‘नबाम रेबिया’ का मुकदमा और भुला दी गई एक मौत
byसात साल बाद जिस फैसले की समीक्षा सुप्रीम कोर्ट की उच्च पीठ से अभी होनी बाकी है, उसने नबाम रेबिया का नाम तो न्यायिक इतिहास में दर्ज कर दिया लेकिन कलिखो पुल को हमेशा के लिए मिटा दिया
सात साल बाद जिस फैसले की समीक्षा सुप्रीम कोर्ट की उच्च पीठ से अभी होनी बाकी है, उसने नबाम रेबिया का नाम तो न्यायिक इतिहास में दर्ज कर दिया लेकिन कलिखो पुल को हमेशा के लिए मिटा दिया
1979 में जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी दिए जाने के बाद पाकिस्तान की पॉलिटिकल क्लास ने सेना के खिलाफ जाने की हिम्मत नहीं दिखाई थी। बेनजीर भुट्टो की हत्या ने सेना के खौफ को और मजबूत ही किया था, लेकिन इस बार स्थिति उलटी है
क्या दिल्ली में बृजभूषण सिंह के इस्तीफे की मांग पर चल रहे आंदोलन का कैसरगंज में कोई असर है? भाजपा सांसद के क्षेत्र से जमीनी जायजा लेकर लौटे इम्तियाज़ अहमद की रिपोर्ट
पत्र की ऐसी भाषा सीधे राजभवन से आए आदेश की नहीं रही होगी क्योंकि यह पत्र गृह विभाग द्वारा जारी किया गया है
पत्रकार आए तो थे तो रिपोर्टिंग करने पर यहां तो जान बचाना मुश्किल हो रहा था। एक महिला पत्रकार दिल्ली के सुनसान चौराहे पर आधी रात में अकेली खड़ी थी। मैं सोच रहा था कि इस दौरान अगर कोई घटना घटी तो इसका जिम्मेदार कौन होगा।
सोशल मीडिया पर जिस पत्र को ईडी का ‘माफीनामा’ कहा जा रहा है वह पत्र वास्तव में यह कह रहा है कि संजय सिंह ने नोटिस भेजकर गलती कर दी है और यह मामला पलट कर उनके खिलाफ भी जा सकता है।
विधानसभा में दी गई एक जानकारी के मुताबिक सरकार ने बीते अप्रैल से इस साल की शुरुआत तक 21 लोगों को रोजगार दिया है। वहीं रोजगार कार्यालयों के संचालन पर करीब 16.74 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं।
पाकिस्तानी मूल के कनेडियन लेखक तारिक फ़तह का 24 अप्रैल 2023 को 73 वर्ष की…
एनआरसी एक खेल था! पर कभी खेल, खिलाड़ी के हाथ से निकल भी जाता है!…
सच तो यह है कि ज़मीन के मालिकाने और रोज़गार सुरक्षा से जुड़े नियमों-कानूनों के ढाँचे को, या दूसरे शब्दों में जम्मू-कश्मीर के संविधान और अनुच्छेद 35अ में जिन अधिकारों की गारंटी दी गई थी उनको खत्म करने की निरर्थकता खुद इस सरकार को भी तेजी से समझ में आ रही है। एक वरिष्ठ हिन्दुस्तानी अधिकारी ने हाल ही में कहा कि जम्मू-कश्मीर की चुनी हुई सरकार वहाँ की भूमि नीति पर फैसला करेगी। जम्मू-कश्मीर में भाजपा नेता निर्मल सिंह ने कह ही दिया है कि पार्टी रोज़गार के अधिकार के मामले में निवासियों को सुरक्षा देने की माँग उठाएगी। दूसरे लफ्ज़ों में, यह सही है भारी संवैधानिक उथल-पुथल हुआ है जो आज की तारीख में लगता है कि अब उलटा नहीं जा सकता लेकिन जहाँ तक रोज़मर्रा के दायरे की बात है तो जम्मू-कश्मीर पर फतह न तो पूर्ण है और न ही वैसी अविवादित जैसा कि लड्डू बाँटने वाली पब्लिक सोचती है।