जन-प्रतिनिधियों को ‘सेल्समैन’ और अपने कार्यकर्ताओं को ‘डेटा चोर’ क्यों बना रही है भाजपा?

चीन की कम्‍युनिस्‍ट पार्टी को पीछे छोड़कर दुनिया का सबसे बड़ा राजनीतिक दल बनने की भाजपा की ख्‍वाहिश ने न सिर्फ करोड़ों आम लोगों को अनजाने में उसका प्राथमिक सदस्‍य बना दिया है, बल्कि पार्टी का आंतरिक चरित्र भी बदल डाला है। अब भाजपा के नेता और जन-प्रतिनिधि नेतृत्‍व के दिए ‘टारगेट’ की खुलेआम सेल्‍समैनी कर रहे हैं और उसके कार्यकर्ता धोखे से लोगों का डेटा चुरा रहे हैं- महज पांच, दस, बीस, रुपये के लिए! उत्‍तर प्रदेश के बुंदेलखंड से अमन गुप्‍ता की रिपोर्ट

भारतीय जनता पार्टी का सदस्‍यता अभियान अब अपने आखिरी चरण में है। बीते 2 सितंबर को शुरू किए गए इस अभियान के बारे में अखबारों में रोज खबरें छप रही हैं, कि पार्टी के फलाने नेता ने या राज्‍य इकाई ने अपना ‘टारगेट’ पूरा किया या नहीं किया। टारगेट के इस खेल में भाजपा के मुख्‍यमंत्रियों से लेकर उसके सांसद और विधायक तक सेल्‍समैन बने पड़े हैं, लेकिन सबसे बुरी गति जमीन पर काम कर रहे मामूली कार्यकर्ताओं की है जिन्‍हें भाजपा के बड़े नेता अपने टारगेट के लिए सदस्‍य बनाने के बदले पैसे दे रहे हैं- एक सदस्‍य बनाने का पांच, दस, पंद्रह, बीस रुपया! केंद्र की सियासत और भाजपा की राजनीति के गढ़ उत्‍तर प्रदेश में पैसे लेकर सदस्‍य बनाने का खेल न सिर्फ खुलेआम हो रहा है, बल्कि ‘टारगेट’ पूरा करने के लिए धोखाधड़ी की बात को खुद भाजपा के कार्यकर्ता स्‍वीकार कर रहे हैं और उसे अपनी मजबूरी बता रहे हैं।

भाजपा ने देश भर से दस करोड़ नए सदस्य बनाने का लक्ष्य रखा है। इसको सफल बनाने के लिए हर पार्टी कार्यकर्ता को 100 सदस्य बनाने का लक्ष्य दिया गया है। इसके अलावा, हर बड़े नेता ने अपने से छोटे नेता को अपने हिस्‍से का टारगेट भी दिया हुआ है। इस चक्‍कर में कुछ कार्यकर्ताओं का लक्ष्‍य हजारों की सदस्‍यता तक पहुंच जा रहा है और वे खुद को फंसा हुआ पा रहे हैं। भाजपा के एक कार्यकर्ता संदीप बताते हैं, ‘’अपने सौ सदस्यों के अलावा मुझे पांच हजार सदस्य और बनाने हैं, जो पार्टी के बड़े नेताओं ने मुझसे बनाने के लिए कहा है।” उनकी दिक्‍कत‍ यह है कि अब समय कम बच रहा है क्‍योंकि अभियान को 2 अक्‍टूबर तक ही चलना है, हालांकि विस्‍तारित अवधि 15 अक्‍टूबर तक मानी जा रही है।

वर्तमान परिस्थितियों के हिसाब से यह टारगेट इतना बड़ा है कि पूरा करने में बहुत मुश्किलें आ रही हैं। वर्तमान परिस्थिति का मतलब केवल अभियान की अवधि नहीं, बल्कि सियासी हालात भी हैं। संदीप कहते हैं, “लोग अब भाजपा से जुड़ने के में आनाकानी कर रहे हैं, उनमें नाराजगी है। दस साल पहले वाला माहौल भी नहीं है, जब सब कुछ मोदी जी के नाम पर हो जाता था।”


Still from BJP Membership Drive in Uttar Pradesh
बुंदेलखंड से भाजपा के सदस्यता अभियान की एक झलक

वह बताते हैं कि ऐसा ही महासदस्यता अभियान पहले भी एक बार चलाया गया था, उस समय पार्टी से जुड़ने वालों में सबसे ज्यादा युवा थे, लेकिन अबकी बार ऐसा नहीं है। लोग पार्टी से अब दूर हो रहे हैं। इसका एक बड़ा कारण यह है कि बीते आम चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन खराब रहा है और युवाओं में सरकार के खिलाफ नाराजगी है। इसका दूसरा कारण हालांकि यूपी में भाजपा के भीतर तीन महीने से चल रही नेतृत्‍व की सिर फुटउवल है, जिसने उसी दिन शीतयुद्ध का रूप ले लिया जब सदस्‍यता अभियान का लखनऊ में उद्घाटन था।

जिस दिन उत्‍तर प्रदेश में सदस्‍यता अभियान का औपचारिक उद्घाटन हुआ, दिल्‍ली से भाजपा के कुछ बड़े नेता लखनऊ पहुंचे थे। उद्घाटन के बाद ये नेता जब दिल्‍ली लौटे, तो राज्‍य के उपमुख्‍यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी साथ ही दिल्‍ली चले आए और कई दिनों तक वहीं पड़े रहे। उधर, मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ इतने लंबे प्रवास पर गोरखपुर निकल लिए कि शिक्षक दिवस का जो समारोह परंपरागत रूप से राजधानी में मनाया जाता था, उसे गोरखपुर शिफ्ट करना पड़ा।

दिल्‍ली से लखनऊ गए पार्टी के एक बड़े पदाधिकारी की मानें, तो सदस्यता अभियान के ऐन उद्घाटन के मौके पर ही केशव प्रसाद मौर्य और मुख्‍यमंत्री योगी के बीच कुछ कलह हो गई। कार्यक्रम के बाद दोनों के रास्‍ते जुदा हो गए। यह शीतयुद्ध अब तक जारी है और इसका सीधा असर सदस्‍यता के आंकड़ों में देखा जा सकता है। अखबारों में छपी रिपोर्टों को सही मानें, तो मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने जहां 53000 सदस्‍य बनाए हें, वहीं केशव प्रसाद मौर्य ने केवल डेढ़ हजार सदस्‍य बनाए हैं। मुख्‍यमंत्री और उपमुख्‍यमंत्री तो वैसे भी जनप्रतिनिधि होते हैं और सीधे पार्टी संगठन का काम इनके पास नहीं होता, इसलिए इनके प्रदर्शन के मुकाबले यूपी में पार्टी के अध्‍यक्ष चौधरी भूपेंद्र सिंह का दिलचस्‍प आंकड़ा देखा जाना चाहिए, जो 200 के पार नहीं पहुंचा था।



वैसे, भाजपा ने जो लक्ष्‍य अपने नेताओं को दिए हैं, उनकी सूची में सबसे बोझ सांसदों पर है जिन्‍हें 20,000 सदस्‍य बनाने हैं। उसके बाद महापौर को 20,000; जिला पंचायत अध्‍यक्ष को 15,000; विधायकों और एमएलसी को दस-दस हजार; प्रदेश स्‍तर के पदाधिकारियों, ब्‍लॉक प्रमुख और नगरपालिका अध्‍यक्षों को पांच-पांच हजार; और जिलाध्‍यक्षों को एक हजार सदस्‍य बनाने का टारगेट दिया गया है।

जाहिर है, ये तमाम पदाधिकारी खुद घूम-धूम कर सदस्‍य नहीं बनाएंगे, तो इन्‍होंने सारा जिम्‍मा कार्यकर्ताओं के कंधे पर मढ़ दिया है और उसके बदले में अपनी अंटी को थोड़ा सा ढीला छोड़ दिया है। पार्टी नेतृत्‍व की ओर से इन्‍हें स्‍पष्‍ट निर्देश हैं कि ‘’कमाया है तो खर्च भी करो’’। इस खर्च के बावजूद कार्यकर्ता खुद को फंसा हुआ पा रहे हैं। भाजपा के एक कार्यकर्ता सौरभ कहते हैं, ‘’राजनीति करने वालों के पास ‘नहीं’ कहने का विकल्प नहीं होता। हम जैसे छोटे कार्यकर्ता या फिर हाल-फिलहाल राजनीति में आए कार्यकर्ता पार्टी के सीनियर नेताओं को यह नहीं कह सकते कि लोग पार्टी से जुड़ना नहीं चाहते या फिर माहौल पार्टी के खिलाफ है।‘’

समाजवादी पार्टी की अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर चौधरी कहते हैं कि भाजपा का यह सदस्यता अभियान फर्जी है, ‘’अब कोई भी उनसे नहीं जुड़ना चाहता, खासकर पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्‍पसंख्‍यक) के लोग तो बिल्कुल भी नहीं। जिलावार जिन लोगों को सदस्यता अभियान की जिम्मेदारी दी गई है वे दिखावे के लिए अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं।‘’

भाजपा में कुछ ऐसे नेता भी हैं जो खुद पार्टी की नीतियों से नाराज रहने के बावजूद ईमानदारी से अपना काम कर रहे हैं, दिखावा नहीं। संतराम पार्टी के पुराने कार्यकर्ता हैं, वर्तमान भाजपा और उसकी नीतियों से खासे नाराज भी हैं। नाराजगी का कारण यह है कि उनके शहर की नगरपालिका में अध्‍यक्ष का चुनाव एक मुसलमान जीत गया है जबकि उन्हें लगता है कि मुसलमान समाज में आतंक फैलाते हैं। संतराम पूछते हैं, ‘’बताइए, भाजपा के राज में एक मुसलमान अध्यक्ष का चुनाव जीतने की स्थिति में कैसे पहुंच गया?  क्या इस दिन के लिए हमने भाजपा की राजनीति की है?’’ पार्टी से नाराजगी की उनके पास और भी कई वजह हैं, इसके बाद भी वे लोगों को सदस्य बनने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।


आत्मनिर्भर भाजपा : क्या नाक से बड़ी हो चुकी है नथ?


यह अकेले संतराम का मामला नहीं है। भाजपा से जुड़ा कोई भी व्यक्ति अगर दो मिनट के लिए किसी का मोबाइल पा जाए, तो तीसरे-चौथे मिनट में उसके मोबाइल पर भाजपा सदस्य बन जाने का मैसेज आ जाता है। यह ईमानदारी है या घपला, खुद भाजपा के कार्यकर्ता पूरी कहानी समझाते हैं।

भाजपा में सदस्य बनाने की पूरी प्रक्रिया को भाजपा के एक सदस्य दीपक ने हमें समझाया। उनका कहना था, “हमको बस एक ओटीपी चाहिए होता है, बाकी काम हम खुद कर लेते हैं, डिटेल की जरूरत ही नहीं है। वह तो हम खुद से भर लेते हैं”। दीपक के अनुसार भाजपा से जुड़े जो लोग भी सदस्य बनाने की प्रक्रिया में लगे हुए हैं, उनमें से ज्यादातर लोग ऐसा ही कर रहे हैं।  


BJP Membership Drive in leadership pf Jila Panchayat President, Hamirpur, Bundelkhand
सदस्यता अभियान पर हमीरपुर जिला पंचायत अध्यक्ष जयंती राजपूत और अन्य

खुद अपने बनाए सदस्यों के बारे में दीपक ईमानदारी से स्‍वीकारते हैं, “ज्यादातर सदस्य फर्जी हैं”।  कारण पूछने पर वह कहते हैं, ‘’मैंने जिनको भी सदस्य बनाया है, सबकी डिटेल गलत है। किसी का नाम गलत है, किसी की उम्र, तो किसी का पता। ऑनलाइन सदस्यता फॉर्म के लिए मोबाइल नंबर के अलावा केवल यही तीन चीजें चाहिए।‘’  

दीपक पहले भी ऐसा कर चुके हैं। वे कहते हें, ‘’जब सदस्‍यता अभियान शुरू हुआ, तभी लग गया था कि सब कुछ बहुत आसानी से हो जाएगा। भाजपा तो ऐसी पार्टी है जो अपनी गतिविधियों को नियमित अनुशासन के साथ चलाती है, लेकिन इस बार जब सदस्य बनाने के लिए हम लोग बाहर निकले तो माहौल बिल्कुल अलग था। लोग जुड़ने के लिए ही तैयार नहीं थे, लेकिन हमें तो काम करना था, चाहे जैसे करें। इसलिए यह सब फर्जीवाड़ा करना पड़ा।‘’

सौरभ कहते हैं, ‘’अब आप कुछ भी समझ लीजिए, कारण बस इतना था कि लोग अब भाजपा के साथ जुड़ना ही नहीं चाहते। इसी के चलते डेटा की सुरक्षा, निजी जानकारी, फोन से होने वाले फ्रॉड, जैसे तमाम बहाने बनाते हैं। हमको तो राजनीति करनी है। ऐसे में पार्टी के नेताओं द्वारा दिए गए काम को न करें तो फिर हमारा ही नुकसान है। पार्टी जो देगी वह सब तो अलग है, लेकिन रोज मिलने-जुलने वाले नेताओं को कैसे नाराज करें? इन लोगों को नाराज करके तो कतई आगे नहीं बढ़ सकते न?’’  

दिल्‍ली की सोशल टेक्निकल कंपनी ‘ग्रामवाणी’ में काम कर रहे सुल्तान अहमद बताते हैं कि भाजपा का यह सदस्यता अभियान पूरी तरह से लोगों का “निजी डेटा इकट्ठा” करने का अभियान है।

वे विस्तार से बताते हैं, ‘’लोगों को लग रहा है कि वे केवल अपना मोबाइल नंबर साझा कर रहे हैं, जबकि वे अपनी पूरी जन्मकुंडली ही साझा कर रहे हैं। हर सरकारी दस्तावेज आपके फोन से जुड़ा हुआ है, ऐसे में कोई सोचे कि महज मोबाइल नंबर देने से क्या होगा तो उसकी यह बहुत बड़ी गलतफहमी है।‘’

सुल्तान कहते हैं कि सदस्यता अभियान में मिस्‍ड कॉल, ऐप और वेबसाइट के जरिये सदस्य बनाए जा रहे हैं। इन सब के लिए मोबाइल का होना पहली शर्त है। तीनों की पूरी प्रक्रिया अलग है, लेकिन मोबाइल नंबर एक है, इसलिए पार्टी को चिंता नहीं है कि उसके पास क्या डेटा आ रहा है क्योंकि वह महज मोबाइल नंबर से ही सब कुछ ट्रैक कर लेगी।

शायद इसीलिए भाजपा का यह सदस्यता अभियान पूरी तरह से डिजिटल मोड में चलाया जा रहा है। इसमें सदस्य बनने या बनाने वालों को तीन विकल्प दिए गए हैं। पहला, फोन से मिस्‍ड कॉल करके, दूसरा ऐप पर जाकर रेफरल कोड के माध्यम से। सदस्य बनाने के लिए आम तौर से यही दो विकल्प प्रयोग किए जा रहे हैं इसलिए किसी को भी सदस्य बनाने के लिए सबसे जरूरी है उसके पास मोबाइल फोन का होना।



हमीरपुर जिले की राठ विधानसभा में भाजपा के एक बूथ अध्यक्ष अरिवंद तिवारी कहते हैं, ‘’नए लोगों को पार्टी से जोड़ने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए जिले के पदाधिकारियों या फिर सांसदों-विधायकों ने सदस्य बनाने के ठेके दिए हैं। जो भी यह कार्य करेगा उसे हर भर्ती पर 15-20 रुपये दिए जाएंगे। बूथ अध्यक्षों को भी इसी तरह से मिलता-जुलता वादा किया गया है। जो लोग ऐसा कर रहे हैं, वे राशन की दुकानों पर, स्कूलों में, कोचिंग सेंटरों में जाकर लोगों को सदस्य बना दे रहे हैं, जिसकी ज्यादातर लोगों को जानकारी ही नहीं हो पा रही है।‘’

सुलतान अहमद की राय से इत्‍तेफाक रखते हुए सपा के चंद्रशेखर चौधरी बताते हैं कि सदस्‍य बनाने के लिए लोगों को सरकारी योजनाओं का लोभ भी दिया जा रहा है। वे कहते हैं, ‘’गांवों के गरीब लोगों को मुफ्त आवास, मुफ्त राशन, सहित दूसरी सरकारी स्कीमों का लालच देकर धोखे से पार्टी का सदस्य बनाया जा रहा है। यह लोगों की निजी जानकारी के साथ-साथ लोगों के डेटा से खिलवाड़ है, जिसका भाजपा अपने फायदे के लिए प्रयोग कर रही है।‘’

दीपा ऐसी ही एक गृहिणी हैं जिन्‍हें भाजपा का सदस्‍य बना दिया गया लेकिन उन्‍हें इसकी खबर ही नहीं हुई। दीपा का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं, एक गृहि‍णी होने के नाते उनके लिए राजनीति केवल वोट देने तक सीमित है।

उनको किसने और कैसे सदस्य बनाया, पूछने पर वे पूरी कहानी बताती हैं। एक दिन उनके जानने वाले एक पारिवारिक सदस्य, जो हमीरपुर जिले की भाजपा राठ नगर इकाई में किसी पद पर हैं, उनके घर आए। उन्‍होंने दीपा से उनका मोबाइल मांगा, तो उन्होंने दे दिया। रोज का आना-जाना है तो उन्हें भी अपना फोन देने में कोई हिचक नहीं हुई। पांच मिनट बाद उन्होंने फोन वापस भी कर दिया।

दीपा बताती हैं, ‘’हमने सोचा कि होगा कोई काम, किसी को फोन करना होगा। मैंने उनसे कुछ पूछा भी नहीं। दो-तीन दिन मेरी बेटी ने किसी काम से मेरा फोन लिया। तब जाकर पता चला कि मुझे भाजपा का सदस्य बना दिया गया है।‘’

हमारे जानने में सीमा, रीता, प्रदीप, रागिनी, सोनम, अखिल, निखिल जैसे और न जाने कितने ऐसे लोग हैं जिन्हें बिना उनकी जानकारी के भाजपा का सदस्य बना दिया गया है। सदस्य बन जाने के कई दिन बाद तक उन लोगों को जानकारी ही नहीं थी कि वे किसी पार्टी के सदस्य हो चुके हैं।


A sample of OTP and Congratulation message in BJP Membership Drive

एक दिलचस्‍प मामला सरकारी पॉलिटेक्निक कॉलेज के क्लर्क संदीप साहू (बदला हुआ नाम) का है। उन्‍हें समाजवादी पार्टी और भाजपा दोनों ने अपना सदस्य बनाया हुआ है। वे कहते हैं, ‘’जिन लोगों ने मुझे इन पार्टियों से जोड़ा है वे मेरे करीबी दोस्त हैं और अलग-अलग पार्टियों से जुड़े हुए हैं। सपा के साथ जुड़ना तो मेरी भी इच्छा थी, लेकिन नौकरी करते हुए किसी भी राजनीतिक पार्टी से जुड़ने के बारे में मैंने नहीं सोचा था। मैंने दोनों को ही मना किया था। उन लोगों ने कहा कि कोई दिक्कत नहीं होगी, तुम्हारा नाम और पता बदल देते हैं जिससे तुम्हें किसी तरह की परेशानी नहीं आएगी”।

वे बताते हैं, ‘’परेशानी का तो पता नहीं, लेकिन एक दिन मेरे मोबाइल पर मैसेज आता है, जिसके अनुसार मैं भाजपा का सदस्य हूं।‘’ संदीप जैसे बहुत लोग हैं जिन्हें उनके दोस्तों, पारिवारिक सदस्यों ने भाजपा का सदस्य बना दिया है। ऐसा करने वालों ने महज अपना काम निपटाने और अपना कोटा पूरा करने के लिए लोगों के फोन का इस्‍तेमाल करके, उनसे ओटीपी लेकर उन्हें एक राजनीतिक दल का सदस्य बना दिया

ऐसे मामले अकेले उत्‍तर प्रदेश तक सीमित नहीं हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृहराज्‍य गुजरात के विसनगर में कोई दस दिन पहले की बात है जब प्रकाशबेन दरबार अपने पति के साथ इंजेक्‍शन लगवाने के लिए सरकारी स्‍वास्‍थ्‍य केंद्र गई थीं। वहां के एक स्‍टाफ ने उनसे उनका मोबाइल नंबर मांगा और ओटीपी पूछा। जैसे ही प्रकाशबेन ने ओटीपी बताया, उनके मोबाइल पर भाजपा का सदस्‍य बनने का बधाई संदेश आ गया।

गुजरात के सुरेंद्रनगर में स्‍कूल के बच्‍चों और उनके माता-पिता तथा नर्मदा जिले में मनरेगा मजदूरों को भी ऐसे ही धोखे से सदस्‍य बनाए जाने की खबरें आ चुकी हैं। भावनगर में हजार सदस्‍य बनाने के बदले पांच सौ रुपये देने की बात सामने आई है। सुरेंद्रनगर वाली घटना में कुमारी एमआर गार्डी विद्यालय के बच्‍चों को सदस्यता दिलाई गई है। इस मामले के सामने आने पर जिला शिक्षा अधिकारी ने स्कूल को जब कारण बताओ नोटिस जारी किया, तो स्कूल ने कहा कि बच्‍चों से राशन कार्ड को आधार से जोड़ने के लिए उनके माता-पिता के मोबाइल फोन लाने को कहा गया था, हो सकता है कि बच्चे खुद ही भाजपा से जुड़ गए हों।

हफ्ते भर पहले ही भोपाल में एक सरकारी राशन की दुकान पर भाजपा के सदस्‍य बनाए जाने का वीडियो मध्‍य प्रदेश कांग्रेस ने जारी किया था। राशन की दुकान में बाकायदा एक काउंटर लगाकर रजिस्‍टर में दर्ज कर के लोगों को भाजपा का सदस्‍य बनाया जा रहा था। ठीक इसी तरह उज्‍जैन नगर निगम में आउटसोर्सिंग पर काम करने वाले कर्मचारियों को भाजपा के सदस्‍यता अभियान में तैनात किए जाने की बात सामने आई है।  



ऐसी ही जालसाजियों का असर है कि भाजपा इस सदस्‍यता अभियान में प्रदर्शन के मामले में उत्‍तर प्रदेश और मध्‍य प्रदेश को अव्‍वल गिनवा रही है। एक करोड़ सदस्‍यों का लक्ष्‍य केवल इन्‍हीं दो राज्‍यों में पूरा किया गया है। यह केवल 2 सितंबर से 25 सितंबर के बीच हुआ है, जबकि दूसरा चरण अभी 15 अक्‍टूबर तक चलाया जाना बाकी है। भाजपा के एक कार्यकर्ता ऐसी जालसाजियों के पीछे अपनी मजबूरी गिनवाते हैं, ‘’मैं ऐसा न करता तो अभी मेरी जो संख्या साढ़े पांच सौ है वह पचास तक न पहुंच पाती।‘’  

कार्यकर्ताओं की मजबूरी अपनी जगह है, लेकिन यह मसला एक बड़े सवाल से भी जुड़ता है। बीते आम चुनाव के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कुछ वरिष्ठ प्रचारकों ने जिस तरह भाजपा में बाहर से नए लोगों को लाकर टिकट दिए जाने को यूपी में पार्टी के खराब प्रदर्शन का कारण बताया था, वह समस्या अब कार्यकर्ता और प्राथमिक सदस्य के स्तर तक पहुँचती दिख रही है।

आम चुनाव के दौरान यहीं प्रकाशित एक कहानी के सिलसिले में सत्तर के दशक से संघ के साथ जुड़े एक बुजुर्ग स्वयंसेवक से हमने बात की थी। उन्हें कई संस्थाओं के विस्तारक के तौर पर जाना जाता है। उन्होंने तब नाम न छापने की शर्त पर कहा था, “यहां तक पहुंचने के लिए हमने बहुत कुछ झेला है- प्रतिबंध से लेकर और न जाने क्या-क्‍या। ऐसे में सत्ता के साथ मिलकर संघ को हम खत्म नहीं होने देना चाहते। सत्ता के लिए काम करने का नतीजा यह है कि अब हमारे स्वयंसेवक साइकिल से नहीं चलना चाहते। उन्हें भी गाड़ी चाहिए।‘’


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‘संगठन पर्व’ के नाम पर अपने नेताओं को ‘सेल्समैन’ और कार्यकर्ताओं को ‘डेटा चोर’ बना कर अदृश्य फर्जी सदस्य बना रही पार्टी को ऐसा लगता है कि संघ के बुजुर्गों की चिंता की कोई फिक्र नहीं है।


फोटो और वीडियो: अमन गुप्ता

(इस कहानी में भाजपा के जिन कार्यकर्ताओं के बयान प्रकाशित हैं, उनकी निजता का सम्मान करते हुए उनके नाम बदल दिए गए हैं)


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