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पश्चिम बंगाल: सबसे ज्यादा नामांकन के बावजूद सुप्रीम कोर्ट पहुंची तृणमूल सरकार

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इतिहास गवाह है कि केंद्रीय बल हों चाहे केंद्रीय पर्यवेक्षक अथवा राष्‍ट्रीय मीडिया और अदालती निर्देश, बंगाल की राजनीतिक जमीन पर चुनावी हिंसा के आड़े कुछ भी नहीं आता। नब्‍बे के दशक में मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त टीएन शेषन इकलौते थे जिन्‍होंने यहां शांतिपूर्ण चुनाव करवाए, लेकिन वह बंगाल की राजनीतिक परंपरा में एक अपवाद ही कहा जाएगा। ताजा चुनावी हिंसा पर कोलकाता से नित्यानंद गायेन की रिपोर्ट

BK-5: बिना सुनवाई, बिना चार्जशीट, एक अनंत कैद के पांच साल

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तीन साल पहले जिस बंबई हाइकोर्ट ने गौतम नवलखा के चश्‍मे के मामले में इंसानियत का हवाला दिया था उसी ने वरवरा राव को जमानत पर मोतियाबिंद का ऑपरेशन करवाने के लिए हैदराबाद जाने से रोक दिया। भीमा कोरेगांव हिंसा के मामले में कैद सोलह में से पांच की गिरफ्तारी को पांच साल बीते 6 जून को पूरा हो गया। सुनवाई शुरू होने के अब तक कोई संकेत नहीं हैं। यह कैद अनंत होती जा रही है

मैनपुरी का दलित नरसंहार: चार दशक बाद आया फैसला और मुखौटे बदलती जाति की राजनीति

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जुर्म जैसा दिख रहा था दरअसल वैसा था नहीं और इंसाफ जिस रूप में हुआ है उसकी भी जुर्म से संगति बैठा पाना मुश्किल है। इसके बावजूद, सब कुछ सरकार और उसे चलाने वाली जाति के पक्ष में ही रहा, और आज भी है। बयालीस साल पहले हुए साढ़ूपुर नरसंहार में बुधवार को आया फैसला कांग्रेस के पतन और भाजपा के उभार को समझने का एक कारगर मौका है

नेपाल का फर्जी शरणार्थी घोटाला और प्रचंड की भारत यात्रा

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फर्जी शरणार्थी घोटाले की आंच में तप रहे नेपाल के प्रधानमंत्री प्रचण्‍ड अपनी भारत यात्रा पर प्रधानमंत्री मोदी के साथ द्विपक्षीय वार्ता में भूटानी शरणार्थियों का मुद्दा उठा पाएंगे या नहीं? कुछ लोगों की उम्‍मीद भारत से भी है क्‍योंकि ‘भूटान भारत की सुनता है’, लेकिन इस मसले पर अतीत के संदिग्‍ध रिकॉर्ड के मद्देनजर क्‍या भारत भूटान से कुछ कह पाएगा, यह भी एक सवाल है। फर्जी शरणार्थी घोटाले पर चर्चा के बीच नेपाली मूल के भूटानी शरणार्थियों यानी ल्‍होत्‍सम्‍पा समुदाय की व्‍यथा याद कर रहे हैं अभिषेक श्रीवास्‍तव

नाकाम भूमि सुधार के जिम्मेदार जमींदारों की आपसी लड़ाई का नया चेहरा

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मौजूदा टकराव पाकिस्तानी शासक वर्ग के धड़ों का आपसी टकराव है जिसमें जनहित के किसी सवाल का जिक्र तक नहीं है। इस स्थिति को पाकिस्तानी सत्ता के ढांचे और उसमें फौज की भूमिका के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में समझा रहे हैं मुकेश असीम

‘नबाम रेबिया’ का मुकदमा और भुला दी गई एक मौत

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सात साल बाद जिस फैसले की समीक्षा सुप्रीम कोर्ट की उच्‍च पीठ से अभी होनी बाकी है, उसने नबाम रेबिया का नाम तो न्‍यायिक इतिहास में दर्ज कर दिया लेकिन कलिखो पुल को हमेशा के लिए मिटा दिया

पाकिस्तान: क्या सेना ने इस बार इमरान की ताकत भांपने में गलती कर दी है?

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1979 में जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी दिए जाने के बाद पाकिस्तान की पॉलिटिकल क्लास ने सेना के खिलाफ जाने की हिम्मत नहीं दिखाई थी। बेनजीर भुट्टो की हत्या ने सेना के खौफ को और मजबूत ही किया था, लेकिन इस बार स्थिति उलटी है

कैसरगंज का सांसद भाजपा की मजबूरी क्यों बना हुआ है?

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क्‍या दिल्‍ली में बृजभूषण सिंह के इस्‍तीफे की मांग पर चल रहे आंदोलन का कैसरगंज में कोई असर है? भाजपा सांसद के क्षेत्र से जमीनी जायजा लेकर लौटे इम्तियाज़ अहमद की रिपोर्ट

आंखोंदेखी : जंतर-मंतर पर क्या हुआ था प्रेस स्वतंत्रता दिवस की आधी रात?

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पत्रकार आए तो थे तो रिपोर्टिंग करने पर यहां तो जान बचाना मुश्किल हो रहा था। एक महिला पत्रकार दिल्‍ली के सुनसान चौराहे पर आधी रात में अकेली खड़ी थी। मैं सोच रहा था कि इस दौरान अगर कोई घटना घटी तो इसका जिम्मेदार कौन होगा।