Project Syndicate

Labour leader Keir Starmer’s vctory celebrations in London

ब्रिटेन : इतिहास की सबसे ज्यादा ‘सर्वहारा’ सरकार से क्या उम्मीद की जानी चाहिए?

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लेबर पार्टी के नेता कीर स्‍टार्मर की आगामी कैबिनेट में जितने सदस्‍य मजदूर तबके की पैदाइश हैं, उतने ब्रिटेन के इतिहास में किसी सरकार में कभी नहीं रहे। इसका मतलब क्‍या है? क्‍या इसका नीति-निर्माण पर कोई खास असर पड़ेगा या ब्रिटेन के पैदाइशी अभिजात्‍यों के दबाव में अपने वर्ग के लिए कुछ करने की उनकी लालसा दबी ही रह जाएगी? प्रोजेक्‍ट सिंडिकेट के सौजन्‍य से समाजशास्‍त्री एरन रीव्‍स और सैम फ्रीडमैन का आकलन

Marine Le Pen

यूरोप चुनाव: बढ़ते मसखरों के बीच नए फासिस्‍टों का मंडराता साया

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इस महीने यूरोपीय संसद के लिए हुए चुनावों के बाद अब मुख्‍यधारा के राजनीतिक दल और नेता धुर दक्षिणपंथ के साथ एक नाव में सवार होने की पूरी तैयारी कर चुके हैं। इस तरह, दूसरे विश्‍व युद्ध के बाद यूरोप के लोकतांत्रिक देशों द्वारा ‘फासिस्‍टों से गठजोड़ न करने’ के अपनाए गए सिद्धांत को चुपके से तिलांजलि दे दी गई है। अब यूरोप को फासिस्‍ट कुबूल हैं। प्रोजेक्‍ट सिंडिकेट के साथ फॉलो-अप स्‍टोरीज की विशेष व्‍यवस्‍था के तहत प्रतिष्ठित चिंतक स्‍लावोइ ज़ीज़ेक का विश्‍लेषण

Symbol of BJP painted on childran's face

अमेरिका से लेकर भारत तक अपने नेता के साये में जॉम्बी बनते राजनीतिक दल

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अपनी राजनीतिक पार्टी की मशीनरी को पूरी तरह हाइजैक कर लेना तानाशाहों में तब्‍दील हो रहे तमाम लोकप्रिय नेताओं का शगल बन चुका है। डोनाल्‍ड ट्रम्‍प अकेले ऐसे दक्षिणपंथी नेता नहीं हैं जिन्‍होंने अपनी पार्टी को अपनी मनमर्जी के अधीन कर डाला है। हंगरी, नीदरलैंड्स, फ्रांस से लेकर भारत तक सूची लंबी है। इतिहास गवाह है कि देश में निरंकुश शासन लगाने की ओर पहला तार्किक कदम पार्टी का आंतरिक लोकतंत्र खत्‍म कर के उसे तानाशाही में बदलना होता है। राजनीतिक दर्शन के विद्वान यान-वर्नर म्‍यूलर की टिप्‍पणी

Hitler fiddling with globe, a scene from The Great Dictator

क्या 2024 पूरी दुनिया में ‘कब्जे का वर्ष’ है? क्या 1933 खुद को दोहरा रहा है?

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1933 में अडॉल्‍फ हिटलर की सत्‍ता का उदय आज 2024 में कहीं ज्‍यादा प्रासंगिक हो चुका है। दुनिया का ज्‍यादातर हिस्‍सा इस साल निर्णायक चुनावों में जा रहा है। दुनिया की आधी आबादी अपनी किस्‍मत का फैसला अपने वोट से करने जा रही है। चेतावनी के संकेत यहां-वहां बिखरे पड़े हैं, लेकिन कुछ जानकार खुलकर अब कह रहे हैं कि लिबरल जनतंत्र चुनावी दांव पर लग चुका है। इतिहासकार मार्क जोन्‍स की महत्‍वपूर्ण टिप्‍पणी