हुआ किसानों का आंदोलन अंडिका बाग के आंदोलन के लिए नजीर बन चुका है।

अक्टूबर 2022 से खिरिया बाग, आजमगढ़ में किसान और मजदूर अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट के नाम पर 670 एकड़ उपजाऊ जमीन छीने जाने के विरोध में धरने पर बैठे हैं। जमीन न देने की शर्त के साथ चल रहे इस आंदोलन में देश भर के किसान नेता आ चुके हैं। अब, जबकि पूर्वांचल एक्सप्रेस वे के किनारे औद्योगिक क्षेत्र/पार्क बनाने के नाम पर दर्जनों गांव निशाने पर आ चुके हैं, तो अंडिका बाग के किसानों ने भी मुआवजे के बजाय जमीनें न देने का नारा बुलंद किया है। पूर्वांचल में मुआवजा न लेने और जमीन न देने के नारे के साथ खिरिया बाग से शुरू हुआ किसानों का आंदोलन अंडिका बाग के आंदोलन के लिए नजीर बन चुका है।    

उसी पूर्वांचल एक्सप्रेस वे के किनारे के किसान जिन्होंने कुछ वर्षों पहले अपनी जमीन एक्सप्रेस वे में दे दी थी, वे आज जमीन नहीं देने की जिद के साथ एक महीने से ज्‍यादा समय से धरने पर बैठे हैं। इसे उन्‍होंने अंडिका बाग आंदोलन का नाम दिया है। दरअसल, खिरिया बाग किसान आंदोलन ने जमीन नहीं देने के सवाल पर अपनी शर्तों पर वार्ता की है। लिहाजा, वही प्रशासन जो किसी कीमत पर जमीन लेने की बात करता था, वह आज परियोजना स्थगित करने की बात कर रहा है। यही चीज अंडिका बाग के किसानों को प्रेरणा दे रही है।

किसान मजदूर पंचायत



बीते 29 अप्रैल को पूर्वांचल एक्सप्रेस वे के किनारे अंडिका बाग में हुई किसान मजदूर पंचायत में दर्जनों गांवों के ग्रामीण पहुंचे। पंचायत में पहुंचे सूबे के दिग्गज किसान नेताओं ने कहा कि पूर्वांचल एक्सप्रेस वे के किसानों मजदूरों के साथ पूरा देश खड़ा है। पंचायत में खिरिया बाग के आंदोलनकारी भी पहुंचे थे।

जन आंदोलन के राष्ट्रीय समन्वय की राष्ट्रीय समन्वयक अरुंधती धुरू ने कहा कि जमीन का सवाल जीवन का सवाल है। आजमगढ़ में चल रहे अंडिका बाग और खिरिया बाग आंदोलन में बड़ी संख्या में महिलाओं की भागीदारी जमीन की लड़ाई जीतने का ऐलान है।

मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित समाजसेवी डाक्टर संदीप पाण्डेय ने कहा कि विकास वह नहीं होता जो विनाश करे। औद्योगिक क्षेत्र के नाम पर जिन जमीनों को सरकार छीन रही है, क्या ये जमीनें जितना रोजगार दे रही हैं उतना कोई कारखाना देगा? ये फैक्ट्रियां सिर्फ गांवों को उजाड़ेंगी ही नहीं आसपास के गांवों की खेती किसानी के सामने दिक्कत खड़ी होगी, जब जल का दोहन होगा तो जल स्तर नीचे जाएगा। पेप्सी की कई कंपनियों के खिलाफ जनता ने लड़ा तो बनी बनाई कंपनियां बंद हो गईं। पेट्रोल डीजल का सीमित भंडार है। पूर्वांचल एक्सप्रेस वे समेत देश के तमाम एक्स्प्रेस वे बिना काम के हो जाएंगे जब पेट्रोलियम पदार्थ खत्म हो जाएगा। आजमगढ़ में एयरपोर्ट तो कहीं औद्योगिक पार्क या क्षेत्र के नाम पर किसानों की जमीन लेने वाली सरकार बताए कि कृषि भूमि का क्या विकल्प है। जमीन नहीं रहेगी तो अनाज क्या फैक्ट्रियों में बनेगा?

पूर्वांचल किसान यूनियन के महासचिव विरेंद्र यादव ने कहा कि पंचायत का निर्णय है कि पूर्वांचल एक्सप्रेस वे के किनारे औद्योगिक क्षेत्र या पार्क के नाम पर किए गए सर्वे को रद्द किया जाए, क्योंकि किसान मजदूर जमीन मकान नहीं देंगे। जब फूलपुर एसडीएम को मालूम नहीं कि कोई सर्वे हुआ तो ऐसे में गैरकानूनी सर्वे करने वालों पर कार्रवाई की जाए। अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट के नाम पर किसानों मजदूरों की जमीन छीनने वाली परियोजना को रद्द करने का लिखित शासनादेश दिया जाए। किसी भी परियोजना के लिए सर्वे करने से पहले प्रशासन गांव वालों से वार्ता कर सहमति ले क्योंकि की इस तरह से औचक सर्वे या अखबारों में जमीन लेने की खबरों से ग्रामीण सदमे में चले जा रहे हैं। पूर्वांचल एक्स्प्रेस वे में गई बहुत से किसानों की जमीनों को अब तक मुआवजा नहीं मिला उन्हें तत्काल मुआवजा दिया जाए। ग्राम सभा की जिन जमीनों का अधिग्रहण किया गया उन जमीनों का मुआवजा दिया जाए जिसे ग्राम सभा अपने विकास कार्य में उपयोग करे। पूर्वांचल एक्सप्रेस वे के किनारे के आजमगढ़ और सुलतानपुर के हर गांव में किसान संवाद यात्रा के जरिए सभी गांवों को एकजुट किया जाएगा।

मुआवजे का कड़वा स्‍वाद

किसान नेता राजीव यादव कहते हैं कि पूर्वांचल एक्सप्रेस वे का किसान-मजदूर एक बार जमीन देकर विकास का कड़वा रसास्वादन कर चुका है कि सदियों से जिन गांवों से उसका संपर्क था न सिर्फ वो कटा, पूर्वांचल एक्सप्रेस वे के एक किनारे उसकी जमीन है तो दूसरी तरफ उसका मकान है। एशिया की बड़ी भूमि अधिग्रहण परियोजनाओं में से एक इस परियोजना ने बहुफसली जमीनों को नेस्त‌‌नाबूद कर दिया। गांव वालों को नौकरी का झूठा दिलासा दिया। जिन बकरियों को पाल पोस करके वह चार पैसा कमा लेते थे, आज अगर वह एक्सप्रेस वे के कंटीले तारों को पार कर जाती हैं तो न सिर्फ एक्सप्रेस वे अथॉरिटी वाले उसको उठा ले जाते हैं बल्कि गांव वालों से धन उगाही भी करते हैं।

यादव के अनुसार विकास के इस कड़वे स्वाद ने जो हकीकत सामने लाई है उसको देखते हुए इन गांव के लोगों ने तय किया है कि वह धरती माता का सौदा नहीं करेंगे। कई ऐसे किसान मजदूर हैं जिनकी जमीनें एक्सप्रेस वे में गईं और जो मुआवजा उनको मिला उससे उन्होंने जो मकान बनाए। आज फिर उन पर बुलडोजर चलने की नौबत आ गई है।

प्रभावित गांव

विकास से विस्थापन और विनाश की प्रक्रिया यूपी में ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट से शुरू हुई जिसमें 35 लाख करोड़ रुपये के निवेश का प्रस्ताव है। गांव किसानों को खत्म करने वाली सरकारी दावे के अनुसार चौथी औद्योगिक क्रांति के निशाने पर पूर्वांचल और बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे के किनारे पड़ने वाले गांव हैं।

आजमगढ़ के सुमाडीह, खुरचंदा, बखरिया, सुलेमापुर, अंडिका, छजोपट्टी, सुलतानपुर के कलवारीबाग, भेलारा, बरामदपुर, सजमापुर के किसान अंडिका बाग में आंदोलनरत हैं। पूर्वांचल एक्सप्रेस वे के ही गांव संकट में नहीं हैं। यूपीसीडा (उप्र राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण) ने ग्राम सभाओं की जमीनों पर औद्योगिक क्षेत्र/पार्क बनाने के लिए प्रथम चरण में 30 हजार एकड़ जमीन लेने की बात कही है। सरकार जिस तरह से ग्राम सभा की जमीनों को अपनी जागीर कहकर अधिग्रहण का फरमान जारी कर रही है कल की तारीख में गांव में चारागाह नही रहेंगे तो लोग पशु कहां चराएंगे, घूर गड्ढा नहीं रहेगा तो घूर कहा फेंका जाएगा, खेल के मैदान नहीं रहेंगे तब बच्चे कहां खेलेंगे, सौर स्थान, शमशान यानी की पूरे गांव के जीवन को शहरों के नारकीय जीवन की तरह तब्दील करने की साजिश है।

इसका सीधा प्रभाव देश की सबसे बड़ी आबादी दलितों और अतिपिछड़ी जातियों पर पड़ेगा जो भूमिहीन हैं और बमुश्किल कुछ जमीन इनके पास बची है। आज उत्तर प्रदेश में 73 फीसदी दलित भूमिहीन हैं जिनके आशियाने बुलडोजर के निशाने पर हैं।

विस्‍थापन का दंश

देश में करोड़ों लोग विस्थापन का दंश झेल रहे हैं। जिन्होंने अपनी जमीन विकास परियोजनाओं को दे दी और खुद सड़कों पर बंजारे की जिंदगी जी रहे हैं। अभी हाल में आई फिल्म भीड़ जिसमें डॉ. सागर अपने गीत में कहते हैं कि भटके सहरिया में ए भैया जेकर, खेत-खरिहनवा छिनाइल बा, विस्थापन की सच्चाई को बयां करता है।

आज शहरों के किनारे दलितों के पास जो बची खुची जमीन है, उसको छीनने के लिए नई टाउनशिप योजना में जिलाधिकारी की अनुमति के बिना दलितों को जमीन बेचने के अधिकार देने की बात करने वाली योगी सरकार अगर सचमुच अनुसूचित जाति/जनजाति की इतनी हितैषी है तो भूमि के अधिकार से वंचित दलित, आदिवासी, पिछड़ी जातियों को आबादी अनुसार जमीन का अधिकार दे दे। इन मांगों पर सरकार का कहना होता है कि उसके पास जमीन नहीं है तो सवाल है कि पूंजीपतियों के लिए जमीन कहां से आती है?

किसान नेता राजीव यादव कहते हैं कि यह खेती किसानी जवानी बचाने की लड़ाई है। पूर्वांचल से लेकर बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे तक के गांव खतरे में हैं। जमीन लूटने की यह साजिश कोरोना महामारी से कम नहीं, इसने किसानों मजदूरों की रातों की नींद, दिन का सुकून छीन लिया है। सरकार यह मुगालता छोड़ दे कि जिस तरीके से पूर्वांचल एक्सप्रेस वे के लिए जमीनें ले ली उसी तरह से औद्योगिक पार्क और क्षेत्र के नाम पर जमीन ले लेगी। सरकार को याद रखना चाहिए कि देश के ऐतिहासिक किसान आंदोलन के बाद पूरे देश के किसान संगठन एकजुट हैं। किसान मजदूरों के साथ हैं। एक बार पूर्वांचल एक्सप्रेस वे के किनारे का किसान मजदूर ठगा जा चुका, बार बार नहीं ठगा जाएगा।


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