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लोकसभा चुनाव की निगरानी: परदा उठने से पहले एक अरब मतदाताओं के लिए बस एक सवाल

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आगामी लोकसभा चुनावों की निगरानी के लिए एक स्‍वतंत्र पैनल (आइपीएमआइई) बना है। इसकी परिकल्‍पना पूर्व प्रशासनिक अधिकारी एमजी देवसहायम ने की है। इस पैनल में लोकतंत्र, राजनीति विज्ञान, चुनाव प्रबंधन और चुनावी निगरानी तक विभिन्‍न क्षेत्रों के अंतरराष्‍ट्रीय ख्‍याति-प्राप्‍त शख्सियतें शामिल हैं। पैनल का उद्देश्‍य चुनावों पर निगाह रखना, रिपोर्ट प्रकाशित करना और चिंताएं जाहिर करना है ताकि आम चुनाव 2024 निष्‍पक्ष, स्‍वतंत्र, पारदर्शी तथा लोकतंत्र के सिद्धांतों के अनुकूल रहे जिससे भारत के नागरिकों के मताधिकार की सुरक्षा की जा सके। स्‍वतंत्र पैनल की पृष्‍ठभूमि खुद एमजी देवसहायम की कलम से

चंदे का धंधा: स्टेट बैंक ‘एक दिन के काम’ के लिए सुप्रीम कोर्ट से महीनों क्यों मांग रहा है?

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स्‍टेट बैंक ने सुप्रीम कोर्ट से इलेक्‍टोरल बॉन्‍ड का डेटा सार्वजनिक करने के लिए महीनों का समय मांग कर न सिर्फ अपनी मंशा पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि डिजिटल इंडिया के नारे पर भी बट्टा लगा दिया है। चूंकि बैंक की मांगी तारीख तक लोकसभा चुनाव संपन्‍न हो चुके होंगे और नई सरकार भी बन चुकी होगी, तो यह मामला उतना सीधा नहीं है। एसबीआइ के लाभकारी मालिकों से लेकर केंद्र सरकार और नरेंद्र मोदी तक सबकी जान सुप्रीम कोर्ट के आदेश में अटकी हुई है। डॉ. गोपाल कृष्‍ण का विश्‍लेषण

सुप्रीम कोर्ट में मेटाडेटा: एक मुकदमा, जो बदल सकता है भारत के लोगों की सामूहिक नियति

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लोकसभा चुनाव से पहले सुप्रीम कोर्ट में सात जजों की संविधान पीठ के सामने एक ऐसा मुकदमा आ रहा है जिस पर फैसले के निहितार्थ बहुत व्‍यापक हो सकते हैं। भाजपा सरकार द्वारा मनी बिल की शक्‍ल में वित्‍त विधेयकों को पारित करवाने के खिलाफ करीब दो दर्जन याचिकाओं पर यह फैसला अगले महीने आना है, जो आधार कानून, इलेक्‍टोरल बॉन्‍ड और हवाला कानून आदि का भविष्‍य तय करेगा। इनके बीच सबसे बड़ा और अहम मामला आधार संख्‍या का है, जिसके नाम पर भारत के लोगों का मेटाडेटा विदेशी ताकतों को ट्रांसफर किया जा रहा है।

आंकड़ों का राष्ट्रवाद: डेटा सुरक्षा और निजता की चिंताओं के बीच गांधी के सबक

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संसद का मानसून सत्र शुरू होने से ठीक पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संक्षिप्‍त संबोधन में कैबिनेट से पारित हो चुके डेटा प्रोटेक्‍शन बिल 2023 का नाम लिया, जिसे इस सत्र में सदन के पटल पर रखा जाना है। ऐसा लगता है कि सरकार नागरिकों के डेटा और निजता को लेकर काफी संवेदनशील है, लेकिन कहानी ठीक उलटी है। ऐसे ही एक बिल डीएनए प्रौद्योगिकी विनियमन विधेयक, 2019 को इस सत्र में वापस लेने के लिए सूचीबद्ध किया गया है। डेटा, राष्‍ट्रवाद, नागरिकों की जासूसी और निजता के रिश्‍तों को विस्तार से समझा रहे हैं डॉ. गोपाल कृष्‍ण

बेनामी और बेहिसाब कॉरपोरेट चंदे के खिलाफ चार दशक पुराने संवैधानिक विवेक की साझा लड़ाई

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अगस्‍त 1997 में नीतीश कुमार ने लोकसभा में एक भाषण दिया था। फरवरी 2023 में राहुल गांधी ने एक भाषण दिया। ढाई दशक में संदर्भ बदल गए, लेकिन मुद्दा एक ही रहा- चुनावों की बेनामी कॉरपोरेट फंडिंग। नीतीश के सुझाव को भाजपा ने कभी नहीं माना। राहुल की जब बारी आई, तो सदन के माइक ही बंद कर दिए गए। पटना में हो रही विपक्षी एकता बैठक के बहाने चुनावों की राजकीय फंडिंग के हक में चार दशक के संसदीय विवेक पर बात कर रहे हैं डॉ. गोपाल कृष्‍ण

नौ गुना चुनावी बॉन्ड की बारिश यानि कर्नाटक का चुनाव फिर सबसे महंगा?

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पिछले चुनाव में अगर दस हजार करोड़ का प्रचार खर्च आया था जो रिकॉर्ड था, तो अबकी नौ गुना ज्‍यादा बॉन्‍डों की बिक्री के साथ कुल चुनावी खर्च कायदे से एक लाख करोड़ के आसपास पहुंच जाना चाहिए, हालांकि यह गणित इतना सीधा नहीं है