Displacement

Chutka Nuclear Plant

इनकार और इज्जत की जिंदगी पर बाजार भारी, चुटका के लोगों को दोबारा उजाड़ने की मुकम्मल तैयारी

by

परमाणु हथियारों के खिलाफ अभियान चलाने वालों को शांति का नोबेल देकर दुनिया के बड़े देश वापस परमाणु ऊर्जा की ओर लौट आए, तो भारत ने भी जन-प्रतिरोध के चलते बरसों से अटकी परियोजनाओं को निपटाने के लिए कमर कस ली। पहली बार किसी राष्‍ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को न्‍यूक्लियर प्‍लांट लगाने के काम में तैनात किया गया, और नतीजा सामने है। अपने अधिकारों, अपनी जिंदगी और अपनी आजीविका के लिए बरसों चली आदिवासियों की लड़ाई अब खत्‍म होने को है। बस दो पैसा ज्‍यादा मुआवजे का सवाल है, वरना मध्‍य प्रदेश के मंडला जिले के गांव के गांव अपना सामान फिर से बांध चुके हैं। यहां परमाणु प्‍लांट लगना है, तो लौटकर आने का सवाल ही नहीं है। संवैधानिक अधिकारों पर ऊर्जा-बाजार की जीत का चुटका प्रसंग आदित्‍य सिंह की कलम से

Manikarnika Ghat Varanasi

दस साल बनारस : क्योटो के सपने में जागता, खुली आंख हारता एक शहर…

by

‘बना रहे बनारस’- काशी के लोग न अब यह बात कहते हैं, न ही यहां कोई इसे सुनना पसंद करता है। बनारस का आदमी चौबीसों घंटे महसूस कर रहा है कि बनारस सदियों से जैसा था न तो वैसा रह गया, न आगे ही इसका कुछ बन पाएगा। दस साल से क्‍योटो देखने का सपना संजोए बनारसियों के साथ जो वीभत्‍स खेल हुआ है उसके बाद उनकी स्थिति ऐसी है कि न तो कुछ कहा ही जा रहा है, न कहे बिन रहा ही जा रहा है। फिर भी सब कह रहे हैं, जीतना नरेंद्र मोदी को ही है। बनारस का 2014 से 2024 तक का सफरनामा अभिषेक श्रीवास्‍तव की कलम से

Demand for Seperate Bundelkhand sent to PM Modi written by blood

क्या राजनीतिक दलों ने अलग बुंदेलखंड की मांग को इतिहास के कूड़ेदान में डाल दिया?

by

बसपा की मुखिया मायावती ने 14 अप्रैल को झांसी में बरसों बाद अलग बुंदेलखंड राज्‍य का मुद्दा एक बार फिर से जिंदा कर दिया। उससे पहले उन्‍होंने बुंदेलखंड की चार सीटों पर उम्‍मीदवार भी बहुत सोच-समझ कर उतारे थे। भाजपा के मौजूदा सांसदों से बुंदेली मतदाताओं का असंतोष और अलग बुंदेलखंड की ताजी हवा क्‍या उसके जातिगत समीकरण को हिलाने का माद्दा रखती है? बड़ा सवाल यह है सत्‍तर साल पुरानी अलग बुंदेलखंड राज्‍य की मांग में अब भी कुछ बचा है या उसे राजनीतिक वर्ग ने पूरी तरह भुला दिया? हमीरपुर से अमन गुप्‍ता की पड़ताल

राम घर आ रहे हैं, कौशल्या फुटपाथ पर हैं! पुरुषोत्तम और जगन्नाथ भी…

by

यह सच है कि अठारह सौ करोड़ की लागत से बन रहा राम मंदिर, तीस हजार करोड़ की लागत से हो रहा अयोध्‍या का विकास और अपेक्षित तीन लाख श्रद्धालुओं के भारी-भरकम आंकड़े से यहां के रेहड़ी-पटरी वालों और दुकानदारों का काम-धंधा बढ़ेगा। यह भी सच है कि राम मंदिर के कारण अपनी रोजी-रोटी कमा पा रहे लोग मंदिर बनने से खुश हैं। इसके बाद तीसरा सच भी कुबूल कर ही लेना चाहिए- कि हजारों लोगों से उनकी दुकानें छिन गई हैं और जब धंधा बढ़ने का मौका आया है ठीक तभी वे फुटपाथ पर डाल दिए गए हैं। अयोध्‍या से नीतू सिंह की फॉलो-अप रिपोर्ट

जाएं तो जाएं कहां?

दिल्ली दर-ब-दर: G20 के नाम पर हुई तबाही के शिकार लोग इन सर्दियों में कैसे जिंदा हैं?

by

पहली सर्दी के जख्‍म भरे भी नहीं थे कि दूसरी सर्दियां शबाब पर हैं। जिनसे बसाये जाने का वादा किया गया था, उनके सौ साल पुराने रिहाइश के कागज भी अदालतों में काम नहीं आए। दिल्‍ली के बाहरी इलाकों से सुंदरीकरण के नाम पर उजाड़े गए लाखों लोग पटरी, फुटपाथ और यमुना के खादर में तिरपाल लगाकर सो रहे हैं और चोरों के हाथों लुट रहे हैं, शीतलहर में जान गंवा रहे हैं। पिछले जाड़े में जी-20 की तैयारियों के नाम पर शुरू हुए बेदखली के तांडव के शिकार लोगों का हाल बता रही हैं सौम्‍या राज

शिवराज के सपनों का ‘अद्वैतलोक’ : जहां सत्य, शिव और सुंदर के अलावा सब कुछ है

by

हर नेता अपनी जिंदगी में कम से कम एक प्रतिमा गढ़ना चाहता है। शिवराज सिंह चौहान ने भी एक प्रतिमा गढ़ी- 108 फुट ऊंची आदि शंकराचार्य की। शिव के मस्तक में मशीनों से छेद कर के खड़ी की गई इस प्रतिमा ने संघ के कार्यकर्ताओं को फिरंट कर दिया, जंगलों को नष्ट कर दिया, पहाड़-घाटी के लोगों को उजाड़ दिया। बाढ़ और मानवीय त्रासदी के बीच लोकार्पित की गई तीन हजार करोड़ रुपये की इस परियोजना पर खंडवा के ओंकारेश्वर से लौटकर अमन गुप्ता की लंबी कहानी

G-20 के लिए लोगों को उजाड़ने के खिलाफ बोलना भी जुर्म, दिल्ली में रुकवा दिया गया We-20 सम्मेलन

by

दिल्‍ली से लेकर वृंदावन, अयोध्‍या, बनारस, ओडिशा, बंगाल यानी समूचे देश में लोगों को उजाड़ा जा रहा है। बहाना है आगामी सितंबर में होने वाला जी-20 शिखर सम्‍मेलन और उसके लिए शहरों का सुंदरीकरण। इस बेदखली, विस्‍थापन और बेघरी के खिलाफ 700 से ज्‍यादा लोग दिल्‍ली में तीन दिन बंद कमरे में विचार-विमर्श करने को जुटे थे। दिल्‍ली पुलिस ने दूसरे दिन माहौल बिगाड़ा और तीसरे दिन के सत्र को होने ही नहीं दिया। यह सम्‍मेलन आधे में ही खत्‍म हो गया।

रामलला के स्वागत से पहले उनकी अयोध्या उजड़ रही है, उनकी प्रजा उखड़ रही है…

by

राम मंदिर के उद्घाटन की तारीख आ चुकी है। आधुनिक दौर में इस देश की राजनीति को परिभाषित करने वाली तीन दशक पुरानी इकलौती घटना जनवरी के तीसरे हफ्ते में अपनी परिणति पर पहुंच जाएगी। बस, उसके उत्‍सव में अयोध्‍यावासी नहीं होंगे। वे कहीं जा चुके होंगे, यदि बचे होंगे तब। अयोध्‍या में विकास और मंदिर के नाम पर लोगों को उजाड़ने का जो भयावह खेल चल रहा है, उसकी पड़ताल कर रहे हैं वहां से लौटे गौरव गुलमोहर