इस साल 50 से ज्यादा देशों में हो रहे राष्ट्रीय चुनावों के दौरान दुष्प्रचार का प्रसार एक चुनौती बन चुका है। Fake News, Paid News, Morphed News, Embedded News आदि की शक्ल में आने वाली झूठी खबरों ने असली खबरों पर ग्रहण लगा दिया है। भारत के आम चुनावों में भी यह बात सही है।
गुमराह करने वाली खबर परोसने का मकसद एक ऐसी वास्तविकता का निर्माण करना होता है जो सत्य से परे हो। सत्तारूढ़ दलों द्वारा अफवाहों की बुआई और कटाई कोई नई बात नहीं है। चुनाव के दौरान तो ‘फर्जी खबर’ और ‘दुष्प्रचार’ अपना वर्चस्व दिखाता ही है। संसदीय चुनाव में खड़े उम्मीदवारों से बातचीत इस समस्या के अनकहे पहलुओं और जमीनी हकीकत को पेश करती है।
फॉलो-अप स्टोरीज ने आम चुनाव में बिहार से खड़े कुछ उम्मीदवारों से इस संदर्भ में सीधे सवाल पूछ कर उनकी राय जानने की कोशिश की है कि फर्जी खबर से उनके चुनाव प्रचार अभियान पर क्या असर पड़ा है। बेगुसराय से अवधेश राय, उजियारपुर लोकसभा से आलोक मेहता और काराकाट लोकसभा से राजाराम सिंह के साथ हुई बातचीत दिखाती है कि विपक्षी गठबंधन के ये तीनों प्रत्याशी फर्जी खबरों को किस तरह समझते हैं और उसका मुकाबला कैसे करते हैं।
चुनाव आयोग की पहल
दुष्प्रचार वह झूठी सूचना है जो जानबूझकर बोली, लिखी और प्रसारित की जाती है। कैम्ब्रिज डिक्शनरी “फेक न्यूज” (फर्जी खबर) को ऐसे परिभाषित करती है: “ऐसी झूठी कहानियां जो समाचार प्रतीत होती हैं, जो इंटरनेट पर या अन्य मीडिया का उपयोग करके फैलाई जाती हैं, और आमतौर पर राजनीतिक विचारों को प्रभावित करने के लिए या मजाक के रूप में बनाई जाती हैं”।
अधिकांश ‘फर्जी समाचार’ कानून और स्वतंत्र प्रेस की सुरक्षा को कम करते हैं और जनता की कई तथ्यों तक खुली पहुंच को जोखिम में डालते हैं। भारतीय प्रेस परिषद ने फर्जी खबरों के प्रसारण के कुछ मामलों पर “दंडात्मक कार्रवाई” की है।
भारत के चुनाव आयोग ने “मिथक बनाम वास्तविकता रजिस्टर” प्रकाशित कर के डिजिटल युग में गलत सूचना और फर्जी खबरों के प्रसार से निपटने और चुनावी प्रक्रिया की अखंडता को सुनिश्चित करने की दिशा में कदम उठाया है। आयोग के अनुसार यह रजिस्टर भारत में चुनावों से संबंधित खारिज की गई फर्जी खबरों के भंडार के रूप में कार्य करता है, जो चुनाव अवधि के दौरान प्रसारित होने वाली चुनावी प्रक्रिया के बारे में जानकारी की प्रामाणिकता को सत्यापित करने के लिए एक विश्वसनीय संसाधन प्रदान करता है।
इस रजिस्टर का उद्देश्य चुनावों के दौरान पारदर्शिता, सटीकता और जिम्मेदार संचार को बढ़ावा देना है। यह आम जनता और मीडिया संगठनों दोनों के लिए सत्यापित जानकारी तक पहुंचने और मतदाताओं को गुमराह करने वाले झूठे अफसानों का मुकाबला करने के लिए एक मूल्यवान उपकरण के रूप में कार्य करता है।
खारिज की गई फर्जी खबरों के उदाहरणों का दस्तावेजीकरण और सूचीकरण करके रजिस्टर एक संदर्भ मार्गदर्शिका के रूप में कार्य करता है, जो नागरिकों को सूचित निर्णय लेने के लिए सशक्त बनाता है। विभिन्न मीडिया प्लेटफार्मों पर प्रसारित विभिन्न दावों की प्रामाणिकता का विश्लेषण और सत्यापन करने के बाद आयोग द्वारा रजिस्टर को समय-समय पर अपडेट किया जाता हैं।
यह मिथक बनाम वास्तविकता रजिस्टर कितना कारगर है वह 2024 के संसदीय चुनाव के दौरान उजागर हो चुका है। ‘फर्जी खबर’ और ‘दुष्प्रचार’ के वर्चस्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता हैं कि संयुक्त राष्ट्र की संस्था युनेस्को को 2022 में पत्रकारिता, ‘फर्जी खबर’ और दुष्प्रचार की शिक्षा और प्रशिक्षण के लिए 127 पन्नों की एक पुस्तिका का प्रकाशन करना पड़ा।
युनेस्को की पुस्तिका से पहले ग्लोबल इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म नेटवर्क की वैश्विक कॉन्फ़्रेन्स 2021 में एक कार्यशाला हुई। इस कार्यशाला में बताया गया कि अधिकतर दुष्प्रचार अभियानों में ‘गलत संदर्भ‘ का उपयोग होता है। किसी तथ्यात्मक बयान या वास्तविक उद्धरण को उसके मूल अर्थ से अलग कर दिया जाता है। कई मामलों में गुमराह करने के लिए उसे फिर से गलत रूप में तैयार किया जाता है। इसलिए गलत सूचनाओं या दुष्प्रचार की जांच के दौरान उस संदर्भ का खयाल रखना जरूरी होता है।
यह भी चिह्नित किया गया कि दुष्प्रचार अभियान अकसर रणनीतिक रूप से शुरू किए जाते हैं। ऐसे अभियानों के कई चरण होते हैं। कहीं इसकी योजना बनाई जाती है, तो कहीं उसे सोशल मीडिया पर फैलाया जाता है। इस सबंध में जो कानून हैं वे अस्पष्ट हैं।
कानूनी उपाय
दुष्प्रचार से जुड़ी घटनाओं के व्यापक पहलू- मानहानि, समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने से लेकर हिंसा को भड़काने के मामले भारतीय दंड संहिता और इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी कानून, 2000 के तहत आते हैं। फर्जी खबरों पर लगाम के लिए कानूनी व तकनीकी क्षमता की कमी है। सरकार और सत्तारूढ़ दल दुष्प्रचार को रोकने के लिए इंटरनेट बंद कर देते हैं, वेबसाइट ब्लॉक कर देते हैं। फर्जी खबर’ और ‘दुष्प्रचार’ से सामाजिक, आर्थिक और मानवीय नुकसान इतना ज़्यादा होता है जिसकी भरपाई नहीं की जा सकती। इंटरनेट बंद करने से भी काफी नुकसान होता है।
सवाल यह है कि कौन तय करेगा कि कौन सी खबर या सूचना सही है या और कौन फर्जी? किस खबर या सूचना से हिंसा हो सकती है और किससे नहीं?
प्रेस सूचना ब्यूरो की तथ्य-जांच इकाई को “फर्जी समाचारों का संज्ञान लेने” के लिए स्थापित किया गया था। ऐसे कानून को सरकारें स्वतंत्र पत्रकारिता को “फर्जी समाचार” या दुष्प्रचार के रूप में लेबल करने के लिए उपयोग कर सकती हैं- और ऐसा किया भी है।
पत्रकारों की सुरक्षा करने वाली समिति के अनुसार, 2022 में दुनिया भर में जेल गए 363 पत्रकारों में से 39 को “फर्जी समाचार” या दुष्प्रचार नीति के उल्लंघन के लिए जेल में डाल दिया गया था।
गौरतलब है कि तारकुंडे स्मृति व्याख्यान में प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा था कि फर्जी खबरों के प्रसार से सच्ची जानकारी दब जाती है और गलत सूचना में लोकतांत्रिक चर्चा को कमजोर करने की ताकत होती है। फर्जी खबरों का लक्ष्य समाज के मूलभूत तत्वों यानी सत्य की स्थिरता को नष्ट करना है। प्रसार के पैमाने के आधार पर फर्जी खबरें सच्ची जानकारी को खत्म कर देती हैं, जिससे विमर्श का चरित्र सच्चाई की जगह सबसे तेज आवाज से दब जाता है।
इसलिए, दुष्प्रचार में लोकतांत्रिक चर्चा को हमेशा के लिए खराब करने की शक्ति होती है, जो स्वतंत्र विचारों के बाजार को नकली कहानियों के भारी बोझ के नीचे पतन की ओर धकेल देती है। हर दिन फर्जी अफवाहों और लक्षित दुष्प्रचार अभियानों और नैतिकता के पैरोकार बनकर की जाने वाली हिंसा से भड़की सांप्रदायिकता की घटनाएं देखने को मिलती हैं। फर्जी खबरों के प्रसार से चुनाव और नागरिक समाज कलंकित हुआ है। इंटरनेट पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमाओं पर पुनर्विचार करने के लिए इसने हमें मजबूर किया है।
‘फर्जी खबर’ और दुष्प्रचार का पर्दाफाश करना एक चुनौती है। झूठी और भ्रामक जानकारी, फर्जी खबरों और गलत सूचनाओं की पहचान की जा सकती है। इससे बचने के लिए स्रोत की जांच करें। विश्वसनीय समाचार मीडिया संगठनों की जांच करें। छवियों को सत्यापित करें और तथ्य-जांच करने वाली वेबसाइटों पर भरोसा करें तथा संदिग्ध पोस्ट दोबारा शेयर करने से पहले उनकी जांच कर लें।
सभी वीडियो साक्षात्कार चुनाव प्रचार के दौरान लेखक द्वारा किए गए हैं