MP : तांत्रिक हो या अफसर, यहां सबके लिए है सांप के जहर में अवसर सिवाय मरने वाले के…

Speckled Cobra in a field near an agricultural worker, WHO
Speckled Cobra in a field near an agricultural worker, WHO
कभी सपेरों का देश कहे जाने वाले भारत में सांप के काटे से मरने वालों की संख्‍या पूरी दुनिया में सर्पदंश से होने वाली मौतों की आधी से ज्‍यादा है। अस्‍पतालों का टोटा, अंधविश्‍वास की व्‍याप्ति और विलुप्‍त होते देसी उपचारक समस्‍या को और गहरा कर रहे हैं। जहररोधी उपलब्‍ध करवाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका, सरकार के निर्देश, और बीते सात साल से हर 19 सितंबर को मनाए जा रहे अंतरराष्‍ट्रीय सर्पदंश जागरूकता दिवस का कोई असर नहीं पड़ रहा है। उलटे, सांप भी अब भ्रष्‍टाचार की चपेट में आ गए हैं। अपनी तरह का मौलिक सांप घोटाला देखने वाले मध्‍य प्रदेश के सागर से सतीश भारतीय की रिपोर्ट

रोज की तरह उस सुबह भी किसान मिट्ठूलाल पटेल अपने खेत पर बने मकान में पूजा-पाठ कर रहे थे। खेती का मौसम था, तो वे गांव से दो किलोमीटर दूर अपने खेतों पर ही कुछ दिनों से रह रहे थे। उस दिन भी पूजा कर के उन्‍हें खेतों में सीधे काम पर जाना था। वे पूजा कर के उठे, तो कमरे में उन्हें कुछ होने का अहसास हुआ। उस वक्‍त बिजली नहीं थी। कमरे में अंधेरा था। सो उन्होंने ध्‍यान नहीं दिया। अचानक पलंग पेटी के नीचे से एक कोबरा सांप निकल कर आया और उसने उनके पैर में काट लिया।

घटना के वक्त परिवार गांव में था। खेत पर आकर सबने पाया कि पटेल के शरीर में जहर ज्‍यादा नहीं फैला था, उनकी स्थिति ठीक थी। पटेल के बेटे राहुल पिता का पैर कपड़े से बांधकर सीहोरा गांव के हनुमान मंदिर ले गए, जहां उस इलाके के लोग सांप काटे की झाड़-फूंक करवाने आते हैं। मंदिर पहुंचते ही पुजारी ने पटेल को 21 बार मंदिर की परिक्रमा करने को कहा। मिट्ठूलाल के परिक्रमा करने के बाद पुजारी ने उनके पैर में बंधा कपड़ा निकलवा दिया और उन्‍हें एक दवा पिलाई। आराम के बजाय उनका दर्द बढ़ता ही गया।

उस घटना को याद करते हुए राहुल बताते हैं, ‘’उसके बाद हम लोग पिताजी को जिले के एक निजी अस्पताल ले जाने लगे, जो सीहोरा से 65-70 किलोमीटर दूर था। अस्पताल ले जाते वक्त रास्ते में वे बेहोश हो गए। जब तक हम सागर के भाग्योदय अस्पताल पहुंचे, तब डॉक्टर ने बताया कि पिता नहीं रहे।‘‘


Mitthulal and his hutment on farm who succumbed to snake bite due to superstition
मृतक मिट्ठूलाल और खेत पर बना उनका मकान, केवलारी कलां, केसली, सागर

मिट्ठूलाल के भतीजे नरेंद्र मानते हैं कि उनके चाचा की मौत का कारण परिवार की लापरवाही थी। राहुल के मुताबिक मंदिर की परिक्रमा और झाड़-फूंक में करीब ढाई घंटे समय बर्बाद हुआ था। जब पिता की तबीयत बहुत बिगड़ गई, तब जाकर वे समझ पाए कि उन्हें पहले ही अस्पताल ले जाना चाहिए था। जब तक समझ में आया, बहुत देर हो चुकी थी।

यह घटना मध्‍य प्रदेश के सागर जिले की केसली तहसील के केवलारी कलां गांव की है, जो जिला मुख्‍यालय से करीब 70 किलोमीटर दूर है। घटना बीते तीन सितंबर को हुई थी। ऐसी ही एक घटना इस गांव में साल भर पहले भी हो चुकी है। तब गुड्डू सोनी नाम के व्‍यक्ति को सांप ने काटा था। उनका परिवार भी झाड़-फूंक में लगा रहा और गुड्डू की जान चली गई थी।

ऐसा नहीं है कि मिट्ठूलाल को बचाया नहीं जा सकता था। ऐसा भी नहीं है कि किसी ने वहां अस्‍पताल जाने की बात नहीं की थी। खबर मिलते ही मिट्ठूलाल को गांव के कई लोग देखने  पहुंचे थे। गांव के सरकारी स्कूल के शिक्षक राजेश चढ़ार भी उनमें से एक थे। उन्‍होंने बताया, ‘’मिट्ठूलाल जी को सांप ने काटा, यह खबर सुनते ही मैं उनसे मिलने पहुंचा। तब वे सांप काटने का निशान दिखाते हुए अच्छे से बातचीत कर रहे थे। इससे स्पष्ट था कि उनका इलाज होता तो जान बच जाती। मिट्ठूलाल जी सहित उनका परिवार शिक्षित है। मेरे सहित कई लोगों ने उन्हें अस्पताल जाने की सलाह दी। फिर भी उनका परिवार उन्हें मंदिर ले गया।‘’

खुद राजेश के पिता को भी कुछ साल पहले सांप ने काटा था। मालूम चलते ही उन्‍होंने पहले तो पैर को बांध दिया, फिर सीधे अस्पताल ले गए थे। आज उनके पिता पूरी तरह स्वस्थ हैं। राजेश बताते हैं, ‘’बीते कुछ वर्षों के दौरान गांव में सर्पदंश की कई घटनाएं हुई हैं। कुछ लोगों ने अंधविश्वास और झाड़-फूंक के चलते जान गंवा दी जबकि कई समझदार लोगों ने परिजनों को अस्पताल पहुंचाकर उनकी जिंदगी बचाई है।‘’  


Rajesh Chadhar, a teacher in Kevlari Kalan village, Sagar
  • राजेश चढ़ार, शिक्षक

मामला हालांकि केवल समझदारी और पढ़े-लिखे होने का नहीं है। समस्‍या उससे बड़ी है। अजब सिंह और कुछ ग्रामीणों से बात करने पर पता चलता है कि केवलारी कलां में कोई डॉक्टर ही नहीं है। गांव में कई महीने पहले एक अस्पताल बन के तैयार हो चुका है, मगर अब तक संचालित नहीं है। मरीज सामान्य स्वास्थ्य स्थिति में गांव से 18-20 किलोमीटर दूर तहसील केसली के स्वास्थ्य केंद्र में इलाज करवाने जाते हैं। गंभीर स्वास्थ्य स्थिति में 85 किलोमीटर दूर सागर जिला चिकित्सालय जाना पड़ता है।

एक ग्रामीण अपना नाम नहीं छापने की शर्त पर बताते हैं, ‘’सर्पदंश जैसे मामलों में केसली तहसील स्तर पर भी इलाज की उपयुक्त सुविधा नहीं है। जिंदगी बचाने के लिए कुछ घंटों का वक्त होता है। ऐसे में केवलारी कलां जैसे गांव से सागर जिला चिकित्सालय 85 किलोमीटर जाना आसान नहीं होता। इसी के कारण लोग पीड़ित को झाड़-फूंक करवाने आसपास के गांव ले जाते हैं।‘’

इस साल बारिश खूब हुई, तो सांपों के काटने की घटनाएं भी बहुत हुई हैं। बारिश का मौसम शुरू होते ही सागर जिले में सांपों ने 15 दिनों में 40 लोगों को काटा। उनमें से कई लोगों की मौत हो गई। सबसे ज्यादा मौतें वहां हुई हैं जहां झाड़-फूंक में वक्‍त गंवाया गया। कुछ महीने पहले की ऐसी दो घटनाओं को हम देख सकते हैं। 

The snake that bit Mitthulal and village road leading to his house
मिट्ठूलाल को काटने वाला सांप और उनके घर का खतरनाक रास्ता

पहली घटना मई की है, जब जिले में रहली थाना के हिनौती गांव में 11 वर्षीय वैशाली अहिरवार को सांप ने काटा था। वैशाली को उनके परिजन गांव से करीब 15 किलोमीटर दूर अचलपुर गांव एक तांत्रिक के पास लेकर गए। झाड़-फूंक के बाद उन्‍हें आराम नहीं लगा। फिर वैशाली को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र रहली ले जाया गया। वहां डॉक्टर ने इलाज तो किया, लेकिन वैशाली की जान नहीं बच पाई। इसके बाद भी परिवार ने हार नहीं मानी और उसका शव अस्पताल से करीब दस किलोमीटर दूर बादीपुर गांव के एक तांत्रिक के पास ले गए। परिवार उस तांत्रिक से वैशाली को जिंदा करने की विनती करने लगा। बच्‍ची मर चुकी थी, फिर भी तांत्रिक ने झाड़-फूंक की

ऐसा ही एक मामला जुलाई में आया था। सागर जिले में मालथोंन थाना क्षेत्र के चुरारी गांव के 12 वर्षीय नीलेश आदिवासी को सांप ने काटा था। परिवार ने 12 घंटे तक नीलेश की झाड़-फूंक करवाई। नीलेश की हालत ज्‍यादा बिगड़ गई। फिर परिजन नीलेश को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले गए, लेकिन वहां के डॉक्टर नीलेश की जान नहीं बचा सके।


सर्पदंश का राष्ट्रीय प्रकोप, राज्यवार स्थिति: साभार elife

गांवों में स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाओं के अभाव के चलते स्नेकबाइट हीलिंग एण्ड एजुकेशन सोसाइटी की संस्थापक और अध्यक्ष प्रियंका कदम सर्पदंश को एक जटिल स्वास्थ्य समस्या मानती हैं। वे कहती हैं, ‘’यदि व्यक्ति कोबरा जैसे जहरीले सांपों का शिकार होता है तो उसे एंटी-वेनम इलाज मिले बगैर बचाना मुश्किल होता है।‘’

वे बताती हैं, ‘’मध्य प्रदेश में जब हमने सर्पदंश के मामलों पर अध्ययन किया तब पाया कि सांप काटने के बाद बहुत से लोगों की जान झाड़-फूंक और अंधविश्वास से चली जाती है। वहीं, कुछ लोगों की जान स्वास्‍थ्‍य केंद्र की दूरी, देरी से इलाज और कई अस्पतालों में रेफर करने के कारण चली जाती है। कई बार प्राथमिक स्तर पर इलाज की उचित व्यवस्था का न होना और डॉक्टर की कमी होने से भी सर्पदंश से पीड़ित लोग जिंदगी गंवा देते हैं।‘’

सांप काटे की समस्‍या कितनी विकराल होती जा रही है, इसे आंकड़ों से समझा जा सकता है। प्रियंका कदम की संस्‍था ने मध्य प्रदेश में सर्पदंश पर जो रिपोर्ट तैयार की है वह वर्ष 2020 से 2022 के बीच की है। यह रिपोर्ट अगस्त, 2024 में ऑक्सफोर्ड एकैडमिक में प्रकाशित हुई थी। रिपोर्ट का डेटा कहता है कि 2020 से 2022 के बीच मध्य प्रदेश में 5779 मौतें सर्पदंश से हुईं। 2020 से 2021 के बीच सबसे ज्यादा 164 मौतें सागर जिले में रिकॉर्ड की गईं। 2021-2022 के बीच प्रदेश में सर्पदंश से सबसे ज्यादा मौतें सतना जिले में 160 रिकॉर्ड की गईं।


  • प्रियंका कदम, स्नेकबाइट हीलिंग एण्ड एजुकेशन सोसाइटी
Priyanka Kadam, Snakebite Healing and Education Society

वर्ष 2024 में मध्‍य प्रदेश में सर्पदंश की घटनाएं चरम पर रहीं। 108 एम्बुलेंस द्वारा जारी रिपोर्ट में सर्पदंश की घटनाओं के आंकड़े बताते हैं कि 2024 में प्रदेश के विभिन्न जिलों की 11,302 सर्पदंश की घटनाएं 108 के कॉल सेंटर पहुंची थीं। जनसंपर्क विभाग के मुताबिक पिछले वर्ष प्रदेश में सर्पदंश से 2,500 से अधिक मौतें हुई हैं जबकि जून, 2024 तक 4933 लोगों को सांप ने काटा था। इस वर्ष भी जून तक 4205 लोगों को सांप ने काटा है। प्रदेश में सर्पदंश से सबसे ज्यादा पीड़ित लोग जून तक 311 जिला सागर में रिकॉर्ड किए गए। वर्ष 2020-21 में भी प्रदेश में 164 सर्पदंश की घटनाओ के साथ सागर अव्वल था।

प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो के अनुसार भारत में अनुमानित 30 से 40 लाख सर्पदंशों में से लगभग 50000 मौतें प्रतिवर्ष होती हैं। देश में 90 प्रतिशत सर्पदंश कॉमन क्रेट, इंडियन कोबरा, रसेल वाइपर और सॉ स्केल्ड वाइपर के कारण होते हैं। डबल्यूएचओ की एक रिपोर्ट कहती है कि 2000 से लेकर 2019 के बीच सांप के काटने से 12 लाख भारतीयों की मृत्यु हुई है। औसतन हर वर्ष 58000 लोगों ने जान गंवाई।

समस्‍या की गंभीरता और विकरालता को देखते हुए पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी‍ जिसमें सांप के काटे का इलाज करने वाले एंटी-वेनम की अनुपलब्‍धता पर सवाल खड़े किए गए थे। उस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया था कि वह राज्‍यों के साथ मिलकर ‘कुछ करे’। यही बात उसने याचिकाकर्ता से भी कही थी। क्‍या करना है, इसको लेकर कोई स्‍पष्‍ट दिशानिर्देश नहीं था।


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इतने शीर्ष स्‍तर पर समस्‍या के पहुंचने के बावजूद हालात जस के तस हैं। न अस्‍पतालों में मरीज पहुंच पा रहे हैं, न गांवों तक डॉक्‍टर। कुछ नहीं हो रहा है। ऐसे में कुछ लोग हैं जो परंपरागत तरीकों से इस स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍या से निपटने की कोशिशें अपने स्‍तर पर कर रहे हैं।

ऐसे ही एक शख्‍स हैं केवलारी कलां के किसान और सामाजिक कार्यकर्ता धनीराम गुप्ता, जो कुछ साल पहले की एक घटना का जिक्र करते हैं। वे बताते हैं, ’‘कुछ साल पहले मेरे खेत में निदायी का काम करते शख्स श्रीराम आदिवासी को सांप ने काट लिया। श्रीराम ने मुझे बताया तब मैंने तुरंत अपनी तौलिया के तीन टुकड़े किए। पहला टुकड़ा पैर की उंगली पर, दूसरा सांप के निशान से ऊपर और तीसरा टुकड़ा श्रीराम के घुटने के पास बांध दिया। इसके बाद श्रीराम को मैं सपेरा समुदाय के पास ले गया। मुझे बीच में झाड़-फूंक वाले भी मिले, पर उनकी बात मैंने नहीं सुनी।‘’

वे बताते हैं कि सपेरा समुदाय के लोगों ने अपने नुस्खे से सांप के निशान पर एक दवाई लगाकर ब्लेड से छोटा कट लगाया। उस कट से जहरीला खून बाहर निकाल गया। कुछ समय में श्रीराम ठीक हो गया। धनीराम के अनुसार श्रीराम आज स्वस्थ है और खेतीबाड़ी कर रहा है। 

सपेरों से सांप के काटे का इलाज करवाना परंपरागत तरीका है, लेकिन सपेरे भी अब गांवों से गायब होते जा रहे हैं। सागर शहर के एक स्नेक कैचर अखील बाबा से हमारी मुलाकात हुई, जो स्नेक हुक, स्नेक टॉन्ग, स्नेक नूज के जरिये सांप पकड़ते हैं। सागर में अखील बाबा सहित कई स्नेक कैचर अब भी रहते हैं। वे सांप को पकड़कर वन विभाग की मदद से उन्हें जंगल में छोड़ देते हैं। हमने सर्पदंश की घटनाओं पर उनके नजरिये को जानना चाहा।



उन्‍होंने बताया, ‘’मैं सागर शहर और ग्रामीण इलाकों में सांप पकड़ता हूं। सर्पदंश की घटनाएं तो अकसर मैं देखता और अनुभव करता हूं। कई बार ऐसा होता है कि सर्पदंश से पीड़ित व्यक्ति को देखने आने वाली परिचितों की भीड़ उसे बहुत अधिक डरा देती है। ऐसे में मरीज अधिक घबरा कर अपना मानसिक संतुलन खो देता है। इससे उसके शरीर में जहर तेजी से फैलता है और उसकी जान को खतरा बढ़ जाता है।‘’

वे हाल ही में एक घटना का जिक्र करते हैं जो सागर के देवरी विधानसभा के एक स्कूल में हुई थी। वहां की शासकीय कन्याशाला में कोबरा सांप के करीब एक दर्जन बच्चे पाए गए थे। उनमें से कुछ को मौके पर मारना पड़ा, कुछ को सपेरे पकड़कर जंगल में छोड़ आए।

झाड़-फूंक और औपचारिक स्‍वास्‍थ्‍य सेवा से इतर, सांप का जहर उतारने और उन्‍हें पकड़ने वालों की एक कामयाब कहानी तमिलनाडु के इरुला समुदाय की है। इस समुदाय की एक स्‍नेक कैचर कोऑपरेटिव सोसायटी के दो सदस्‍यों को 2023 में उनके योगदान के लिए पद्मश्री पुरस्‍कार दिया जा चुका है। देश में जो एंटी-वेनम बनाया जाता है, उसके लिए 80 फीसदी सांप का जहर इसी सोसायटी से आता है। भारत सरकार की कार्य योजना में संपेरों की सहभागिता लेने की भी बात कही गई है, लेकिन अभी तक सब कागज पर ही है।

जहां परंपरागत तरीकों की कोई जरूरत नहीं और सरकारी अस्‍पताल मौजूद हैं, मरीजों की जान वहां भी नहीं बचाई जा रही। ताजा मामला मुंबई के डोम्बिवली का है जहां एक 24 वर्षीय महिला और उसकी चार साल की भतीजी की मौत 28 सितंबर को सांप काटने के बाद इसलिए हो गई क्‍योंकि सरकारी अस्‍पताल में उन्‍हें उपयुक्‍त इलाज नहीं मिल सका।



परिजन दोनों को लेकर सरकारी अस्‍पताल में गए थे। उनका आरोप है कि सरकारी अस्‍पताल में समय पर दोनों का उपयुक्‍त इलाज नहीं किया गया। लोगों के गुस्‍से के चलते यह मामला इतना बढ़ गया कि शिव सेना (ठाकरे), मनसे, कांग्रेस और राष्‍ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ स्‍थानीय सैकड़ों लोग सड़क पर प्रदर्शन करने उतर आए। इसका असर यह हुआ कि कल्‍याण डोम्बिवली नगर निगम ने अस्‍पताल के मेडिकल अफसर को सस्‍पेंड कर दिया।        

महाराष्‍ट्र की चिकित्‍सीय लापरवाही एक ओर, मध्‍य प्रदेश में तो अफसरों ने सांप के काटे को बाकायदा घोटाले में बदल कर करोड़ों रुपये का गबन कर डाला है। राज्‍य का जनसम्पर्क विभाग कहता है कि सर्पदंश के मामलों से निपटने के लिए प्रशिक्षण व जागरूकता सहित अन्य उपाय हेतु हर जिले के लिए 23.17 लाख रुपये की राशि आवंटित की गई है। इस राशि की विडम्‍बना यह है कि हर जिले को दिया गया तकरीबन इतना ही पैसा दो साल के दौरान मुआवजे में खर्च हो चुका है। यह भारी मुआवजा अब घोटाले की खिड़की बन गया है।

मध्य प्रदेश में सर्पदंश से हुई मौत के मामले में 400000 रुपये मुआवजा राशि दी जाती है। सरकारी कागजात की मानें, तो अकेले 2020 से 2022 के बीच 5728 परिवारों को दिए गए मुआवजे की कुल रकम 22,912 लाख रुपये पहुंच चुकी थी। अब जाकर खुलासा हुआ है कि यह मुआवजा हड़पा जा रहा था जिसके लिए मौतों का फर्जीवाड़ा लंबे समय से सूबे में चल रहा था। फर्जीवाड़ा भी ऐसा, कि अकेले सिवनी जिले में एक पुरुष की 30 बार मौत हुई और एक महिला की 29 बार, और इन्‍होंने सरकारी खजाने से मुआवजे के करोड़ों रुपये अकेले हड़प लिए। यह कथित घोटाला कुल सवा ग्‍यारह करोड़ रुपये का माना जा रहा है जिसके लिए सर्पदशं से मौत का फर्जी सरकारी रिकॉर्ड बनाया गया।

सिवनी जिले की केवलारी तहसील से आए सर्पदंश के मुआवजे के मामलों की जांच जब जबलपुर के वित्त विभाग ने की, तब जाकर यह घोटाला उजागर हुआ। जो सवा ग्‍यारह करोड़ रुपये की राशि गबन की गई वह 47 लोगों के बैंक खातों में जमा पाई गई। घोटाले की पटकथा का लेखक कोई सामान्‍य व्‍यक्ति नहीं, एक सरकारी कर्मचारी सचिन दहायक निकला जिसने सारा पैसा वास्‍तविक लाभार्थियों के बजाय अपने परिवार, दोस्‍तों और जानने वालों के खातों में जमा करवाया। यह घोटाला 2018-19 से 2021-22 के बीच हुआ। ज्‍यादातर घोटाले का केंद्र केवलारी तहसील रहा जहां के रमेश नामक व्‍यक्ति को सर्पदंश से 30 बार, छवारिका बाई नामक महिला को 29 बार और राम कुमार को 28 बार मरा दिखाया गया।

घोटाले के मुख्‍य आरोपी दहायक को गिरफ्तार किया जा चुका है, लेकिन उसके छह और साथी अभी बाहर हैं। वे सभी सरकारी कर्मचारी हैं। उनमें एक सब-डिवीजनल मजिस्‍ट्रेट और चार तहसीलदार भी हैं। इन अफसरों के आधिकारिक लॉगइन और आइडी का इस्‍तेमाल कर के मुआवजे के दावे के लिए फर्जी दस्‍तावेज तैयार किए गए थे, जिनके आधार पर खजाने से ऐसे 47 लोगों के खाते में पैसा जारी हुआ जो कुल 280 बार मर चुके थे।


Snake Catcher Akhil Baba
सागर शहर के एक स्नेक कैचर अखील बाबा

सांप काटे के मुआवजे के नाम पर ऐसा अनूठा घोटाला तो फिलहाल मध्‍य प्रदेश में ही सामने आया है, वरना सर्पदंश के बाद झाड़-फूंक के चलते या चिकित्‍सीय लापरवाही और स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाओं के अभाव के कारण होने वाली मौतों का सिलसिला अब एक राष्‍ट्रीय समस्‍या बन चुका है। गूगल पर केवल ‘सर्पदंश’ से जुड़ी खबरें खोजने पर आपको यूपी के उन्‍नांव और जौनपुर से लेकर झारखंड के बोकारो तक लापरवाहियों की लंबी सूची मिल जाएगी जिससे लोग असमय मारे जा रहे हैं।

इस मामले में केरल सरकार ने ताजा पहल करते हुए सर्पदंश को जन स्वास्थ्य महत्व की समस्या घोषित किया है। सांपों के लिए उपयुक्त एंटी वेनम ड्रग्स के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए केरल ने पहल की है। केरल हाइकोर्ट ने हाल ही में राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह नवंबर 2024 में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी एक परिपत्र के अनुसार दो महीने के भीतर सर्पदंश को एक अधिसूचित रोग घोषित करे। बीते 26 सितंबर का यह आदेश 2019 में दायर दो याचिकाओं पर आया है।

केरल में बीते दस साल में 600 से अधिक मौतें सर्पदंश से हुई हैं जबकि मध्‍य प्रदेश में हर साल दो-ढाई हजार लोग सांप काटने से मर रहे हैं। यानी, मध्‍य प्रदेश पांच गुना ज्‍यादा प्रभावित राज्‍य है। शायद इसी के मद्देनजर मध्‍य प्रदेश की सरकार ने इस वर्ष की शुरुआत में ही सर्पदंश को ‘आपदा’ घोषित कर दिया था, लेकिन सरकारी अफसरों ने ‘आपदा में अवसर’ तलाश कर एक गंभीर जनस्‍वास्‍थ्‍य समस्‍या का मजाक बना दिया है।  


सभी तस्वीरें: सतीश भारतीय, आवरण चित्र साभार WHO


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