लोकतंत्र में लोकप्रिय मतों से चुने हुए किसी भी नेता के लिए राजनीतिक विपक्ष की ओर से लगाए गए इल्जाम और कार्रवाइयां एक नियमित घटनाक्रम का हिस्सा हो सकते हैं जिसका जवाब भी राजनीति से ही दिया जाता है। असल दिक्कत तब आती है जब नेतृत्व का इकबाल जनता और उसके बौद्धिक नुमाइंदों की नजर में गिरने लग जाता है। चौतरफा राजनीतिक संकटों से घिरीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की राजनीति इस मोड़ पर अब पहुंच चुकी है।
कभी ममता बनर्जी के पीछे बंगाल का तकरीबन समूचा बौद्धिक समाज खड़ा हुआ था। महज तीन साल पहले फिल्मकार और अभिनेत्री अपर्णा सेन का नाम उन 49 बौद्धिकों में था जिन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम एक पत्र लिखकर मॉब लिंचिंग जैसी नफरत भरी घटनाओं के लिए सरकार की निंदा की थी। उस समय खुद ममता बनर्जी ने अपर्णा सेन ओर अन्य के लिखे का समर्थन किया था।
कहानी अब पलट चुकी है। अपर्णा सेन ने पंचायत चुनाव के दौरान हुई हिंसा को लेकर दुख और आक्रोश प्रकट करते हुए अब ममता को एक खुला पत्र लिखा है और दो टूक शब्दों में कहा है कि, ‘’परिवर्तन मांगा था लेकिन ऐसा परिवर्तन नहीं।‘’
गुरुवार को कोलकाता के भारत सभा हॉल में मानवाधिकार संगठन एपीडीआर द्वारा आयोजित एक गोष्ठी में बोलते हुए उन्होंने भावुक होकर कहा कि, ‘यह सोच कर अच्छा लग रहा है कि अब ज्यादा दिन जीना नहीं पड़ेगा।‘
इस चर्चा के बाद उनका यह पत्र प्रकाश में आया है, जिसमें उन्होंने लिखा है:
“पिछले 37 दिनों में पंचायत चुनावों के कारण 52 लोगों की जान चली गई। कई लोग लापता हैं। पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री और गृह मंत्री के रूप में आप किसी भी तरह से इस जिम्मेदारी से इनकार नहीं कर सकती हैं।‘’
आगे वे लिखती हैं, ‘’चुनाव आयोग की संवैधानिक जिम्मेदारी को नकारे बिना यह कहा जा सकता है कि इस जानलेवा अराजकता की जिम्मेदारी मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल सरकार और आप पर है। केंद्रीय बलों और चुनाव आयोग को स्थानीय प्रशासन पर निर्भर रहना पड़ता है। लोगों द्वारा चुनी गई सरकार को इस खूनी पश्चिम बंगाल में तुरंत एक निष्पक्ष प्रशासनिक प्रणाली शुरू करके राज्य के लोगों के जीवन, आजीविका और संपत्ति की रक्षा करने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।”
अपर्णा सेन ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को खुले पत्र में लिखा है, ‘’लोकतंत्र अब बचा नहीं है। गणतंत्र अब कहीं दिखाई नहीं देता। सभी दल एक जैसे हैं। सभी दल भ्रष्ट हैं। जो भ्रष्ट नहीं हैं, उन्हें कोई जगह नहीं मिलेगी।‘’
कॉलेज स्ट्रीट में पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा- ‘’मेरा दिल टूट गया है, मैंने बहुत बार कई तरह से प्रतिवाद किया है, बंगाल का भविष्य अंधकारमय है। पता नहीं, कुछ दिन बाद इस तरह से शायद बात भी न कर सकूं।‘’
ममता बनर्जी की राजनीतिक मुश्किलें भी बढ़ती जा रही हैं। हाल ही संपन्न हुए पंचायत चुनावों के दौरान हुई हिंसा पर ममता और उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी के खिलाफ एक जनहित याचिका गुरुवार को ही कलकत्ता उच्च न्यायालय ने स्वीकार कर ली। एक जनहित याचिका दायर की गई थी जिसमें ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और पार्टी के लोकसभा सदस्य अभिषेक बनर्जी को हाल ही में संपन्न पंचायत चुनावों में हिंसा और खून-खराबे के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार ठहराया गया था।
अधिवक्ता अनिंद्य सुंदर दास द्वारा दायर इस जनहित याचिका में उन्होंने इस मामले में ममता बनर्जी और अभिषेक बनर्जी के खिलाफ एफआइआर दर्ज करने की अनुमति मांगी है। न्यायमूर्ति इंद्र प्रसन्न मुखर्जी ने जनहित याचिका स्वीकार करते हुए मामले की सुनवाई के लिए अगले हफ्ते की तारीख दे दी है।
चुनाव में हिंसा को लेकर कोलकाता हाईकोर्ट का रुख शुरू से ही बहुत सख्त बना हुआ है और हिंसा पर लगातार सुनवाई जारी है। हिंसा के लिए राज्य निर्वाचन आयोग के खिलाफ पहले ही कई याचिकाएं दायर हो चुकी हैं। अदालत पहले ही इस मामले में आयोग को फटकार लगाते हुए कई निर्देश जारी कर चुकी है। अब उच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल पुलिस के अपराध जांच विभाग के डीआइजी को न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की निगरानी में विदेश से उम्मीदवार द्वारा दाखिल किए गए नामांकन पत्र के संबंध में जांच करने का आदेश दिया है। न्यायमूर्ति अमृता सिन्हा की एकल पीठ ने यह आदेश दिया है।
साथ ही अदालत ने न्यायालय के आदेशों की जान-बूझ कर उपेक्षा और अवमानना करने के लिए राज्य चुनाव आयोग के खिलाफ सुनवाई जारी रखने का फैसला किया है। ये याचिकाएं भाजपा के सुवेंदु अधिकारी और कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी सहित अन्य ने दायर की थीं।
इससे पहले, मुख्य न्यायाधीश शिवगणनम और न्यायमूर्ति हिरण्मय भट्टाचार्य की पीठ ने चुनाव प्रक्रिया के कथित कुप्रबंधन पर कड़ी आपत्ति जताई थी।
इस वक्त ममता बनर्जी की सरकार पर जहां एक तरफ हाइकोर्ट की नजर टेढ़ी है, वहीं विपक्षी दलों, केंद्रीय जांच एजेंसियों और राज्यपाल के निशाने पर भी वे हैं।
इस बीच एक और घटनाक्रम में कोलकाता हाइकोर्ट ने पश्चिम बंगाल में कथित करोड़ों रुपये के स्कूल भर्ती घोटाले के सिलसिले में केंद्रीय जांच एजेंसियों द्वारा गिरफ्तारी के खिलाफ तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी को चार दिनों की अंतरिम सुरक्षा प्रदान कर दी। इस मामले पर 24 जुलाई को दोबारा सुनवाई होगी, तब तक केंद्रीय एजेंसियां बनर्जी के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकेंगी।
पंचायत चुनाव के दौरान केंद्रीय जांच एजेंसियों की जो सक्रियता बढ़नी शुरू हुई थी, उसमें अब और तेजी आ गई है। राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष सुवेंदु अधिकारी ने सारदा चिट फंड कांड जांच को लेकर भी सीबीआइ निदेशक को एक पत्र लिखा है।
पंचायत चुनाव के बाद हुई हिंसा को लेकर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पश्चिम बंगाल का दौरा करने के लिए अनुसूचित जाति के सांसदों की पांच सदस्यीय समिति नियुक्त की है।
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