Culture

भारत में लोगों के बुनियादी अधिकारों की हालत औसत से भी खराब: HRMI का 2023 राइट्स ट्रैकर

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डेमोक्रेटिक पार्टी के कई सांसदों ने राष्‍ट्रपति बाइडेन से भारत में धार्मिक असहिष्‍णुता, प्रेस की आजादी, इंटरनेट पर प्रतिबंध और नागरिक समाज समूहों को निशाना बनाए जाने के मुद्दे मोदी के साथ बातचीत में उठाने का दबाव बनाया है। ठीक इसी मौके पर एचआरएमआइ आज अपनी मानवाधिकार रिपोर्ट जारी कर रहा है।

MNREGA: बिहार सरकार झूठ बोल रही है या घर लौट कर खाली बैठे लाखों प्रवासी मजदूर?

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महामारी ने आय के सभी साधनों को समाप्त कर दिया। बिहार लौटे प्रवासी मजदूर बिना किसी निश्चित आय, भोजन और सहायता के आजीविका से वंचित हो गए। खुद नीति आयोग से लेकर तमाम रिपोर्टें ऐसा कहती हैं। फिर बिहार सरकार मनरेगा पर सदन में झूठ क्यों बोल रही है। सुल्तान अहमद की रिपोर्ट

NCERT की ‘क्षत-विक्षत’ किताबों से हमारा नाम मिटा दें: योगेंद्र यादव और सुहास पलशीकर की चिट्ठी

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योगेंद्र यादव और सुहास पलशीकर जैसे दो प्रतिष्ठित बुद्धिजीवियों द्वारा एनसीईआरटी निदेशक को लिखा गया पत्र इस मायने में ज्‍यादा दिलचस्‍प है कि इससे तमाम लोगों के सामने पहली बार यह बात आई है कि मोदी सरकार के नौ साल हो जाने के बावजूद सरकारी पाठ्यपुस्‍तकों में मुख्‍य सलाहकार के तौर पर सरकार के इन आलोचकों का नाम बरकरार था

गुजरात हाइकोर्ट के जज ने बलात्कार पीड़िता के वकील को मनुस्मृति पढ़ने का सुझाव क्यों दिया?

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गुजरात से आने वाले प्रधानमंत्री ने नई संसद में राजदंड को स्‍थापित किया और उसके दस दिन बाद ही गुजरात के उच्‍च न्‍यायालय में जज ने एक बलात्‍कार पीड़िता के वकील को मनुस्मृति पढ़ने की सलाह दे डाली। एक साथ विधायिका और न्यायपालिका में संवैधानिक मूल्य के बजाय मनुस्मृति के मूल्य की स्थापना क्या महज संयोग है?

श्रद्धांजलि: शीतला जी ने मिशन और सेकुलर पत्रकारिता का उच्च मापदंड स्थापित किया

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अयोध्या से निकलने वाले सहकारी अखबार ‘जनमोर्चा’ के संस्थापक और प्रधान संपादक शीतला सिंह के निधन पर उन्हें याद कर रहे हैं ‘ब्लिट्ज’ से जुड़े रहे लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप कपूर

चुनाव के हनुमान: जात्रा कलाकार और संघ प्रचारक निभास सरकार की खुदकशी

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भाजपा के बंगाली हनुमान निभास सरकार, जो मई 2019 में हंसी-खुशी चुनाव प्रचार कर रहे थे, पांच महीने में ऐसे किस दुख से घिर गए कि उन्‍हें जान देनी पड़ गई? जबकि जिस पार्टी का उन्‍होंने प्रचार किया, उसकी केंद्र में सरकार भी बन गई थी?

आवारा सर्वहारा

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आज जैसे हालात हैं, उनमें कह सकते हैं कि कामगार किसी कमतर ईश्वर के बनाए हुए नहीं हैं बल्कि उनको बनाने वाला ईश्वर ही अब वजूद से बाहर है। हक्सर इस लिहाज से श्रेय की पात्र हैं कि वे कामगारों को बचा ले जाने का एक सार्थक और सृजनात्मक प्रयास करती हैं, जो सामूहिक स्मृतिभ्रंश का त्रासद शिकार हो चुके हैं।

बाग बाग में आग

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पूर्वांचल में मुआवजा न लेने और जमीन न देने के नारे के साथ खिरिया बाग से शुरू हुआ किसानों का आंदोलन अंडिका बाग के आंदोलन के लिए नजीर बन चुका है।

मैं प्रेम में भरोसा करती हूं. इस पागल दुनिया में…

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“प्रोज़ैक नेशन” और “बिच” की लेखिका एलीज़ाबेथ वुर्टज़ेल अस्सी और नब्बे के दशक की एक प्रखर नारीवादी लेखिका थीं। उनका यह आखिरी ख़त जेन पत्रिका में प्रकाशित हुआ था।