प. बंगाल: पंद्रह लाशों के ढेर पर लोकतंत्र के पंचवर्षीय नृत्य का सज चुका है मंच

पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनाव के लिए प्रचार गुरुवार, 6 जुलाई की शाम को समाप्त हो गया। मतदान कल होना है। नतीजे 11 जुलाई को घोषित होंगे। कुल मिलाकर अब तक 15 से अधिक मौतें हो चुकी हैं। हाइकोर्ट ने मतगणना समाप्त होने के बाद 10 दिनों तक केंद्रीय बलों को राज्य में तैनात रखने का निर्देश दिया है।

पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनाव में हुई हिंसा पर एक तरफ जहां कोलकाता उच्च न्यायालय का रुख बहुत सख्त बना हुआ है, वहीं राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच मामला और भी गर्म हो गया है। चुनाव के लिए प्रचार गुरुवार, 6 जुलाई की शाम को समाप्त हो गया है। मतदान 8 जुलाई को होना है। नतीजे 11 जुलाई को घोषित होंगे।

प्रचार के अंतिम पल तक राज्य में हिंसा और मौतों का सिलसिला जारी रहा। बीते 2 जुलाई को दक्षिण 24 परगना के बासंती में एक टीएमसी कार्यकर्ता जियारुल मोल्ला की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने मृतक के परिवार से जाकर मुलाकात की और उन्हें हर तरह से मदद का भरोसा दिया।

3 जुलाई को पुरुलिया के बंदवान में बंकिम हांसदा नामक बीजेपी कार्यकर्ता का शव मिला। खबर के अनुसार, वह पुरुलिया के बंदवान विधानसभा के केंदड़ी गांव के दो ब्लॉक मानबाजार के हेंसला बूथ 202 के भाजपा महासचिव थे।

कुल मिलाकर अब तक बंगाल में पंचायत चुनाव की प्रक्रिया में 15 से अधिक मौतें हो चुकी हैं। खुद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी चुनाव प्रचार के दौरान बाल-बाल बच गई थीं।

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इस बीच राज्य में हिंसा को लेकर हाइकोर्ट ने मतगणना समाप्त होने के बाद 10 दिनों तक केंद्रीय बलों को राज्य में तैनात रखने का निर्देश दिया है। मुख्य न्यायाधीश टीएस शिवगणनम और न्यायमूर्ति हिरण्मय भट्टाचार्य की खंडपीठ ने कहा, “पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद हिंसा की घटनाएं पहले भी हुई हैं। इसलिए जनता और निर्वाचित प्रतिनिधियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मतगणना के दिन के बाद 10 दिनों तक केंद्रीय बल राज्य में तैनात रहेंगे।”

सीबीआइ का इंतजार

राज्य में चुनावों की घोषणा के बाद से हिंसा शुरू हो गई थी। इस हिंसा में सबसे पहली मौत मुर्शिदाबाद में हुई थी, जिसके बाद से कांग्रेस, भाजपा और सीपीएम ने हिंसा के लिए सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराना शुरू किया और मामला पहले राज्यपाल और कोलकाता हाइकोर्ट पहुंचा, जहां राज्य में मुख्य विपक्षी दल बीजेपी और कांग्रेस ने अदालत से चुनाव के दौरान राज्य में केंद्रीय बलों की तैनाती की याचिका दी। उस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने चुनाव आयोग को संवेदनशील केन्द्रों की पहचान कर वहां केंद्रीय बलों की तैनाती का निर्देश जारी किया था, लेकिन आयोग और राज्य सरकार ने इस निर्देश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।

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सुप्रीम कोर्ट ने हाइकोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए इस याचिका को खारिज कर दिया, जिसके बाद हाइकोर्ट का रुख और सख्त हो गया और कोर्ट ने राज्य सरकार और निर्वाचन आयोग को फटकार लगाते हुए पूरे राज्य में चुनाव के दौरान केंद्रीय बलों की तैनाती का आदेश जारी किया। अदालत ने आयोग को फटकार लगाते हुए यहां तक कह दिया कि, “यदि आयोग (निर्वाचन आयुक्त राजीव सिन्हा) को अदालत के आदेशों का पालन करने में दिक्कत है तो वह अपने पद से इस्तीफा दे सकते हैं, राज्यपाल उनके स्थान किसी और को नियुक्त कर देंगे।

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हिंसा के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए 21 जून को उच्च न्यायालय में सुनवाई के दौरान जस्टिस अमृता सिन्हा की एकल पीठ ने सख्त शब्दों में मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा था कि हिंसा की घटनाएं राज्य के लिए शर्मनाक हैं और निर्वाचन आयोग पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि अगर खूनखराबा जारी रहा तो चुनाव रोक देना चाहिए। साथ ही अदालत ने हिंसा से जुड़े सभी मामलों की जांच के लिए सीबीआइ को निर्देश दिया था और जांच रिपोर्ट मतदान से एक दिन पहले 7 जुलाई को अदालत में पेश करने का आदेश जारी किया था। आज उसकी मीयाद पूरी हो रही है।

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हिंसा का मामला सिर्फ अदालत और राज्यपाल तक नहीं रुका, बल्कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने ‘खुद’ इसमें रुचि लेते हुए चुनाव के दौरान अपने पर्यवेक्षकों की नियुक्ति का आदेश दिया, जिस पर राज्य निर्वाचन आयोग ने आपत्ति दर्ज करते हुए हाइकोर्ट में इसके खिलाफ याचिका दायर की और राज्य सरकार की आपत्ति को सही मानते हुए अदालत की एकल पीठ ने सरकार के पक्ष में फैसला दिया।

बीते 23 जून को कोलकाता उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें 8 जुलाई को होने वाले मतदान के लिए आयोग के महानिदेशक (जांच) को विशेष मानवाधिकार पर्यवेक्षक के रूप में नियुक्त किया गया था। जस्टिस सब्यसाची भट्टाचार्य की एकल पीठ ने कहा कि पंचायत चुनाव राज्य चुनाव आयोग (एसईसी) द्वारा आयोजित किए जाते हैं और “एनएचआरसी द्वारा एसईसी के विशेषाधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप” उचित नहीं है।

पीठ ने कहा, “एनएचआरसी ने राज्य निर्वाचन आयोग को पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव 2023 के दौरान हिंसा की घटनाओं पर अंकुश लगाने का निर्देश देकर आदेश पारित करने में गलती की क्योंकि उसके पास एसईसी जैसे संवैधानिक निकाय पर ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं है, इस प्रकार संविधान के साथ-साथ इसके मूल कानून, मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के बाहर कार्य करना है।”

पीठ ने कहा कि भले ही एनएचआरसी को लगता है कि चुनाव के दौरान कानून और व्यवस्था की स्थिति बिगड़ सकती है, लेकिन उसके पास राज्य चुनाव आयोग के अधिकार पर रोक लगाने और आयोग के साथ-साथ अन्य अधिकारियों पर राज्य चुनाव के संचालन के संबंध में स्वतंत्र निर्देश पारित करने की शक्ति नहीं है, जो भारत के संविधान के तहत राज्य चुनाव आयोग की शक्तियों के लिए सीधे हानिकारक होगा।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने एकल पीठ के इस फैसले के खिलाफ मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ पर याचिका दी, जिस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने एकल पीठ के आदेश को बरकरार रखते हुए एनएचआरसी की याचिका को खारिज कर दिया।

मुख्य न्यायाधीश टीएस शिवगणनम और न्यायमूर्ति हिरण्मय भट्टाचार्य की पीठ ने मानवाधिकार आयोग की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि बंगाल के पंचायत चुनाव में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के पर्यवेक्षक की नियुक्ति की जरूरत नहीं है।

5 जुलाई को सुनवाई के दौरान एनएचआरसी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अमन लेखी ने एकल पीठ के फैसले को गलत बताते हुए कहा कि एकल न्यायाधीश का आदेश हर दृष्टि से गलत है, न्यायालय एनएचआरसी के आदेश में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। उन्होंने पर्यवेक्षकों की नियुक्ति के सवाल पर पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव अधिनियम की धारा 134 का हवाला देते हुए कहा कि उसके तहत, पर्यवेक्षक राज्य सरकार का अधिकारी होता है जबकि एनएचआरसी के आदेश में एनएचआरसी के तहत काम करने वाले एक पर्यवेक्षक को मानवाधिकार अधिनियम के तहत नियुक्त करने का निर्देश दिया गया है।

एनएचआरसी के तमाम तर्कों को काटते हुए पश्चिम बंगाल निर्वाचन आयोग की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता जयंत मित्रा ने आयोग की मंशा पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा, एनएचआरसी अधिनियम की धारा 36 एनएचआरसी को किसी भी आयोग के समक्ष लंबित किसी भी मामले का संज्ञान लेने से रोकती है। जब एसईसी नियुक्त किया जाता है, तो उस समय के लिए वह एकमात्र प्राधिकारी होता है।

इस तरह से दोनों पक्षों के तर्कों को सुनने के बाद पीठ ने एकल बेंच के आदेश को सही ठहराते हुए एनएचआरसी की याचिका को खारिज कर राज्य निर्वाचन आयोग के पक्ष में फैसला दिया।  

राज्य सरकार बनाम राज्यपाल

राज्यपाल और राज्य निर्वाचन आयोग के बीच भी रिश्ते ठीक नहीं चल रहे हैं। राज्यपाल लगातार आयोग पर सवाल उठा रहे हैं, हिंसा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर रहे हैं। तृणमूल का आरोप है कि राज्यपाल केंद्र और बीजेपी के इशारे पर काम कर रहे हैं। राज्यपाल आनंद बोस ने पंचायत चुनावों से पहले राज्य में जारी हिंसा पर राज्य चुनाव आयोग (एसईसी) की बार-बार आलोचना की है।

इस पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी ने तंज करते हुए कहा कि, ”हमारे राज्यपाल बहुत सक्षम और बुद्धिमान हैं, लेकिन पश्चिम बंगाल को ऐसे बुद्धिमान राज्यपाल की जरूरत नहीं है इसलिए मैं केंद्र सरकार से अनुरोध करूंगा कि उन्हें मणिपुर या मध्य प्रदेश का संवैधानिक प्रमुख नियुक्त किया जाए। ऐसी बुद्धि और विवेक वाले व्यक्ति की जरूरत बंगाल में नहीं, बल्कि मणिपुर की डबल इंजन सरकार में है।‘’

राज्य में हिंसा के मुद्दे पर राज्यपाल कई बार राज्य के निर्वाचन आयुक्‍त को तलब कर चुके हैं। वे लगातार हिंसा पर मीडिया पर वक्तव्य दे रहे हैं। आयुक्त राजीव सिन्हा रविवार, 25 जून को राज्यपाल से मिलने राजभवन गए थे। राज्य में पंचायत चुनावों की अधिसूचना जारी होने के बाद से सिन्हा लगातार सुर्खियों में बने हुए हैं। हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से भी उन्हें चेतावनी मिल चुकी है।

इससे पहले 20 जून को राज्यपाल ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की आपत्ति के बाद भी एकतरफ़ा निर्णय लेकर राजभवन में पश्चिम बंगाल स्थापना दिवस मनाया था। मुख्यमंत्री और उनकी पार्टी ने राज्यपाल के इस कदम की आलोचना की थी और टीएमसी ने केंद्र से राज्यपाल को वापस बुलाने की मांग की थी। वहीं उत्तर बंगाल में टीएमसी छात्र संगठन ने राज्यपाल का विरोध करते हुए उन्हें काला झंडा दिखा कर नारे लगाए थे।


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