Politics

Jansuraj hoarding in Patna

प्रशांत किशोर की ‘जन सुराज’: गांधी के नाम पर एक और संयोग या संघ का अगला प्रयोग?

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बारह साल पहले गांधी का नाम लेकर आम आदमी के नाम पर दिल्‍ली में एक राजनीतिक पार्टी बनी थी। अबकी गांधी जयंती पर पटना में जन के नाम पर एक और पार्टी बनी है। आम आदमी पार्टी और जन सुराज दोनों के मुखिया देश में नरेंद्र मोदी के राजनीतिक उदय की न सिर्फ समानांतर पैदाइश दिखते हैं, बल्कि दोनों की विचारधारा से लेकर कार्यशैली तक में काफी समानताएं हैं। बिहार असेंबली चुनाव के ठीक पहले जन सुराज के बनने को वहां के लोग कैसे देख रहे हैं? क्‍या यह नई पार्टी कथित राजनीतिक वैक्‍युम में कोई विकल्‍प दे पाएगी? दो अक्‍टूबर को पटना में जन सुराज के अधिवेशन से लौटकर विष्‍णु नारायण की विस्‍तृत रिपोर्ट

जन-प्रतिनिधियों को ‘सेल्समैन’ और अपने कार्यकर्ताओं को ‘डेटा चोर’ क्यों बना रही है भाजपा?

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चीन की कम्‍युनिस्‍ट पार्टी को पीछे छोड़कर दुनिया का सबसे बड़ा राजनीतिक दल बनने की भाजपा की ख्‍वाहिश ने न सिर्फ करोड़ों आम लोगों को अनजाने में उसका प्राथमिक सदस्‍य बना दिया है, बल्कि पार्टी का आंतरिक चरित्र भी बदल डाला है। अब भाजपा के नेता और जन-प्रतिनिधि नेतृत्‍व के दिए ‘टारगेट’ की खुलेआम सेल्‍समैनी कर रहे हैं और उसके कार्यकर्ता धोखे से लोगों का डेटा चुरा रहे हैं- महज पांच, दस, बीस, रुपये के लिए! उत्‍तर प्रदेश के बुंदेलखंड से अमन गुप्‍ता की रिपोर्ट

Rajasthan High Court

न्याय के रास्ते धर्मतंत्र की कवायद: जस्टिस श्रीशानंद, विहिप की बैठक और काशी-मथुरा की बारी

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कर्नाटक उच्‍च न्‍यायालय के एक जज की अनर्गल टिप्पणियों पर संज्ञान लेने के पांच दिन बाद उन्‍हें आखिरकार हलके में बरी कर के और साथ ही जजों के लिए किसी दिशानिर्देश का शिगूफा छोड़कर सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर से पानी में लाठी भांजने का काम किया है। देश की राजधानी में जब केंद्रीय कानून मंत्री और दो दर्जन से ज्‍यादा पूर्व जजों की मौजूदगी में खुलेआम काशी-मथुरा के मंदिरों की योजना बन रही हो, ऐसे में संवैधानिक नैतिकता के सवाल को कौन संबोधित करेगा? अदालती रास्‍ते से हिंदू राष्‍ट्र बनाने की कोशिशों पर सुभाष गाताडे

Bulldozer Politics

बीता आम चुनाव क्या हिंदुत्‍व के बुलडोजर की राह में महज एक ठोकर था?

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आम चुनाव के नतीजों के बाद राजनीतिक पंडितों ने दावा किया था कि ‘कमजोर’ हो चुके मोदी को अब भाजपा की वर्चस्‍ववादी राजनीति में नरमी लाने को बाध्‍य होना पड़ेगा। तात्‍कालिक विश्‍लेषण की शक्‍ल में जाहिर यह सदिच्‍छापूर्ण सोच आज बुलडोजर के पैदा किए राष्‍ट्रीय मलबे में कहीं दबी पड़ी है। भारत में कुछ भी नहीं बदला है। हां, तीसरी बार सत्‍ता में आए मोदी को ऐसे विश्‍लेषणों ने एक प्रच्‍छन्‍न वैधता जरूर दे दी, कि यहां लोकतंत्र अभी बच रहा है। प्रोजेक्‍ट सिंडिकेट के सौजन्‍य से देबासीश रॉय चौधरी का लेख

Security guard at Lal Chowk

जम्मू-कश्मीर को राज्य बनाए बिना हालात ठीक नहीं हो सकते : पूर्व गवर्नर सत्यपाल मलिक से बातचीत

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जम्मू और कश्मीर के इतिहास में पूर्व गवर्नर जगमोहन के बाद सत्यपाल मलिक ही हैं जिनके जिक्र के बगैर कश्मीर पर आज बात नहीं हो सकती। आज मलिक और मोदी सरकार न सिर्फ दूर हो चुके हैं, बल्कि एक-दूसरे को नापसंद भी करते हैं। व्यवस्था को इतने करीब से देखने, जानने, समझने और खुद अमल में लाने वाले मलिक के लिए क्या बदल गया इन पांच वर्षों में, यह समझने के लिए रोहिण कुमार ने दिल्‍ली में अनुच्‍छेद 370 की पांचवीं बरसी पर उनसे लंबी बातचीत की

Eknath Shinde, Maharashta CM

महाराष्ट्र का नया कानून और ‘पुलिस राज’ का कसता शिकंजा

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भारत में 1 जुलाई से लागू हुई नई न्‍याय संहिताओं के साथ-साथ महाराष्‍ट्र में एक नया जनसुरक्षा कानून भी आया है। यह कानून उस ‘शहरी नक्‍सल’ के खतरे पर अंकुश के लिए बनाया गया है, जिसके बारे में इस देश का गृह राज्‍यमंत्री संसद में कह चुका है कि गृह मंत्रालय और सरकार की आधिकारिक शब्‍दावली में यह शब्‍द है ही नहीं। ऐसे अनधिकारिक और अपरिभाषित शब्‍दों के नाम पर बनाए जा रहे कानून और की जा रही कार्रवाइयों के मकसद और मंशा पर नजर डाल रहे हैं सुभाष गाताडे

Labour leader Keir Starmer’s vctory celebrations in London

ब्रिटेन : इतिहास की सबसे ज्यादा ‘सर्वहारा’ सरकार से क्या उम्मीद की जानी चाहिए?

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लेबर पार्टी के नेता कीर स्‍टार्मर की आगामी कैबिनेट में जितने सदस्‍य मजदूर तबके की पैदाइश हैं, उतने ब्रिटेन के इतिहास में किसी सरकार में कभी नहीं रहे। इसका मतलब क्‍या है? क्‍या इसका नीति-निर्माण पर कोई खास असर पड़ेगा या ब्रिटेन के पैदाइशी अभिजात्‍यों के दबाव में अपने वर्ग के लिए कुछ करने की उनकी लालसा दबी ही रह जाएगी? प्रोजेक्‍ट सिंडिकेट के सौजन्‍य से समाजशास्‍त्री एरन रीव्‍स और सैम फ्रीडमैन का आकलन

Marine Le Pen

यूरोप चुनाव: बढ़ते मसखरों के बीच नए फासिस्‍टों का मंडराता साया

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इस महीने यूरोपीय संसद के लिए हुए चुनावों के बाद अब मुख्‍यधारा के राजनीतिक दल और नेता धुर दक्षिणपंथ के साथ एक नाव में सवार होने की पूरी तैयारी कर चुके हैं। इस तरह, दूसरे विश्‍व युद्ध के बाद यूरोप के लोकतांत्रिक देशों द्वारा ‘फासिस्‍टों से गठजोड़ न करने’ के अपनाए गए सिद्धांत को चुपके से तिलांजलि दे दी गई है। अब यूरोप को फासिस्‍ट कुबूल हैं। प्रोजेक्‍ट सिंडिकेट के साथ फॉलो-अप स्‍टोरीज की विशेष व्‍यवस्‍था के तहत प्रतिष्ठित चिंतक स्‍लावोइ ज़ीज़ेक का विश्‍लेषण

BJP Office in Durgapur set on fire by TMC members

पश्चिम बंगाल: न सांप्रदायिकता हारी है, न विकास जीता है

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पश्चिम बंगाल के चुनावी मैदान में चार दलों के होने के बावजूद मतदाताओं के लिए महज भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच आर-पार बंट गया लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद अब हिंसक रंग दिखा रहा है। केंद्र में सरकार बन चुकी है, लेकिन मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे ‘अवैध और अलोकतांत्रिक’ करार दिया है। भाजपा फिलहाल चुप है, लेकिन बंगाल में उसकी सीटों में आई गिरावट को सांप्रदायिकता पर जनादेश मानना बड़ी भूल होगी। चुनाव परिणामों के बाद बंगाल के मतदाताओं से बातचीत के आधार पर हिमांशु शेखर झा का फॉलो-अप

INDIA candidates from Bihar's Karakat, Ujiyarpur and Begusarai Loksabha

चुनाव में Fake News : बिहार से विपक्ष के प्रत्याशियों की जुबानी फर्जी खबरों की कहानी

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आम चुनाव के अंतिम चरण का प्रचार अब थम चुका है। चार जून को नतीजे आएंगे। क्‍या इस चुनाव पर Fake News का कोई फर्क पड़ा है? क्‍या प्रत्‍याशियों के प्रचार अभियान पर दुष्‍प्रचार का असर पड़ा है? संसदीय चुनाव में खड़े उम्मीदवारों से बातचीत इस समस्या के अनकहे पहलुओं और जमीनी हकीकत को पेश करती है। फेक न्‍यूज पर प्रकाश डालने के साथ बिहार से इंडिया गठबंधन के तीन प्रत्‍याशियों से बातचीत कर रहे हैं डॉ. गोपाल कृष्‍ण