Democracy

Bulldozer Politics

बीता आम चुनाव क्या हिंदुत्‍व के बुलडोजर की राह में महज एक ठोकर था?

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आम चुनाव के नतीजों के बाद राजनीतिक पंडितों ने दावा किया था कि ‘कमजोर’ हो चुके मोदी को अब भाजपा की वर्चस्‍ववादी राजनीति में नरमी लाने को बाध्‍य होना पड़ेगा। तात्‍कालिक विश्‍लेषण की शक्‍ल में जाहिर यह सदिच्‍छापूर्ण सोच आज बुलडोजर के पैदा किए राष्‍ट्रीय मलबे में कहीं दबी पड़ी है। भारत में कुछ भी नहीं बदला है। हां, तीसरी बार सत्‍ता में आए मोदी को ऐसे विश्‍लेषणों ने एक प्रच्‍छन्‍न वैधता जरूर दे दी, कि यहां लोकतंत्र अभी बच रहा है। प्रोजेक्‍ट सिंडिकेट के सौजन्‍य से देबासीश रॉय चौधरी का लेख

Symbol of BJP painted on childran's face

अमेरिका से लेकर भारत तक अपने नेता के साये में जॉम्बी बनते राजनीतिक दल

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अपनी राजनीतिक पार्टी की मशीनरी को पूरी तरह हाइजैक कर लेना तानाशाहों में तब्‍दील हो रहे तमाम लोकप्रिय नेताओं का शगल बन चुका है। डोनाल्‍ड ट्रम्‍प अकेले ऐसे दक्षिणपंथी नेता नहीं हैं जिन्‍होंने अपनी पार्टी को अपनी मनमर्जी के अधीन कर डाला है। हंगरी, नीदरलैंड्स, फ्रांस से लेकर भारत तक सूची लंबी है। इतिहास गवाह है कि देश में निरंकुश शासन लगाने की ओर पहला तार्किक कदम पार्टी का आंतरिक लोकतंत्र खत्‍म कर के उसे तानाशाही में बदलना होता है। राजनीतिक दर्शन के विद्वान यान-वर्नर म्‍यूलर की टिप्‍पणी

भारत में धनकुबेरों का फैलता राज और बढ़ती गैर-बराबरी: पिछले दस साल का हिसाब

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प्रतिष्ठित अर्थशास्‍त्री थॉमस पिकेटी ने भारत में गैर-बराबरी और अरबपतियों के फैलते राज पर एक रिपोर्ट जारी की है। वर्ल्‍ड इनीक्वालिटी लैब से जारी इस रिपोर्ट को पिकेटी के साथ नितिन कुमार भारती, लुकास चैन्सल और अनमोल सोमंची ने मिलकर लिखा है। पिछले दस वर्षों के दौरान किस तरह भारत धनकुबेरों के तंत्र में तब्‍दील होता गया है और यहां का मध्‍यवर्ग लगभग लापता होने के कगार पर आ चुका है, उसकी एक संक्षिप्‍त तथ्‍यात्‍मक तस्‍वीर फॉलो-अप स्‍टोरीज अपने पाठकों के लिए चुन कर प्रस्‍तुत कर रहा है

लोकसभा चुनाव की निगरानी: परदा उठने से पहले एक अरब मतदाताओं के लिए बस एक सवाल

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आगामी लोकसभा चुनावों की निगरानी के लिए एक स्‍वतंत्र पैनल (आइपीएमआइई) बना है। इसकी परिकल्‍पना पूर्व प्रशासनिक अधिकारी एमजी देवसहायम ने की है। इस पैनल में लोकतंत्र, राजनीति विज्ञान, चुनाव प्रबंधन और चुनावी निगरानी तक विभिन्‍न क्षेत्रों के अंतरराष्‍ट्रीय ख्‍याति-प्राप्‍त शख्सियतें शामिल हैं। पैनल का उद्देश्‍य चुनावों पर निगाह रखना, रिपोर्ट प्रकाशित करना और चिंताएं जाहिर करना है ताकि आम चुनाव 2024 निष्‍पक्ष, स्‍वतंत्र, पारदर्शी तथा लोकतंत्र के सिद्धांतों के अनुकूल रहे जिससे भारत के नागरिकों के मताधिकार की सुरक्षा की जा सके। स्‍वतंत्र पैनल की पृष्‍ठभूमि खुद एमजी देवसहायम की कलम से

‘बुराई को रोजमर्रा की मामूली चीज बना दिया गया है और चेतावनी का वक्त जा चुका है’!

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अपने निबंध संग्रह ‘आज़ादी’ के फ्रेंच अनुवाद के लिए अरुंधति रॉय द्वारा 2023 यूरोपियन एस्से प्राइज़ फ़ॉर लाइफ़टाइम एचीवमेंट स्वीकार करते समय लौज़ान, स्विट्ज़रलैंड में दिए गए भाषण के प्रासंगिक अंश। अनुवाद रेयाज़ुल हक़ ने किया है।

नाकाम भूमि सुधार के जिम्मेदार जमींदारों की आपसी लड़ाई का नया चेहरा

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मौजूदा टकराव पाकिस्तानी शासक वर्ग के धड़ों का आपसी टकराव है जिसमें जनहित के किसी सवाल का जिक्र तक नहीं है। इस स्थिति को पाकिस्तानी सत्ता के ढांचे और उसमें फौज की भूमिका के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में समझा रहे हैं मुकेश असीम

पाकिस्तान: क्या सेना ने इस बार इमरान की ताकत भांपने में गलती कर दी है?

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1979 में जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी दिए जाने के बाद पाकिस्तान की पॉलिटिकल क्लास ने सेना के खिलाफ जाने की हिम्मत नहीं दिखाई थी। बेनजीर भुट्टो की हत्या ने सेना के खौफ को और मजबूत ही किया था, लेकिन इस बार स्थिति उलटी है