Politics

‘महुआ दीदी चुप नहीं बैठेंगी!’ अपनी महिला सांसद के निष्कासन पर गरमा रहा है बंगाल

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महुआ मोइत्रा को संसद से निष्कासित किए जाने के बाद समूचा राजनीतिक विपक्ष तो इस कदम का विरोध कर ही रहा है, वहीं समूचे बंगाल में तृणमूल कांग्रेस का विरोध प्रदर्शन भी जारी है। बंगाल के आम लोग भी इस कदम को भाजपा का राजनीतिक बदला बता रहे हैं। राजधानी कोलकाता से लेकर बंगाल के गांव-कस्‍बों में सार्वजनिक स्थानों पर चल रही सियासी चर्चाओं का हाल बता रहे हैं नित्‍यानंद गायेन

योगी सरकार ने साल भर पहले मदरसों का सर्वे क्या केवल दुष्प्रचार की मंशा से किया था?

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आम चुनाव के करीब आते ही साम्‍प्रदायिक ध्रुवीकरण की तेज होती कोशिशों के बीच भाजपा के लिए मदरसे अहम चुनावी औजार बन गए हैं। कर्नाटक से लेकर हाल में संपन्‍न हुए राजस्‍थान चुनाव तक मदरसों का भाजपा के प्रचार में जिक्र आया। पिछले साल यूपी की सत्‍ता में लौटते ही योगी आदित्‍यनाथ की सरकार ने मदरसों का सर्वे करवाया था। साल भर बाद भी उसका अता-पता नहीं है। लखनऊ से असद रिज़वी की फॉलो-अप रिपोर्ट

राजस्थान: अपनी ही बिछाई बिसात पर वजूद की मुकम्मल जंग में फंसे दो सियासी महारथी

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राजस्थान के दो सबसे बड़े सियासी चेहरे इस चुनाव में दांव पर लगे हुए हैं या फिर इन दोनों ने अपने राजनीतिक करिअर के लिए आपस में मिल कर चुनाव को ही दांव पर लगा दिया है, यह अनसुलझा सवाल हल होने में अब केवल तीन दिन बाकी हैं। पूरे चुनाव के दौरान राजस्थान की सघन यात्रा पर रहे मनदीप पुनिया ने इस सवाल का जवाब खोजने के लिए हर तरह की तीसरी ताकत और उसके प्रतिनिधियों से बात की। चुनाव परिणाम से पहले राजस्थान की भावी चुनावी तस्वीर का जमीन से सीटवार और क्षेत्रवार आकलन

वसुंधरा के लंबे दबाव से उबरा आरएसएस राजस्थान चुनाव में कुछ ज्यादा सक्रिय क्यों है?

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बीस साल से वसुंधरा राजे के पाश में फंसा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पहली बार खुलकर सांस लेता दिख रहा है, तो राजस्थान के चुनाव में भी पर्याप्त सक्रिय है। उसकी सक्रियता भले ऊपर से दिखती न हो, लेकिन हर प्रचारक गेमप्लान और स्ट्रेटजी की बात करता सुनाई देता है। आखिर क्या है यह रणनीति और संघ इससे क्या हासिल करना चाह रहा है? राजस्थान से लौटकर अभिषेक श्रीवास्तव की रिपोर्ट

शिवराज के सपनों का ‘अद्वैतलोक’ : जहां सत्य, शिव और सुंदर के अलावा सब कुछ है

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हर नेता अपनी जिंदगी में कम से कम एक प्रतिमा गढ़ना चाहता है। शिवराज सिंह चौहान ने भी एक प्रतिमा गढ़ी- 108 फुट ऊंची आदि शंकराचार्य की। शिव के मस्तक में मशीनों से छेद कर के खड़ी की गई इस प्रतिमा ने संघ के कार्यकर्ताओं को फिरंट कर दिया, जंगलों को नष्ट कर दिया, पहाड़-घाटी के लोगों को उजाड़ दिया। बाढ़ और मानवीय त्रासदी के बीच लोकार्पित की गई तीन हजार करोड़ रुपये की इस परियोजना पर खंडवा के ओंकारेश्वर से लौटकर अमन गुप्ता की लंबी कहानी

फलस्तीन-इजरायल विवाद : एक अंतहीन त्रासदी

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हमास के ताजा हमले और उसके बदले में की जा रही कार्रवाई बताती है कि आतंकवाद को समाप्त करने का इजरायली तरीका अगर इतना ही कारगर होता, तो आज अपने जन्म के 74 साल बाद भी वह इस समस्या से जूझ नहीं रहा होता। ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्‍य में इजरायल-फलस्‍तीन संघर्ष पर रोशनी डाल रहे हैं मुशर्रफ़ अली

लखीमपुर हत्याकांड: दो साल बाद भी पुलिसिया पहरे में घुट रहे हैं शहीद किसानों के परिवार

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किसान आंदोलन के चरम पर 3 अक्‍टूबर, 2021 को लखीमपुर खीरी के तिकुनिया थानांतर्गत पांच लोगों पर सांसद-पुत्र की थार जीप चढ़ा दी गई थी। आज दो साल बाद सांसद और केंद्रीय मंत्री टेनी चुनाव की तैयारियों में व्‍यस्‍त हैं। उनका बेटा मोनू सुप्रीम कोर्ट से जमानत पर है। इस हत्‍याकांड की दूसरी बरसी पर पूरे देश में टेनी, मोनू और मोदी के पुतले जलाए गए हैं। जो आठ लोग उस दिन मारे गए, उन्‍हें पूछने वाला कोई नहीं है। लखीमपुर से लौटकर इम्तियाज़ अहमद की फॉलो-अप रिपोर्ट

‘समाजवादी’ और ‘पंथनिरपेक्ष’ के द्वेषी कैसे अंग्रेजों के वैचारिक वारिस हुए?

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नई संसद में संविधान की जिस प्रति को लेकर सांसद गए, उसकी प्रस्‍तावना से ‘समाजवाद’ और ‘सेकुलर’ नदारद था। जवाब मांगा गया, तो कानून मंत्री ने सपाट कह दिया कि मूल प्रस्‍तावना तो ऐसी ही थी। अगले ही दिन एक सत्‍ताधारी सांसद ने अपने संसदीय आचार से ‘सेकुलरिज्‍म’ की मूल भावना को ही अपमानित कर डाला। भाजपा के बाकी सांसद उसकी गालियों पर हंसते रहे। इन दोनों संवैधानिक मूल्‍यों से घृणा की वैचारिक जड़ें आखिर कहां हैं? इतिहास के पन्‍नों से मुशर्रफ अली की पड़ताल

G-20 के लिए लोगों को उजाड़ने के खिलाफ बोलना भी जुर्म, दिल्ली में रुकवा दिया गया We-20 सम्मेलन

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दिल्‍ली से लेकर वृंदावन, अयोध्‍या, बनारस, ओडिशा, बंगाल यानी समूचे देश में लोगों को उजाड़ा जा रहा है। बहाना है आगामी सितंबर में होने वाला जी-20 शिखर सम्‍मेलन और उसके लिए शहरों का सुंदरीकरण। इस बेदखली, विस्‍थापन और बेघरी के खिलाफ 700 से ज्‍यादा लोग दिल्‍ली में तीन दिन बंद कमरे में विचार-विमर्श करने को जुटे थे। दिल्‍ली पुलिस ने दूसरे दिन माहौल बिगाड़ा और तीसरे दिन के सत्र को होने ही नहीं दिया। यह सम्‍मेलन आधे में ही खत्‍म हो गया।