मनमोहन सिंह, भारतीय अर्थव्यवस्था के विरोधाभास और उदारीकरण की सीमाएं
byडॉ. मनमोहन सिंह ने पहले वित्त मंत्री और बाद में प्रधानमंत्री रहते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था को संकटों से उबारने के लिए जो कुछ भी किया वह उस वक्त की मजबूरियों के चलते आज बेशक अपरिहार्य जान पड़ता हो, लेकिन हकीकत यह है कि उदारीकरण की मियाद अब खत्म हो चुकी है। उसके नुकसान उससे हुए फायदों पर भारी पड़ चुके हैं, तीन दशक का अनुभव यही बताता है। मनमोहन सिंह अपना काम कर के चले गए, भारत को अब आर्थिक सुधारों के नए समाजवादी अध्याय की जरूरत है