Politics

लोकसभा चुनाव की निगरानी: परदा उठने से पहले एक अरब मतदाताओं के लिए बस एक सवाल

by

आगामी लोकसभा चुनावों की निगरानी के लिए एक स्‍वतंत्र पैनल (आइपीएमआइई) बना है। इसकी परिकल्‍पना पूर्व प्रशासनिक अधिकारी एमजी देवसहायम ने की है। इस पैनल में लोकतंत्र, राजनीति विज्ञान, चुनाव प्रबंधन और चुनावी निगरानी तक विभिन्‍न क्षेत्रों के अंतरराष्‍ट्रीय ख्‍याति-प्राप्‍त शख्सियतें शामिल हैं। पैनल का उद्देश्‍य चुनावों पर निगाह रखना, रिपोर्ट प्रकाशित करना और चिंताएं जाहिर करना है ताकि आम चुनाव 2024 निष्‍पक्ष, स्‍वतंत्र, पारदर्शी तथा लोकतंत्र के सिद्धांतों के अनुकूल रहे जिससे भारत के नागरिकों के मताधिकार की सुरक्षा की जा सके। स्‍वतंत्र पैनल की पृष्‍ठभूमि खुद एमजी देवसहायम की कलम से

Hitler fiddling with globe, a scene from The Great Dictator

क्या 2024 पूरी दुनिया में ‘कब्जे का वर्ष’ है? क्या 1933 खुद को दोहरा रहा है?

by

1933 में अडॉल्‍फ हिटलर की सत्‍ता का उदय आज 2024 में कहीं ज्‍यादा प्रासंगिक हो चुका है। दुनिया का ज्‍यादातर हिस्‍सा इस साल निर्णायक चुनावों में जा रहा है। दुनिया की आधी आबादी अपनी किस्‍मत का फैसला अपने वोट से करने जा रही है। चेतावनी के संकेत यहां-वहां बिखरे पड़े हैं, लेकिन कुछ जानकार खुलकर अब कह रहे हैं कि लिबरल जनतंत्र चुनावी दांव पर लग चुका है। इतिहासकार मार्क जोन्‍स की महत्‍वपूर्ण टिप्‍पणी

कर्पूरी ठाकुर : न्याय की आस और हक के संघर्ष में बिसर गया एक नैतिक जीवन

by

जिस शख्‍स को उसकी जन्‍मशती पर जाकर भारत रत्‍न का सम्‍मान मिला है, उसकी मौत आज तक रहस्‍य बनी हुई है। न सिर्फ मौत, बल्कि जिंदगी भर कर्पूरी ठाकुर ने अपने और अपने न्‍यायपूर्ण सरोकारों के हक में जो लड़ाइयां लड़ीं, उनमें से कई अंजाम तक नहीं पहुंचने दी गईं और पहुंची भी हों तो नतीजा कोई नहीं जानता। बिहार में बतौर मुख्‍यमंत्री और विपक्ष के नेता रहते हुए कर्पूरी ठाकुर के लिए फैसले, दायर मुकदमों और छेड़े गए संघर्षों पर डॉ. गोपाल कृष्‍ण की विस्‍तृत नजर

अयोध्या के युद्ध में: साधु और शैतान के बीच फंसा भगवान

by

अयोध्‍या अपने गुण और नाम के विपरीत लंबे अरसे से युद्ध में मुब्तिला है। यहां भगवान और जमीन के नाम पर होने वाली हत्‍याओं का सिलसिला बहुत पुराना है। कहते हैं कि दो सौ से ज्‍यादा साधु यहां मारे जा चुके हैं। सरकारी अधिकारी भी, कोर्ट द्वारा नियुक्‍त पुजारी भी। राम मंदिर ट्रस्‍ट के कर्ताधर्ता भी हमलों से अछूते नहीं रहे। कुछ भले लोग भी मारे गए, जिन्‍होंने जरूरी सवाल पूछे थे। अयोध्‍यावासी तो खुशी और डर के मारे आज चुप हैं, लेकिन यहां गड़े मुर्दे लगातार सवाल पूछ रहे हैं। धर्म, जमीन और जरायम के आपराधिक गठजोड़ पर अयोध्‍या रहकर लौटे अमन गुप्‍ता की फॉलो-अप रिपोर्ट

‘महुआ दीदी चुप नहीं बैठेंगी!’ अपनी महिला सांसद के निष्कासन पर गरमा रहा है बंगाल

by

महुआ मोइत्रा को संसद से निष्कासित किए जाने के बाद समूचा राजनीतिक विपक्ष तो इस कदम का विरोध कर ही रहा है, वहीं समूचे बंगाल में तृणमूल कांग्रेस का विरोध प्रदर्शन भी जारी है। बंगाल के आम लोग भी इस कदम को भाजपा का राजनीतिक बदला बता रहे हैं। राजधानी कोलकाता से लेकर बंगाल के गांव-कस्‍बों में सार्वजनिक स्थानों पर चल रही सियासी चर्चाओं का हाल बता रहे हैं नित्‍यानंद गायेन

योगी सरकार ने साल भर पहले मदरसों का सर्वे क्या केवल दुष्प्रचार की मंशा से किया था?

by

आम चुनाव के करीब आते ही साम्‍प्रदायिक ध्रुवीकरण की तेज होती कोशिशों के बीच भाजपा के लिए मदरसे अहम चुनावी औजार बन गए हैं। कर्नाटक से लेकर हाल में संपन्‍न हुए राजस्‍थान चुनाव तक मदरसों का भाजपा के प्रचार में जिक्र आया। पिछले साल यूपी की सत्‍ता में लौटते ही योगी आदित्‍यनाथ की सरकार ने मदरसों का सर्वे करवाया था। साल भर बाद भी उसका अता-पता नहीं है। लखनऊ से असद रिज़वी की फॉलो-अप रिपोर्ट

राजस्थान: अपनी ही बिछाई बिसात पर वजूद की मुकम्मल जंग में फंसे दो सियासी महारथी

by

राजस्थान के दो सबसे बड़े सियासी चेहरे इस चुनाव में दांव पर लगे हुए हैं या फिर इन दोनों ने अपने राजनीतिक करिअर के लिए आपस में मिल कर चुनाव को ही दांव पर लगा दिया है, यह अनसुलझा सवाल हल होने में अब केवल तीन दिन बाकी हैं। पूरे चुनाव के दौरान राजस्थान की सघन यात्रा पर रहे मनदीप पुनिया ने इस सवाल का जवाब खोजने के लिए हर तरह की तीसरी ताकत और उसके प्रतिनिधियों से बात की। चुनाव परिणाम से पहले राजस्थान की भावी चुनावी तस्वीर का जमीन से सीटवार और क्षेत्रवार आकलन

वसुंधरा के लंबे दबाव से उबरा आरएसएस राजस्थान चुनाव में कुछ ज्यादा सक्रिय क्यों है?

by

बीस साल से वसुंधरा राजे के पाश में फंसा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पहली बार खुलकर सांस लेता दिख रहा है, तो राजस्थान के चुनाव में भी पर्याप्त सक्रिय है। उसकी सक्रियता भले ऊपर से दिखती न हो, लेकिन हर प्रचारक गेमप्लान और स्ट्रेटजी की बात करता सुनाई देता है। आखिर क्या है यह रणनीति और संघ इससे क्या हासिल करना चाह रहा है? राजस्थान से लौटकर अभिषेक श्रीवास्तव की रिपोर्ट

शिवराज के सपनों का ‘अद्वैतलोक’ : जहां सत्य, शिव और सुंदर के अलावा सब कुछ है

by

हर नेता अपनी जिंदगी में कम से कम एक प्रतिमा गढ़ना चाहता है। शिवराज सिंह चौहान ने भी एक प्रतिमा गढ़ी- 108 फुट ऊंची आदि शंकराचार्य की। शिव के मस्तक में मशीनों से छेद कर के खड़ी की गई इस प्रतिमा ने संघ के कार्यकर्ताओं को फिरंट कर दिया, जंगलों को नष्ट कर दिया, पहाड़-घाटी के लोगों को उजाड़ दिया। बाढ़ और मानवीय त्रासदी के बीच लोकार्पित की गई तीन हजार करोड़ रुपये की इस परियोजना पर खंडवा के ओंकारेश्वर से लौटकर अमन गुप्ता की लंबी कहानी