प. बंगाल: सुप्रीम कोर्ट में याचिका खारिज, तृणमूल ने कहा- यूएन से शांति सेना भी बुला लो!

पंचायत चुनाव में केंद्रीय बलों की तैनाती के संबंध में सुप्रीम कोर्ट से पश्चिम बंगाल सरकार की याचिका खारिज होने के बाद तृणमूल कांग्रेस ने इसे विपक्ष की साजिश करार दिया है जबकि भाजपा ने इसे ममता सरकार की नैतिक हार बताया है।

अगले महीने होने वाले पंचायत चुनाव के लिए राज्‍य में केंद्रीय बलों की तैनाती संबंधी कलकत्‍ता हाइकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली राज्य चुनाव आयोग की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। नामांकन प्रक्रिया के दौरान हुई हिंसा में तीन लोग मारे गए थे। इस पर विपक्षी दलों की याचिका के बाद हाइकोर्ट ने केंद्रीय बल तैनात करने का आदेश दिया था। ममता बनर्जी की सरकार और राज्‍य का चुनाव आयोग इसी आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गया था।

जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस मनोज मिश्र की अवकाशकालीन पीठ ने कलकत्‍ता हाइकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली राज्‍य सरकार की याचिका को ख़ारिज करते हुए कहा, ‘’हमें लगता है कि हाइकोर्ट के आदेश का स्वरूप अंततः यह सुनिश्चित करना है कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव पूरे पश्चिम बंगाल में आयोजित किया जाए, क्योंकि राज्य स्थानीय निकायों के लिए एक ही दिन चुनाव करा रहा है और बूथों की संख्‍या को ध्यान में रखते हुए हम पाते हैं कि हाइकोर्ट के आदेश में किसी भी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। एसएलपी खारिज की जाती है।”

राज्य सरकार की तरफ से पेश हुए सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ अग्रवाल ने कहा कि मतदान 8 जुलाई को है और सुरक्षा व्यवस्था पूरी तरह से दुरुस्त है। उनकी दलील थी कि हाइकोर्ट द्वारा सभी जिलों में केंद्रीय बलों को तैनात करने का एकमुश्त निर्देश जारी करना गलत है, मानो सभी क्षेत्र संवेदनशील हों और राज्य पुलिस स्थिति को संभालने में अक्षम।

सर्वोच्च न्यायालय को यह भी बताया गया कि 189 संवेदनशील मतदान केन्द्रों की पहचान की गई है, लेकिन सुरक्षा को लेकर राज्य की तैयारी पूरी है। इस पर बेंच ने कहा कि आप अन्य पड़ोसी राज्यों से पुलिस बल लाने की बात कर रहे हैं, इसका अर्थ है कि आपके पास पर्याप्त बल नहीं है, ऐसे में केंद्रीय बल मंगवाने में आपको आपत्ति क्यों है।

इस सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने 2018 और 2013 में पंचायत चुनावों में हुई हिंसा का उल्लेख किया। कोर्ट ने कहा कि राज्य में चुनावी हिंसा के पुराने इतिहास को देखते हुए हाइकोर्ट ने निर्देश दिया होगा। खंडपीठ ने कहा कि हिंसा के माहौल मे चुनाव नहीं कराया जा सकता। चुनाव निष्पक्ष और स्वतंत्र होना चाहिए। ‘’अगर लोगों को इस बात की भी आजादी नहीं है कि वे नामांकन पत्र दाखिल कर पाएं, उनकी हत्या हो रही है, तो फिर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की बात का सवाल ही नहीं उठता।‘’

पश्चिम बंगाल: सबसे ज्यादा नामांकन के बावजूद सुप्रीम कोर्ट पहुंची तृणमूल सरकार

याचिका खारिज हो जाने के बाद तृणमूल कांग्रेस के राज्य महासचिव कुणाल घोष ने तंजिया लहजे में प्रतिक्रिया देते हुए कहा, ‘’केंद्रीय बल हमारा सिरदर्द बिल्कुल नहीं है। हम उनका सामना करने के लिए तैयार हैं। आने दो सेन्ट्रल फोर्स, मिलिट्री, यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र से शांति सेना भी बुला लो।‘’

उन्होंने कहा कि लोकसभा और राज्यसभा चुनाव केन्द्रीय चुनाव आयोग द्वारा कराए जाते हैं, तब केन्द्रीय बल ठीक है। उसी तरह पंचायत और म्युनिसिपल चुनाव में राज्य चुनाव आयोग और राज्य की फोर्स होती है। सिर्फ पश्चिम बंगाल में केन्द्रीय बल नहीं होना चाहिए।

उन्‍होंने इसे विपक्ष की साजिश करार दिया, ‘’ राज्य में 61 हजार में से केवल 4-5 बूथों पर ही दिक्कत है, वह भी विपक्ष द्वारा निर्मित… लेकिन हमें विश्वास है कि हमारी सार्वजनिक विकास योजनाओं से पश्चिम बंगाल के लोग टीएमसी के पक्ष में मतदान करेंगे। तृणमूल कांग्रेस को केन्द्रीय बल या राज्य के सुरक्षा बल से कोई दिक्कत नहीं है।‘’

भारतीय जनता पार्टी ने ममता सरकार की याचिका के सुप्रीम कोर्ट से खारिज होने के फैसले की सराहना करते हुए कहा कि यह ममता बनर्जी सरकार के लिए एक “सबक” और तृणमूल कांग्रेस के लिए “नैतिक हार” है।

बीते 7 जून को राज्‍य के मुख्‍य सचिव रहे राजीव सिन्‍हा को नया राज्‍य निर्वाचन आयुक्‍त बनाया गया था। अगले ही दिन उन्‍होंने पंचायत चुनावों की घोषणा कर दी। ये चुनाव एक चरण में 8 जुलाई को होने हैं और वोटों की गिनती 11 जुलाई को होगी। इसकी सूचना सिन्‍हा ने कोलकाता में 8 जुलाई को एक प्रेस कॉन्‍फ्रेंस में दी। ठीक अगले ही दिन कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी और भारतीय जनता पार्टी के नेता सुवेंदु अधिकारी द्वारा दायर दो अरजेन्‍ट जनहित याचिकाओं पर कलकत्‍ता हाइकोर्ट ने सुनवाई की। मामला इसके बाद से बिगड़ना शुरू हुआ।

मुख्‍य न्‍यायाधीश शिवगणम और न्‍यायमूर्ति हिरण्‍मय भट्टाचार्य की खंडपीठ ने याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कि प्रत्‍यक्षत: नामांकन दाखिल करने के लिए पांच दिन का समय अपर्याप्‍त है और चुनाव आयोग को इस पर दोबारा विचार करना चाहिए।

इसी सुनवाई के दौरान केंद्रीय सैन्‍यबलों की तैनाती के संबंध में पीठ ने याद दिलाया कि कुल 75000 से ज्‍यादा सीटों के लिए होने वाले इन चुनावों के दौरान अतीत में हुई हिंसा के मद्देनजर कोई 12 मौकों पर अदालत को इस मामले में हस्‍तक्षेप करना पड़ा है या मामला केंद्रीय जांच एजेंसी एनआइए के हवाले किया गया है, इसलिए स्‍वतंत्र व निष्‍पक्ष चुनाव करवाने के लिए राज्‍य निर्वाचन आयोग को केंद्रीय बलों की मांग करनी चाहिए। 

नामांकन के दौरान हिंसा का सिलसिला 9 जून को शुरू हुआ था। 12 जून को उत्तर चौबीस परगना के मीनाखान में सीपीएम के कार्यालय को घेर कर उसके उम्मीदवारों को नामांकन भरने से रोकने की कोशिश की गई, जिसमें सीपीएम के तीन नेता सयनदीप मित्रा, राना राय और सोमा दास को चोट आई। नामांकन के अंतिम दिन 15 जून को जब कलकत्‍ता हाइकोर्ट में भाजपा नेता सुवेंदु अधिकारी की याचिका पर राज्य चुनाव आयोग से सवाल-जवाब चल रहा था, अदालत के बाहर राज्य के कुछ हिस्सों में स्थित नामांकन केंद्रों के बाहर जहां धारा 144 लागू है, वहां सत्ताधारी दल और विपक्षी दलों के बीच हिंसक झड़पें हुईं। उस दिन उत्तर दिनाजपुर में तीन लोगों को गोली मारी गई। गोली लगने से घायल एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। 


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