दो साल बहुत होते हैं एक छोटे से शहर को बदलने के लिए; किसी को याद रखने के लिए, तो किसी को भुला देने के लिए; किसी को बरी कर देने के लिए, तो किसी को सजा देने के लिए। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में भी 3 अक्टूबर 2021 के बाद सब कुछ वैसा ही नहीं है, जैसा उस दिन था- जब एक केंद्रीय मंत्री का विरोध कर रहे चार किसानों और एक पत्रकार को एक जीप ने बेरहमी से कुचल कर मार डाला था, जिसमें मंत्री का बेटा सवार था। बदले में किसानों ने गाड़ी के ड्राइवर और दो राजनीतिक कार्यकर्ताओं को पीट कर मार डाला था। कुल आठ मौतें हुई थीं और दर्जनों जिंदगियों के रास्ते हमेशा के लिए बदल गए थे।
उस घटना की दूसरी बरसी पर उत्तर प्रदेश में किसी पत्रकार की हत्या तो नहीं हुई, लेकिन मुंह अंधेरे देश की राजधानी दिल्ली में पुलिस ने करीब दो दर्जन पत्रकारों के घर छापा मार के एक संपादक को गिरफ्तार जरूर कर लिया। बेशक जीप आई- मंत्री की नहीं पुलिस की- लेकिन किसी पर चढ़े बगैर कुछ लोगों को बैठाकर पूछताछ के लिए उठा ले गई। दिन भर कड़ी पूछताछ के बाद देर शाम पत्रकार अपने घर लौटकर आ गए।
उधर, दिल्ली से सवा पांच सौ किलोमीटर दूर निघासन, लखीमपुर के कश्यप परिवार को अब भी अपने बेटे रमन का इंतजार है। वह अब कभी नहीं आएगा। इस परिवार पर बीते दो साल में क्या बीती है, उसे केवल परिजनों से मिल कर ही समझा जा सकता है जिन्होंने दो साल के भीतर अपने दो जवान बेटे खो दिए थे।
दो लाशों का बोझ
3 अक्टूबर, 2021 को दोपहर बारह बजे का समय था जब पत्रकार रमन कश्यप की (तब) आठ साल की बेटी ने अपने पिता को आखिरी बार देखा था। साधना न्यूज चैनल के लिए काम करने वाले रमन कश्यप उस दिन उपमुख्यमंत्री केशव मौर्या के आने की ख़बर पाकर तिकुनिया गए थे, जहां किसानों को कुचलने वाली थार जीप ने उनको भी नहीं बख्शा। आज भी उनका परिवार उस दिन को याद कर के सिहर जाता है।
पत्रकार की हत्या के बाद उनके छोटे भाई पवन कश्यप तिकुनिया कांड में एक हीरो की तरह लड़ते हुए दिखाई दिए थे। फॉलो अप स्टोरीज से खास बातचीत में पवन बताते हैं कि बड़े भाई रमन पढ़ने में बहुत तेज थे। साथ ही समाजसेवा में भी उनकी विशेष रुचि थी। एक निजी स्कूल में अध्यापक की भूमिका निभाने के साथ ही वह मौत से पहले छह महीनों से पत्रकारिता कर रहे थे।
रमन के पिता रामदुलारे तिकुनिया के तत्कालीन कोतवाल पर सवाल उठाते हुए कहते हैं, “उस दिन घटना तीन बजे के करीब हुई थी लेकिन रमन को यदि समय से इलाज मिल जाता तो शायद मेरा बेटा आज जिंदा होता। कोतवाल ने बिना किसी इलाज के ही उसे मृत घोषित कर के शाम को लगभग सात बजे लखीमपुर भेज दिया।‘’
उन्होंने मीडिया के कुछ लोगों पर भी सवाल उठाया कि उस दौरान कैसे जबरदस्ती उनके मुंह से यह कहलवाने की कोशिश की गई थी कि रमन को किसानों ने पीट-पीट कर मार डाला। इस पर पवन कहते हैं, “जब घटनास्थल पर मैं पहुंचा तो देखा कि भाई के शरीर पर घसीटने के निशान थे।‘’
बड़े भाई रमन की मौत के गम से उबर रहे पवन को उससे भी बड़ा झटका तब लगा जब उनके छोटे भाई को ब्लड कैंसर होने की खबर उन्हें मिली। जांच के केवल महीने भर बाद मार्च 2023 में उसकी मौत हो गई। एक के बाद एक दोनों भाइयों की मौत के बाद मंझले बेटे पवन आज अपने पिता का एकमात्र सहारा हैं।
रमन के दो बच्चों और छोटे भाई के एक बेटे की तिहरी जिम्मेदारी पवन के कंधों पर है। इन सबके बीच पवन कश्यप अपने भाई के इंसाफ की खातिर हार मानने को तैयार नहीं हैं। उनकी लड़ाई आज भी जारी है। पवन को एक सुरक्षाकर्मी मिला हुआ है।
भाई को न्याय दिलाने के लिए सत्ता के समक्ष प्रतिरोध की आवाज बन चुके पवन को घटना के बाद से ही विपक्षी राजनीतिक दलों की ओर से पूरा भावनातमक सहयोग मिलता रहा है। विपक्ष के कई बड़े नेता हर महीने फोन पर रमन की पत्नी और पवन का हालचाल लेते रहते हैं, जिससे पवन को काफी हिम्मत और प्रेरणा मिलती है।
कई दलों ने उनसे चुनाव में उतरने की भी पेशकश की थी, लेकिन पवन कश्यप ने साफ मना कर दिया। पवन कहते हैं, “मेरी प्राथमिकता है कि मेरे भाई को न्याय मिले, इसके अलावा मुझे अपने परिवार का भी खयाल रखना पड़ता है। ऐसे में राजनीति के मैदान में उतरने का अभी मेरा कोई विचार नहीं है।“
पवन फिलहाल भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) में प्रदेश सचिव के तौर पर यूपी-उत्तराखंड के तराई क्षेत्र की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। इसके साथ ही वे अपने भाई के नाम से ‘शहीद रमन कश्यप सोशल वेलफेयर सोसाइटी’ भी चला रहे हैं, जिसके माध्यम से अपने भाई के सामाजिक कार्यों को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी भी उनके कंधों पर है।
दूसरे पाले के दुख
लखीमपुर कांड के कुछ और शिकार हैं जिनके कंधों पर घर-परिवार का बराबर बोझ है, लेकिन वे जिस पाले से आते हैं वहां उनके पास गुहार लगाने या इंसाफ-इंसाफ चिल्लाने की भी सहूलियत नहीं है। विपक्षी दल तो दूर की बात रही, खुद भारतीय जनता पार्टी ने अपने इन कार्यकर्ताओं के परिवारों से मुंह फेर लिया है।
लखीमपुर खीरी की जघन्य घटना में तीन और लोग मारे गए थे- एक थार जीप का ड्राइवर था और बाकी दो भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता। आक्रोशित किसानों ने इन्हें पीट-पीट कर मार दिया था।
मारे गए तीन भाजपा कार्यकर्ताओं में एक थे ग्राम सहजना, सिंगाही कला के निवासी 30 साल के श्याम सुंदर निषाद, जो भाजपा के मंडल मंत्री थे। परिवार में सबसे बड़े थे श्याम सुंदर। पिता का देहांत होने के बाद दो भाइयों और दो बहनों की जिम्मेदारी उनके ही जिम्मे थी। इसके अलावा श्याम सुंदर की पत्नी और दो बेटियां (1 व 3 साल) भी थीं। श्याम सुंदर की मौत के बाद राज्य सरकार की तरफ से 45 लाख रुपये का जो मुआवजा मिला, वह पैसा उनकी पत्नी को मिला और वे अपने मायके चली गईं। तब से दोनों भाई मजदूरी करके घर का खर्च चला रहे हैं।
श्याम सुंदर की मां अपने बेटे को हमेशा याद करती रहती हैं। उन्हें दुख इस बात का भी है कि उनकी बेटियों की शादी की उम्र हो गई है लेकिन घर में इतने पैसे नहीं कि शादी करने के बारे में सोचें।
श्याम सुंदर के छोटे भाई 28 वर्षीय राजपाल बताते हैं, “गांव के प्रधान अक्सर हालचाल लेते रहते हैं, कभी-कभी भाजपा के नेता भी आश्वासन देने आ जाते हैं लेकिन सिर्फ आश्वासन देने से तो बहनों की शादी हो नहीं जाएगी!“
मारे गए दूसरे भाजपा कार्यकर्ता लखीमपुर के शिवम मिश्रा थे। मौत से कुछ दिन पहले ही उनकी शादी हुई थी। वे भाजपा के बूथ अध्यक्ष के तौर पर राजनीति में काफी सक्रिय थे। तीसरी मौत थार जीप के ड्राइवर हरिओम मिश्रा की हुई थी।
क्या सांसद टेनी की ओर से इन तीन कार्यकर्ताओं को किसी तरह की मदद मिली है? इस सवाल पर राजपाल चुप्पी साध लेते हैं। भाजपा के इन मारे गए कार्यकर्ताओं को बस इतनी सी राहत है कि उनके यहां से पुलिस का पहरा हटा लिया गया है।
श्याम सुंदर निषाद के गांव वाले बताते हैं कि पहले उनके घर पर भी पुलिस वाले सुरक्षा करने आते थे लेकिन बीते दो-तीन महीनों से पुलिसवालों का आना-जाना बंद है। इसके ठीक उलट, शहीद किसानों पर अब भी लगातार निगरानी रखी जा रही है।
खौफ में शहीद किसानों के परिजन
मारे गए चार किसानों के घर पर लगातार दो साल से पुलिस का पहरा लगा हुआ है। चौखड़ा फार्म स्थित शहीद किसान लवप्रीत के घर पर सुरक्षा में लगे पुलिसकर्मियों की जब मैंने तस्वीर लेनी चाही तो उन्होंने मना कर दिया। उन्होंने कहा कि ‘’आप यहां की कोई भी तस्वीर न लगाना’’। शायद उनको खतरे का एहसास है।
मंत्री टेनी का खौफ इलाके में कुछ इस कदर है कि जल्द कोई उनके खिलाफ मुंह नहीं खोलता। तिकुनिया केस में कई गवाहों पर हमले और धमकी की खबरें लगातार आती रहती हैं। केस से जुड़े कुछ लोग बताते हैं कि टेनी पक्ष के लोग न्यायालय में शस्त्र तक लेकर घुस जाते हैं। खौफ का आलम ये है कि गवाह दिलबाग सिंह पर एक बार हमला हो चुका है। इसके अलावा घटना के एक और गवाह प्रभुजीत सिंह के भाई सर्वजीत सिंह पर भी जानलेवा हमला हो चुका है।
पलिया के चौखडा फॉर्म निवासी सतनाम सिंह अपने बेटे लवप्रीत सिंह के जाने के बाद गुमसुम से रहते हैं। पड़ोसी बताते हैं कि इकलौते बेटे की मौत ने सतनाम से उसकी दुनिया ही छीन ली। लवप्रीत की मौत के बाद परिवार को पंजाब, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश सरकार ने लगभग डेढ़ करोड़ रुपये का मुआवजा दिया, लेकिन लवप्रीत की बहनों का आज भी कहना है कि “मुझे ये पैसे नहीं चाहिए, मुझे बस मेरा भाई लौटा दो।”
सतरह साल के राजदीप उस दिन अपने पिता दलजीत सिंह के साथ विरोध प्रदर्शन में शामिल होने आए थे। उस दिन को याद कर के वे सिहर उठते हैं, “मेरे पिता मेरी आंखों के सामने ही कुचलकर मार दिए गए और मैं कुछ नहीं कर पाया।”
दलजीत बेहद गरीब परिवार से थे। परिवार में पत्नी परमजीत कौर के अलावा एक बेटा और एक बेटी है।
धौरहरा के लहबड़ी थाना क्षेत्र के नछत्तर सिंह की उम्र करीब 65 साल थी, लेकिन इस उम्र में भी उनमें हिम्मत बहुत थी। अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए उन्होंने जीवन कुर्बान कर दिया। उनके दो बेटे हैं, जिसमें से एक एसएसबी का जवान है।
मटरौनिया नानपारा, जिला बहराइच निवासी गुरविंदर सिंह एक गुरुद्वारे में सेवादार थे। उनके जीवन का उद्देश्य लोगों की सेवा करना था। किसानों के बुलावे पर वे भी बाकी लोगों की तरह किसानों के प्रदर्शन में शामिल होने गए थे, लेकिन गाड़ी की चपेट में आकर उनकी भी मौत हो गई।
उत्तर प्रदेश की सरकार ने सभी मृतकों को 45-45 लाख रुपये का मुआवजा दिया था और साथ ही सरकारी नौकरी देने का भी वादा किया था। आज तक किसी को भी नौकरी नहीं मिली है।
शहीद पत्रकार रमन कश्यप के भाई पवन बताते हैं कि नौकरी के संबंध में उन्होंने तत्कालीन कमिश्नर रोशन जैकब से बात की थी। कमिश्नर को उन्होंने याद दिलाया था कि योगी जी ने कहा है सभी को नौकरी मिलेगी। वे बताते हैं कि बाद में वे मुकर गए और बोले- आजकल सरकारी नौकरी मिलती कहां है!
जमानत पर आरोपित
तिकुनिया कांड में कुल आठ मौतें हुई थीं। इस कांड में खलनायक बनकर उभरे आशीष मिश्रा केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी के छोटे बेटे हैं। आशीष मिश्रा इलाके में मोनू के नाम से भी जाने जाते हैं। उनके खिलाफ कोई दो सौ गवाह थे, जिनमें केवल चार के बयानात अदालत में आज तक दर्ज हो सके हैं। मोनू लगातार जनवरी से जमानत पर है। अदालत ने उसे तड़ीपार किया हुआ था। उसके उत्तर प्रदेश या दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में घुसने पर पाबंदी थी।
अभी हफ्ते भर पहले सुप्रीम कोर्ट ने आशीष मिश्रा को उसकी मां के इलाज के सिलसिले में दिल्ली जाने की अनुमति दी है। मिश्रा के अलावा इस केस में 13 आरोपित और हैं, लेकिन पहले ही दिन से सबसे बड़ी मांग केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी को पद से बरखास्त किए जाने की है।
पिता के व्यवसाय के साथ ही मोनू राजनीति में भी सक्रिय रहा है। खासकर जब पिता टेनी को 2012 में निघासन विधानसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी बनाया गया, तब आशीष ने ही पूरे चुनाव की बागडोर संभाली थी। अजय मिश्रा ‘टेनी’ को इस चुनाव में जीत मिली। इसके बाद भारतीय जनता पार्टी के अंदर उनका कद बढ़ता ही गया। साथ ही बेटे की भी क्षेत्र में पहचान बनना शुरू हो गई।
2014 में टेनी के सांसद बनने के बाद आशीष की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं भी बढ़ने लगीं। 2017 के विधानसभा चुनाव में निघासन सीट से आशीष ने टिकट की मांग शुरू कर दी। क्षेत्र में हर तरफ आशीष के बैनर-होर्डिंग दिखाई देने लगे, हालांकि भाजपा ने टिकट देने से मना कर दिया। फिर भी वह सामाजिक कार्यक्रमों से लेकर सोशल मीडिया तक सक्रिय रहा।
7 जुलाई 2021 को लखीमपुर खीरी से दोबारा सांसद बने अजय मिश्रा को केंद्रीय कैबिनेट में जगह मिली और वे देश के गृह राज्यमंत्री बन गए। ऐसे में भाजपा प्रत्याशी के तौर पर मोनू को 2022 के विधानसभा चुनाव में निघासन सीट से टिकट मिलना तय था, लेकिन 3 अक्टूबर, 2021 को किसानों को कुचलने का आरोप लगते ही उसके विधायक बनने की इच्छाओं पर पानी फिर गया।
स्थानीय लोगों की मानें तो लखीमपुर कांड भले ही केंद्रीय मंत्री टेनी के बेटे मोनू की जीप से हुआ, लेकिन उसकी जड़ में खुद टेनी की लगाई आग थी।
दो साल पहले
केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी के पैतृक गांव बनवीरपुर में पिछले कई साल से 2 अक्टूबर को दंगल का आयोजन होता आया था। इस बार दंगल के बजाय वहां कार्यकर्ता सम्मेलन का आयोजन किया गया। दो साल पहले उसी दंगल में शामिल होने के लिए उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या वहां आने वाले थे। उस साल दंगल का कार्यक्रम 2 अक्टूबर के बजाय किन्हीं कारणों से 3 अक्टूबर को रखा गया था।
निघासन निवासी राकेश कुमार कहते हैं, ‘’हफ्ते भर पहले संपूर्णानगर में टेनी के दिए भाषण ने आठ घरों को बर्बाद कर दिया। न वे किसानों को भगाने की बात करते और न ही किसान विरोध प्रदर्शन करने उस जगह इकट्ठा होते, जहां किसानों को कुचलकर मारा गया और फिर भीड़ के प्रतिशोध ने तीन और जानें ले लीं।“
संपूर्णानगर में 25 सितंबर को किसान गोष्ठी आयोजित की गई थी। क्षेत्र में टेनी के पहुंचते ही किसानों ने गदनियां चौराहे और महंगापुर गुरुद्वारा के पास उन्हें काले झंडे दिखाए। उनके पोस्टर-बैनर भी फाड़ दिए। इसी किसान गोष्ठी को संबोधित करने के दौरान टेनी ने किसानों को सुधरने की धमकी देते हुए एक भाषण दिया था।
उन्होंने कहा था: “सुधर जाओ, नहीं तो सामना करो आके, हम आपको सुधार देंगे, दो मिनट लगेगा केवल, मैं केवल मंत्री नहीं हूं या सांसद विधायक नहीं हूं, जो सांसद-विधायक बनने से पहले मेरे बारे में जानते होंगे कि मैं किसी चुनौती से भागता नहीं हूं और जिस दिन मैंने चुनौती को स्वीकार कर लिया उस दिन सिर्फ पलिया ही नहीं, लखीमपुर तक छोड़ना पड़ जाएगा ये याद रखना।“
राकेश बताते हैं कि इसी बयान को लेकर हजारों किसान उस दिन महाराजा अग्रसेन स्कूल के खेल के मैदान में इकट्ठा हुए थे, जहां उपमुख्यमंत्री केशव मौर्या के उतरने के लिए हेलीपैठ बनाया गया था। किसानों का मकसद था उपमुख्यमंत्री के सामने टेनी के बयान को लेकर अपना विरोध दर्ज कराना।
टेनी के बयान का वीडियो 25 सितंबर से ही सोशल मीडिया में वायरल था। उनके इस बयान के बाद ही किसानों में उनको लेकर गुस्सा था, जो लगातार बढ़ता ही जा रहा था। राकेश बताते हैं कि मंत्री का यह बयान ही पूरे बवाल की जड़ बन गया।
घटनास्थल के सामने ही सरदार विचित्तर सिंह का घर है। उस दिन को याद कर वे बताते हैं, “संपूर्णनागर में टेनी के दिए गए बयान को लेकर किसान शांतिपूर्वक विरोध प्रदर्शन कर रहे थे तभी तीन गाड़ियां उनके सामने से निकलीं और किसानों को कुचल दिया। अगर टेनी ने ऐसा बयान न दिया होता तो न ही प्रदर्शन होता और फिर न ही इतने लोगों की जानें जातीं। नेताओं का क्या वे तो अपनी राजनीति के चक्कर में बयान दे डालते हैं लेकिन कभी-कभी इसके परिणाम दंगे या इस तरह की घटनाओं के रूप में तमाम परिवारों की बर्बादी की कहानी लिख जाते हैं।“
उस बयान से लेकर 3 अक्टूबर के बीच काफी कुछ घटा। बयान के अगले ही दिन 26 सितंबर को महंगापुर में एक मुकदमा अमनीत सिंह और उसके दो साथियों के खिलाफ दर्ज कराया गया। दूसरा मुकदमा गदनियां में महेंद्र सिंह समेत पचासेक अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज हुआ था। अमनीत पर काले झंडे दिखाने के वीडियो बनाने का आरोप था। कोविड-19 के नियमों का पालन नहीं करने का भी आरोप किसानों के ऊपर लगाया गया था, जो कि उस दौर में बहुत आम था।
किसानों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज होने के बाद किसान संगठनों ने मंत्री के खिलाफ निघासन में विरोध प्रदर्शन किया और आरोप लगाया कि मंत्री के दबाव में ही पुलिस ने उनके घरों में दबिश देकर औरतों से दुर्व्यवहार किया है। दूसरी ओर भाजपा के कार्यकर्ताओं ने मंत्री के खिलाफ सोशल मीडिया में टिप्पणी करने वालों पर मुकदमा दर्ज न होने के खिलाफ थाना घेर लिया।
गांधी जयंती आते-आते तनाव चरम पर था। अगले ही दिन टेनी के बेटे की थार जीप ने पांच लोगों को कुचल कर आग में घी का काम किया।
इसीलिए आज तक टेनी के इस्तीफे की मांग जारी है। यह बात लखीमपुर में सबको पता है कि जब तक टेनी सत्ता में रहेंगे, इंसाफ लोगों से दूर रहेगा और उनका बेटा जमानत पर रहेगा क्योंकि लखीमपुर की जनता दो दशक पहले हुए प्रभात गुप्ता हत्याकांड में टेनी के रसूख की गवाह रह चुकी है। मंत्री टेनी के खिलाफ असंतोष का लंबा इतिहास रहा है। प्रभात गुप्ता हत्याकांड की बात आज भी शहर में हर कोई दबे-छुपे करता है।
23 साल की नाइंसाफी
केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा इलाके में टेनी महाराज के नाम से मशहूर हैं। टेनी का रसूख ऐसा है कि क्षेत्र में बहुत कम लोग उनके खिलाफ़ बोलने की हिम्मत जुटा पाते हैं। लोगों से चर्चा के दौरान उनके हिस्ट्रीशीटर होने की बात सामने आती है। इसके अलावा कथित तौर पर नेपाल से तस्करी के किस्से भी लोगों की जुबां पर हैं पर कोई भी ये सब बातें नाम न छापने की शर्त पर ही बताता है।
उक्त बातों की तसदीक सन 2000 में हुए प्रभात गुप्ता हत्याकांड की केस डायरी में दर्ज जांच अधिकारी आरपी तिवारी के इस बयान से होती है, जिसमें उन्होंने लिखा है, “अजय मिश्र उर्फ टेनी भाजपा का महामंत्री है तथा क्षेत्रीय विधायक एवं उत्तर प्रदेश सरकार में सहकारिता मंत्री श्री राम कुमार वर्मा का खास व्यक्ति होने एवं दबंग होने के कारण इसके आतंक एवं भय से क्षेत्र का कोई भी व्यक्ति सही एवं सत्य बात कहने की हिम्मत नहीं कर रहा है। विश्वस्त सूत्र सूचनानुसार यह नेपाल क्षेत्र पास होने के कारण तस्करी के कार्यों में भी लिप्त है जिससे इसकी आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी है।“
सत्र न्यायालय ने 2004 में इस हत्याकांड में टेनी समेत सभी चार आरोपितों को दोषमुक्त कर दिया था। प्रभात गुप्ता के परिवार ने इसे इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में चुनौती दी थी। मामला अब सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा है।
इसके अलावा भी अजय मिश्रा पर कई मुकदमे दर्ज हैं। अजय मिश्रा के खिलाफ 2005 में घर में घुसकर मारपीट और दंगा-फसाद का मुकदमा दर्ज हुआ था। इसके बाद 2007 में भी उनके खिलाफ घर में घुसकर मारपीट का एक और मुकदमा दर्ज हुआ। स्थानीय पत्रकार बताते हैं कि इन्हीं सब कारणों से टेनी महाराज का दबदबा पूरे क्षेत्र में बढ़ता चला गया जिसके परिणामस्वरूप राजनीति में भी उनका कद बहुत तेजी के साथ बढ़ा।
2009 के लोकसभा चुनाव में लखीमपुर खीरी से टेनी को प्रत्याशी बना गया, लेकिन वे चौथे स्थान पर रहे। 2012 में भाजपा ने निघासन विधानसभा क्षेत्र से उन्हें चुनाव लड़वाया जिसमें वे सपा के आरए उस्मानी से 22 हजार वोटों से जीतकर विधानसभा पहुंच गए। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने फिर से इन पर दांव लगाया, इस बार उन्होंने बसपा के अरविंद गिरी को एक लाख 10 हजार वोटों से हरा दिया।
2019 के लोकसभा चुनाव में तो जीत का अंतर काफी बड़ा हो गया, जब सपा की पूर्वी वर्मा को उन्होंने दो लाख से ज्यादा वोटों से मात दी। यही वजह रही कि मोदी कैबिनेट में जगह पाकर 7 जुलाई 2021 को टेनी देश के गृह राज्यमंत्री बन गए, लेकिन तीन महीने बाद ही माथे पर पांच हत्याओं का कलंक भी लग गया। टेनी इसके बावजूद नहीं सुधरे।
पिछले साल वे एक ऑक्सीजन प्लांट का उद्घाटन करने लखीमपुर गए थे। वहीं पर एक पत्रकार ने उनके बेटे के ऊपर लगी धाराओं के बारे में सवाल किया था। टेनी ने पत्रकार से धमकी भरे अंदाज में कहा था, “बेवकूफी के सवाल मत किया करो, दिमाग खराब है क्या बे!“
इस दौरान कैमरे से वीडियो बना रहे एक पत्रकार को उन्होंने डांटते हुए उसका मोबाइल छीन लिया था। टेनी की इस हरकत का वीडियो खूब वायरल हुआ था। इसी तरह भाजपा के एक कार्यकर्ता के साथ टेनी की बदसलूकी का वीडियो भी काफी वायरल हुआ था। कोई आश्चर्य नहीं कि तिकुनिया कांड में मारे गए भाजपा के दोनों कार्यकर्ताओं की जबान टेनी के नाम पर बंद हो जाती है।
बेटे को तो जमानत मिली हुई है लेकिन अब खुद टेनी की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। प्रभात गुप्ता हत्याकांड के दो दशक अदालतों में घिसटने के बाद वादी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। इलाहाबाद हाइकोर्ट ने टेनी सहित चार आरोपितों को बीती मई में बरी कर दिया था। इसके बाद प्रभात गुप्ता के भाई ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करते हुए इलाहाबाद हाइकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी।
फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई पिछले महीने की 22 तारीख को दो हफ्ते के लिए टाल दी है। फिर भी, 23 साल तक अदालतों में उलझे रहने के बाद इस मामले के पीडि़त परिवार को इंसाफ की एक उम्मीद जरूर बंधी है।
शहीदों की याद में
लखीमपुर कांड के कुछ महीने बाद ही विधानसभा चुनाव हुआ था। भाजपा ने लखीमपुर की आठों विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज कर ली थी। आखिर क्या वजह रही कि किसान नेताओं के देशव्यापी विरोध प्रदर्शन और सांसद-पुद्ध के जघन्य हत्याकांड के बावजूद भाजपा ने सारी सीटें जीत लीं?
समाजवादी पार्टी के नेता भंडारी यादव इस सवाल पर कहते हैं, “सवाल चुनाव में जीत का है ही नहीं, सवाल इंसाफ का है। भाजपा किन्हीं समीकरणों के चलते जीत ज़रूर गई, लेकिन देश-दुनिया में भाजपा का चेहरा जरूर बेनकाब हो गया।“
मंत्रीपुत्र की थार जीप से पांच लोगों को कुचले जाने की घटना जहां हुई थी, वह जगह लखीमपुर के तिकुनिया थाना के अंतर्गत आती है। तिकुनिया से चार किलोमीटर दूर कौड़ियालाघाट का ऐतिहासिक गुरुद्वारा स्थित है। पिछले साल इस गुरुद्वारे में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि दी गई थी। इस साल भी शहीदों को श्रद्धांजलि दी गई है।
मंगलवार को हुए अरदास में शामिल जितेंद्र सिंह बताते हैं कि गुरुद्वारा कमेटी चार मृतक किसानों के साथ ही पत्रकार रमन कश्यप को भी शहीद का दर्जा देकर बराबर का सम्मान देती है। इस मौके पर सभी शहीदों के परिजनों को अरदास में बुलाया जाता है। इस साल भी अरदास में संयुक्त किसान मोर्चा के बहुत सारे नेता शामिल हुए। घटनास्थल पर एक कबड्डी प्रतियोगित का भी आयोजन किया गया, जिसमें राज्यस्तरीय छह टीमों ने हिस्सा लिया।
दूसरी ओर संयुक्त किसान मोर्चा और मजदूर संगठनों के संघ ने 3 अक्टूबर का दिन काला दिवस घोषित किया हुआ था। पूरे देश की तहसीलों और जिला मुख्यालयों पर मंगलवार को टेनी के पुतले जलाए गए और उनके इस्तीफे की मांग दुहराई गई।
लखीमपुर के टेनी पिता-पुत्र के खिलाफ किसानों में कितना गुस्सा है, इसका अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि अकेले पंजाब में मंगलवार को 1300 से ज्यादा जगहों पर टेनी, उनके बेटे मोनू और प्रधानमंत्री मोदी के पुतले फूंके गए। अमृतसर में करीब पचास जगहों पर विरोध प्रदर्शन हुआ है। बीकेयू (उग्राहां) ने 1200 गांवों में पुतला दहन कार्यक्रम किया है और पंजाब की 37 तहसीलों और जिलों में प्रदर्शन आयोजित किए गए।
लखीमपुर में भले टेनी का आतंक कायम है, लेकिन पंजाब, हरियाणा सहित पूरे देश में सात सौ से ज्यादा जगहों पर 3 अक्टूबर को तिकुनिया कांड के खिलाफ हुए प्रदर्शन बताते हैं कि यह मामला इतनी जल्दी लोगों के जेहन से निकलने वाला नहीं है।
प्रभात गुप्ता हत्याकांड की फाइल सुप्रीम कोर्ट में दोबारा खुलने के बाद बहुत संभव है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा लखीमपुर खीरी से अपना प्रत्याशी बदलने पर विचार कर ले। ऐसे में अजय मिश्रा टेनी की राजनीतिक राह कठिन हो जाएगी। पिछले दो साल से गांधी जयंती पर परंपरागत दंगल की जगह कार्यकर्ता सम्मेलन करवाने वाले टेनी की बेचैनी का इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है।