हर बार चुनाव के समय पश्चिम बंगाल हिंसा के लिए ख़बरों में बना रहता है, लेकिन इस बार का लोकसभा चुनाव में हाल में हुई कुछ घटनाएं सुर्ख़ियों में हैं। इनमें संदेशखाली में औरतों के साथ हुआ कथित दुराचार, शिक्षा भर्ती घोटाला और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के नेताओं के ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोप प्रमुख हैं। ऐसा नहीं है कि इस बार चुनाव के दौरान हिंसा की घटनाएं एकदम नहीं हुईं, लेकिन जमीन पर तमाम दलों के समर्थकों और मतदाताओं के बीच कुछ और मुद्दे भी चर्चा में हैं।
बंगाल में आम चुनाव सात चरणों में करवाए जा रहे हैं। छह चरण बीत चुके हैं। पश्चिम बंगाल में लोकसभा की कुल 42 सीटें हैं। अब तक हुए छह चरणों में राज्य की 33 सीटों पर मतदान हो चुका है। अब अंतिम चरण में 1 जून को नौ सीटों पर मतदान शेष है। अंतिम चरण में दमदम, बरसात, जादबपुर, कोलकाता उत्तर, कोलकाता दक्षिण, डायमंड हार्बर, बशीरहाट, जयनगर और मथुरापुर की सीटें शामिल हैं।
राज्य में सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस अपनी सभाओं में लगातार केंद्र सरकार द्वारा राज्य के साथ भेदभाव, मनरेगा और प्रधानमंत्री आवास योजना तथा राज्य के हिस्से का फंड रोके जाने को मुद्दा बना रही है। साथ ही समान नागरिक संहिता, नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय आबादी रजिस्टर (एनआरसी) को लागू न करने का वादा कर रही है। दूसरी ओर, भारतीय जनता पार्टी हिंदू-मुसलमान और भ्रष्टाचार को लेकर प्रचार कर रही है।

स्थानीय चर्चाओं और खबरों को देखकर ऐसा आभास होता है कि यह आम चुनाव टीएमसी बनाम भाजपा की लड़ाई में तब्दील हो गया है। यहां कांग्रेस पार्टी और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) भी मैदान में हैं। दोनों का गठबंधन है। लोग हालांकि इस गठबंधन को लड़ाई में मानकर नहीं चल रहे हैं। इसलिए लड़ाई दुतरफा हो गई है और ध्रुवीकरण की आजमाइश दोनों खेमों की ओर से है।
‘इंडिया’ के अंदर-बाहर
इसके बावजूद सत्ताधारी टीएमसी की दिक्कतें इसलिए बढ़ी हुई हैं क्योंकि उसके ऊपर तितरफा हमला हो रहा है। भाजपा के साथ कांग्रेस और वाम दल भी टीएमसी को भ्रष्टाचार के लिए निशाने पर लिए हुए हैं। इंडिया गठबंधन को बाहर से समर्थन देने की ममता बनर्जी की घोषणा के बाद चुनावी सभाओं में वाम दलों का टीएमसी और ममता सरकार पर जो तीखा हमला शुरू हुआ वह अब तक जारी है।
हो सकता है कि ममता बनर्जी ने 2026 के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर ऐसा बयान दिया हो। यह बयान ऐसे वक्त में आया था जब मतदान के चार चरण बीत चुके थे और एनडीए के बहुमत से कुछ कम रह जाने की बात फिजाओं में तैर रही थी। चूंकि वाम दल और कांग्रेस दोनों इंडिया गठबंधन में शामिल हैं, तो इस पर चुप्पी लगाई जा सकती थी। इसके बावजूद वाम दल लगातार टीएमसी पर भाजपा की ‘बी’ टीम होने के आरोप लगा रहे हैं।
इस बारे में हमने पश्चिम बंग हिंदीभाषी समाज की जनरल सेक्रेटरी पूनम कौर से बातचीत की। पश्चिम बंग हिंदीभाषी समाज के संरक्षक सीपीएम पश्चिम बंगाल के सचिव मोहम्मद सलीम हैं। हमने पूनम से पूछा कि वाम दल भाजपा से अधिक टीएमसी पर हमलावर क्यों हैं?
कौर कहती हैं, ‘’यह आरोप एकदम गलत है। आप हमारे किसी भी उम्मीदवार को देख लीजिए, चाहे मीनाक्षी मुखर्जी की जनसभा हो या मोहम्मद सलीम की, या जो वाम समर्थक हैं आप किसी से भी बात कर लीजिए, हम लोगों का कहना सिर्फ यह है कि टीएमसी ही जिम्मेदार है बंगाल में भाजपा को लाने के लिए। जब 34 साल तक यहां वाम सरकार थी, आरएसएस की इतनी शाखाएं यहां नहीं खुली थीं। भाजपा उस समय यहां कोई भी सीट नहीं जीत पाई थी। ममता बनर्जी के आने बाद भाजपा ने यहां पांव पसार लिया।‘’

लोकनीति-सीएसडीएस द्वारा 2019 और 2021 के चुनाव के बाद किए गए सर्वेक्षणों में भाजपा के उभार के पीछे हिंदुत्व के बजाय भ्रष्टाचार-विरोध को कारण गिनाया गया था। इस संदर्भ में पूनम कौर की बात सच हो सकती है। संभव है कि तृणमूल के कुशासन और भ्रष्टाचार ने हिंदुत्व की राजनीति करने वाली भाजपा के लिए जगह बनाई हो।
कौर कहती हैं, ‘’इस चुनाव को लेकर हम लोगों की सोच साफ है। हम साम्प्रदायिकता के खिलाफ हैं। आज जो दल साम्प्रदायिक राजनीति करते हैं हम उनके खिलाफ लड़ रहे हैं। वर्तमान में ज्यादातर पार्टियों के पास रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि मुद्दे हैं ही नहीं। वे धर्म को लेकर राजनीति करते हैं। हम उन सब के खिलाफ हैं।‘’
सीपीएम की दोहरी साम्प्रदायिकता वाली समझ के उलट टीएमसी के कार्यकर्ता साम्प्रदायिकता के साथ सीधे भाजपा को जोड़ कर देखते हैं। शिखरबाली में एक नंबर पंचायत के सभापति और टीएमसी सदस्य किशोर सरदार के मुताबिक यह चुनाव संविधान और लोकतंत्र की रक्षा की लड़ाई है और यही मुख्य मुद्दा है। सरदार का मानना है कि इस चुनाव में भाजपा दस सीटों से नीचे आ जाएगी, ‘’जहां तक केंद्र में सरकार बनाने का सवाल है, एनडीए बहुत पिछड़ चुकी है। जो इंडिया गठबंधन बना है वो इंडिया नाम ममता बंदोपाध्याय का दिया हुआ है। पश्चिम बंगाल में इंडिया गठबंधन के लिए 42 सीटों पर ममता बनर्जी अकेले लड़ रही हैं, वाम-कांग्रेस गठजोड़ यहां कोई महत्व ही नहीं है।‘’
संदेशखाली को लेकर भाजपा ने जिस तरह से प्रचार किया और धार्मिक ध्रुवीकरण का प्रयास किया उसमें क्या वह सफल हुई है? इस सवाल के जवाब में सरदार कहते हैं, ‘’सफल नहीं हुई यह कहना भूल होगी। 2019 के चुनावों में यह हमने देखा है। 2019 में मोदीजी जब यहां प्रचार करने आए थे तो उन्होंने ममता बनर्जी पर तमाम आरोप लगाए थे जैसे कट मनी, वसूली, नारद-सारदा आदि, उन सभी आरोपों को लोगों ने खारिज कर दिया था लेकिन मोदीजी एक जगह जरूर सफल हुए थे– धर्म की राजनीति करने में, जिस कारण से उन्हें 18 सीटें मिली थीं। उस वक्त पश्चिम बंगाल में भाजपा प्रमुख दिलीप घोष ने जय श्री राम करते हुए हिन्दुओं में उन्माद जैसा जागृत कर दिया था।‘’
उज्ज्वल मण्डल, शिखरबाली के किसान
शिखरबाली गांव के एक किसान उज्ज्वल मंडल मानते हैं कि समाज में जात-धर्म को लाना अच्छी बात नहीं है। लोग उसे अच्छी नजर से नहीं देखते। यहीं के बरुण मंडल कहते हैं, ‘’धर्म की राजनीति सही नहीं है। एक बार यहां के कुछ लोग भाजपा के जाल में फंस गए थे लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। संदेशखाली का सच सामने आ चुका है। सब सजाया हुआ मामला था।‘’
इससे ऐसा लगता है कि टीएमसी के मतदाताओं के बीच संदेशखाली पर भाजपा का ‘सजाया हुआ’ सच सामने पहुंच चुका है। इसी चुनाव के दौरान एनडीटीवी ने संदेशखाली में भाजपा के ‘षडयंत्र’ का खुलासा किया था। दिलचस्प है कि यह रिपोर्ट चैनल ने तब चलाई जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी एक जनसभा में कांग्रेस पार्टी पर ‘अदाणी-अम्बानी’ को ‘टैम्पो भर के कालाधन पहुंचाने’ का आरोप लगाया। संयोग नहीं है कि एनडीटीवी पर आज गौतम अदाणी का स्वामित्व है।
वायरल हुई एनडीटीवी की रिपोर्ट के बावजूद पूनम कौर इसका एक बार भी जिक्र किए बगैर संदेशखाली पर ममता बनर्जी को घेरती हैं, ‘’ममता बनर्जी राज्य की मुख्यमंत्री हैं। एक तरह से वे राज्य की गार्जियन हैं। उनका काम था कि सब पर नजर रखें, कि कहीं कोई कुछ गलत तो नहीं कर रहा है, उन्हें डांटें। महिला मुख्यमंत्री होने के बाद भी महिलाओं के साथ इतने लम्बे समय से इस तरह का दुर्व्यवहार होता रहा है। वे अगर यह कहें कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं थी तो यह शर्मनाक बात है। तब तो आपको अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए, जब आपको पता ही नहीं है कि आपके लोग और मंत्री क्या कर रहे हैं।‘’
उदासीन वाम
जादबपुर एक दौर में वाम राजनीति का गढ़ था, लेकिन अब इस सीट पर टीएमसी का कब्जा है। इस लोकसभा सीट से टीएमसी ने फिल्म अभिनेत्री सायोनी घोष को उम्मीदवार बनाया है, वहीं भाजपा ने अनिर्बान गांगुली और सीपीएम ने सृजन भट्टाचार्य को टिकट दिया है। सायोनी और सृजन की जनसभाओं में भारी भीड़ देखने को मिली। अनिर्बान की ग्रामीण और उपनगरीय सभाओं में भीड़ की कमी देखी जा रही है। शिखरबाली गांव में हुई भाजपा की दो सभाओं में सौ-सौ लोग भी नहीं आ पाए।
इस चुनाव में भी वाम दलों की राजनीति भ्रमित करने वाली दिख रही है। ममता बनर्जी और भाजपा के बीच बंटे विमर्श में कहीं-कहीं कांग्रेस और वाम दलों की चर्चा सुनने को मिल जा रही है, हालांकि वह ज्यादातर प्रायोजित ही है। सोनारपुर-डायमंड हार्बर लोकल में एक यात्री ने बातचीत में बताया कि इस बार चुनाव में वाम दलों का मत प्रतिशत बढ़ेगा और काफी संख्या में मुसलमान वाम दल और कांग्रेस गठबंधन के उम्मीदवारों के पक्ष में मतदान करेंगे।
ऐसा क्यों? इस सवाल के जवाब में उन्होंने बताया, ‘’पहले कांग्रेस का वोट भाजपा को जाता था लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा।‘’ क्या वाम दलों के वोटर भाजपा को वोट नहीं दिए थे पिछले चुनावों में? इस सवाल के जवाब में उनका कहना था कि कुछ हद तक दिए थे, लेकिन ग़लतफहमी के कारण!

यह छटपटाहट के माहौल में हो रहा चुनाव है। लोग जब नहीं बोलते तो समझिए वे घिरे हुए हैं।
- प्रभात पाण्डेय, लेखक और पत्रकार
कैसी गलतफहमी? इस सवाल को टालते हुए उन्होंने स्वीकार किया कि वे कल्याणपुर सीपीएम के सदस्य हैं। इसी भ्रम के चलते कोलकाता और जादवपुर का भद्रलोक इस बार के चुनाव में थोड़ा उदासीन दिख रहा है। यह भद्रलोक एक जमाने में वाम दलों का वोटर हुआ करता था। बाद में जब वाम का गढ़ टूटा, तो इसने सरकार की स्थिरता के नाम पर टीएमसी को वोट देना शुरू किया। अबकी यह तबका शांत है।
साल्टलेक में रहने वाले कोलकाता के वरिष्ठ लेखक और पत्रकार प्रभात पाण्डेय कहते हैं, ‘’यह छटपटाहट के माहौल में हो रहा चुनाव है। लोग जब नहीं बोलते हैं तो समझिए वे चारों ओर से घिरे हुए हैं। घर में जाओ तो घिरे हुए हैं, बाहर निकलो तो घिरे हुए हैं, तो आदमी जाए तो कहां जाए … सरकार ही मालिक है और सरकार बोलने नहीं देती। कहती है जो हम कहते हैं वही सुनो, वही करो। एक घुटन और उदासीनता है।‘’
भद्रलोक से दूर
भद्रलोक से दूर बंगाल के गांवों में जहां मतदान आखिरी चरण में होना बाकी है, ममता बनर्जी की चलाई कल्याणकारी योजनाओं की चर्चा है।
सत्ता में आने के बाद से ममता बनर्जी ने गरीबों के बीच अपना सामाजिक आधार कायम करने के लिए सिलसिलेवार कल्याणकारी योजनाएं चलाई हैं जिनका लक्ष्य औरतें और किसान हैं। सीधे लाभ वाली योजनाएं, स्वयं सहायता समूह, मातृत्व लाभ, स्वास्थ्य बीमा, वृद्धावस्था पेंशन और छात्रवृत्ति इनमें लोगों में सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं लेकिन भाजपा ने इसी मजबूत मोर्चे पर वार भी किया है।
चुनाव से दो महीने पहले उत्तरी चौबीस परगना के विधायक और तृणमूल सरकार में मंत्री ज्योतिप्रिय मल्लिक को जन वितरण प्रणाली में कथित घोटाले के आरोप में सीबीआइ ने गिरफ्तार किया था। ममता बनर्जी की इस सरकार में पार्थ चटर्जी के बाद मल्लिक दूसरे ऐसे रसूखदार नेता थे जिन्हें जेल भेजा गया, वह भी पीडीएस जैसी कल्याणकारी योजना में घोटाले का आरोप लगा। ममता ने गिरफ्तारी के बाद उन्हें अपनी कैबिनेट से निकाल दिया।
भ्रष्टाचार के सवाल पर पूनम कौर कहती हैं कि ममता बनर्जी की सरकार बालू घोटाला, राशन घोटाला, एसएससी घोटाले जैसे तमाम मामलों में फंसी हुई है। वे कहती हैं, ‘’उनके मंत्री खुलेआम आरोप लगाते हैं कि वे एक हिस्सा कालीघाट तक पहुंचाते हैं। यह शर्मनाक है। हम लोग इसका विरोध करते हैं और करते रहेंगे। एसएससी घोटाले में कितने ही लोगों का रोजगार चला गया। लोग इनसे नाराज हैं।‘’
सुजय सांपुई, सरपंच, शिखरबली गांव, बरुईपुर विधानसभा
नाराजगी के दावों के बावजूद महिलाओं, मुस्लिमों और छात्रों का बड़ा हिस्सा अब भी ममता बनर्जी के पक्ष में हैं। बारुईपुर बाजार (जादबपुर लोकसभा के अंतर्गत) के एक सैलून में बैठे एन. लश्कर कहते हैं, ‘’हम दीदी को ही चाहते हैं। मोदी और भाजपा साम्प्रदायिक, नफरत और विभाजन की राजनीति करती है। बंगाल में लोग सांप्रदायिक नहीं हैं। यहां हम सभी धर्मों के लोग मिलजुल कर रहते हैं। जरूरत के वक्त एक-दूसरे की मदद के लिए आगे आते हैं। यहां धर्म के आधार पर विभाजन लोग स्वीकार नहीं करेंगे। हमारा खानपान एक जैसा है, हमारी भाषा एक है जबकि भाजपा लोगों को आपस में बांट कर घृणा फैलाना चाहती है।‘’
ममता बनर्जी के ऊपर मुसलिम तुष्टिकरण के आरोप के जवाब में लश्कर कहते हैं, ‘’क्या दीदी ने अपनी जन-कल्याणकारी योजनाओं में धर्म के आधार पर कोई भेद किया है? धार्मिक आधार तो छोड़ दीजिए, दीदी ने विरोधी दल के समर्थकों के परिवारों के साथ भी कोई भेदभाव नहीं किया। सभी योजनाओं का समान लाभ सभी राज्यवासियों को बिना भेदभाव मिला है।‘’
शासन रोड रेलवे स्टेशन पर एक छोटी-सी दुकान चालने वाले दासजी से जब इस चुनाव के बारे में हमने सवाल किया, तो उन्होंने वीडियो न बनाने की शर्त पर कहा कि टीएमसी इस बार ज्यादा सीटें जीत कर केंद्र में इंडिया गठबंधन की सरकार में अहम भूमिका निभाएगी। दास जी कहते हैं, ‘’यदि टीएमसी को हराना होता तो लोग पिछले चुनाव में ही हरा देते लेकिन ऐसा नहीं हुआ जबकि उस दौरान काफी संख्या में लोग टीएमसी को हराना चाहते थे। हां, राज्य में भाजपा का प्रभाव उस दौरान बढ़ा जरूर है, लेकिन भाजपा की हार होगी।‘’

इस संदर्भ में वे बशीरहाट लोकसभा के अंतर्गत आने वाली विधानसभा संदेशखाली में औरतों के साथ कथित दुराचार के परदाफाश का सवाल भी उठाते हैं, ‘’स्टिंग ऑपरेशन से भाजपा की साजिश का पर्दाफाश हो चुका है। भाजपा वाले जो महिला सुरक्षा की नौटंकी कर रहे हैं, उन्हें मणिपुर, महिला पहलवानों और तमाम ऐसी घटनाओं पर पहले जवाब देना होगा। संदेशखाली का मुद्दा अब बेअसर हो चुका है और खुद राज्यपाल महोदय का कांड सामने आ गया है। इसलिए अब टीएमसी का पक्ष भारी है।‘’
पश्चिम बंगाल में मुसलमान और महिलाओं को टीएमसी का कोर वोटबैंक माना जाता है। कहा जाता है कि ये दोनों वर्ग जिस दल की तरफ हों चुनाव में उसकी जीत पक्की है। बीते दस साल से इन दोनों वर्गों का भारी समर्थन ममता बनर्जी और टीएमसी को हासिल है। इसीलिए भाजपा और विपक्षी दल ममता बनर्जी पर तुष्टिकरण की राजनीति का आरोप भी लगाते हैं, लेकिन विपक्षी दलों के इस आरोप को लोग खुद नहीं मानते।
दक्षिण चौबीस परगना की कृष्णा नस्कर कहती हैं, ‘’इस चुनाव में दीदी का पलड़ा भारी है क्योंकि वे लगातार महिलाओं के लिए बहुत कुछ कर रही हैं। महिलाओं को लक्खी भंडार, कन्याश्री के तहत आर्थिक मदद दे रही हैं, हमारी बेटियों को साइकिल, टैब, शिक्षाश्री दे रही हैं। दीदी के रहने पर हम महिलाओं को बहुत फायदा होगा।‘’
टीएमसी के शासन में महिलाओं पर अत्याचार और उत्पीड़न के भाजपा और विपक्षी दलों के आरोपों पर कृष्णा कहती हैं, ‘’ऐसा कुछ नहीं है। क्या लक्खी भंडार का लाभ सिर्फ हमें ही मिलता है? जो विरोधी दल के हैं उन्हें नहीं मिलता? क्या दीदी चुन-चुन कर सिर्फ हमारी बेटियों को साइकिल देती हैं? क्या विरोधियों के बेटियों को यह फायदा नहीं मिला है?’’
कृष्णा नस्कर, शिखरबाली ग्राम पंचायत
टीएमसी के राज में घोटालों की बात नीचे तक गई है। जयनगर–कैनिंग मोड़ पर मिले एक व्यक्ति नाम न छापने की शर्त पर बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के आरोपों की पुष्टि करते हैं, ‘’युवाओं का बड़ा वर्ग बेरोजगारी से लड़ रहा है। राज्य में रोजगार के अवसर ही नहीं हैं, ऊपर से इतने घोटालों का आरोप। ऐसे में कुछ लोगों का मन इस सरकार से भंग हुआ है। इसका फायदा भाजपा ने उठाया है।‘’
क्या इस बार भाजपा को टीएमसी पर लगे भ्रष्टाचार और वसूली के आरोपों का लाभ मिलेगा? सरदार कहते हैं, ‘’भाजपा के लोगों ने बंगाल के विकास के लिए कोई काम नहीं किया, जो किया दीदी ने किया। जहां तक आरोपों की बात है तो विधानसभा चुनाव परिणाम ने इसका जवाब दे ही दिया था।‘’
सभी फोटो और विडियो : नित्यानंद गायेन