डीसी, हजारीबाग उर्फ अदाणी के मुलाजिम बनाम अन्य


झारखंड में हजारीबाग जिले के बड़कागांव स्थित गोंदलपुरा सहित पांच गांवों के ग्रामीणों को अदाणी एंटरप्राइजेज द्वारा किए जाने वाले कोयला खनन और जमीन अधिग्रहण का विरोध करने की कीमत मुकदमे और औने-पौने दामों में धान खरीद से चुकानी पड़ी है। गांववालों का कहना है कि उपायुक्‍त के आदेश पर गोंदलपुरा पैक्स केंद्र में इस बार धान नहीं खरीदा गया क्योंकि ग्रामीण अदाणी कम्पनी का विरोध कर रहे हैं। मजबूरन ग्रामीणों को बिचौलियों को अपना धान बेचना पड़ा।

अदाणी द्वारा यहां प्रस्तावित खनन के खिलाफ पांच गांवों के लोग बीते 13 अप्रैल से गांव के बाहर अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे हुए हैं। ग्रामीणों का कहना है कि यह धरना अदाणी को भगाने तक चलेगा क्‍योंकि उन्हें जमीन के बदले मुआवजा और नौकरी नहीं चाहिए। वे जान दे देंगे लेकिन जमीन नहीं देंगे। ग्रामीणों अपने गांव के बाहर धरना दे रहे हैं ताकि अगर गोली चले तो चीरू गोलीकांड की तरह बच्चों को गोली न लगे।

यहां के ग्रामीण न सिर्फ अपनी रैयती जमीन देने का विरोध कर रहे हैं बल्कि उन्होंने वन भूमि का गैर-वानिकी कार्यों के लिए उपयोग का भी विरोध किया है। इस संबंध में ग्रामीणों ने वन प्रमंडल पदाधिकारी, हजारीबाग को पत्र भी लिखा है। ग्रामीणों ने सार्वजनिक उपयोग की भूमि, नदी, आम रास्ता, आहर, तालाब, पोखर, देव स्थल, मंदिर, विद्यालय और सरना स्थल को कम्पनी को देने का विरोध किया है।

इसके चलते अब तक लगभग 120 पुरुष-महिलाओं के खिलाफ सीबारपीसी की धारा 107 के तहत केस किया जा चुका है। कुछ लोगों को जिला बदर का भी नोटिस भेजा गया है।

क्‍या है परियोजना

अदाणी एंटरप्राइजेज को गोंदलपुरा कोल ब्लॉक नवंबर 2020 में आवंटित किया गया था। कोल ब्लॉक उत्तर कर्णपुरा कोयला क्षेत्र में हैं। इस खनन परियोजना से पांच गांव प्रभावित हो रहे हैं- गोंदलपुरा, गाली, बलोदर, हाहे और फुलांग। कोयला खनन के लिए कुल 1268.08 एकड़ भूमि अधिग्रहित की जाएगी जिसमें 551.59 एकड़ भूमि रैयती, 542.75 एकड़ वन भूमि और 173.74 एकड़  गैर-मजरुआ भूमि है। पांच गांव में से तीन गांव के लिए गोंदलपुरा में 284.63 एकड़ रैयती भूमि, गाली में 175.45 एकड़ भूमि, और बलोदर में 91.51 एकड़ रैयती भूमि अधिग्रहित की जाएगी। अन्य दो गांव हाहे और फुलांग में रैयती भूमि का अधिग्रहण नहीं किया जाएगा। माइनिंग से कुल 781 परिवार विस्थापित होंगे।  

खनन के लिए तीन गांव की लगभग 550 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया जा रहा है। अधिग्रहित की जाने वाली भूमि उपजाऊ और बहुफसली है। खेती से धान, गेहूं, गन्ना, उड़द इत्यादि फसल हो जाती है। इसके अलावा विभिन्न तरह के साग सब्जी भी होते हैं। भूजल स्तर काफी अच्छा है। ग्रामीणों के अनुसार यहां 20 फुट पर पानी मिल जाता है। ग्रामीणों की मानें तो यहां एक एकड़ में 20 से 25 क्विंटल धान की पैदावार हो जाती है।

खनन परियोजना क्षेत्र पहाड़, जंगल और नदियों से घिरा हुआ है। खनन के लिए लगभग 540 एकड़ वन भूमि का उपयोग किया जाएगा। जंगल में महुआ, केंदू, पीयार, आम, जामुन, कटहल के पेड़  और कई तरह के जड़ी बूटी और कंद मूल  हैं। जंगल कई नदियों का उद्गम स्थल भी है। ग्राम बलोदर से गोबर्धा और गुडलगवा नदी,  गाली गांव से कारीरेखा नदी और हाहे ग्राम से गतीकोचा नदी निकलती है, जो एक पर्यटक स्थल भी है।  चारों नदी मिल कर ढोलकटवा नदी बनाती है जो आगे चल के बदमाही नदी बनती है जो दामोदर नदी से मिलती है। खनन के कारण इन नदियों के उद्गम स्थल नष्ट हो जाएंगे, नदियां सूख जाएंगी।

जंगल में हाथी, सुअर, भालू, मोर, खरगोश इत्यादि जानवर हैं। जंगल हाथी कॉरीडोर का हिस्सा है। ग्रामीणों और जानवरों के बीच किसी तरह की टकराहट नहीं है। जंगल नष्ट हो जाने के कारण ग्रामीणों और जानवरों के बीच टकराहट बढ़ेगी।

आजीविका के साधन

खनन परियोजना से विस्थापित होने वाले लगभग सभी परिवार आजीविका  के लिए मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर हैं। धान की प्रति एकड़ पैदावार अच्छी होने के कारण ज्यादातर परिवार धान बेचने में सक्षम हैं। धान के बाद गन्ना इस क्षेत्र की मुख्य फसल है। गन्ना से बनने वाला गुड़ आय का एक प्रमुख स्रोत है।

बलोदर की सुमित्रा देवी ने बताया कि गन्ना से गुड़ बना कर उनकी दो लाख रुपये तक की पारिवारिक आय हो जाती है। विनय कुमार कहते हैं कि ज्यादातर ग्रामीण कृषि से दो से ढाई लाख रुपया कमा लेते हैं। बलोदर की  सुनीता देवी अकेली होते हुए भी इस साल 20 हजार का गुड़, 30 हजार का धान, 10 हजार का महुवा और 10 हजार का प्याज बेच चुकी हैं।

कृषि के अलावा जंगल  आजीविका का मुख्य आधार है। जंगल से महुआ, केंदू पत्ता, और सागवान-मोहलाम के पत्तों से बना दोनापत्तल बेच कर भी ग्रामीण अपनी आजीविका चलाते हैं। लगभग सारे परिवार 10 से 15 क्विंटल महुआ बेच लेते हैं।

क्षेत्र में रोजगार की कमी नहीं है। पलायन न के बराबर है। क्षेत्र में लगभग सात ईंट-भट्ठा हैं जिसमें न सिर्फ स्थानीय बल्कि बाहर के लोगों को भी रोजगार मिलता है।

परियोजना का विरोध

खनन क्षेत्र में ग्रामीण जुलाई 2022 से लगातार ग्राम सभा और आम सभा को रद्द करवा रहे हैं। सितंबर 2021 से जनवरी 2022 तक NABRD Consultancy Private Limited  द्वारा खनन के सामाजिक प्रभाव का आकलन (SIA) किया गया था। खनन से प्रभावित होने वाले ग्राम बलोदर में SIA के निष्कर्षों को बतलाने के लिए 15/ 7/2022 को  आयोजित ग्राम सभा लोक सुनवाई  को ग्रामीणों के भारी विरोध के बाद रद्द कर दिया गया। बलोदर गांव में प्रशासन द्वारा आयोजित लोक सुनवाई के  विरोध के बाद अन्य गांवों में आयोजित की जाने वाली ग्राम सभा को उपायुक्त के आदेश के बाद रद्द कर दिया गया।

SIA रिपोर्ट को ग्राम सभा के पटल पर रखने के लिए  1 अक्टूबर 2022 को पुनः प्रशासन द्वारा अधिसूचना जारी की गई । 2 अक्टूबर 2022 को गोंदलपुरा पंचायत के मुखिया की अध्यक्षता में प्रभावित पांच गांवों के ग्रामीणों ने ग्राम सभा की जिसमें सभी रैयतों ने  किसी भी शर्त पर अदाणी एंटरप्राइजेज को जमीन नहीं देने का निर्णय लिया और लिखित निर्णय उपायुक्त  को सौंपते हुए उपायुक्त के आदेश के पर आयोजित की जाने वाली ग्राम सभा के खिलाफ आपत्ति दर्ज की।

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झूठी एसआइए रिपोर्ट?

एसआइए सर्वे का ग्रामीणों ने लगातार विरोध किया है। उनके अनुसार सर्वे के कई तथ्य झूठे हैं:

1) SIA रिपोर्ट के अनुसार परियोजना के लिए किसी भी तरह की बहुफसली कृषि भूमि का अधिग्रहण नहीं किया जा रहा है, जिसका प्रमाण पत्र कृषि विभाग ने दिया है जबकि यह सरासर झूठ है। अधिग्रहित की जाने वाली जमीन बहुफसली है। यहां साल भर खेती होती है।

2) रिपोर्ट के अनुसार प्रभावित परिवार जमीन के बदले दी जाने वाली मुआवजे की राशि से संतुष्ट नहीं हैं जबकि सच्चाई यह है कि ज्यादातर रैयत किसी भी कीमत पर जमीन नहीं देना चाहते हैं।

3) SIA रिपोर्ट के अनुसार कम कृषि उत्पादकता के कारण लोगों का कृषि से जीवन निर्वाह करना मुश्किल है, लेकिन सच्चाई यह है कि  ज्यादातर परिवारों के लिए कृषि से जीवन निर्वाह करना मुश्किल नहीं  है। कृषि से आमदनी अच्छी है, कृषि उत्पादकता अच्छी है, एक एकड़ में 20 से 25 क्विंटल धान का उत्पादन होता है। धान के अलावा गुड़ बेचकर भी लोगों की  आमदनी हो जाती है।

4) SIA रिपोर्ट में जबरन गांव में स्वास्थ्य की स्थिति खराब बतलाने का प्रयास किया गया है। गांव में जल संरक्षण के लिए बनाए गए पोखरों को SIA रिपोर्ट में हास्यास्पद रूप से जल जमाव के रूप में प्रस्तुत कर तालाब-पोखरों को जल से पैदा होने वाले रोगों का कारण बतलाया गया है। रिपोर्ट के अनुसार क्षेत्र में मलेरिया, डायरिया,पेचिश, त्वचा रोग की सामान्य समस्याएं हैं जबकि गांव में स्वास्थ्य की स्थिति अच्छी है। ग्रामीण चिकित्सक दीपक कुमार के अनुसार बतलाया कि गांव  का पर्यावरण शुद्ध होने के कारण गांव में लोगों को स्वास्थ्य संबंधित कोई गंभीर बीमारी नहीं है। बीमारी के नाम पर सिर्फ मौसमी बुखार होता है।

SIA

अदाणी के कर्मचारियों के गांव में प्रवेश पर रोक

ग्रामीणों का कहना है कि लगातार विरोध के बावजूद कम्पनी के लोग गांव में विभिन्न बहानों से गांव में घुसने का प्रयास कर रहे हैं जिससे गांव की शांति व्यवस्था भंग होने का खतरा है। ग्रामीणों ने अदाणी के कर्मचारियों को गांव में घुसने पर रोक लगा दी है। इस संबंध में प्रभावित सभी गांव के बाहर बोर्ड लगा दिया गया है। साथ ही ग्रामीणों ने उपायुक्त, पुलिस अधीक्षक, डीआईजी को पत्र लिख कर आग्रह किया है कि कंपनी के कर्मचारियों को गांव में प्रवेश से रोका जाए।

अदाणी के इशारे पर काम कर रही उपायुक्त

ग्रामीणों का कहना है कि प्रशासन और JSLPS जैसी सरकारी एजेंसियां अदाणी कंपनी के इशारे पर काम कर रही हैं। गोंदलपुरा पंचायत की वार्ड  सदस्य यशोदा देवी ने बताया कि डीसी और अन्य अधिकारियों की ओर से अदाणी कम्पनी के पक्ष में बोलने का दबाव है। यशोदा देवी JSLPS में काम कर रही थीं। अदाणी कम्पनी का समर्थन नहीं करने के कारण उन्हें हटा दिया गया। उन्हें प्रलोभन और धमकी दी  जा रही है। ग्रामीणों का कहना है कि JSLPS अदाणी का समर्थन कर रहा है इसलिए संस्था का काम पूरे गांव में बंद कर दिया गया है। JSLPS से जुड़े लोग जबर्दस्ती लोन देने आ रहे हैं लेकिन ग्रामीण लोन नहीं ले रहे हैं।

गोंदलपुरा की पंचायत समिति सदस्य देवनाथ महतो ने बताया कि इस वर्ष पानी की कमी के बावजूद  धान की फसल अच्छी हुई लेकिन डीसी के आदेश से गोंदलपुरा पैक्स केंद्र में धान नहीं खरीदा गया क्योंकि ग्रामीण अदाणी का विरोध कर रहे हैं। मजबूरन ग्रामीणों को औने-पौने दाम पर बिचौलियों को धान बेचना पड़ा।

गोंदलपुरा खनन परियोजना से पांच गांव के लोग, जल, जंगल, जमीन, जानवर सभी तबाह हो जाएंगे। क्षेत्र के पर्यावरण पर भयानक असर होगा। न सिर्फ पांच गांव तबाह होंगे बल्कि दामोदर नदी की सहायक नदियों का स्रोत सूख जाने के कारण आसपास के क्षेत्र की जमीन भी बंजर हो जाएगी। चूंकि ग्रामीण किसी भी कीमत पर जमीन नहीं देना चाहते हैं तो बहुत संभव है कि प्रशासन द्वारा  बल का  प्रयोग किया जाए, जिसके कारण पांच साल पहले घटित चिरुडीह गोलीकांड जैसी घटना दोबारा घट सकती है।


सारे वीडियो लेखकद्वय के सौजन्य से


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