पत्रकारों का सरकारी उत्पीड़न बढ़ा, 2022 में 194 पत्रकार हमलों का शिकार: RRAG

बीते 27 जून को जारी एक विज्ञप्ति में आरआरएजी ने बताया कि 194 में से 103 पत्रकारों को राजकीय हमले का शिकार होना पड़ा जबकि 91 पत्रकारों को राजनीतिक कार्यकर्ताओं और राज्‍येतर इकाइयों ने अपना निशाना बनाया।

मानवाधिकारों पर काम करने वाले एक समूह राइट्स एंड रिस्क एनालिसिस ग्रुप (आरआरएजी) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक 2022 के दौरान राज्य की एजेंसियों, राज्‍येतर राजनीतिक ताकतों और अपराधियों व सशस्त्र विपक्षी समूहों (एओजी) द्वारा पूरे भारत में कुल सात महिला पत्रकारों सहित 194 पत्रकारों को अलग-अलग ढंग से निशाना बनाया गया। इनमें सबसे ज्‍यादा हमले जम्मू और कश्मीर के पत्रकारों पर हुए (48)। इसके बाद तेलंगाना (40); ओडिशा (14); उत्तर प्रदेश (13); दिल्ली (12); पश्चिम बंगाल (11); मध्य प्रदेश और मणिपुर (प्रत्येक में 6); असम और महाराष्ट्र (प्रत्येक में 5); बिहार, कर्नाटक और पंजाब (प्रत्येक 4); छत्तीसगढ़, झारखंड और मेघालय (प्रत्येक में 3); अरुणाचल प्रदेश और तमिलनाडु (2); आंध्र प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, पुडुचेरी, राजस्थान, त्रिपुरा और उत्तराखंड (1-1) का नंबर आता है।

बीते 27 जून को जारी एक विज्ञप्ति में आरआरएजी ने बताया कि 194 में से 103 पत्रकारों को राजकीय हमले का शिकार होना पड़ा जबकि 91 पत्रकारों को राजनीतिक कार्यकर्ताओं और राज्‍येतर इकाइयों ने अपना निशाना बनाया।

मामला केवल एक व्‍यक्ति के तौर पर किसी पत्रकार के राज्‍य द्वारा उत्‍पीड़न का नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी के अमेरिका दौरे के दौरान ही खबर आई थी कि प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से न्‍यूज एजेंसी एएनआइ सहित तमाम मीडिया प्रतिष्‍ठानों को बाकायदा ‘गैग ऑर्डर’ जारी किया गया था कि वे अमेरिकी सीनेटर बर्नी सान्‍डर्स का मोदी के बारे में दिया बयान न दिखाएं। किसी ने नहीं दिखाया।

जिस दिन आरआरएजी की रिपोर्ट आई, संयोग से उसके एक दिन पहले भारतीय मूल की अम‍ेरिकी पत्रकार सबरीना सिद्दीकी की ऑनलाइन ट्रोलिंग के खिलाफ वाइट हाउस के प्रवक्‍ता का भी बयान आया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अमेरिका की संयुक्‍त प्रेस कॉन्‍फ्रेंस में सवाल पूछने वाली वॉल स्‍ट्रीट जर्नल की वाइट हाउस संवाददाता सबरीना सिद्दीकी को उनके धर्म के चलते ऑनलाइन प्रताड़ित किया गया। उन्‍होंने प्रधामंत्री मोदी से भारत में मुसलमानों के कथित उत्‍पीड़न के बारे में पूछा था। इसी संबंध में एनबीसी न्‍यूज की वाइट हाउस संवाददाता केली ओ’डॉनेल ने वाइट हाउस से एक आधिकारिक बयान की मांग की।

वाइट हाउस प्रवक्‍ता जॉन किर्बी ने स्‍पष्‍ट शब्‍दों में सबरीना सिद्दीकी की प्रताड़ना की आलोचना की। उन्‍होंने कहा कि ‘हम इससे पूरी तरह वाकिफ हैं और यह बिलकुल अस्‍वीकार्य है। यह लोकतंत्र के सिद्धांतों से एकदम उलट है।‘

आरआरएजी की रिपोर्ट कहती है कि राजकीय हमले के शिकार 103 पत्रकारों में से 70 पत्रकार ऐसे थे जिन्‍हें गिरफ्तार किया गया या हिरासत में लिया गया था। 14 पत्रकारों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी; चार पत्रकारों को पुलिस और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने तलब किया था; और 15 पत्रकारों पर कथित तौर पर शारीरिक रूप से हमला किया गया, धमकी दी गई और सरकारी अधिकारियों/पुलिस द्वारा परेशान किया गया, जिसमें आव्रजन अधिकारियों द्वारा विदेश जाने से रोका जाना भी शामिल था।

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘तेलंगाना में सबसे ज्यादा 40 लोगों को गिरफ्तार किया गया। इसके बाद उत्तर प्रदेश (6); जम्मू और कश्मीर (4); मध्य प्रदेश (3), असम, छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र, मणिपुर और ओडिशा (2-2); और आंध्र प्रदेश, दिल्ली, तमिलनाडु, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल (प्रत्येक में 1)। भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) की धारा 124-ए (राजद्रोह), मानहानि के लिए सजा (धारा 500), 295 ए (धार्मिक भावनाओं को अपमानित करने के इरादे से कार्य), 153ए (विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) सहित भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) के विभिन्न प्रावधानों के तहत 14 पत्रकारों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी।

रिपोर्ट के अनुसार 2022 में देश भर में पुलिस सहित सरकारी अधिकारियों द्वारा कम से कम 15 पत्रकारों पर कथित रूप से शारीरिक हमला किया गया, धमकी दी गई और परेशान किया गया। ओडिशा में सबसे अधिक चार पत्रकारों को पुलिस द्वारा पीटे जाने के मामले सामने आए। कम से कम तीन पत्रकारों आकाश हुसैन, सना इरशाद मट्टू और राणा अय्यूब को आव्रजन अधिकारियों ने विदेश जाने से रोक दिया।

2022 के दौरान देश भर में राज्‍येतर तत्‍वों द्वारा हमले के सबसे ज्‍यादा मामले ओडिशा (5) और उत्तर प्रदेश (5) से रिपोर्ट किए गए हैं। सात पत्रकारों को राज्‍येतर तत्‍वों और अपराधियों द्वारा मार दिया गया। एक पत्रकार सुभाष कुमार महतो की उनकी रिपोर्टिंग के लिए हत्या कर दी गई थी, जबकि बाकी को व्यक्तिगत दुश्मनी, रोड रेज आदि में मार दिया गया।

जम्मू-कश्मीर, मणिपुर और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सशस्त्र विपक्षी समूहों ने लगभग 41 पत्रकारों को निशाना बनाया।

भारत में लोगों के बुनियादी अधिकारों की हालत औसत से भी खराब: HRMI का 2023 राइट्स ट्रैकर

संयोग से जिस दिन प्रधानमंत्री मोदी के लिए अमेरिकी राष्‍ट्रपति जो बाइडेन ने वाइट हाउस में लाल कालीन बिछाई। ह्यूमन राइट्स मेट्रिक इनीशिएटिव (एचआरएमआइ) ने अपनी सालाना रिपोर्ट जारी की। रिपोर्ट के मुताबिक मनमानी गिरफ्तारी, जबरन गायब किए जाने, मृत्‍युदंड, न्‍यायेतर हत्‍या और यातना व दुर्व्‍यवहार के बीच सबसे खराब स्‍कोर 3.3 मनमानी गिरफ्तारियों का है। उसके बाद यातना और दुर्व्‍यवहार (3.6), न्‍यायेतर हत्‍या (4.8) और जबरन गायब किए जाने के मामले हैं। सभा और संगठन के अधिकार, राय और अभिव्‍यक्ति के अधिकार, राजनीतिक भागीदारी के अधिकार और धर्म व आस्‍था के अधिकार के बीच धर्म और आस्‍था के अधिकार का स्‍कोर 3.5 है, राय और अभिव्‍यक्ति का 3.8 है। य‍े स्‍कोर दिखाते हैं कि भारत की सरकार इन अधिकारों का कितना सम्‍मान कर रही है। राज्‍य से नागरिकों की सुरक्षा की श्रेणी में 4.5 का औसत प्राप्‍तांक बताता है कि बहुत से लोग भारत में अपनी नागरिक और राजनीतिक स्‍वतंत्रता का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं।

उत्तर प्रदेश में रोज हो रहे हैं हमले

पत्रकारों पर हमले के मामले 2022 के बाद उत्‍तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर बढ़े हैं। तकरीबन रोज ही किसी न किसी पत्रकार को हमले का शिकार होना पड़ रहा है। बीते बीस दिनों की बात करें, तो उत्‍तर प्रदेश के उन्‍नाव में एक पत्रकार मुन्‍ना अवस्‍थी को हाल में दिनदहाडे गोली मार दी गई। उन्‍होंने भू-माफिया के खिलाफ खबर लिखी थी। माफिया ने उन्‍हें डराया, धमकाया और 376 का फर्जी मुकदमा भी करवाया। अवस्‍थी ने मार्च में अपने जिले के पुलिस अधीक्षक को तहरीर दी थी कि उनकी जान को खतरा है। जिनसे खतरा था, उनके नाम भी बाकायदा लिखे थे। अवस्‍थी ने अपना डर पूर्व मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव की प्रेस कॉन्‍फ्रेंस में भी चीख-चीख कर सबको सुनाया था। सब कुछ दिन के उजाले में महीनों से साफ था, लेकिन अचानक 24 जून को एक गोली कहीं से आई और उन्‍हें बेध गई। अस्‍पताल में मौत से जूझ रहे हैं।

कह सकते हैं कि पुलिस ने मुन्‍ना अवस्‍थी को माफिया से सुरक्षा नहीं मुहैया करवाई। यूपी के ही मिर्जापुर की कहानी पुलिस या राज्‍य द्वारा पत्रकारों को सुरक्षा मुहैया करवाने से कहीं आगे की है, जहां 11 जून को डूमनगंज थाना पुलिस ने सड़क हादसे की कवरेज करने गए एक पत्रकार अभिनेश प्रताप सिंह के साथ अपराधियों कि तरह सुलूक करते हुए थाने के लॉकअप में बंद कर के लाठी-डंडों से जमकर पीटा। मामले के तूल पकड़ने पर उन्‍हें शांति-भंग की धारा में निरुद्ध कर दिया।

अभिनेश बनारस से प्रकाशित होने वाले एक दैनिक ‘जागरूक एक्सप्रेस’ के लिए काम करते हैं। अभिनेश अगले दिन डूमनगंज इंस्पेक्टर और दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए अर्जी देने मिर्जापुर पहुंचे थे। पुलिस अधीक्षक के दफ्तर में मौजूद मीडियाकर्मियों के सामने उन्होंने अपने शरीर पर लगे पुलिस के डंडे से लगे जख्मों को दिखाया और रो पड़े। मौके पर कोई पुलिस अफसर मौजूद नहीं था। उन्होंने दफ्तर में अपनी अर्जी दी और रजिस्टर्ड डाक से भी शिकायत भेजी। इस मामले में अभी जांच तक शुरू नहीं हो सकी है।

इस घटना से ठीक एक दिन पहले 10 जून को पड़ोसी जिले प्रयागराज में समाचार प्‍लस के पत्रकार सऊद अंसारी की कुछ दबंगों ने पीट-पीट कर हत्‍या कर दी। मामला जमीन विवाद से जुड़ी एक गवाही के लिए दबाव बनाने का था जिसका मुकदमा पहले से कर्नलगंज थाने में दर्ज है। थोड़ा और पहले और पश्चिम की ओर चलें, तो 2 जून को बुंदेलखंड के हमीरपुर स्थित राठ में दिल्‍ली निवासी एक पत्रकार अमन गुप्‍ता के पिता को दबंगों ने सरेबाजार उठा लिया जब वे बैंक जा रहे थे। पुलिस ने बंधक को छुड़ाया, चार में से एक आरोपित को पकड़ भी लिया, लेकिन दबंग के परिवार की तहरीर पर पीड़ित के ही खिलाफ पलट कर मारपीट का केस दर्ज कर लिया। अमन फिलहाल अपने परिवार की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए राठ में जमे बैठे हैं। पुलिस और दबंगों के डर से उन्‍होंने घर पर सीसीटीवी कैमरा लगवा लिया है और सारे पेशेवर काम ठप हैं।

इन्‍हीं के समानांतर कुछ और खबरों को रख कर देखा जाना चाहिए जिनमें उत्‍पीड़न की पुष्टि नहीं हो सकी है।. मसलन, मुरादाबाद में पब्लिक ऐप के एक पत्रकार को पुलिस ने लड़की छेडने के जुर्म में जेल भेज दिया। पड़ोस के कासगंज में गैस सिलिंडर की कालाबाजारी करने के आरोप में एक पत्रकार के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ और गिरफ्तार किया गया। बस दो महीने पहले की बात है जब पत्रकार के वेश में तीन भाड़े के हत्‍यारों ने प्रयागराज में माफिया डॉन अतीक अहमद की पुलिस अभिरक्षा में हत्‍या कर दी थी। इस घटना ने पत्रकारों की विश्‍वसनीयता को ही एक झटके में खतरे में डाल दिया था। साथ ही पुलिस अभिरक्षा में सुरक्षा के सवाल को फिर से खड़ा कर दिया।

भारत की अतिराष्‍ट्रवादी सरकार, जो हर बार किसी निजी एजेंसी की देसी या विदेशी रिपोर्ट के आंकड़ों को झूठा व दुष्‍प्रचार कह कर नकार देती है, चाहे तो आरआरएजी और एचआरएमआइ के आंकड़ों के साथ भी ऐसा कर सकती है। ऐसा करने से पहले हालांकि केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह को अपना वह बयान वापस लेना होगा जिसमें उन्‍होंने विदेशी सटोरिया कंपनी मॉर्गन स्‍टेनली के हवाले से 2027 तक भारत के जापान और जर्मनी से आगे निकल जाने की बड़ाई की थी। ऐसा नहीं हो सकता कि आप किसी सकारात्‍मक रिपोर्ट के सहारे राष्‍ट्रवाद का झंडा उठा लें जबकि नकारात्‍मक रिपोर्ट को विदेशी कह कर खारिज कर दें।

आरआरएजी की पूरी सूची नीचे देखें:

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