इन दिनों अयोध्या वैसी बिलकुल भी नजर नहीं आती जैसी पहले कभी रही होगी। कहते हैं सरयू किनारे बसी राम की नगरी का नाम अयोध्या इसलिए पड़ा क्योंकि यहां कभी युद्ध नहीं हुए, जंगी घोड़ों की टाप से कभी धूल नहीं उड़ी, मदमस्त हाथियों के कुचलने से कभी घर नहीं उजड़े, तोपों और बंदूकों की कभी गगनभेदी आवाजें नहीं सुनी गईं। सामूहिक स्मृति में शायद पहली बार समूची अयोध्या नगरी आज धूल, कीचड़ में सनी दिखाई पड़ रही है। चारों ओर ड्रिल मशीनों और बुलडोजर की तेज आवाजें हैं। कोई खुद से अपने घर को तोड़ रहा है, तो कोई अपने उजड़े हुए आशियाने को फिर से बसाने की कोशिश में है।
केंद्र सरकार की स्वदेश दर्शन योजना के तहत अयोध्या को सुंदर और दर्शनीय बनाया जा रहा है। सुंदरीकरण के इस अभियान ने अयोध्या को खंडहर में तब्दील कर दिया है। इस खंडहर के ऊपर क्या बनेगा, यह सबको पता है- अगले साल जनवरी के तीसरे हफ्ते में राम मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा होने वाली है। राम मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चम्पत राय की मानें, तो प्रधानमंत्री सहित हजारों मेहमान इस समारोह में आने वाले हैं।
इस सिलसिले में कई महीने से राम मंदिर जाने वाली सड़कों- जन्मभूमि पथ, भक्ति पथ, राम पथ, पंच कोसी और चौदह कोसी परिक्रमा मार्ग- के चौड़ीकरण का काम जोरों पर चल रहा है। सभी सड़कें अयोध्या की सघन आबादी के बीच से होकर गुजरती हैं, इसलिए रास्ते में आने वाली किसी भी बाधा को सीधे हटा दिया जा रहा है। इस अभियान ने हजारों पेड़ों, मंदिरों, मजारों, दुकानों और मकानों को जमींदोज कर डाला है। सैकड़ों लोग बेघर हो गए हैं। हजारों की रोजी-रोटी खतरे में आ गई है।
राम मंदिर तक जाने वाली सड़कों में राम जन्मभूमि पथ की कुल लम्बाई 0.566 किलोमीटर और चौड़ाई 21 मीटर है। यह सुग्रीव किला से राम जन्मभूमि मंदिर तक जाती है। भक्ति पथ की कुल लम्बाई 0.742 किमी और चौड़ाई 14 मीटर है जो अयोध्या के मुख्य मार्ग (राम पथ) से हनुमानगढ़ी होते हुए राम मंदिर जाती है। राम पथ की कुल लंबाई करीब 13 किमी और चौड़ाई 24 मीटर है जो सहादतगंज से अयोध्या नयाघाट तक जाती है। पंच कोसी परिक्रमा मार्ग की लंबाई 15 किमी और चौड़ाई लगभग 20 मीटर है जो राम मंदिर के बाहरी हिस्से को कवर करती है। चौदह कोसी परिक्रमा मार्ग की कुल लंबाई करीब 42 किमी है जो दर्शन नगर से माझा, सहादतगंज, मौदाहा, घोसियाना, नाका होते हुए दर्शन नगर में मिल जाती है।
सड़क चौड़ीकरण की इस मुहिम में लगभग दस से पंद्रह हजार परिवार और दुकानदार प्रभावित हुए हैं। व्यापारियों के अनुसार जन्मभूमि पथ पर बीस से अधिक दुकानदार और परिवार पूरी तरह विस्थापित हो गए हैं। भक्ति पथ पर लगभग 700 परिवार, राम पथ पर लगभग 4000 परिवार व दुकानदार, पंच कोसी मार्ग पर लगभग 500 परिवार और चौदह कोसी परिक्रमा मार्ग पर लगभग 2000 परिवार व दुकानदार प्रभावित हुए हैं। यह आंकड़ा अनुमानित है।
इंसान तो इंसान, भगवानों को भी नहीं बख्शा गया है। सड़कों के चौड़ीकरण में बाधा बन रहे दशकों पुराने पौराणिक मंदिर सीता रसोई, फकीरे राम मंदिर और मकबरों को जमींदोज कर दिया गया है। अकेले तेरह किलोमीटर लम्बे राम पथ पर सहादतगंज में दुर्गा मंदिर, नौदेवी मंदिर, रिकाबगंज में हनुमानगढ़ी और तीन शिव मंदिर, गुदड़ी बाजार में हनुमान मंदिर, साहबगंज में दो मंदिर- राम दरबार और शिव मंदिर तथा नए राम मंदिर के सामने प्राचीन शिव मंदिर जैसे कई मंदिरों को तोड़ दिया गया है। राम पथ पर ही करीब पंद्रह मस्जिदों-मजारों को भी हटा दिया गया है।
अयोध्या की अधिकांश जमीन आबादी की जमीन है या नजूल की जमीन है या फिर किसकी है, यह किसी को नहीं पता। इन जमीनों की कम्प्यूटर खतौनी किसी के पास नहीं है। बताया जाता है कि जब नवाबों का प्रभाव अयोध्या में बेअसर हुआ तो उनके जाने के बाद विशाल आबादी भूमि खाली हुई। उसी जमीन पर दशकों से लोग घर या दुकान बना कर जीवनयापन कर रहे हैं। जमीन खरीदने और बेचने का काम नगरपालिका से होता रहा है। प्रभावित लोगों के अनुसार, लोग गृह कर चुकाते रहे हैं, लेकिन सड़क चौड़ीकरण की प्रक्रिया में अब प्रशासन लोगों से कम्प्यूटर खतौनी की मांग कर रहा है।
आरोप यह भी लग रहा है कि घर या दुकान तोड़ने से पहले लोगों को नोटिस नहीं दिया गया है। दिलचस्प है कि अयोध्या प्रशासन स्वयं किसी दुकान, घर या मंदिर को नहीं तोड़ रहा है बल्कि प्रशासन की ओर से सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करवाने के बाद मुआवजे की रकम सम्बंधित व्यक्ति के खाते में डालने के बाद उसे ही तय समय सीमा में निर्माण ध्वस्त करने के लिए कह दिया जा रहा है। जिन्होंने अपना ‘कब्जा’ नहीं हटाया है उन्हें पुलिस की कठोर कार्रवाई का सामना करना पड़ा है।
अयोध्या में सड़क चौड़ीकरण से प्रभावित लोगों की कानूनी मदद कर रहे वकील डी. डी. शर्मा सरकार की कार्रवाई को आपत्तिजनक और जनविरोधी बताते हैं। शर्मा कहते हैं, “यदि कोई भी व्यक्ति किसी भी तरह की भूमि पर वर्षों से रह रहा है तो उसे बिना नोटिस दिए हटाया नहीं जा सकता है। भूमि अधिग्रहण कानून में एक प्रावधान है जिसमें सहमति के आधार पर ही किसी व्यक्ति की जमीन का बैनामा कराया जा सकता है। सरकार अयोध्या में इसी तर्ज पर लोगों से सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर करवा कर उनकी भूमि का बैनामा करवा रही है।“
शर्मा बताते हैं, “सड़कों के चौड़ीकरण में जो दुकानें जा रही हैं उससे लोगों की जीविका प्रभावित हो रही है, लेकिन सरकार सहमति के आधार पर एक-डेढ़ लाख रुपये देकर लोगों से दुकानें खाली करवा ले रही है।“
अमृत काल के बेघर
ऐसे ही एक प्रभावित हैं गोपाल कुमार (59), जो भारत के बंटवारे के समय पाकिस्तान के सिंध प्रांत से यहां आए थे। तत्कालीन सरकार ने उन्हें रामनगर कालोनी में अन्य सिंधी परिवारों के साथ बसाया था। अब चौदह कोसी परिक्रमा मार्ग के चौड़ीकरण में उन्हें अपने मकान के आधे हिस्से को तोड़ना पड़ गया है।
गोपाल बताते हैं, “हम इसी घर में पैदा हुए, सन् बानबे से चाय-पानी की दुकान चला कर परिवार चलाते थे। हमारा तीन लोगों का परिवार है, चौड़ीकरण में दुकान और घर टूटने के बाद सोने की भी जगह नहीं बची है। हम बारी-बारी, अलग-अलग समय में जहां जगह मिलती है किसी तरह सो लेते हैं। यह घर हमने रोज दुकान से सौ-सौ रुपये बचा कर बनवाया था। सरकार को पहले हमें कहीं घर देकर बसाना था, लेकिन सरकार ने एक झटके में सब तोड़वा दिया।“
मोहल्ला कैथाना निवासी विमलेश कुमार श्रीवास्तव (57) भी बेघर हो चुके हैं। कुछ समय पहले बुलडोजर से उनके दो कमरे के मकान को तोड़ दिया गया। उन्हें पास के यादव पंचायती मंदिर में रहना पड़ रहा है। विमलेश कहते हैं, “प्रशासन कह रहा है जिस जमीन पर मेरा मकान बना था वह पीडब्ल्यूडी का है। पीडब्ल्यूडी आजादी के बाद बना, लेकिन हम लोग तो यहां आजादी के पहले से रह रहे हैं। मुझे मुआवजे के नाम पर एक रुपया नहीं मिला है। अब कहां रहें, क्या खाएं कुछ समझ में नहीं आ रहा है।“
इसी तरह रमा देवी (51) भी मुश्किलों का सामना कर रही हैं। वे बताती हैं, “पहले तीन कमरा, लैट्रिन, बाथरूम था। सामने का पूरा घर बुलडोजर से तोड़ दिया गया। अब पांच लोग एक कमरे में रह रहे हैं। उसी में खाना बना रहे हैं, उसी में सो रहे हैं। पति प्राइवेट नौकरी करते हैं, इतनी हैसियत नहीं है कि हम कहीं जमीन लेकर घर बनवा सकें। एक बेटा दिमाग से कमजोर है। एक बेटी है। दूसरा लड़का काम ढूंढ रहा है।“
गोपाल, विमलेश और रमा देवी महज कुछ आवाजें हैं जो बड़ी मुश्किल से अपना दर्द बयां करते हैं, लेकिन खुलकर सरकार के खिलाफ कुछ कह नहीं पाते। सुंदरीकरण और सड़क चौड़ीकरण के अभियान में टूटते घरों, दुकानों, पुरानी इमारतों, चौक-चौराहों के मलबों तले आम लोगों की आवाजें दफन हो गई हैं।
मुआवजे की पहेली
सड़क चौड़ीकरण की शुरुआत लगभग एक साल पहले हुई थी। तब से लेकर अब तक कई बार व्यापारियों और विपक्षी दलों के नेताओं ने प्रशासन के साथ बातचीत की कोशिश की, लेकिन वार्ता बेअसर रही। व्यापारी नेताओं ने प्रशासन के समक्ष ज्ञापन सौंप कर सड़कों की चौड़ाई कम करने और शहर के बाहर से सड़कों को बनाने की अपील की, लेकिन प्रशासन ने व्यापारियों की मांगों को सिरे से खारिज कर दिया।
समाजवादी व्यापार सभा के अध्यक्ष नंद कुमार गुप्ता कहते हैं- ‘’प्रशासन ने शुरुआत में आश्वासन दिया था कि दुकान के बदले दुकान देंगे, और आसपास के एरिया में ही देंगे, लेकिन जो दुकान इन्होंने व्यापारियों के लिए बनवाई है उसे एक कॉम्पलेक्स में बनवाया गया है जिसकी कीमत 15 लाख रुपये है। वास्तव में, धार्मिक स्थलों पर दुकानें सड़कों के किनारे ही चलती हैं। उस पर से हमें दुकानों के लिए मात्र एक लाख रुपये दिया गया। हम सब ने दिसम्बर में ही दुकान छोड़ दी थी। जो पैसा मिला, वह खा-पी कर बराबर हो गया।‘’
स्थानीय व्यापारियों से बात कर के ऐसा लगता है कि उन्हें सड़क चौड़ी किए जाने से दिक्कत नहीं है। उनकी असली समस्या मुआवजे की है। अयोध्या प्रशासन दावा कर रहा है कि सड़क चौड़ीकरण में जो लोग पूरी तरह विस्थापित हो रहे हैं उनके पुनर्वास की समुचित व्यवस्था की गई है, लेकिन लोगों से बात कर के कहानी कुछ दूसरी ही नजर आती है।
सोनू जायसवाल फैजाबाद के जाने-माने व्यापारी हैं। जायसवाल मेडिकल स्टोर के नाम से नाका तिराहा पर उनकी दुकान है। वे कहते हैं, “हम चौड़ीकरण के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन सरकार मुआवजे के नाम पर थप्पड़ मार कर जमीन ले रही है। सरकार हमें 30-32 लाख रुपया भी अगर दे देगी, तो इतने का तो हमारे घर में लगी लकड़ी और बिजली का तार ही बर्बाद हो जाएगा। हमारी पांच पीढ़ी यहां जीवन गुजार चुकी है, लेकिन हमसे कहा गया कि हमारी जमीन आबादी लैंड पर है इसलिए मुआवजा नहीं मिलेगा। इसके बाद प्रशासन किसी से कोई बात करने को तैयार ही नहीं है।“
प्रशासन की ओर से मुआवजे की जो रकम लोगों को दी जा रही है उससे खासी नाराजगी देखने को मिल रही है। प्रभावितों को मुआवजा किस मानक के आधार पर दिया जा रहा है, यह किसी को साफ तौर पर न बताया गया है और न ही लोगों को साफ-साफ पता है।
ज़बीउल्लाह लस्करी पहाड़गंज घोसियाना में रहते हैं। उनके दोमंजिला मकान के आगे का हिस्सा सड़क चौड़ीकरण में जा रहा है। ज़बी कहते हैं, “हमारा घर आबादी लैंड में बना था इसलिए इसकी खतौनी नहीं है। सरकार लोगों से खतौनी मांग रही है। जिनके पास खतौनी नहीं है उन्हें जमीन की कीमत नहीं मिल रही है। सिर्फ मलबे का पैसा मिल रहा है। हमें प्रशासन की ओर से दो लाख बयासी हजार रुपये मिले हैं जबकि हमने एक साल पहले छह लाख रुपये लगाकर आगे का घर बनवाया था। हमारा घर 12 बाई 12 में बना है। इस जमीन का सर्किल रेट लगभग 15 लाख रुपये बनता है। दो-ढाई लाख रुपये में हम क्या करेंगे?“
ज़बीउल्लाह बताते हैं, “इसके पहले भी फैजाबाद में दो ब्रिज एक मकबरा से पुलिस लाइन तक और दूसरा गुलाबबाड़ी से देवकाली चौराहा तक रास्ता बना। यहां घनी आबादी थी लेकिन एक भी घर प्रभावित नहीं हुआ, लेकिन आज जिस तरह चौड़ीकरण हो रहा है इसमें तो अयोध्यावासी खत्म हो जाएंगे, सिर्फ सड़कें रह जाएंगी।“
अयोध्या में विकास का युद्ध
भूमि अधिग्रहण और मुआवजे के सवाल पर अयोध्या के एडीएम (प्रशासन) अमित सिंह ने फॉलो-अप स्टोरीज से बातचीत में बताया, “जिसका अधिग्रहण किया जा रहा है यदि वह जमीन खतौनी में दर्ज है तो जिलाधिकारी महोदय का जो सर्किल रेट है उसका दोगुना मिलता है। मौके पर बना भवन बैनामे की जमीन पर है तो उनको 15 हजार 561 रुपये प्रति वर्गमीटर के हिसाब से पैस दिया जा रहा है। हमने रामपथ पर करीब 850 बैनामे, चौदह कोसी परिक्रमा मार्ग पर करीब 700 बैनामे और पंच कोसी मार्ग पर करीब 150 बैनामे कराए हैं।‘’
वे बताते हैं कि ‘’कुछ लोगों की समस्या यह है कि जो लोग नजूल की जमीन पर बसे हुए हैं वो चाहते हैं उन्हें भवन और जमीन दोनों का मुआवजा मिले, लेकिन सरकार जिस जमीन को फ्री होल्ड कर चुकी है उस पर ही बने भवन और जमीन का मुआवजा मिलता है।”
बोलने का खौफ
मुआवजे और पुनर्वास की तकनीकी पहेली अपनी जगह है, लेकिन अयोध्या में घूमने और लोगों से बात करने पर एक सवाल जो सहज ही मन में आता है- वो ये है कि अगर गलत हो रहा है तो कोई कुछ बोल क्यों नहीं रहा, कोई आंदोलन या मोर्चा क्यों नहीं निकल रहा, मीडिया में किसी की आवाज क्यों नहीं आ रही है?
फैजाबाद में चाय की दुकान चलाने वाले घनश्याम इसका जवाब देते हैं, ‘’बोल देंगे तो जेल चले जाएंगे, घर पर बुलडोजर चल जाएगा।”
इस डर के बावजूद, कम से कम घनश्याम खुल कर सरकार की आलोचना करते नजर आते हैं- “सड़क चौड़ीकरण का काम शहर के बाहर से होना चाहिए था लेकिन सरकार किसी की एक न सुनी। इतना अत्याचार तो औरंगजेब ने भी नहीं किया होगा जितना यह सरकार कर रही है।‘’
बोल देंगे तो जेल चले जाएंगे, घर पर बुलडोजर चल जाएगा
घनश्याम, चाय वाले, फैजाबाद
सच्चाई यह है कि कुछ साल पहले तक अयोध्या के बाशिंदे राम मंदिर बनने को अयोध्या के विकास के रूप में देख रहे थे। आज उन्हें इसमें छुपा अपना विनाश जब महसूस हो रहा है, तो वे सदमे में हैं और कौड़ी के भाव के बदले मजबूरन खुद ही अपनी मेहनत से बनाए मकानों पर हथौड़ा चला रहे हैं।
घनश्याम की ही तरह आज से दो साल पहले बनारस के कुछ घाट किनारे रहने वाले लोगों ने भी सरकार की तुलना औरंगजेब से की थी, जब काशी विश्वनाथ कॉरीडोर बनाने के लिए उनके मकान-दुकान तोड़े जा रहे थे। तब हालांकि आयोध्या जैसा सन्नाटा बनारस में नहीं था। 2019 में जब पहली बार जमीन की पैमाइश के लिए पक्कामहाल के इलाके में सरकारी टीम पहुंची थी, तो बाकायदा लोगों ने मोर्चा खोल दिया था।
पहले वहां स्थानीय लोगों ने धरोहर बचाओ समिति बनाई। उसके बाद जब छोटे-छोटे शिवालयों और विग्रहों को तोड़ा जाने लगा, तो स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने मंदिर बचाओ आंदोलन शुरू कर दिया और गली-गली घूम-घूम कर लोगों को जगाने लगे।
अंतत:, बनारस में भी लोग विस्थापित हुए। मकान, दुकान, मंदिर तोड़े गए। कानूनी मुकदमा चला। यह सब कुछ हालांकि जबरदस्त प्रतिरोध और धीरे-धीरे प्रतिरोध के बिखरने का गवाह भी रहा। अयोध्या में यही प्रतिरोध सिरे से और शुरू से नदारद है। केवल फुसफुसाहटें हैं।
बनारस और अयोध्या के बीच दो इत्तेफाक हालांकि दिलचस्प हैं। पहला, बनारस में आंदोलन का चेहरा रहे लोगों में एक स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद आज शंकराचार्य बन चुके हैं, इसके बावजूद अयोध्या की तबाही पर लगातार बोल रहे हैं। उनका प्रतिरोध कायम है, भले पद की गरिमा के हिसाब से संयमित हो गया हो।
दूसरा संयोग पता नहीं कितना संयोग है। बनारस में काशी विश्वनाथ कॉरीडोर के निर्माण का प्रभार जिस प्रशासनिक अधिकारी विशाल सिंह के ऊपर था, पिछले तीन साल से वे अयोध्या के निगम आयुक्त और अयोध्या विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष हैं। विशाल सिंह काशी विश्वनाथ मंदिर के सीईओ थे। 2020 के सितंबर में अयोध्या तबादले के बावजूद वे वाराणसी विकास प्राधिकरण के सचिव पद पर बने रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंदिर के शिलान्यास के दौरान उनके काम की विशेष तारीफ की थी।
जाहिर है, बनारस में मंदिर के लिए जमीन अधिग्रहण का तजुर्बा अयोध्या में उनके काम आ रहा होगा। पर सवाल यह है कि क्या अयोध्यावासियों को उनके घरों-दुकानों से उजाड़ कर ही अयोध्या का विकास संभव है? क्या बनारस में गलियों, घाटों को अक्षुण्ण रख के मंदिर परिसर नहीं बनाया जा सकता था? क्या पुराने को खत्म करना नया बनाने के लिए अनिवार्य है?
प्राचीन शहरों की गलियों, चौक-चौराहों, प्रतीकों को तोड़े जाने और आम लोगों के विस्थापन को हिंदी के प्रोफेसर अयोध्यावासी अनिल कुमार सिंह गलत मानते हैं। वे कहते हैं, “आज भी पेरिस में छोटी-छोटी गलियां और सड़कें वैसी ही छोड़ी गई हैं जैसी वे पहले थीं। अयोध्या में लोगों ने चवन्नी-चवन्नी जोड़कर छोटे-छोटे घरों को बनाया था। अयोध्या मामूली लोगों, गरीबों और किसानों का रहा है।‘’
अयोध्या में लोगों ने चवन्नी-चवन्नी जोड़कर छोटे-छोटे घरों को बनाया था। अयोध्या मामूली लोगों, गरीबों और किसानों का रहा है
प्रोफेसर अनिल कुमार सिंह, अयोध्या
वे एक और सवाल उठाते हैं, “एक पर्यटक एक मंदिर देखने के लिए कितनी बार आ सकता है? पर्यटक से अयोध्या को कितना हासिल होगा? अयोध्या में आसपास कोई अभयारण्य, झील-झरने भी नहीं हैं। शुरुआत में लोग जिज्ञासावश भले आएं लेकिन मुझे नहीं लगता कि निरंतरता बनी रहेगी।‘’
अयोध्या में चारों तरफ उदास और बुझे हुए चेहरे सड़कों से आने-जाने वालों को उम्मीद भरी जैसी नजरों से आजकल देख रहे हैं, उससे प्रोफेसर सिंह की बात का मतलब समझ में आता है। ठीक दूसरी ओर, नवाबों के दौर में कायम यहां का स्थापत्य, जैसे शूजा-उद-दौला की बनवाई इमारतें गुलाब बाड़ी, मोती महल और बहूबेगम का मकबरा, यहां वास्तुकला के खूबसूरत उदाहरण के रूप में आज भी चमक रही हैं। भव्य इमारतों और गरीब किसान-मजदूरों का सह-अस्तित्व ही अयोध्या का सामाजिक-राजनीतिक अतीत है। आज यही अतीत खतरे में है।
अवध निवासी वरिष्ठ पत्रकार अरुण कुमार त्रिपाठी कहते हैं, ‘’जिस तरह अयोध्या शहर को तोड़ा जा रहा है, लोगों को विस्थापित किया जा रहा है, ऐसा इतिहास में कभी अयोध्या में नहीं हुआ है। इससे पता चलता है इस सरकार में प्राचीनता के प्रति संवेदनशीलता नहीं है। अयोध्या को नोएडा, चंडीगढ़ की तरह नीरस किस्म का शहर बनाया जा रहा है। साझे तरीके से रहने और खाने-पीने को बुलडोज किया जा रहा है।‘’
अयोध्या पर CAG की रिपोर्ट
बदलती हुई अयोध्या का सवाल केवल सामाजिक या सांस्कृतिक नहीं है, आर्थिक भी है। राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद बने राम मंदिर ट्रस्ट और उसके बाद हुए जमीन अधिग्रहण में गड़बड़ी के आरोप लगे थे। ट्रस्ट ने मीडिया में किसी तरह उसका खंडन कर के मंदिर निर्माण की प्रक्रिया जारी रखी। अब, जबकि मंदिर के उद्घाटन की तारीख लगभग तय हो चुकी है, भारत सरकार के महालेखा परीक्षक और नियंत्रक (कैग) ने खुद अयोध्या की सुंदरीकरण परियोजना में घपले-घोटाले की एक रिपोर्ट जारी की है।
स्वदेश दर्शन परियोजना पर कैग की रिपोर्ट
Report-No.-17-Complete-Page-21.07.2023-064d3a794cf1905.741769461-1स्वदेश दर्शन परियोजना पर कैग की ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम और सिंचाई विभाग ने मिलकर जो 16 प्रोजेक्ट अयोध्या में संपन्न किए और उसे पर्यटन मंत्रालय को सौंपा, उसमें बचे 8.20 करोड़ रुपये का हिसाब मंत्रालय को नहीं दिया गया है। इसके अंतर्गत जीएसटी और श्रम शुल्क में कम भुगतान और गुप्तार घाट पर पेड़ों की बाड़ का अनुपयोग शामिल है।
बीते मानसून सत्र में लोकसभा में पेश की गई यह मार्च 2022 तक की रिपोर्ट कहती है कि अयोध्या के गुप्तार घाट पर प्रस्तावित काम को 14 बराबर हिस्सों में बांट कर अलग-अलग ठेकेदारों को अलग-अलग दर पर ठेका दिया गया जिसमें करीब 20 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है। जो काम नहीं हुए, उनका भी भुगतान किया गया, ऐसा रिपोर्ट में दर्ज है।
जुलाई 2022 में आयोजित एग्जिट कॉन्फ्रेंस में कैग ने उत्तर प्रदेश के पर्यटन विभाग और सिंचाई विभाग के सामने ये निष्कर्ष रखे थे। पर्यटन विभाग ने ऑडिट में पाई गई इन गड़बडि़यों को स्वीकार करते हुए कार्यपालक एजेंसियों को अतिरिक्त भुगतान की वसूली का आदेश दिया।
जिस शहर में 1000 करोड़ रुपये केवल सड़क बनाने में खर्च किए जा रहे हों, वहां आठ-दस करोड़ की रकम की गड़बड़ी और वापसी इंसानी त्रासदी के मुकाबले बहुत छोटी जान पड़ती है। जाहिर है, कैग इंसानी त्रासदियों का बहीखाता नहीं रखता, केवल सरकारी खर्च का हिसाब रखता है। सवाल है कि इस भारी-भरकम खर्च से हासिल क्या होगा?
प्रोफेसर अनिल कुमार सिंह पूछते हैं, ‘’इस फाइव स्टार मंदिर में आसपास के गरीब और किसान क्या उसी तरह आएंगे जैसे वे पहले अयोध्या आते थे? यदि अयोध्या में कोई फैक्ट्री या कंपनी नहीं लगाई गई तो यहां कोई क्यों आएगा?’’
प्रोफेसर सिंह से उलट, अवध प्रान्त के निवासी वरिष्ठ पत्रकार अरुण कुमार त्रिपाठी अयोध्या के तथाकथित विकास को आर्थिक दृष्टि से नहीं देखते हैं। वे इसे विशुद्ध राजनीतिक उद्देश्यों के लिए किया जा रहा प्रयोग मानते हैं।
अरुण त्रिपाठी कहते हैं, “भाजपा ने राम को भौतिकवादी राजनीति का माध्यम बनाया है। मिथक को इतिहास बनाने की कोशिश है। इससे राम का विराट रूप संकुचित हुआ है।“
रामभरोसे अयोध्या
आम लोगों को अब भी राजनीति पर नहीं, राम पर भरोसा है। जिस बारीकी से अयोध्या में आर्थिक और राजनीतिक उद्देश्यों से सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव किए जा रहे हैं, उसका कोई जवाब यहां के सरल धार्मिक लोगों के पास नहीं है। जिन लोगों ने कभी राम मंदिर बनाने के लिए चंदा दिया था, आज राम मंदिर के चलते उन्हीं के आशियाने उजड़ रहे हैं तो किस सरकार के पास जाएं? किससे गुहार करें?
अंत में थक हार कर लोग राम भरोसे ही बैठे हैं। अयोध्या के व्यापारियों ने पिछले साल एक बैनर पर ‘हे राम, उजड़ते हुए को बचाइए’ लिखकर मंदिर में सुंदरकांड का पाठ किया था और प्रशासन को सद्बुद्धि देने की अपने राम से प्रार्थना की थी।
जनवरी में रामलला बेशक आएंगे, प्रधानमंत्री की उंगली पकड़ के आएंगे, जैसा भूमिपूजन के वक्त केंद्रीय मंत्री शोभा करंदलाजे की पोस्ट की हुई तस्वीर में दिखा था, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। अयोध्यावासी बचेंगे नहीं।
शायद इसी दिन की कल्पना कर के बरसों पहले प्रोफेसर सिंह ने अयोध्या पर यह पंक्ति लिखी थी: ‘’इतना ही यथार्थ है यह शहर जितना यह कि / आदमी का कलेजा काटकर इसकी जगह / शिवलिंग रख देने से वह मर जाएगा…।‘’
अयोध्या की सभी तस्वीरें: गौरव गुलमोहर
कवर तस्वीर: चंपत राय के ट्विटर से साभार