मणिपुर में कुकी व अन्य जनजातीय समुदायों और मैती के बीच जारी जातीय हिंसा को पचास दिन पूरे हो चुके हैं। बीते करीब डेढ़ महीने में इस हिंसा में सौ से अधिक लोग अपनी जान गंवा चुके हैं, जिनमें बच्चे और महिलाएं भी शामिल हैं। महीने भर से ज्यादा समय से यहां इंटरनेट पूरी तरह बंद है और इसे अब 25 जून तक बढ़ा दिया गया है। मणिपुर में आज हुए विरोध प्रदर्शनों में No Yoga Day in Manipur लिखे हुए पोस्टर-बैनर लहराए हैं। उधर अमेरिका के कुछ सांसदों ने प्रधानमंत्री मोदी के भाषण का बहिष्कार करने संबंधी पत्र राष्ट्रपति बाइडेन को लिख भेजा है।
एक हफ्ते से ज्यादा वक्त से मणिपुर के विधायक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने के लिए दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं लेकिन उनकी मुलाकात नहीं हो पाई है। प्रधानमंत्री अमेरिका के दौरे पर हैं। इस बीच कांग्रेस संसदीय बोर्ड की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने आज एक यहां संदेश जारी किया है और शांति व सौहार्द की अपील की है।
मणिपुर की हिंसा ने राज्य के निवासियों को दो हिस्सों में इस कदर बांट दिया है जिसे पाटना अब आसान नहीं है। इस हिंसा में पूरे के पूरे गांव जलकर स्वाहा हो गए। 50,000 अधिक लोग विस्थापित हो गए और हजारों लोग राज्य से अपना सब कुछ छोड़कर या खो कर पलायन कर चुके हैं। सामाजिक स्थिति इतनी खराब हो चुकी है राजनीतिक हालात भी पलट गए हैं। इंफाल फ्री प्रेस की एक खबर के अनुसार मणिपुर के नौ विधायक मुख्यमंत्री बिरेन सिंह के खिलाफ हैं। वे प्रधानमंत्री से मिलने के लिए 15 जून से दिल्ली में हैं।
प्रधानमंत्री की विदेश यात्रा के कारण उन्हें मिलने का समय नहीं दिया गया, इसलिए इन विधायकों ने 19 जून को प्रधानमंत्री कार्यालय को अपना ज्ञापन सौंपा। इन विधायकों में लंगथबल से करम श्याम सिंह, हिरोक से टी. राधेश्याम सिंह, कीशमथोंग से विधायक निशिकांत सिंह सपम, के. उरिपोक से रघुमणि के अलावा पी. ब्रोजेन, वांगजिंग टेंथा, टी. रोबिंद्रो, एस. राजेन, एस. केबी देवी, नौरिया पाखनाग्लाक्पा और वाई. राधेश्याम शामिल थे। ज्ञापन में कहा गया है कि, “जनता ने राज्य सरकार में पूर्ण विश्वास खो दिया है।“
19 जून को ही दस विपक्षी दलों ने भी- जिनमें मणिपुर कांग्रेस के अलावा जेडीयू, सीपीआइ, सीपीएम, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, शिवसेना (यूबीटी), रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट शामिल हैं- प्रधानमंत्री को मणिपुर के मसले पर पत्र लिखा है। इस पत्र में विपक्षी दलों ने मणिपुर के मुख्यमंत्री बिरेन सिंह को इस हिंसा का’ ‘वास्तुकार’ कहा है, साथ ही बीजेपी की ‘बांटो और राज करो’ की नीति को हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराया है।
कांग्रेस समेत मणिपुर के 10 विपक्षी दलों के नेताओं ने मंगलवार (20 जून) को राज्य के मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह पर हिंसा का सूत्रधार होने का आरोप लगाया है।
डबल इंजन सरकार के लोकप्रिय जुमले का इस्तेमाल कर के उसके रास्ते विकास लाने का चुनावी प्रचार करने वाली भारतीय जनता पार्टी का दोनों इंजन मणिपुर में फेल दिख रहा है। वहां भाजपा की सरकार है, केंद्र में भी उसी की सरकार है, फिर भी बीते पचास दिनों से जल रहे इस राज्य पर प्रधानमंत्री मोदी ने चुप्पी साध रखी है।
अब, जबकि वे अमेरिका यात्रा पर गए हैं, मणिपुर का मुद्दा वहां भी उनका पीछा नहीं छोड़ रहा। वॉशिंगटन में मिजो सोसायटी ऑफ अमेरिका ने 22 जून को ट्राइबल सॉलिडरिटी प्रदर्शन में हिस्सा लेने घोषणा की है जिसे एनएएमटीए और उससे संबद्ध संगठनों ने आयोजित किया है। इस रैली का उद्देश्य मणिपुर में किए जा रहे जातीय सफाये का विरोध है।
अमेरिका में कई अधिकार आधारित संगठनों ने मिलकर सिलसिलेवार विरोध प्रदर्शन आयोजित किए हैं जिनमें प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा के दौरान भारत में हो रहे मानवाधिकार उल्लंघनों को रेखांकित किया जाएगा। प्रधानमंत्री मोदी 22 जून को अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन से मिलने वाले हैं। इस मौके पर अमेरिकन मुस्लिम कौंसिल, पीस ऐक्शन, वेटेरन्स फॉर पीस और बेथेस्दा अफ्रीकन सेमेटरी कोलीशन ने वाइट हाउस के बाहर जुटने की योजना बनाई है।
इनके अलावा एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच ने मिलकर वॉशिंगटन में नरेंद्र मोदी पर बीबीसी की डॉक्युमेंट्री की एक प्राइवेट स्क्रीनिंग भी विरोधस्वरूप 20 जून को रखी थी। इधर, मणिपुर की सड़कों पर पोस्टर नजर आ रहे हैं जिसमें प्रधानमंत्री मोदी को लापता बताया जा रहा है।
राज्य के हिंसा प्रभावित लोग प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से वहां दखल देने और शांति स्थापित करने की मांग करते-करते थक गए हैं। न सिर्फ राज्य के लोगों ने बल्कि तमाम विपक्षी दल, नागरिक समाज के प्रतिनिधियों ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर इस हिंसा को रोकने की अपील की है, लेकिन मणिपुर लगातार जलता रहा और दिल्ली ने चुप्पी साधे रखी। अब विभिन्न समुदायों के 15 संगठनों ने इस मामले में संयुक्त राष्ट्र से हस्तक्षेप करने की मांग की है।
इससे भी ज्यादा बुरी बात यही हुई है कि अमेरिकी सीनेट और कांग्रेस (अमेरिकी संसद) के सदस्य प्रधानमंत्री मोदी के अमेरिकी संसद में भाषण का बॉयकॉट करेंगे, ऐसी खबर आज आई है। अमेरिका के 75 सांसदों ने राष्ट्रपति बाइडेन को चिठ्ठी लिख के प्रधानमंत्री का भाषण बहिष्कार करने की बात की है।
इस बीच मणिपुर में जातीय हिंसा ने खुले तौर पर धार्मिक हिंसा का रूप ले लिया है। कई चर्च और मंदिरों को आग के हवाले कर दिया गया है। मणिपुर के लोग अब दो हिस्सों में बंट गए हैं। लोग इसे अब गृहयुद्ध कह रहे हैं। स्थानीय कुकी समाज के लोगों का कहना है कि जब तक उनकी मांगे नहीं मानी जाएंगी तब तक यह सब कुछ चलता रहेगा।
मणिपुर हिंसा गृहयुद्ध के साथ एक मानवीय त्रासदी में भी ढलती जा रही है। बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, 40 ऐसी महिलाएं हैं जो हिंसा शुरू होने के समय गर्भवती थीं। पिछले एक महीने में यहां चार बच्चों का जन्म हो चुका है और इन माताओं ने सपने में भी नहीं सोचा था कि इनके बच्चे एक शरणार्थी शिविर में पैदा होंगे, जो ‘कॉन्फ़्लिक्ट चिल्ड्रेन’ कहलाएंगे।
बीते 10 जून को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मणिपुर के अलग-अलग समूहों के बीच शांति स्थापित करने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए राज्यपाल अनुसुइया उइके की अध्यक्षता में एक शांति समिति की घोषणा की थी। कुकी सदस्यों ने पैनल में मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह और उनके समर्थकों की मौजूदगी का विरोध करते हुए पैनल का बहिष्कार कर दिया था। इसके बाद हिंसा का दूसरा दौर शुरू हो गया जो अब तक जारी है।
हिंसा की पृष्ठभूमि
कुकी और मैती समुदायों के बीच खुला संघर्ष 3 मई को शुरू हुआ जब मणिपुर के विभिन्न जिलों में ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन मणिपुर (एटीएसयूएम) द्वारा बुलाए गए एकजुटता मार्च के अंत में झड़पें हुईं। मणिपुर उच्च न्यायालय के हालिया आदेश के खिलाफ एटीएसयूएम ने मार्च का आह्वान किया था, जिसमें राज्य सरकार द्वारा मैती समुदाय के लिए अनुसूचित जनजाति (एसटी) के दर्जे की सिफारिश में तेजी लाने की मांग की गई थी।
कुकी समुदाय मानता है कि यदि केंद्र सरकार द्वारा इस सिफारिश को स्वीकार कर लिया जाता है तो यह उसके अधिकारों के लिए हानिकारक होगा। उच्च न्यायालय का आदेश घाटी में रहने वाले मैती और कुकी और नगा जैसे पहाड़ी समुदायों के बीच पहले से ही नाजुक संबंधों की पृष्ठभूमि में आया है। इस आदेश से पहले राज्य सरकार- जिसमें मैती समुदाय का बहुसंख्यक प्रतिनिधित्व है और जिसका नेतृत्व बहुसंख्यक समुदाय से आने वाले मुख्यमंत्री कर रहे हैं- ने कई ऐसे कदम उठाए थे जो आदिवासी समुदायों, विशेष रूप से कुकी समुदाय के खिलाफ थे।
आदिवासी समुदायों के बीच सबसे विवादास्पद मुद्दों में से एक है उनकी जमीनों और सांस्कृतिक स्वायत्तता का छीना जाना। मैती समुदाय के बीच यह सशक्त राय यह है कि मणिपुर भूमि राजस्व और भूमि सुधार अधिनियम, 1961 (एमएलआर और एलआर अधिनियम) को संशोधित करने से उन्हें पहाड़ियों में जमीन खरीदने की अनुमति मिल जाएगी, जिसे घाटी के क्षेत्रों में तथाकथित भूमि संकट के समाधान के रूप में देखा जाता है। वास्तव में, पहाड़ियों में भूमि अधिग्रहण की अनुमति देने के लिए कानून में पहले ही बदलाव किया जा चुका है। यह अधिनियम में 1988 में किए गए संशोधन द्वारा संभव हुआ है, जहां कार्यकारी आदेश द्वारा मणिपुर के किसी भी पहाड़ी क्षेत्र में इस अधिनियम के पूरे या किसी भी हिस्से का विस्तार करने के लिए एक प्रावधान जोड़ा गया था। इस तरह, यह एक भ्रामक धारणा है कि पहाड़ियों में भूमि का अधिग्रहण नहीं किया जा सकता।
पहाड़ में रहने वाले आदिवासी समुदायों को उनकी भूमि से बेदखल करने की प्रक्रिया को और सुव्यवस्थित करने के लिए राज्य प्रशासन ने 2015 में सभी पहाड़ी क्षेत्रों को शामिल करने के उद्देश्य से एमएलआर और एलआर अधिनियम में बदलाव का एक विवादास्पद विधेयक पेश किया था। इसके परिणामस्वरूप विरोध प्रदर्शन हुए जिसमें नौ आदिवासी प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई और 632 दिनों तक प्रदर्शन चला था। इसके बाद जिला परिषदों और पहाड़ी क्षेत्र समिति (एचएसी) के परामर्श के बिना पहाड़ी क्षेत्रों के कुकी-ज़ोमी-हमार आबादी वाले खंडों में भूमि के बड़े हिस्से को आरक्षित वन (आरएफ), संरक्षित वन (पीएफ), वन्यजीव अभयारण्य (डब्ल्यूएस), और आर्द्रभूमि के रूप में घोषित किया गया था।
अगस्त 2022 में राज्य सरकार ने दावा किया था कि कुकी बहुल जिले चूड़चंदपुर में बसे 38 गांव संरक्षित वन भूमि पर “अवैध अप्रवासी” और “अतिक्रमणकारी” थे। फरवरी 2023 में अपने दावे पर कार्रवाई करते हुए सरकार ने एकतरफा ढंग से कुकी निवासियों को तथाकथित संरक्षित वन भूमि से बेदखल कर दिया।
कुकी समुदाय के लोगों को बेदखल किया जाना अनुच्छेद 371सी का उल्लंघन था, जो मणिपुर के आदिवासी बहुल पहाड़ी क्षेत्रों को कुछ प्रशासनिक स्वायत्तता प्रदान करता है। इसके अलावा, इन कार्रवाइयों ने अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 का भी उल्लंघन किया, जो आदिवासी समुदायों को अपनी आजीविका के लिए वन भूमि और संसाधनों का उपयोग करने के अधिकार को निर्धारित करता है।
निर्णय प्रक्रिया से आदिवासी आबादी को बहिष्कृत किए जाने के लंबे इतिहास में इन ताजा फैसलों ने स्थानीय लोगों पर गंभीर प्रभाव डाला क्योंकि उनकी आजीविका के साधन खो गए। इसके अतिरिक्त, इस क्षेत्र में जमीन हड़पने, जबरन बेदखली और संसाधनों के शोषण का एक इतिहास रहा है, जिसके परिणामस्वरूप गरीबी, अशांति और सांस्कृतिक स्वायत्तता का नुकसान हुआ है।
इसी कड़ी में मैती समुदाय के लिए उच्च न्यायालय द्वारा बरकरार रखी गई एसटी दरजे की मांग को मैती समुदाय के प्रमुख वर्ग द्वारा कुकी को उनकी भूमि, संसाधनों और आजीविका से वंचित करने के एक और मजबूत प्रयास के रूप में देखा गया। कुकी समुदाय को डर है कि अगर यह लागू होता है तो उन्हें उनकी जमीनों से खदेड़ दिया जाएगा।
मणिपुर के संकट पर नॉर्थ पूर्वी फोरम फॉर इंटरनेशनल सालिडैरिटी (NEFIS) ने 1 जून को एक विस्तृत नोट जारी किया था। हिंसा की ऐतिहासिक सामाजिक-राजनीतिक पृष्ठभूमि को समझने के लिए उसे यहां पढ़ा जा सकता है।