रामराज में नौका विहार : चार माह बाद नई अयोध्या का एक ताज़ा सफरनामा

A view of Saryu river in Ayodhya from Ghats
इस आम चुनाव में राम मंदिर यदि वाकई कोई मुद्दा था, तो आज उसको भुनाये जाने की अंतिम तारीख है। आज अयोध्‍या के लोग वोट डाल रहे हैं। बरसों के संघर्ष के बाद भगवान राम पुनर्वास हुआ तो, तो रामाधार का आधार ही छिन गया है और वह वनवास पर चला गया है। 2024 की अयोध्‍या इंसान की सामूहिक विडम्‍बनाओं का नाम है, ऐसा यहां घूमते हुए प्रतीत होता है। राम मंदिर में प्राण-प्रतिष्‍ठा के चार महीने बाद सफरनामे की शक्‍ल में नीतू सिंह की फॉलो-अप रपट

ठीक चार महीने पहले अयोध्‍या के नए राम मंदिर में जब प्राण-प्रतिष्‍ठा का राजकीय आयोजन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्‍व में हुआ था, उस वक्‍त मैंने अयोध्‍यावासियों के ऊपर यहां एक कहानी लिखी थी। उसके बाद से सरयू में बहुत पानी बह चुका है। आज यहां मतदान हो रहा है। कहा जा सकता है कि यहां के लोग भी बाकी देश की तरह अगले पांच साल के लिए अपनी किस्‍मत का फैसला करने जा रहे हैं, पर सच्‍चाई यह है कि उनकी सामूहिक नियति तो उसी दिन डिब्‍बे में बंद हो गई थी ज‍िस दिन राम मंदिर बनने का न्‍यायिक फैसला आया था।

फिर कोई आश्‍चर्य नहीं कि राम मंदिर इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का सबसे बड़ा मुद्दा है। इस मुद्दे से अयोध्‍यावासियों का क्‍या लेना-देना है? क्‍या बदला है मंदिर बनने के बाद? बीते चार महीनों में क्‍या वाकई अयोध्‍या के लोगों की जिंदगी पर कोई असर पड़ा है? यह जानने के लिए मैंने चुनाव से ठीक पहले एक रात अयोध्‍या में गुजारी और मंदिर सहित शहर की अलग-अलग जगहों पर जाकर लोगों से बात की।



अयोध्या में घुसते ही हमें पार्किंग की समस्‍या से दो-चार होना पड़ा। शाम के करीब चार बज रहे थे। हम गाड़ी से नया घाट तक ही पहुंच पाए क्योंकि उसके बाद आगे गाड़ी बिना पास के नहीं जा सकती थी। हमारे पास गाड़ी अन्दर तक ले जाने का पास नहीं था। नया घाट पर पार्किंग के प्रति घंटे के हिसाब से 50 रूपये लग रहे थे। गाड़ियों की लम्बी कतार पहले से वहां थी जिससे भीड़ का अंदाजा हो रहा था। भीषण गर्मी के बीच हम घाट की ओर बढ़ने लगे।

घाट पर दर्जनों की संख्या में नीले रंग के शौचालय बने थे। उनमें से बहुत बदबू आ रही थी। हम वहां सौर ऊर्जा से चलने वाली एक नाव को देखने आए थे, जो भारत की पहली सोलर नाव बताई जा रही है। भारत में ऐसा पहली बार है हुआ है। बताया जा रहा है कि अयोध्या के बाद बनारस में भी गंगा में सोलर नाव उतारी जाएगी। काफी जद्दोजहद के बाद हम सोलर नाव तक पहुंचे। यहां हमारी मुलाकात जितेन्द्र निषाद से हुई। उन्हें यह नाव चलाने के लिए छह महीने तक रखा गया है। चार महीने पूरे हो चुके हैं। दो महीने शेष हैं।

जितेन्द्र ने बताया कि अभी सरयू में पानी बहुत कम है इसलिए नाव चल नहीं रही है। शुरुआत में कुछ दिन के लिए वीआइपी लोगों के लिए इसे चलाया गया था। नाव से बाहर निकलते ही हमें इसे संचालित करने वाली कंपनी के एक कर्मचारी और अयोध्यावासी श्रवण कुमार मिश्रा मिले। उन्होंने बताया कि यह नाव एकाध बार से ज्यादा नहीं चली है, बस नाम के लिए इसे खड़ा किया गया है।



उन्‍होंने यहां बनाई जा रही एक सोलर सिटी के बारे में भी हमें बताया। चुनाव आचार संहिता लगने के तकरीबन एक महीना पहले ही पीएम सूर्यघर योजना लाई गई है। मिश्रा बताते हैं, ‘’जिस सौर सिटी की बात की जा रही है वह तो सिर्फ चुनाव जीतने का बहाना है। सोलर योजनाएं तो जमाने से चल रही हैं। घोषणा ऐसे की गई कि यह मुफ्त बिजली योजना है। मुफ्त का मतलब आम जनता फ्री समझती है लेकिन इसमें पैसा देना पड़ता है तब सोलर पैनल लगता है।‘’

पीएम सूर्यघर योजना के तहत बिजली मुफ्त नहीं है। तीन किलोवाट का खर्च तकरीबन 1.80 लाख रुपये आ रहा है। इसयोजना के तहत अयोध्या को सौर नगरी बनाने की घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्राण प्रतिष्‍ठा के दिन 22 जनवरी 2024 को की थी। घोषणा के बाद 13 फरवरी को भारत सरकार ने 75,021 करोड़ रुपये के वित्तीय प्रावधान के साथ एक करोड़ घरों के लिए पीएम सूर्यघर मुफ्त बिजली योजना लॉन्च की। 16 मार्च को इसकी प्रशासनिक अनुमति मिली और दिशानिर्देश जारी किए गए। 23 अप्रैल 2024 तक इस पर सुझाव मांगे गए थे।

सोलर वेंडर जितेंद्र ने बताया, “मुफ्त बिजली का प्रचार होने से शहर और गांवों से बहुत फोन आने लगे हैं। हम लोग समझा-समझा कर परेशान हो गए हैं। सच कहूं तो आदमी फ्री के चक्कर में ज्यादा फोन कर रहा है। जब हम लागत बता रहे हैं तो लोगों का उत्साह ख़त्म हो जा रहा है।

तीन वर्ष के लिए लाई गई पीएम सूर्यघर योजना में तीन किलोवाट तक सौर प्लांट लगाने पर केंद्र सरकार 78,000 रुपये और उत्तर प्रदेश सरकार 30 हजार रुपये की सब्सिडी दे रही है। सब्सिडी की रकम प्लांट लगने और पूरा भुगतान करने के बाद ही मिलती है। सब्सिडी मिल जाने पर उपभोक्ता का खर्च तकरीबन 72 हजार रुपये आता है। फिलहाल आचार संहिता लगने के बाद इस योजना में दी जाने वाली सब्सिडी पर रोक लग चुकी है। सूरज से चलने वाली नाव घाट किनारे किनारे बंधी पड़ी है।

अयोध्‍या के पहले पड़ाव पर ही हमें प्रधानमंत्री की सौर योजना के डूबने के संकेत मिलने लगे थे, सूरज हालांकि वास्‍तव में डूब रहा था। शाम होने लगी थी। हम आज ही मंदिर भी जाना चाहते थे, लेकिन श्रवण मिश्रा ने बताया, “आपको यहां से तीन से साढ़े तीन किलोमीटर पैदल जाना पड़ेगा क्योंकि वहां गाड़ियां नहीं जाती हैं। या फिर सिटी बस से जाइए। सिटी बस भी दो-तीन ही चलती हैं। पीछे से एक शार्टकट रास्ता है लेकिन वहां से भी बिना पास के आप गाड़ी नहीं निकाल सकते। यहां के लोकल लोग तो अपनी गाड़ी फ़ैजाबाद में छोड़कर आते हैं या फिर पास बनवाते हैं।

श्रवण हमें मंदिर तक आसानी से पहुंचाने की जुगत लगा रहे थे, इसी बीच मैं उनसे अयोध्या के विकास पर बात कर रही थी। वे बता रहे थे कि अयोध्या का विकास केवल वोटबैंक का मामला है। अयोध्या के विकास में गरीब आदमी शामिल नहीं है। उसे छोड़ दिया गया है। वे बोले, ‘’आप खुद अयोध्या घूमकर आइए, आपको अंदाजा हो जाएगा।‘’

उनकी मदद से संकरी गलियों में जगह-जगह लगी पुलिस बैरिकेडिंग पार करते हुए जैसे-तैसे हम लोग हनुमान मन्दिर से कुछ दूरी पर नंदू गुप्ता के घर पहुंचे। वे यहां के व्यापार मंडल के अध्यक्ष हैं और समाजवादी पार्टी से जुड़े हैं। तीन-चार किलोमीटर की यह दूरी तय करने में हमें करीब एक घंटा लग गया था। गुप्ता जी बोले, “जाम की पीड़ा तो आप यहां के लोगों से पूछिए। अयोध्या चौबीस घंटे जाम से जूझ रही है। राम पथ अयोध्या और फ़ैजाबाद का मुख्य मार्ग है। राम पथ से बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे। मरीज हॉस्पिटल नहीं पहुंच पा रहे। लोग ट्रेन नहीं पकड़ पा रहे हैं। अपनी ही गाड़ी से चलने के लिए लोगों को पास बनवाना पड़ रहा है।



नंदू गुप्‍ता का कहना था कि शहर में इतनी भीड़ को संभालने के कोई पुख्ता इंतजाम नहीं किया गया है। लोगों के सोने की जगह नहीं है, रहने-खाने का कोई इंतजाम नहीं है। भीड़ बढ़ने से किराये पर थोड़ा ढंग का होटल 7000-8000 रुपये में मिल रहा है। धर्मशाला में भीड़ ज्यादा होने की वजह से रेट बहुत ज्यादा है। उन्‍होंने बताया, ‘’अब तो हर आदमी यहां अपने घर में होम स्टे बना रहा है। एक रात का एक बेड का हजार से 1500 रुपया ले रहा है।‘’

बातचीत के बीच में बिजली चली गई। वे बोले, “अयोध्या में अघोषित बिजली कटौती हो रही है। रोजाना चार से छह घंटे बिजली काटी जाती है। गाँवों की स्थिति और खराब है। सोलर लगाने वाले लोग सोचते हैं कि उनके यहां 24 घंटे बिजली आएगी। वे नहीं जानते कि बिजली जाने पर प्लांट से बिजली नहीं बनेगी। जब तक बिजली रहेगी तब तक ही सोलर काम करेगा।

नंदू गुप्ता के यहां बैठे-बैठे रात के आठ बज चुके थे। हम अब मंदिर निकलना चाहते थे। पैदल ही हम राम मंदिर की तरफ बढ़ गए। चलते-चलते हम उस जगह पहुंचे जहां पिछली यात्रा के दौरान उजाड़े गए दुकानदारों की दुकान लगी दिखी थी। इस बार यहां हमारी मुलाकात कुछ नए दुकानदारों से हुई। इनमें एक बिंदु जायसवाल थीं।

उन्होंने बताया, “मन्दिर बनने से आमदनी तो बहुत बढ़ गई है लेकिन दुकान कब हट जाए कुछ पता नहीं है।‘’ क्या वोट देने से पहले इन समस्याओं को ध्यान में वे रखेंगी, इस सवाल पर मुस्कुराते हुए वे बोलीं, “कुछ भी हो जाए वोट तो भाजपा को ही जाएगा। मन्दिर बनवाकर अच्छा किया है। उन्नति होगी तो समस्याएं तो आएंगी ही।

आगे प्रदीप के पिता दुकान बढ़ा रहे थे। उनकी दुकान जब तोड़ी गई थी तब एक लाख रुपया मुआवजा दिया गया था। अब दुकान वापस देने के बदले सरकार उनसे 21 लाख रुपया मांग रही है। वे बोले, ‘’हम उनसे महल नहीं मांग रहे। जो भी छोटा-मोटा झोपड़ीनुमा, कैसा भी करके हमें एक छोटी सी दुकान दे दी जाए ताकि हमारे बच्चों का जीवन अच्छे से कट जाए। 18-20 साल की जमी-जमाई दुकान को तोड़कर हमें रोड पर ला दिया, यही अयोध्या का विकास हुआ है।‘’ वोट किसको देंगे, इस पर वे बोले कि अभी कुछ तय नहीं किया है।


Bindu Jayaswal, a shopkeeper of Ayodhya
  • बिंदु जायसवाल, दुकानदार

रात का नौ बज चुका था। हम लॉकर के पास पहुंचे। यहां अपना बैग, मोबाइल, घड़ी जमा कर के दूसरी जगह हमने चप्पलें जमा कीं। भीड़ थोड़ी कम हो चली थी। अगले आधे घंटे में हम रामलला के दर्शन करने पहुंच गए। वहां कुछ सेकंड रुकना भी मुमकिन नहीं था। लगातार चलते हुए ही दर्शन करना था। दो लाइनें थीं। दोनों में काफी भीड़ थी। दर्शन के बाद हम काफी लंबा चलकर वापस लॉकर के पास पहुंचे। वापसी का रास्‍ता थोड़ा लंबा है।

सामान लेकर हम बाहर निकले। रात के साढ़े दस बज चुके थे। सिटी बसों में भीड़ थी, तो हम चढ़ नहीं पाए। अभी तक हमने होटल नहीं लिया था। मंदिर के मुख्य द्वार पर बिड़ला धर्मशाला है। वहां अगले तीन महीने तक बुकिंग फुल थी। हमने कई होटल और धर्मशालाएं देखीं। कोई हमारे बजट में नहीं निकला। फिर हम फ़ैजाबाद के उस होटल में रुके जहां पिछली बार रुके थे। उस वक़्त इस होटल का किराया 1400 रुपये था। चार महीने में इसका दाम दोगुना हो गया है।

अगले दिन उत्तर प्रदेश उद्योग व्यापार प्रतिनिधिमंडल, अयोध्या के अरुण अग्रवाल से हमारी मुलाकात हुई। उन्होंने बताया कि अयोध्या का इंफ्रास्ट्रक्चर केवल दो किलोमीटर में सीमित हैं और सरकार के पास योजनाएं बहुत हैं, इसलिए अयोध्या को दो से बढ़ाकर 10 किलोमीटर करने में पांच से दस साल का वक्‍त तो लग ही जाएगा।

उन्‍होंने बताया, ‘’राम पथ को बनाने में 800 दुकानों को तोड़ दिया गया, टेढ़ी बाजार चौराहे से नया घाट तक ट्रैफिक बंद कर दिया गया। इसके समानांतर रायगंज रोड है। उस पर आप फंस गए तो दो-तीन घंटे फंसे रह जाएंगे। यातायात व्यवस्थित नहीं हो पा रहा है जिसका खामियाजा जनता बीते कई महीनों से भुगत रही है।

सरकार ने नई अयोध्या के विकास के नाम पर 1500 एकड़ जमीन ली थी। अग्रवाल के मुताबिक डेढ़ साल हो गया अभी तक उस पर कुछ काम नहीं हुआ है। इसके बावजूद अग्रवाल का मानना था कि ‘’योगी सरकार में माफिया राज कम हुआ है और अब मोदी जी ने मंदिर भी बनवा दिया है, तो इसी मुद्दे पर लोग इस बार वोट देंगे’’


  • रामाधार
Ramadhar, a displaced resident of Ayodhya

हम ऐसे सात परिवारों से मिले जिनका घर राम मंदिर के पड़ोस में था और जिन्‍हें उजाड़ दिया गया है। इनमें सबसे पहले हम रामाधार से मिले। वे आजकल कभी अयोध्या में रहते हैं तो कभी फ़ैजाबाद। कमरे का किराया महीने का आठ से दस हजार रुपये हो चुका है। रामाधार बोले, “राम का वनवास खत्‍म हुआ तो हमारा शुरू हुआ। कोई कार्रवाई नहीं। कोई सुनने वाला नहीं है। क्या करें? जहर खाकर मर जाएं?’’

वहीं बैठे रघुनंदन यादव बोले, “हमारा प्रधानमंत्री आवास बना था। उसे तोड़ा गया और कहा गया कि आपको 900 गज जमीन पर प्रधानमंत्री आवास बनाकर दिया जाएगा। अभी तक कुछ नहीं हुआ। आधार कार्ड पर साइन करवाकर जमा करा लिया गया। आगे का कुछ पता नहीं।‘’

हम संतोष के घर में बैठे थे। घर क्‍या, झोपड़ी कहिए। पहले यहां संतोष के मवेशी बांधे जाते थे। यह मंदिर के ठीक पीछे की जगह है। मैं घर का वीडियो बनाने लगी, तो वे बोले, “वीडियो मत बनाइए, अगर पुलिस की नजर पड़ गई तो आपका फोन ले लिया जाएगा या डिलीट करा दिया जाएगा।‘’

अपने बेटे की तरफ इशारा करते हुए संतोष ने कहा, “मंदिर बनने के चक्कर में इसकी पढ़ाई छूट गई। तीन सयानी बेटियां भी हैं। इस झोपड़ी में उनको कैसे रखें? सही से पढ़-लिख नहीं पा रही हैं।” संतोष की छोटी बेटी मनु दसवीं में हैं। वह कहती है कि अभी तो तिरपाल लगाकर रह रहे हैं लेकिन बरसात कैसे कटेगी इसका पता नहीं। कुछ दूरी पर खड़ी उसकी मां ज्ञानवती बोली, “पूरा जीवन लग जाता है एक घर बनाने में। अब घर बनवाएं कि सयानी लड़कियों की शादी करें?



बेटे का नाम राजन है। उम्र लगभग 21 साल होगी। वह हमसे बात करने के मूड में नहीं था। कह रहा था कि बहुत मीडिया वाले आए पर कुछ नहीं हुआ, तो बोलने से क्या फायदा। फिर कुछ देर की खामोशी के बाद राजन अपने आप बात करने लगा। उसने कहा, “हमारा तो करियर खत्‍म हो गया। हमें बस रहने के लिए एक घर मिल जाए, तो बाकी हम सब संभाल लेंगे।

राजन के बाबा हरप्रसाद (80) का दुख गहरा था, “बुढ़ापा आ गया राम मंदिर बनने की आस में, पर बुढ़ापा रोड पर कटेगा अगर ऐसा जानते तो कभी मंदिर बनने की दुआ नहीं करते। इस उम्र में अपने घर को अपनी आंखों के सामने बुलडोजर से गिरते देखा है।‘’

शाम हो रही थी। उजड़े हुए लोगों से मिलकर हम गुप्तार घाट पहुंचे। यहां लोग नाव से सरयू नदी में घूमने और स्नान करने आते हैं। हमने भी एक नाव की। उसे भगवानदीन निषाद (25) चला रहे थे। पता चला कि उन्‍होंने करीब 400 डूबते हुए लोगों की जान बचाई है।

हमारी नाव पर हिमाचल प्रदेश से आया एक परिवार भी था। बातचीत के दौरान परिवार के मुखिया गोविन्द चौहान ने कहा, “हमने रामराज्य के बारे में पढ़ा और सुना था लेकिन आज यहां वास्तविकता में देख रहे हैं। पचासों साल के संघर्ष के बाद राम मंदिर स्थापित हुआ है। देश भर में खुशी का माहौल है।

यहां आने में कोई असुविधा तो नहीं हुई? इस पर वे बोले, “अब भगवान के दर्शन करने में थोड़ी मशक्कत न पड़े तो क्या ही भगवान के दर्शन किए। अब दूर-दूर से लोग आ रहे हैं तो भीड़ में थोड़ी बहुत दिक्कत तो होती है लेकिन दर्शन के बाद खत्‍म। हमने पूरा रामराज का आनंद लिया।‘’


Saryu Arti in Ayodhya

बातचीत के बीच नाविक भगवानदीन ने बताया, “हम बहुत छोटे से ही लोगों को बचाने का काम कर रहे हैं। हमें प्रशासन की तरफ से पहचान पत्र भी मिला है जिसमें उत्तर प्रदेश गोताखोर लिखा है। कहा गया था कि 500 रुपया महीना मिलेगा। अब तक नहीं मिला। प्रधानमंत्री जिस निषाद से मिलने गए थे उसको भी कोई मदद नहीं की। उसको पहले ही मना कर दिया गया था कि कुछ बोलना नहीं है।‘’

अंधेरा होने लगा था। लोग आरती की तैयारी में जुट रहे थे। हमने भी आरती का आनंद लिया। इसके बाद भगवानदीन की दुकान पर चाय-पकौड़ी खाकर अपने अगले पड़ाव बनारस की तरफ निकल पड़े।


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