पश्चिम बंगाल के नदिया जिले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक प्रचारक हुआ करते थे- वैसे ही जैसे देश भर में संघ के लाखों अनाम प्रचारक होते हैं। पहली बार जब उन्हें देश ने जाना, तब न तो उनका नाम किसी को पता था, न ही असली चेहरा। जब देश को उस शख्स के बारे में पता चला, तब तक वो जा चुका था।
कहानी लोकसभा चुनाव 2019 की है। उस दौरान भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे दिलीप घोष ने राणाघाट के प्रत्याशी के प्रचार की एक फोटो अपने ट्वीट में लगाई थी। उसमें एक गाड़ी के ऊपर बैठे हुए एक सज्जन गदाधारी हनुमान के वेश में थे। हनुमान के इस वेश ने एक अनाम आदमी को अचानक मीडिया में लोकप्रिय बना दिया था क्योंकि कुछ लोगों ने एक गलत खबर चला दी थी कि हनुमान के वेश वाला आदमी ही भाजपा का प्रत्याशी है। ऐसा नहीं था। फैक्ट चेक करने वालों ने इतने संदर्भ दिए कि बंगाल में भाजपा का हनुमान लोकप्रिय हो गया, फिर भी उसकी पहचान कोई नहीं जान सका।
ऐसे ही तमाम अनाम लोग कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में हनुमान बन के झूम रहे हैं। पूरा चुनाव हनुमानमय हो चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कर्नाटक यात्रा के दौरान शुक्रवार को बंगलुरु में उनके रोडशो में गदाधारी हनुमान की भीमकाय छवि वाला एक व्यक्ति आकर्षण का केंद्र बना। मोदी के रोड शो में भारतीय जनता पार्टी के कई कार्यकर्ता हनुमान और दूसरे चरित्रों की तरह सज-धज कर नाचते हुए दिखाई दिए। भाजपा नेताओं ने इससे एक दिन पहले ही पूरे राज्य में हनुमान चालीसा पढ़ने का एक अभियान चलाया था।
ऐसा लग सकता है कि कर्नाटक के चुनाव प्रचार के केंद्र में हनुमान का आ जाना कांग्रेस का सेल्फ गोल है या गलती है, लेकिन यह बात पूरी तरह सही नहीं है। आज से पांच साल पहले जब मंगलुरु के रहने वाले करन आचार्य नाम के एक कलाकार ने नाराज हनुमान की अर्ध-केसरिया तस्वीर बनाई थी, तो 5 मई 2018 को स्थानीय नेहरू मैदान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी कला की तारीफ में कसीदे काढ़े थे और कांग्रेस पार्टी को सीधे निशाने पर लिया था। कर्नाटक की चुनावी राजनीति में बजरंग बली का औपचारिक प्रवेश तभी हो गया था।
करन आचार्य की बनाई वह तस्वीर आज मोबाइल फोन के वॉलपेपरों से लेकर सड़क पर दौड़ रही हर अगली कार के पिछले शीशे पर रंगी दिख जाएगी। इस तस्वीर ने बंगाल को भी 2019 में नहीं छोड़ा था। वहां भी नाराज हनुमान की तस्वीरों का पर्याप्त इस्तेमाल चुनाव में भाजपा ने किया था, लेकिन बंगाल के मिजाज से उलट वैसे हनुमान के लिए एक बाहुबली भीमकाय नाराज आदमी को खोज पाना मुश्किल था। भाजपा को वैसे भी बंगाल के सामाजिक मिजाज से तालमेल बैठाने में काफी दिक्कत आ रही थी। बंगाल की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का भाजपा में अज्ञान ऐसा गहरा था कि विधानसभा 2021 के चुनाव में बंगाल भाजपा के हिंदीभाषी नेता किसी मृत शख्सियत के नाम पर कार्यक्रम करने के लिए न्योता देने के चक्कर में पकड़े गए थे। ऐसी घटनाएं कोलकाता में आम थीं।
लिहाजा, 2019 में लोकसभा चुनाव के दौरान बहुत सोच समझ कर नदिया से एक आरएसएस प्रचारक को हनुमान बनाया गया। उसकी खूबी यह थी कि वह जात्रा करता था। बंगाल में जात्रा एक लोकप्रिय नाट्य शैली है जो आजकल विलुप्ति के कगार पर है। यह गोल मटोल ठिगना आदमी लोगों की आंखों में तुरंत उतर गया। रंगरोगन के पीछे छुपे चेहरे से इसने मतदाताओं का खूब मनोरंजन किया।
चुनाव आया, गया, हुगली में बहुत पानी बह गया और लोग हनुमान को भूल गए। चुनाव नतीजों के पांच माह बाद अक्टूबर में भाजपा के बंगाली हनुमान की खुदकुशी की खबर आई। तब जाकर इस व्यक्ति का नाम पता चला- निभास सरकार। एक सुबह निभास बाथरूम गए। बाहर आए तो उनके हाथ में एक शीशी थी। उन्होंने अपने भाई को बताया कि वे जिंदगी से तंग आ चुके हैं और उन्होंने जहर खा लिया है। इसके बाद वे चल बसे।
निभास की खुदकुशी पर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता मोहम्मद सलीम ने एक ट्वीट किया था। उसमें बताया गया था कि निभास सरकार अपनी पहचान को लेकर परेशान थे और एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर) के चलते उन्होंने खुदकशी की। मो. सलीम ने एनआरसी के चलते खुदकशी करने वालों की संख्या 20 लिखी थी। बाद में इसका दिलीप घोष से लेकर राणाघाट के भाजपा प्रत्याशी जगन्नाथ सरकार तक ने खंडन किया।
एनआरसी के चलते निभास की खुदकशी का खंडन करने के लिए मीडिया में उनकी जानकारी को खोद कर बाहर लाया गया। ज्यादातर जगहों पर छापा गया कि निभास सरकार पश्चिम बंगाल के राणाघाट के रहने वाले थे, लेकिन अपने परिवार के साथ राजस्थान के उदयपुर में अपने बेटे के साथ शिफ्ट हो गए थे। फिर, उनके भाई प्रलब सरकार का भी एक बयान आ गया कि ऐसा कुछ नहीं है, निभास अपनी जिंदगी से दुखी थे इसलिए उन्होंने आत्महत्या कर ली। कुछ जगहों पर उनकी खुदकशी का कारण पारिवारिक विवाद भी रिपोर्ट किया गया था।
भाजपा के बंगाली हनुमान निभास सरकार, जो मई 2019 में हंसी-खुशी चुनाव प्रचार कर रहे थे, पांच महीने में ऐसे किस दुख से घिर गए कि उन्हें जान देनी पड़ गई? जबकि जिस पार्टी का उन्होंने प्रचार किया, उसकी केंद्र में सरकार भी बन गई थी?
कर्नाटक के चुनाव के दौरान बंगाल की कहानी को याद करने का क्या मतलब हो सकता है? दोनों जगहों के बीच एक बुनियादी फर्क दिखता है- कर्नाटक में हनुमान बने किरदारों का रूप-रंग बंगाल के जात्रा कलाकार निभास जैसा प्रफुल्लित नहीं है। वे आक्रोशित हैं, रौद्र रूप में हैं, जैसा करन आचार्य के बनाए आधुनिक हनुमान हैं। दोनों के बीच हालांकि एक समानता भी है, जो उस तरह से दिखती नहीं है- इन सारे हनुमानों का राम एक ही है।