प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में जो परियोजना बाइस साल पहले शुरू हुई थी, उसके लिए आज पहली बार किसानों पर लाठी चली है। मामला रोहनिया के मोहनसराय का है, जहां ट्रांसपोर्ट नगर और आवासीय परियोजना के लिए जमीन अधिग्रहण प्रक्रिया को 2001 में ही मंजूरी दे दी गई थी लेकिन किसानों द्वारा 2013 के भू-अधिग्रहण कानून के हिसाब से मुआवजे की मांग को लेकर मामला अटका हुआ था। मंगलवार सुबह यहां सीमांकन और जमीन कब्जा करने के लिए पुलिस गई थी। ग्रामीणों के साथ पुलिस की जबरदस्त झड़प हुई है।
सूचना के मुताबिक वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) की एक टीम करनाडाढ़ी गांव में जमीन का सीमांकन करने के लिए राजस्व अधिकारियों और पुलिसबल लेकर पहुंची थी। वहां ग्रामीणों के विरोध के बाद भारी लाठीचार्ज की खबर है। कई ग्रामीणों को हिरासत में लिया गया है। कुछ ग्रामीण घायल भी हुए हैं। ग्रामीणों की पत्थरबाजी में पुलिस को चोट लगने की बात भी सामने आ रही है। पिछले दो दशक के दौरान यह परियोजना विभिन्न कारणों से उठती गिरती रही है लेकिन पहली बार यहां ऐसी हिंसा हुई है।
ट्रांसपोर्ट नगर परियोजना पिछली बार जनवरी में सुर्खियों में आई थी जब वाराणसी विकास प्राधिकरण ने जमीन खाली करने का आदेश किसानों को दिया था। बनारस शहर से कोई पंद्रह किलोमीटर दूर स्थित इस परियोजना के सबसे ज्यादा प्रभावित लोग बैरवन गांव के हैं जिनकी संख्या 6000 के आसपास है। यह गांव लंबे समय से अलग-अलग परियोजनाओं की चपेट में आता रहा है। रेलवे लाइन बिछाए जाने से लेकर नेशनल हाइवे और नहर बनाए जाने तक इसी गांव की जमीन ली गई। ट्रांसपोर्ट नगर योजना के लिए जितनी जमीन अभी ली जानी है उसमें से 80 फीसदी बैरवन गांव की है। इन जमीनों के मालिक औसतन दो चार बिस्वा वाले छोटे किसान हैं।
सन 2001 में बैरवन, मिल्कीचक, करनाडाढ़ी और सरायमोहना नामक चार गांवों की 82 हेक्टेयर से ज्यादा जमीनों का अधिग्रहण शुरू हुआ था। इसकी जद में करीब 1200 किसान आ रहे थे। इनमें 771 किसानों को करीब 35 करोड़ का मुआवजा बांटा जा चुका है। इन किसानों की जमीनों पर 2003 में ही वीडीए का नाम दाखिल हो चुका था। कुल 413 किसानों ने अब तक जमीन का मुआवजा नहीं लिया है।
बीस साल पहले की व्यवस्था यह थी कि दो करोड़ रुपये से ऊपर की किसाी परियोजना के लिए जमीन राजस्व बोर्ड की मंजूरी से मिला करती थी। इसी के मद्देनजर 2008 में राजस्व बोर्ड को ट्रांसपोर्ट नगर का प्रस्ताव भेजा गया था। उसी साल राज्य सरकार ने भूमि अधिग्रहण के मानकों में संशोधन कर दिया जिसके तहत अब 10 करोड़ रुपये तक की परियोजना के लिए जमीन को मंजूरी देने का अधिकार प्रखण्ड आयुक्त के पास आ गया। लिहाजा यह मामला आयुक्त के पास चला गया।
इसके बावजूद परियोजना के लिए जमीन नहीं मिल सकी क्योंकि किसानों ने दावा कर दिया कि उन्हें पुरानी दरों के हिसाब से मुआवजा मिला है। इसके बाद 2009 में यह तय हुआ कि जिलाधिकारी अपने स्तर पर जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया चलाएं और यदि यह संभव न हो पाए तो मामला राज्य सरकार को भेजा जाए। आयुक्त के आदेश पर जिले के अफसर भारी पुलिसबल के साथ 2009 में मोहन सराय जमीन कब्जाने गए थे। किसानों के भारी विरोध के चलते वे बैरंग लौट आए थे। उस वक्त प्रशासन ने कहा था कि बचे हुए 400 किसानों में से 104 किसानों ने मुआवजा ले लिया है।
2009 के बाद से मामला काफी लंबे समय तक शांत रहा। बचे हुए किसानों में से बैरवन के 267 किसानों ने उच्च न्यायालय में 2011 में एक याचिका दायर कर दी। फिर 2013 में नया पुनर्वास कानून आया। उसके बाद किसान नई दर से चार गुना मुआवजे की मांग करने लगे। चूंकि पुरानी दर पर 45 हेक्टेयर जमीन अर्जित की जा चुकी थी तो प्रशासन इस मसले पर फंस गया। इस मामले में बनारस की ही रिंग रोड परियोजना एक नजीर है क्योंकि उसमें पुरानी दर को दरकिनार कर के नई दर पर जमीन ली गई थी। संयोग यह है कि बनारस में ट्रांसपोर्ट नगर और रिंग रोड की परियोजना एक ही समय में बनी थी।
बीती जनवरी में जब आयुक्त और जिलाधिकारी ने नए सिरे से परियोजना के लिए जमीन कब्जाने का आदेश जारी किया, तब जाकर किसान फिर से सक्रिय हुए। कचहरी पर इन किसानों ने आंबेडकर की प्रतिमा के सामने एक किसान अदालत लगाई। यहां किसानों की ओर से यह जानकारी सामने आई कि वाराणसी विकास प्राधिकरण कागजात में 17 अप्रैल 2003 से ही बैरवन की जमीनों पर अपना कब्जा दिखा रहा है, जबकि मौके पर स्थिति यह है कि बैरवन में बाकायदा खेती हो रही है। भूमि अर्जन एवं पुनर्वास कानून 2013 के खण्ड 24, धारा 5(1) और सेक्शन 101 के अनुसार अगर पांच बरस में कोई योजना विकसित होकर चालू नहीं होती है तो अपने आप निरस्त मानी जाएगी। इस लिहाज से कहा जा सकता है कि यह स्थिति पुनर्वास कानून 2013 का खुला उल्लंघन है।
न्यूजक्लिक पर जनवरी में छपी एक विस्तृत रिपोर्ट कहती है कि भूमि अर्जन एवं पुनर्वास कानून 2013 के आधार पर मोहनसराय ट्रांसपोर्ट नगर योजना को रद्द कर किसानों की जमीन छोड़ने और डिनोटिफाई करने के लिए 26 जुलाई 2021 को वाराणसी के कलेक्टर ने राजस्व परिषद के निदेशक को अपनी संस्तुति भेजी थी। भूमि अधिग्रहण एवं पुनर्वास कानून 2013 की धारा 91(1) के तहत ट्रांसपोर्ट नगर योजना निरस्त करने के लिए शासन स्तर पर डिनोटिफाई की प्रक्रिया चल ही रही थी, कि इसी बीच प्रशासन ने दोबारा ट्रांसपोर्ट नगर बसाने के लिए फरमान जारी कर दिया।
ताजा घटनाक्रम में विरोधरत किसानों ने किसान संघर्ष समिति के बैनर तले हाइवे पर मंगलवार को किसान पंचायत बुलाने का फैसला किया था। इसी सिलसिले में चार प्रभावित गांवों के लोग सुबह मोहनसराय हाइवे पर जुटे हुए थे। सीमांकन करने गए वीडीए और राजस्व अधिकारियों के साथ ग्रामीणों की बहस हुई। किसान सीमांकन रोकने की मांग कर रहे थे। इसके बाद किसानों की ओर से पत्थरबाजी और पुलिस द्वारा लाठीचार्ज हुआ।