सात साल पहले की बात है। तकरीबन यही मौसम था। पंद्रह साल बाद यूपी की सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी का आबा-ढाबा अभी योगी आदित्यनाथ की कमान में सज ही रहा था, कि भाजपा का एक विधायक रेप कांड में फंस गया। बांगरमऊ के विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के कुकृत्य के कारण पहली बार उन्नाव राष्ट्रीय सुर्खियों के नक्शे पर उभर कर आया। बहुत हो-हल्ले के बाद सेंगर को जेल हुई और मामला ठंडा पड़ गया, लेकिन 2019 के आम चुनाव नतीजों के बाद एक बार फिर उन्नाव रेपकांड का प्रेत लौट आया जब भाजपा के नवनिर्वाचित सांसद साक्षी महाराज सीतापुर की जेल में सेंगर से मिलने गए और चुनाव में सहयोग के लिए उन्हें धन्यवाद दिया।
तब स्थानीय लोगों ने इसे ‘साधु और शैतान’ के मिलन की संज्ञा दी थी। ‘शैतान’ तो अब भी जेल में है, लेकिन उसके ‘सहयोग’ से सांसद बना ‘साधु’ एक बार फिर चुनाव लड़ रहा है। इस बीच उन्नाव में सैकड़ों बलात्कार कांड हुए हैं। ज्यादातर सुर्खियों से ओझल ही रहे, लेकिन 2017 के बाद सीधे 2022 में माहौल गरमाया जब 11 साल की एक बच्ची के साथ गैंगरेप किया गया और वह 12 साल की उम्र में मां बन गई। दिलचस्प है कि बलात्कार की घटना सामने आने पर कोई खबर नहीं बनी थी लेकिन जब लड़की के घर को महीनों बाद जला दिया गया और उसके नवजात को आग में फेंक दिया गया, तब उन्नाव दोबारा सुर्खियों में आया।
उन्नाव के मौजूदा लोकसभा चुनाव में न तो 2017 और न ही 2022 का बलात्कार कांड कोई मुद्दा है। इन दोनों के बीच हुए तमाम कांड तो जाने कहां दब चुके हैं] लेकिन 2022 के गैंगरेप में अब तक लड़की को इंसाफ नहीं मिला है। इस मामले में ढाई साल में चार एफआइआर दर्ज हुईं लेकिन अब तक कोई फैसला नहीं आया है। लड़की के पिता से मतदान के एक दिन पहले मैंने चुनावी महौल का हालचाल लिया।
वे बोले, “मेरे गांव में सपा, भाजपा और बसपा सभी का मिलता-जुलता माहौल है, पर हमारे केस की कहीं कोई चर्चा नहीं है। हमें किसी भी प्रत्याशी ने आश्वासन नहीं दिया कि हम उन्हें वोट दें तो वे हमारे केस की पैरवी करेंगे। मेरे दो वोट हैं। जिसको मन करेगा उसको देंगे।‘’
तेरह साल की मां
एक नाबालिग बच्ची के साथ गैंगरेप जैसा जघन्य अपराध हो; 12 साल की उम्र में बच्ची मां बन जाए; आरोपित जेल से छूट जाएं और आठ महीने के नवजात को आग में फेक दें; पूरे परिवार के साथ मारपीट करें; घर की तीन साल की एक बेटी की मौत हो जाए; गांव वाले परिवार का साथ छोड़ दें और बलात्कारियों की रिहाई का जश्न मनाएं- ऐसे में कौन परिवार अपने घर-गांव में टिक पाएगा?
इसके बावजूद 13 साल की मां अपने अधजले बच्चे के साथ जिंदगी और इंसाफ की जंग मजबूती से लड़ रही है। इस परिवार के ढाई साल कैसे कटे, यह जानने के लिए मैं उन्नाव जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर घटनास्थल के गांव पहुंची।
गांव में दो-तीन लोगों के पूछने के बाद हम इस परिवार तक पहुंचे। मुझे दूर से छप्पर के नीचे कुछ लोग बैठे दिखे। सुबह के करीब दस बज रहे थे। छप्पर के नीचे लकड़ी की बेंच पर बैठी एक बच्ची अपने नवजात को स्तनपान करा रही थी। उससे कुछ दूरी पर पुलिस के दो सिपाही मुस्तैद थे। ये सिपाही लंबे समय से इस बच्ची के इर्द-गिर्द ही तैनात हैं। कुछ दूरी पर इस लड़की के भाई-बहन खेल रहे थे। लड़की नीली छींटदार साड़ी पहने हुए थी। उसकी गोद में जो बच्चा था, उसके शरीर के एक तरफ जले के गम्भीर दाग थे। भाई-बहनों के बीच यह लड़की सबसे छोटी थी जिसे करीब साल भर पहले 17 अप्रैल, 2023 को नवजात के साथ आरोपितों ने आग में फेंक दिया था।
यह नवजात फरवरी 2022 के बलात्कार की पैदाइश नहीं है। उससे पहले भी इस लड़की के साथ बलात्कार हो चुका था। यह 31 दिसम्बर 2021 की बात है। तब भी गैंगरेप ही हुआ था। परिजनों के मुताबिक वे थाने गए थे लेकिन इस घटना की पुलिस ने एफआइआर दर्ज नहीं की थी। घटना के करीब सवा महीने बाद दोबारा उन्हीं अपराधियों ने 13 फरवरी 2022 को बच्ची को अगवा कर फिर से गैंगरेप किया।
पहली बार एफआइआर लिख ली जाती तो यह नौबत नहीं आती। दूसरे गैंगरेप में 14 फरवरी 2022 को पुलिस ने तीन अज्ञात लोगों के खिलाफ आइपीसी की धारा 376डी, 3 और 4 के तहत मुकदमा दर्ज किया। घटना के करीब एक महीने बाद पांच में से तीन आरोपितों को गिरफ्तार किया गया।
बेंच पर गुमसुम बैठे लड़की के पिता ने कहा, “पहले बच्ची के साथ गलत काम हुआ, पढ़ने-लिखने की उम्र में वह मां बन गई। फिर मेरे साथ मारपीट की गई। घर में आग लगाकर सारा सामान जला दिया। बेटी के बेटे और मेरी छोटी बेटी को जलती आग में फेंक दिया जिसमें वे बुरी तरह से जल गए। सर्जरी में 14 लाख का खर्च है। कहां से आएगा इतना पैसा?“
एक के बाद एक मुसीबतों से जूझ रहे इस परिवार में छह महीने पहले एक और मौत हुई है। बीते 12 अक्टूबर 2023 को इनकी तीन साल की बेटी घर के पास ही मृत पाई गई। पिता का आरोप है, “मेरी बेटी को उन्हीं लोगों ने मारा है ताकि ये हम पर केस वापस लेने का दबाव बना सकें। सुरक्षा में पुलिस 24 घंटे हमारे घर तैनात रहती है फिर इतनी बड़ी घटना कैसे हो गई? सब लोग कह रहे हैं पानी में डूबकर मर गई। मैं कहता हूं उसको मार डाला गया है, पर कोई सुनने वाला कहां है?“
इस बेटी की संदिग्ध मौत की शिकायत ही दर्ज नहीं की गई। पिता कहते हैं, ‘’जब से चुनाव आया तब से तो कोई सुनने वाला नहीं है। अभी तक न मुआवजा का पैसा मिला और न ही आरोपितों को सजा हुई। दो-तीन आरोपी तो कभी पकड़े ही नहीं गए। जो पकड़े गए थे उनमें से एक रंजीत छूटकर आ गया है।“
शुरुआत के एक-डेढ़ साल तो इन्हें घर से बाहर निकलने ही नहीं दिया गया। परिवार मजदूरी करके अपना भरण-पोषण करता है। केस के लिए उन्नाव कचहरी आने जाने में दो लोगों का एक बार में 500 रुपया खर्च हो जाता है। बिना कमाए इतना पैसा जुटाना इनके लिए मुश्किल है। शुरुआत में कुछ एनजीओ के लोगों ने परिवार की मदद की थी, जिससे कुछ महीने तो कट गए लेकिन अब खर्चा निकालना बहुत मुश्किल हो रहा है।
पिता कहते हैं, “रोज धमकी मिलती है कि समझौता कर लो। मेरा तो सब कुछ चला गया। अब किस बात का समझौता? मुझे सिर्फ न्याय चाहिए। मेरी बेटी का तो पूरा जीवन चौपट हो गया। कोई कर सकता है इसकी भरपाई?” यह कहते हुए उनका गला भर आया।
जब से बेटी के साथ गैंगरेप हुआ है, गांव के लोगों ने परिवार से मतलब रखना बंद कर दिया है। कोई इनके घर आता-जाता नहीं और न ही इनसे कोई बात करता है। जैसे पूरा परिवार ही अपने गांव में बेदखल कर दिया गया हो! लड़की की पढ़ाई-लिखाई एकदम छूट चुकी है। वह घर से बाहर नहीं निकलती।
लड़की की मां कहती हैं, “उसकी पढ़ाई छूट गई। सहेलियां छूट गईं। खेलने-खाने, पढ़ने-लिखने की उम्र में गोद में बच्चा आ गया। इतना डर गई है कि बाहर ही नहीं निकलती। हम लोग तो जैसे-तैसे एक जगह रह लेते हैं पर वो तो बच्ची है। ढाई साल से कोर्ट, कचहरी, थाना और अस्पताल के ही चक्कर काट रही है। पता नहीं किस बात की भगवान ने उसे सजा दी है।“
लड़की से बात करने की हिम्मत हम नहीं जुटा पा रहे थे। बहुत साहस जुटाकर मैंने उससे कहा, “स्कूल जाया करो।” उसने बहुत सहमी हुई आवाज में कहा, “मार डालेंगे वो लोग। मैं घर पर ही रहूंगी।“
कुछ देर शांत रहने के बाद वह बोली, “गांव में सब मुझे गंदी लड़की समझते हैं। बोलते हैं कि मेरी ही गलती है तभी मेरे साथ ऐसा हुआ है। वो लोग (आरोपी) पहले मुझे और मम्मी को खूब मारे, फिर घर में आग लगा दी। मेरे बेटे को और मेरी छोटी बहन दोनों को आग में फेक दिए। गांव में कोई हमें बचाने भी नहीं आया।” जिस दिन घर में आग लगाई थी, इस लड़की को आरोपितों ने बहुत पीटा था जिस वजह से वह डर गई थी।
सहेलियों से कब से नहीं मिली? यह पूछने पर वो बोली, “मुझ पर सब हंसते हैं। इसलिए हम किसी से बात नहीं करना चाहते। सब मेरा मजाक बनाते हैं। गलत सोचते हैं। गांव वाले बोलते हैं इसे मार डालो नहीं तो दूसरी लड़कियों पर गलत असर पड़ेगा।“
गांव का रुख
क्या गांव वाले सच में ऐसा बोलते हैं? यह जानने के लिए हमने गांव की कुछ महिलाओं और पुरुषों से बात की। हमने यह समझने की कोशिश कि जब किसी गरीब दलित परिवार में जन्मी बच्ची के साथ रेप या गैंगरेप जैसी घटना होती है तो समाज और दूसरी जातियों का रवैया कैसा होता है?
नुक्कड़ पर खड़ी एक महिला ने अपना नाम नहीं बताया। वह बहुत गुस्से और तेज आवाज में बोली, “ये लोग ठीक नहीं हैं। पैसों के लिए दूसरों पर झूठा आरोप लगा देते हैं। गांव में और किसी लड़की के साथ तो ऐसा नहीं हुआ। जब देखो तब एफआइआर दर्ज करवाते रहते हैं। इनका खर्चा ऐसे ही चलता है।“
गैंगरेप में शामिल पांचों आरोपित गांव के ही हैं। मैं इनसे बात ही कर रही थी कि एक महिला एक एप्लिकेशन लेकर आ गई। यह आरोपी रंजीत की मां थी। इन्होंने मुझे कागज पकड़ाते हुए कहा, ‘’पढ़ लीजिए। पूरे गांव के लोगों ने इसमें साइन किए हैं कि ये लोग हमारे बच्चों को गलत फंसाए हैं। ये हमारी जमीन पर कब्जा करना चाहते थे। हमने मना कर दिया तो हमारे लड़के को फंसा दिया।“
आरोपियों के परिजनों ने कुछ आवेदन दिखाए जो उन्होंने जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक को सौंपे थे। मुख्य आरोपी सतीश की पत्नी ने बताया, “मेरी छह साल की बच्ची है। उन्हें झूठे आरोप में फंसाया गया है। मैं अपनी बेटी को कैसे खिलाऊं-पिलाऊं। खर्चा कैसे चलेगा। रेप वाले मामले में जब फंसाया था तब एक साल तक जेल में रहे। छूटकर आए तब आग वाली घटना हो गई। आग लड़की के बाबा और चाचा ने पारिवारिक जमीनी विवाद की वजह से लगाई थी, लेकिन हमारे पति को झूठे फंसा दिया गया।“
इस मामले में पहली एफआइआर 14 फरवरी 2022 को दर्ज हुई थी। 17 अप्रैल को आग लगाने वाले मामले में दूसरी एफआइआर 17 अप्रैल 2023 को हुई थी, जिसमें आइपीसी की धारा 147, 323, 436 के तहत केस दर्ज हुआ और सात लोगों को नामजद किया गया। तीसरी एफआइआर सबसे पहली घटना 31 दिसंबर 2021 से जुड़ी थी जो 2 मई 2023 को दर्ज कराई गई। इसमें आइपीसी की धारा 376डी, 506, 34, 3, 4, 3(2)(v) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया जिसमें रमेश, सुखदीन, अरुण, रंजीत और सतीश की नामजद रिपोर्ट दर्ज हुई। चौथी एफआइआर बच्ची की मां और भाई के साथ मारपीट की है।
बच्ची का केस लड़ रहे वकील संजीव त्रिवेदी बताते हैं, “इस मामले में पुलिस ने पीड़ित परिवार को पहले दिन से ही सपोर्ट नहीं किया। अगर पुलिस सपोर्ट करती तो अब तक परिवार को आरोपी इस तरह सताते नहीं। अभी उनकी छोटी बेटी की हत्या कर दी गई। छोटे से गड्ढे में बच्ची डूबकर कैसे मर सकती है?’’
उन्होंने कहा, “ज्यादातर आरोपित बेल पर छूट गए हैं। मुआवजा राशि अभी तक नहीं मिली। 17 अप्रैल 2023 को बच्ची द्वारा जन्मे बच्चे को मारने की कोशिश की गई ताकि केस को खत्म किया जा सके। जब पहली बार 31 दिसम्बर 2021 को घटना हुई थी अगर पुलिस उसी वक़्त एफआइआर दर्ज कर लेती तो आरोपितों की इतनी बड़ी घटना को अंजाम देने की हिम्मत ही नहीं पड़ती।“
त्रिवेदी का आरोप है कि जब पहली बार बच्ची के साथ गैंगरेप हुआ था वह तभी प्रेग्नेंट हो गई थी। जब 13 फरवरी को दोबारा गैंगरेप हुआ और 14 फरवरी 2022 को एफआइआर दर्ज हुई तब उसका मेडिकल कराया गया। पुलिस ने उस वक्त बच्ची के घरवालों को बताया ही नहीं कि वह प्रेग्नेंट है जबकि बच्ची छह हफ्ते की गर्भवती थी। परिजनों को जब बच्ची का पेट बढ़ता दिखा तब वे उसे अस्पताल ले गए। उन्हें अप्रैल में पता चला कि बच्ची प्रेग्नेंट है, तब तक बहुत देर हो चुकी थी इस वजह से बच्ची का गर्भपात नहीं हो सका।
पिता कहते हैं, “अगर पहली बार ही हमारी बात सुन ली जाती तो आज यह हालत नहीं होती। जब से घर जला है तब से और डर रहता है। बाउंड्री बनी नहीं है। बच्चे जब से जले हैं तब से तारीख पर नहीं जा पाया।‘’
चुनाव में दलित
जब किसी दलित के साथ रेप या गैंगरेप जैसी घटना सामने आती है तो पुलिस का रवैया इतना शिथिल क्यों पड़ जाता है? इस सवाल के जवाब में उत्तर प्रदेश के पूर्व आइजी एसआर दारापुरी कहते हैं, “आप यूपी का कोई भी मामला ले लीजिए। अगर दलित के साथ घटना घटी है तो पुलिस की प्रमुखता में उनकी शिकायत दर्ज करना है ही नहीं। उनकी पहली कोशिश यही रहती है कि कैसे भी करके मामला टाला जाए। इसी वजह से दलितों के साथ इस तरह की घटनाएं ज्यादा होती हैं। नेताओं के लिए इस तरह के मुद्दे चुनावी मुद्दे हैं ही नहीं।“
उन्नाव में रहने वाले पत्रकार सुमित यादव इसकी पुष्टि करते हैं, “पूरे चुनाव प्रचार के दौरान किसी भी प्रत्याशी या पार्टी द्वारा इस मामले का कहीं कोई जिक्र ही नहीं हुआ। ऐसा लगता है जैसे किसी को यह घटना याद ही नहीं है। यहां के प्रत्याशियों के लिए यह मुद्दा प्रमुखता में है ही नहीं। बात सिर्फ बिजली, पानी, सड़क की ही होती है।“
कांग्रेस पार्टी ने मतदान से ठीक पहले वाली शाम प्रेस कॉन्फ्रेंस कर के हाथरस से लेकर उन्नाव और कैसरगंज तक महिलाओं के खिलाफ हुए उत्पीड़न पर अपनी बात रखी और इन घटनाओं को चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश की, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
दारापुरी कहते हैं, “अगर सच में दलितों के साथ होने वाले अन्याय को खत्म करना है तो एससी एसटी की जो नियमावली बनी है उसके तहत एससी एसटी कोर्ट डिक्लेयर की जाए और उसे एक्सकलूसिव बनाया जाए क्योंकि अपने यहां ट्रायल की प्रक्रिया बहुत स्लो है।“
विडम्बना यह है कि उन्नाव में दलित वोटों के लिए अबकी बहुत मारामारी है, इसके बावजूद बीते वर्षों में दलितों के साथ हुए बलात्कार कांडों का कहीं कोई जिक्र नहीं आ रहा। उन्नाव लोकसभा में दलित आबादी 30 प्रतिशत से ज्यादा है। इसके अलावा यहां लोध जाति बड़ी संख्या में है, जिससे भाजपा के साक्षी महाराज खुद आते हैं। इस लोकसभा की करीब 83 प्रतिशत आबादी ग्रामीण है।
साक्षी महाराज ने कभी यहां नारा दिया था, ‘’ढाई लाख लोधी, बाकी सारे मोदी’’। लोध (ओबीसी) वोट तो परंपरागत रूप से भाजपा का रहा है लेकिन इस बार माना जा रहा है कि दलित वोट इंडिया गठबंधन को जा रहा है, जिसकी ओर से सपा के टिकट पर अन्नु टंडन मैदान में हैं। बसपा ने अशोक पांडे को उतारा है लेकिन बसपा का वोटर इस बार गठबंधन की तरफ झुका हुआ है।
चुनावी घमासान के बीच लाल खेड़ा की 13 साल की दलित मां को पूछने वाला कोई नहीं। दलित और लोधी तो उसके अपराधी ही हैं, खुद उसके पूरे गांव ने मिलकर उसे अकेला छोड़ दिया है।
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