Congress

BJP Office in Durgapur set on fire by TMC members

पश्चिम बंगाल: न सांप्रदायिकता हारी है, न विकास जीता है

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पश्चिम बंगाल के चुनावी मैदान में चार दलों के होने के बावजूद मतदाताओं के लिए महज भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच आर-पार बंट गया लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद अब हिंसक रंग दिखा रहा है। केंद्र में सरकार बन चुकी है, लेकिन मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे ‘अवैध और अलोकतांत्रिक’ करार दिया है। भाजपा फिलहाल चुप है, लेकिन बंगाल में उसकी सीटों में आई गिरावट को सांप्रदायिकता पर जनादेश मानना बड़ी भूल होगी। चुनाव परिणामों के बाद बंगाल के मतदाताओं से बातचीत के आधार पर हिमांशु शेखर झा का फॉलो-अप

Representational picture of left flag between BJP

पश्चिम बंगाल: पुराने गढ़ जादवपुर में राम और अवाम की लड़ाई में भ्रमित वाम

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पश्चिम बंगाल के आखिरी चरण में मतदान कोलकाता और उसके आसपास भद्रलोक के इलाके में पहुंच रहा है। यहां का अभिजात्‍य वाम समर्थक बौद्धिक वर्ग जहां इस बार उदासीन दिखता है, वहीं गांव-कस्‍बों के लोगों के बीच तृणमूल के कल्‍याणकारी लाभों की चर्चा है जबकि भाजपा उसके भ्रष्‍टाचार को मुद्दा बनाए हुए है। जमीन से नित्‍यानंद गायेन की रिपोर्ट

PM Modi's first elecion meeting in Haryana on May 18, 2024 when the lotus came down

हरियाणा: किसानों, नौजवानों और पहलवानों ने मिलकर भाजपा को तितरफा घेर लिया है!

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चार साल से हरियाणा केंद्र सरकार के गले की फांस बना हुआ है। पहले किसान, फिर नौजवान और अंत में पहलवान, सबने एक-एक कर के अपने गांवों से लेकर दिल्‍ली तक मोर्चा लगाया। हालत यह हो गई कि आम चुनाव से पहले मुख्‍यमंत्री बदलना पड़ा। फिर राज्‍य सरकार पर ही सियासी संकट छा गया। किसी तरह बात संभली, तो प्रधानमंत्री की पहली जनसभा में भाजपा का चुनाव चिह्न उनकी नाक के ठीक नीचे से लुढ़क गया। हरियाणा की दस संसदीय सीटों पर 25 मई को होने जा रहे मतदान से ठीक पहले मनदीप पुनिया की जमीन से सीधी और विस्‍तृत पड़ताल

Loksabha Elections 2024 Phase 1 Western UP

पश्चिमी यूपी, पहला चरण : आठ सीटों पर मुस्लिम वोटों का बिखराव ही तय करेगा भाजपा की किस्मत

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पहले चरण के मतदान में अब केवल तीन दिन बचे हैं लेकिन पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश में चुनाव खड़ा नहीं हो पाया है। हालात ये हैं कि यहां समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की पहली साझा प्रेस कॉन्‍फ्रेंस और प्रियंका गांधी की जनसभा प्रचार के आखिरी दिन प्रस्‍तावित है। यहां की आठ सीटों में अधिकतर पर किसी न किसी तीसरी ताकत ने विपक्षी गठबंधन और भाजपा दोनों को असमंजस में डाल रखा है। लिहाजा, वोटर बिलकुल खामोश है और प्रेक्षक भ्रमित। यूपी में पहले चरण का सीट दर सीट तथ्‍यात्‍मक आकलन वरिष्‍ठ पत्रकार माजिद अली खान की नजर से

राजस्थान: अपनी ही बिछाई बिसात पर वजूद की मुकम्मल जंग में फंसे दो सियासी महारथी

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राजस्थान के दो सबसे बड़े सियासी चेहरे इस चुनाव में दांव पर लगे हुए हैं या फिर इन दोनों ने अपने राजनीतिक करिअर के लिए आपस में मिल कर चुनाव को ही दांव पर लगा दिया है, यह अनसुलझा सवाल हल होने में अब केवल तीन दिन बाकी हैं। पूरे चुनाव के दौरान राजस्थान की सघन यात्रा पर रहे मनदीप पुनिया ने इस सवाल का जवाब खोजने के लिए हर तरह की तीसरी ताकत और उसके प्रतिनिधियों से बात की। चुनाव परिणाम से पहले राजस्थान की भावी चुनावी तस्वीर का जमीन से सीटवार और क्षेत्रवार आकलन

वसुंधरा के लंबे दबाव से उबरा आरएसएस राजस्थान चुनाव में कुछ ज्यादा सक्रिय क्यों है?

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बीस साल से वसुंधरा राजे के पाश में फंसा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पहली बार खुलकर सांस लेता दिख रहा है, तो राजस्थान के चुनाव में भी पर्याप्त सक्रिय है। उसकी सक्रियता भले ऊपर से दिखती न हो, लेकिन हर प्रचारक गेमप्लान और स्ट्रेटजी की बात करता सुनाई देता है। आखिर क्या है यह रणनीति और संघ इससे क्या हासिल करना चाह रहा है? राजस्थान से लौटकर अभिषेक श्रीवास्तव की रिपोर्ट

छत्तीसगढ़: एक कानून बना कर उसे जमीन पर उतारने में पांच साल क्यों कम पड़ गए?

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हिंदी पट्टी में सबसे पहले पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर एक कानून बनाने की मांग छत्‍तीसगढ़ से ही उठी। यह मुद्दा पिछले विधानसभा चुनाव में इतना गरमाया हुआ था कि कांग्रेस पार्टी को अपने घोषणापत्र में पत्रकार सुरक्षा कानून लाने का वादा करना पड़ा। भूपेश बघेल की सरकार आने के बाद ऐसा कानून बनाने में राज्‍य सरकार को पूरे साढ़े चार साल लग गए। बीते मार्च में यह कानून बनकर पारित हुआ, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। रायपुर से विष्णु नारायण की रिपोर्ट

प. बंगाल: एक दिन चौदह मौतें, TMC के 8874 निर्विरोध प्रत्याशियों के साथ चुनाव सम्पन्न

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जितनी मौतें महीने भर की चुनावी प्रक्रिया में हुई थीं, उतनी ही जानें आज एक दिन के भीतर चली गईं। इस तरह पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनाव में हिंसा की परंपरा इस बार भी बेरोकटोक जारी रही, जो सीपीएम के जमाने से चली आ रही है।

मैनपुरी का दलित नरसंहार: चार दशक बाद आया फैसला और मुखौटे बदलती जाति की राजनीति

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जुर्म जैसा दिख रहा था दरअसल वैसा था नहीं और इंसाफ जिस रूप में हुआ है उसकी भी जुर्म से संगति बैठा पाना मुश्किल है। इसके बावजूद, सब कुछ सरकार और उसे चलाने वाली जाति के पक्ष में ही रहा, और आज भी है। बयालीस साल पहले हुए साढ़ूपुर नरसंहार में बुधवार को आया फैसला कांग्रेस के पतन और भाजपा के उभार को समझने का एक कारगर मौका है