लोकसभा चुनाव 2024 में पांचवें चरण के मतदान से ठीक तीन दिन पहले हमीरपुर जिले में 44 साल बाद कोई प्रधानमंत्री आया, जब नरेंद्र मोदी ने यहां की राठ तहसील में 17 मई को चुनावी जनसभा की। इससे पहले प्रधानमंत्री रहते हुए इंदिरा गांधी यहां आई थीं। मोदी ने केन-बेतवा लिंक परियोजना को बुंदेलखंड के इतिहास में एक नया अध्याय करार दिया और कहा कि बुंदेलखंड के तेज विकास के लिए वे लोगों का आशीर्वाद मांगने आए हैं। कुल बारह लाख की आबादी वाले इस जिले के 14 थानों में बीते पांच वर्षों में दर्ज महिलाओं के साथ दुष्कर्म के 100 से ज्यादा मामले और अदर्ज सैकड़ों मामले बताते हैं कि कम से कम हजार लोग तो ऐसे होंगे ही जिनका आशीर्वाद मोदी को मिलने नहीं जा रहा है।
अपने लम्बे-चौड़े भाषण में प्रधानमंत्री उन तमाम महिला विरोधी अपराधों को भूल गए जो बीते वर्षों के दौरान इस इलाके में सुर्खियां बनते रहे हैं। ठीक तीन महीने पहले दो नाबालिग दलित बच्चियों की कथित तौर पर सामूहिक बलात्कार के बाद आत्महत्या और हफ्ते भर के भीतर आरोपी द्वारा मामले में समझौते का दवाब बनाने के चलते मृतका के पिता की आत्महत्या का ध्यान भी प्रधानमंत्री को नहीं आया। या हो सकता है कि उन्होंने इसे जरूरी न समझा हो क्योंकि यूपी के चुनाव में योगी आदित्यनाथ का लॉ ऐंड ऑर्डर तो एक सकारात्मक मुद्दा है।
चाहे जो हो, मोदी ने आधी आबादी की सुरक्षा पर बात करना कतई जरूरी नहीं समझा, जबकि जनसभा से करीब 40 किलोमीटर दूर मृतकों के परिजन उनसे आस लगाए बैठे थे। हमीरपुर के रेप कांड के अलावा बीते पांच वर्षों में मेरे संज्ञान में ऐसे कई मामले हैं जिनमें बलात्कार के बाद या तो दलित लड़की आत्महत्या कर लेती है या फिर परिवार का कोई सदस्य जान दे देता हो। राठ से करीब 100 किलोमीटर दूर जालौन जिले में भी एक नाबालिग के साथ पिछले साल रेप हुआ था। पुलिस की हीलाहवाली से तंग आकर 5 जून 2023 को लड़की के पिता ने अपनी जान दे दी थी। इसी साल मार्च महीने में उस बच्ची की शादी कर दी गई।
केवल प्रधानमंत्री मोदी नहीं, चुनावी माहौल में इन घटनाओं का किसी भी पार्टी ने जिक्र नहीं किया। ऐसे में चिंता का विषय यह है कि जब लोकसभा चुनाव में ही ये अपराध मुद्दा नहीं बन पाए, तो क्या चुनाव के बाद बनने वाली नई सरकार से सूबे की आधी आबादी अपनी सुरक्षा की जवाबदेही तय कर पाएगी।
बात बुंदेलखंड के हमीरपुर से ही शुरू करते हैं जहां 20 मई को मतदान होना है। वहां से जालौन और कानपुर देहात चलेंगे। इन जगहों पर मैं होकर आई हूं और रिपोर्ट भी किया है। आज मतदान से पहले इन मामलों को एक बार फिर याद कर लेना जरूरी है, ताकि सनद रहे।
शाम के सन्नाटे में
हमीरपुर की जिन दो नाबालिग लड़कियों ने कथित तौर पर बलात्कार के बाद आत्महत्या की थी, वे दलित थीं। उनका गांव दलित बहुल है। यहां निषाद समुदाय से भी 30-35 परिवार हैं। 28 फरवरी से 6 मार्च 2024 के बीच, यानी आठ दिनों के भीतर इस गांव के तीन लोगों ने कथित तौर पर आत्महत्या की थी।
आत्महत्या करने वाली दोनों दलित बच्चियां नाबालिग चचेरी बहनें थीं (14 और 16 साल) और तीसरे शख्स उनमें से एक लड़की के पिता यानी दूसरे के चाचा थे। घरवालों का आरोप है कि बेटियां अपने परिजनों के साथ कानपुर नगर के घाटमपुर तहसील के एक ईंट भट्ठे पर मजदूरी करने गई थीं। वहीं गांव से गए ठेकेदार रामरूप के बेटे और भांजे ने इनके साथ कथित तौर पर बलात्कार किया। घटना 27 फरवरी की है। 28 फरवरी की शाम सात बजे दोनों बच्चियों ने ईंट भट्ठे से 200 मीटर की दूरी पर एक ही दुपट्टे के दो हिस्से करके उससे फांसी लगा ली।
घटना के ठीक एक महीने बाद 29 मार्च की देर शाम कच्चे और उबड़-खाबड़ रास्तों से होते हुए मैं इस गांव में पहुंची थी। यहां सड़क आज तक नहीं पहुंची है। राजधानी लखनऊ से करीब 250 किलोमीटर दूर इस गांव तक पहुंचने में मुझे करीब छह घंटे लग गए थे। वहां पहुंचने के बाद हम बहुत देर तक भटकते रहे, लेकिन हमें किसी ने मृतकों के परिवारों का पता नहीं बताया। वहां एक अजीब किस्म का सन्नाटा पसरा हुआ था। लोग हमसे बात करने के मूड में नहीं दिख रहे थे। चूंकि आरोपी और मृतक दोनों के परिवार इसी गांव के रहने वाले हैं इसलिए भी माहौल थोड़ा तनावपूर्ण था।
काफी मशक्कत के बाद हम 16 वर्षीय मृतका के दरवाजे पहुंचे, लेकिन वहां ताला लटका दिखा। एक-डेढ़ घंटे के इंतजार के बाद मृतका की मां खेत से गेहूं की कटाई करके वापस लौटी। मुझे देखते ही वह हाथ जोड़ कर बोली, “घटना के बाद से बहुत लोग आए पर पता नहीं हमारी बात ऊपर तक पहुंच भी रही है या नहीं। हम चाहते हैं जैसे मेरी बेटी और पति फांसी पर झूले हैं वैसे उन्हें (आरोपियों) भी सजा मिले। अब इनके मरने के बाद घर में कोई कोई कमाने वाला नहीं बचा। हमारे पास खेती भी नहीं है। अब कैसे गुजर-बसर होगी पता नहीं।”
परिवार ने बटाई पर खेत लिए हैं। उसी में लड़की की मां, दादा, दादी, सब मजदूरी करते हैं। मृतका चार बहनें और एक भाई हैं। वो दूसरे नम्बर की थी। आठवीं की पढ़ाई के बाद अपने पिता के साथ पहली बार दिवाली के चार-पांच दिन बाद काम करने घाटमपुर तहसील के एक ईंट भट्ठे पर चली गई थी। खिचड़ी में ये लड़की अपने गांव कुछ दिनों के लिए आई थी, फिर घाटमपुर लौट गई थी। मृतका के परिजनों का आरोप है कि 27 फरवरी को मृतका और उसकी चचेरी बहन के साथ गांव का ठेकेदार रामरूप, जो उन्हें भट्ठे पर काम दिलाने ले गया था उसके बेटे और भांजे ने दोनों को नशा कराया फिर उनके साथ गैंगरेप किया। उनके वीडियो बनाए और कहा कि किसी को बताया तो मार डालेंगे।
अगले दिन शाम करीब सात-आठ बजे दोनों लड़कियां शौच के बहाने घर से निकलीं, फिर काफी देर तक नहीं लौटीं। खोजने के बाद दोनों भट्ठे से कुछ दूरी पर फांसी लगाए हुए मिलीं। पुलिस ने इसे आत्महत्या बताया है।
मृतका की मां कहती हैं, “शादी के बाद से मुझे दौरे आते हैं। मैं बहुत ज्यादा काम नहीं कर पाती। तीन लड़कियां अभी छोटी-छोटी हैं। बड़ा लड़का 18 साल का है। अभी वो हल्की उम्र का है। इनके (बच्चों) पापा का दाहिना पैर टूटा था तभी भट्ठे पर दो लड़कियों और बेटे को लेकर कमाने गए थे। क्या पता था सब ख़त्म हो जाएगा।”
घटना को एक हफ्ता भी नहीं गुजरा था कि आरोपी रामरूप की पत्नी और बेटी ने 16 वर्षीय मृतका के घर जाकर उसके पिता को मामला वापस लेने की धमकी दी नहीं तो उलटा फंसा देंगे। पूरी रात सदमे में रहने के बाद 6 मार्च की सुबह सात बजे खेतों की तरफ जाकर लड़की के पिता ने आत्महत्या कर ली।
बड़ी लड़की की मां कहती हैं, “यहां चार-पांच किलोमीटर तक कच्ची सड़क से होकर जाते हैं तब मेन रोड पर पहुंच पाते हैं। अगर कोई बीमार पड़ जाता है तो उसे चारपाई पर रखकर ले जाना पड़ता है। हम अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में ही थोड़ा बहुत पढ़ा पाए। इतना पैसा ही नहीं हुआ कि इन्हें आगे पढ़ा सकें। घर का खर्चा चलाना मुश्किल हो रहा था इसीलिए मजबूरी में इन्हें छोटे से ही काम पर लगा दिया।”
मैं अभी मां से बात कर ही रही थी कि उसके बाबा और दादी खेत से काम करके लौटे। दादी बोली, “गांव वाले सब हमारी लड़की को दोष दे रहे हैं कि उसने ही कुछ किया होगा तभी ऐसा हुआ।”
हमीरपुर के केस में बच्चियों का दोषी ठहराया जाना कोई नई बात नहीं है। गांव की हालत और दोनों ही परिवारों की स्थिति को देखकर बहुत आसानी से इनकी गरीबी और बदहाली का अंदाजा लगाया जा सकता है। गरीबी के कारण बच्चे यहां पढ़ाई पूरी नहीं कर पाते हैं। मृतक लड़कियों में एक ने सातवीं और दूसरी ने आठवीं के बाद पढ़ाई बंद कर दी थी। बड़े बेटे की उम्र लगभग 18 साल है। पिता की मौत के बाद कमाने की जिम्मेदारी अब इसी के कंधों पर आ गई है। गांव में बहुत ज्यादा जमीनें नहीं हैं इसलिए लोगों को मजदूरी के लिए पलायन करना पड़ता है।
भट्ठे में तपती जिंदगी
इस गांव के ज्यादातर लोग भट्ठे पर ही काम करते हैं। घाटमपुर में करीब 50 ईंट भट्ठे हैं जिनका तकरीबन 40 करोड़ रुपये का सालाना कारोबार है। यहां आसपास के इलाके के मजदूर काम करने आते हैं। एक हजार ईंट की पथाई पर मजदूरी के 820 रुपये बनते हैं। हर हजार ईंट पर ठेकेदार का 30 रुपया कमीशन बनता है।
ठेकेदार रामरूप अपने गांव से 45 लोगों को कानपुर की घाटमपुर तहसील के एक ईंट भट्ठे पर पथाई के काम के लिए नवंबर 2023 में ले गए थे। लड़कियों का परिवार भी उनमें शामिल था। ठेकेदार के साथ-साथ रामरूप वहां खुद भी ईंट पाथता था।
बड़ी लड़की की मां बताती है, “मेरी दो बेटियां, बड़ा बेटा और इनके पापा, कुल चार लोग भट्ठे पर गए थे।‘’ मां बताती है कि हजार ईंट पर उन्हें 790 रूपये मिलते थे। ज्यादा ईंट पाथ सकें, ज्यादा आमदनी हो, इसलिए दोनों बेटियों को परिवार ने काम पर भेज दिया था।
छोटी लड़की का घर 200 मीटर की दूरी पर ही है। वहां एक टूटी हुई चारपाई पर लड़की की मां बैठी थीं। अपने पति के हाथ दिखाते हुए वे कहती हैं, “ये दोनों हाथ से विकलांग हैं। ज्यादा काम इनसे होता नहीं। हमारा तो पूरा परिवार भट्ठे पर मजदूरी के लिए चला जाता है, लेकिन इस ठेकेदार के साथ हम लोग पहली बार गये थे। ये आदमी ठीक नहीं है, पर काम नहीं था इसलिए इसके साथ मजबूरी में जाना पड़ा। अब घटना के बाद से घर पर ही बैठे हैं। कहीं मनरेगा में मजदूरी मिलती है तो कर लेते हैं, पर उतने से क्या होगा?”
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ इस मामले में डीएम और एसपी ने पीड़ित परिवारों को हरसंभव मदद करने का आश्वासन दिया है। नगरपालिका परिषद हमीरपुर के चेयरमैन कुलदीप निषाद ने गैंगरेप पीड़िताओं के परिजनों को भरोसा दिलाते हुए घोषणा की है कि दोनों ही पीड़ित परिवारों की एक-एक बेटी को पढ़ाया जाएगा। उन्होंने गैंगरेप पीड़िताओं में एक के पिता के फांसी लगाकर आत्महत्या करने पर मृतक के बेटे को नगरपालिका परिषद में संविदा पर नौकरी दिए जाने की भी घोषणा की थी। दोनों परिवारों को 25-25 हजार रुपये का चेक भी दिया गया है।
छोटी लड़की के पिता कहते हैं, “इलाके में ऐसी पहली घटना घटी है। मुझे तो अभी भी नहीं पता कि उस दिन उसके साथ कब क्या हुआ और वो कैसे मरी। जैसा सबने बताया, मान लिया। अभी तो सभी आरोपी बंद हैं, पर हम लोग काम पर नहीं जा पा रहे यही दिक्कत है। भट्ठे पर 15 जून तक ही काम रहता है। छह-सात महीने में भट्ठे पर रहकर इतना कमा लेते हैं कि नून रोटी चलती रहती है। इस बार वो भी नहीं कर पाए।”
इन बच्चियों की आत्महत्या के मामले में घाटमपुर थाने में धारा 376डी, 306, 323, 504, पॉक्सो एक्ट की धारा 3 और 4, आइटी एक्ट की धारा 67ए के तहत मामला दर्ज किया गया था। इस मामले में पांच लोग थाने में बंद हैं। पीड़ित परिवारों के अलावा गांव में कोई भी इस घटना के बारे में बात करने को तैयार नहीं था। पूरा गांव दलित बहुल है, लेकिन परिवारों के बीच दूरियां बिलकुल साफ दिख रही थीं।
शुरुआत में इस मामले ने काफी तूल पकड़ा था। देश के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाले लोगों में आक्रोश और गुस्सा था, लेकिन गुजरते समय के साथ शायद अब यह घटना किसी के जेहन में नहीं रही। पांचवें चरण में 20 मई को यहां के मतदाता वोट डालकर अपना उम्मीदवार चुनेंगे। पीड़ित परिवार भी मतदान करेगा, लेकिन क्या इस परिवार को या इस घटना जैसे दर्जनों परिवारों को समय से न्याय मिल पाएगा?
लड़की का भाई कहता है, “हम इस बार उसे वोट देंगे जो हमें न्याय दिलाएगा। किसी भी प्रत्याशी ने अभी तक यह नहीं कहा कि वह हमें हमारी बहन के केस में न्याय दिलाने में मदद करेंगा। बहन भी गई, बदनामी भी हुई, काम भी छूट गया। भरपाई कौन करेगा?”
जुर्म का सिलसिला
जिस दिन मैं हमीरपुर पहुंची, उसके ठीक साल भर पहले 28 मार्च 2023 हमीरपुर से करीब 100 किलोमीटर दूर जालौन जिले में एक नाबालिग लड़की के साथ रेप हुआ था। 31 मई को परिवार थाने में मामले की एफ़आइआर दर्ज कराने गया। लड़की की मां ने पुलिस पर आरोप लगाया था कि रात 11 बजे तक थाने में वे लोग बैठे रहे पर एफ़आइआर दर्ज नहीं की गई। पुलिस ने उलटे उससे कहा कि वह उसके पति को झूठे मामले में फंसा देगी।
परिवार और गांववालों की मानें तो पुलिस की तरफ़ से मामले में कोई सुनवाई न होता देख रेप सर्वाइवर के पिता ने 5 जून 2023 को सुबह करीब 10 बजे घर के एक कमरे में छत पर लगे एक कुंडे में गमडा फंसाकर आत्महत्या कर ली। पिता की आत्महत्या के बाद मामले ने तूल पकड़ा, तो तीन आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। साथ ही थाना प्रभारी को भी निलंबित किया गया।
इस परिवार की भी माली हालत ठीक नहीं थी। बच्ची के माता-पिता गोलगप्पे का ठेला लगाने पंजाब गए थे। घटना के वक़्त वे वहीं थे। इस मामले में पुलिस की लापरवाही और प्रताड़ना से आहत होकर बच्ची के पिता ने आत्महत्या की थी। हाथरस मामले में भी पुलिस ने लापरवाही बरती थी।
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ऐसी ही एक घटना कानपुर देहात की 13 नवंबर 2019 की है। एक दलित नाबालिग बच्ची शौच से वापस लौट रही थी तभी गांव के तीन लोगों ने अपने घर के कमरे में बंद करके उसके साथ दो-तीन दिन तक गैंगरेप किया। पूछताछ के लिए बच्ची को पुलिस ने सात दिन महिला कांस्टेबल के रूम में रखा क्योंकि कानपुर देहात में कोई शेल्टर होम नहीं है। घटना के बाद से तीनो आरोपी तब तक गिरफ्तार नहीं हुए जब तक बच्ची ने फांसी लगाकर आत्महत्या नहीं कर ली।
इस बच्ची ने 6 दिसंबर 2019 को आत्महत्या की। उसी दिन दो आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। जब मीडिया में इस मामले ने तूल पकड़ा तब जांच अधिकारी और रूरा थाना प्रभारी का 11 दिसंबर को सुबह ट्रांसफर कर दिया गया। इसके अलावा पुलिस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
रेप और गैंगरेप के ऐसे ज्यादातर मामलों में आसपास के लोग, और कई बार तो पुलिस और मीडिया भी पीडिता को ही दोषी ठहरा रहे होते हैं। पिछले साल जब लखीमपुर खीरी में दो नाबालिग दलित बच्चियों को गन्ने के खेत में मारकर डाल दिया गया था तब भी दोष लड़कियों को ही दिया गया था। उससे पहले उन्नाव में 17 फरवरी 2021 को खेत में घास लेने गई तीन दलित नाबालिग बच्चियों को खरपतवारनाशक खिला दिया गया था जिससे दो की मौत हो गई थी और एक बच गई थी। इस घटना में भी लड़कियों को ही दोषी माना जा रहा था।
पांच साल पहले की उन्नाव की एक और घटना ऐसी ही थी। एक बलात्कार पीड़िता 5 दिसंबर 2019 को केस की सुनवाई के लिए सुबह कोर्ट जा रही थी, तभी किसी ने उसे आग लगा दी। अगले दिन दिल्ली के सफदरगंज अस्पताल में उसने दम तोड़ दिया था। इस घटना में भी मृतका को ही दोषी ठहराया जा रहा था। हाथरस के चर्चित मामले में भी मृतका को ही दोषी ठहराया गया था। उसी साल बलरामपुर जिले में 29 दिसंबर 2020 को कथित तौर पर एक सामूहिक बलात्कार पीड़िता की हत्या कर दी गई थी। उसमें भी लड़की को ही दोषी ठहराया गया था। उत्तर प्रदेश में इस किस्म की घटनाओं के बाद पीडिता को दोषी ठहरा देना बहुत आम बात हो चली है।
पुलिसिया लापरवाही
बारह साल पहले हुए निर्भया केस के बाद देश में ऐसा कानून बना कि अगर रेप और गैगरेप जैसे गम्भीर मामलों में पुलिस कोताही बरतती है तो उसके खिलाफ़ धारा 166 (ए) के तहत FIR दर्ज हो और उसे कठोर सजा मिले। इस कानून बनने के आठ साल बाद यूपी में पहली बार बदायूं गैंगरेप मामले में पुलिस पर लापरवाही बरतने के मामले में तत्कालीन आइजी राजेश कुमार पाण्डेय ने उघैती थाना क्षेत्र के तत्कालीन इंस्पेक्टर राघवेंद्र प्रताप सिंह के खिलाफ धारा 166 (ए) के तहत मुकदमा दर्ज किया था। यह उस वक़्त तक यूपी का पहला ऐसा मामला था, पर मेरी जानकारी के अनुसार इस मामले के बाद कभी किसी पुलिसकर्मी के खिलाफ मुकदमा दर्ज नहीं हुआ।
निर्भया कांड के बाद आइपीसी की धारा 166 में संशोधन कर के धारा 166 (ए) तथा धारा 166 (बी) को संसद में पारित कराकर कानून बनाया गया था। धारा 166 (ए) में यह प्रावधान है कि कोई भी महिला दुष्कर्म, एसिड फेंकना व मानव व्यापार से संबंधित मामलों की सूचना वह स्वयं या किसी अन्य के माध्यम से पुलिस को देती है तो उस सूचना पर पुलिस अधिकारी का कर्तव्य है कि वह तुरंत केस दर्ज कर जल्द से जल्द पीड़िता को इंसाफ दिलाए। पुलिस अधिकारी द्वारा केस न दर्ज करने या उसमें आनाकानी करने की स्थिति में संबंधित पुलिस अधिकारी के विरुद्ध 166 (ए) के तहत मुकदमा दर्ज करना पुलिस अधिकारी की कानूनी बाध्यता है। दोषी पाए जाने पर संबंधित पुलिस अधिकारी को दो साल तक की सजा व जुर्माने का प्रावधान किया गया।
इसके अलावा महिलाओं से संबंधित ऐसे मामलों में इलाज करने में निजी व सरकारी अस्पताल प्रशासन द्वारा आनाकानी करने या इलाज करने से इंकार करने पर आइपीसी की धारा 166 (बी) के तहत संबंधित चिकित्सक के विरुद्ध मुकदमा दर्ज किया जा सकता है। दोषी पाए जाने पर एक साल तक की सजा व जुर्माने का प्रावधान है।
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निर्भया के केस के बाद पॉक्सो जैसे मामलों में पुलिस के खिलाफ लापरवाही बरतने पर सेक्शन 21(बी) के तहत एफआइआर का प्रावधान है। महत्वपूर्ण बात यह है कि जानकारी के अभाव में पुलिस के खिलाफ कोई एफआइआर दर्ज नहीं करवा पाता। यही वजह है कि ये कानून लागू हुए 12 साल हो गए पर अभी तक किसी को सजा नहीं मिली।
अब दिक्कत यह है कि अंग्रेजों के जमाने की आइपीसी, सीआरपीसी और साक्ष्य कानून को पूरी तरह खत्म कर के भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम आगामी 1 जुलाई से प्रभाव में आने जा रहे हैं। पुराने कानूनों के स्थानीय थानों तक पहुंचने और इनके प्रति पुलिस को जागरूक करने में जब बरसों लग जाते थे, तो तीनों नए कानूनों के तहत न्याय का मिलना बहुत बड़ा सवाल है। यह सवाल इसलिए भी अहम हो जाता है क्योंकि प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ और देश के गृहमंत्री अमित शाह ने कई बार अपने भाषणों में दावा किया है कि प्रदेश की कानून व्यवस्था चुस्त-दुरस्त है; महिलाएं रात को 12 बजे निडर होकर घर से बाहर निकल सकती हैं; अपराधी प्रदेश छोड़कर भाग गए हैं, इत्यादि।
लॉ ऐंड ऑर्डर का सच
अगर आप गूगल पर ‘यूपी में रेप के बाद पीड़िता ने की आत्महत्या’ सर्च करेंगे तो आपको दर्जनों खबर दिख जाएंगी जिसमें बच्चियों ने या उनके परिजनों ने इस तरह की घटनाओं के बाद या तो पुलिस से आहत होकर या अपराधियों से आहत होकर आत्महत्या जैसा कदम उठाया है। बीते पांच-छह वर्षों में मैंने खुद ऐसी कई घटनाओं की ग्राउंड रिपोर्ट की है जिसमें वीभत्स बलात्कार के बाद आत्महत्या या हत्या हुई है।
जब सरकार और सत्ताधारी दल चुनावों के बीच लगातार प्रदेश में लॉ एंड ऑर्डर की बात कर रहे हों, ऐसी घटनाएं उनके दावों की पोल खोलते नजर आती हैं। ऐसे उदाहरण हाथरस से लेकर लखीमपुर, बाराबंकी, बदायूं और बुलंदशहर व उन्नाव फैले हुए हैं, जहां दलित नाबालिग लड़कियों के साथ न केवल रेप और गैंगरेप हुआ बल्कि उनके साथ वीभत्सता की सारी हदें पार की गईं और उनकी हत्या भी हुई।
मोदी, शाह ओर योगी के दावों की सच्चाई महिला सुरक्षा के सरकारी आंकड़ों से ही खुल जाती है, जो कहते हैं कि उत्तर प्रदेश महिलाओं पर अपराध में मामले सबसे आगे है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार 2021 की तुलना में महिलाओं के खिलाफ दर्ज अपराधों में चार प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। यूपी में रेप और POCSO के मामले सबसे ज्यादा दर्ज हुए हैं। हर दिन में करीब 87 और हर एक घंटे में 3-4 युवतियां या बच्चियां रेप का शिकार हो रही हैं, जिसमें दलितों की संख्या सबसे ज्यादा है। जहां 2022 की एनसीआरबी रिपोर्ट में महिलाओं के खिलाफ अपराध के तहत 4,45,256 मामले दर्ज किए गए, वहीं 2021 में यह संख्या 4,28,278 थी।
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एनसीआरबी के मुताबिक 2021 में 2020 के मामलों की तुलना में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में 15.3 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई थी। 2022 में ‘बलात्कार/गैंगरेप के साथ हत्या’ की श्रेणी में उत्तर प्रदेश 62 दर्ज मामलों के साथ फिर से सूची में शीर्ष पर है, इसके बाद मध्य प्रदेश 41 के साथ दूसरे नंबर पर है। यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम के तहत दर्ज 7,955 मामलों के साथ भी उत्तर प्रदेश देश में शीर्ष पर है। इसके बाद 7,467 मामलों के साथ महाराष्ट्र का नंबर आता है।
ऐसी स्थिति में सरकार किसी की भी आए, बड़ा सवाल यही है कि क्या आइपीसी और सीआरपीसी की जगह लेने वाला नया कानून महिलाओं, बच्चों और दलितों के साथ वास्तव में न्याय कर पाएगा।
सभी तस्वीरें और वीडियो: नीतू सिंह